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नेह तुमसे लगाऐं

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विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)

नेह तुमसे लगाऐं,
तुम ना स्वीकारो?
क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।…
असर अब कुछ हुआ है।
दिखे खाई कुआ है।
प्रीत में हार बैठे सब,
खेला ऐसा जुआ है ।
हम दर्द से बिलखें,
नजर तुम ना बुहारो?
क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।…
अजब हलचल हुई थी।
टाट, मल-मल हुई थी।।
तुम्हारे प्रेम बंधन में,
देह शतदल हुई थी।।
आज दल-दल फंसे हैं,
देखकर ना उबारो ?
क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।…
भला अनुराग पाला।
मन घुली हाय हाला।।
अधेरों से हुयी यारी,
लगे बैरी उजाला ।।
तिमिर की स्याह में डूबे,
दीप फिर भी ना जारो?
क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।…
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परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।


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