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मित्र और मित्रता

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)
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मित्रता का अपना-अपना
उसूल होता है,
मित्रता के अनुभव भी
बहुत खट्टे-मीठे होते हैं।
सच तो यह है कि मित्र
बनाये नहीं जाते
बन जाते हैं,
हम चाहें या न चाहें
बस दिल में उतर जाता है।
न जाति धर्म मजहब
न ही स्त्री या पुरुष का भाव
बस वो अपना सिर्फ अपना ही
नजर आता है।
उसका हर कदम,हर भाव
उसकी सोच, उसकी चिंता
अपनेपन का बोध कराता है।
उसके हर विचार
रूठना, मनाना, डाँटना, समझाना,
और तो और
अधिकार समझना
गुस्से में लाल तक हो जाना भी,
तो कभी-कभी आँसू बहाना
हमारे दुर्व्यवहार को भी
शिव बन पी जाना,
माँ, बाप, बहन, भाई,
मित्र जैसे रिश्ते निभाना,
हमारी खुशी के लिए
सब कुछ सहकर भी
हँसकर टाल जाना,
पूर्व जन्म के रिश्तों का
अहसास दे जाना
सच्चे मित्र की पहचान है।
उम्र का अंतर
मायने नहीं रखता
क्योंकि हमें खुद बखुद
उसके कदमों में झुक जाने का
मन भी करता,
उसके प्रति श्रद्धा बढ़ती जाती
उसमें ही अपना सबसे बड़ा
शुभचिंतक, भाई, बहन के रुप में
मित्र मित्र नहीं भगवान नजर आता।
परंतु अफसोस तब होता है
जब मित्र के रूप में हमें
शैतान मिल जाता है।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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