परंपरा का पक्ष
सूरज सिंह राजपूत
जमशेदपुर, झारखंड
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हाँ, मैं परंपरा हूँ।
वही परंपरा, जिससे
तुम कभी प्रश्न करते हो,
कभी संदेह की
दृष्टि से देखते हो,
कभी मुझे अतीत
का बोझ समझकर
अपने कंधों से उतार
फेंक देना चाहते हो।
परंतु क्या तुमने
कभी रुककर यह सोचा है
कि मेरा अस्तित्व
तुम्हें क्यों अखरता है?
क्या सचमुच मैं उतनी
रूढ़, उतनी संकीर्ण हूँ,
जितना तुम्हारी आधुनिक
दृष्टि मुझे मान लेती है?
आओ, मेरे युवा,
मेरे जागरूक, विचारशील
और तेजस्वी युवा
आज मैं स्वयं अपना
परिचय देती हूँ।
मैं परंपरा हूँ पर मैं
अतीत की जंजीर नहीं
तुम मुझे अक्सर
बीते समय की निशानी
समझते हो, पर क्या तुम
जानते हो कि मैं वह चेतना हूँ
जो सदियों के अनुभवों, प्रयोगों,
संघर्षों और सीखों से निर्मित हुई है?
मैं कोई मृत अवशेष नहीं,
मैं पीढ़ियों की यात्रा हूँ
जिसमें ज्ञान भी है,
गलतियाँ भी हैं,
शिक...

