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सुघ्घर कातिक के महिना

रामसाय श्रीवास “राम”
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)

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छत्तीसगढ़ी भाखा म लोक गीत के रचना हावय

भिनसरहा के बेर मा, कर कातिक असनान ।
पूजन कर भगवान् के, कर ले ओकर ध्यान ।।

सूरूज ला दे के अरघ, कर जीवन उजियार ।
इही सनातन धर्म के, बने हमर संस्कार ।।

जल दे के शिव के करें, हाथ जोर परनाम ।
बिगरे सबो संवारहीं, पूरन करहीं काम ।।

कच्चा दूध अऊ बेल के, ले के पाती हाथ ।
शिव शंकर ला ले मना, अपन नवा के माथ ।।

पूजा तुलसी मात के, फूल पान के संग ।
जिनगी मा सुख के संगी, भर जाही सब रंग ।।

धनतेरस शुभ वार हे, धनवंतरि महराज ।
माँ लक्ष्मी पूरन करें, सबके बिगरे काज ।।

देवारी के रात मा, जगर बगर परकास ।
माटी के दियना बरे, करे जगत उजियास ।।

गोवर्धन पूजा करें, बइला भात खवांय ।
जतको घर परिवार के, मिल के भोग लगाएं ।।

महिमा पुन्नी के संगी, कतका करंव बखान ।
अंवरा रूखुवा के तरी, खावंय सकल सुजान ।।

कातिक महिना जे करें, पूजा जप तप ध्यान ।
*राम*विघन ओकर हरें ,नारायण भगवान् ।।

परिचय :- रामसाय श्रीवास “राम”
निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)
रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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