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अंतिम सत्य

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बहुत दिनों से मेरी
फड़क रही थी आँख।
कोई शुभ संदेश अब
हमें मिलने वाला है।
फिर एकाएक तुम्हें
आज यहाँ पर देखकर।
रह गया अचंभित मैं
तुम्हें सामने पाकर।।

बहुतो को रुलाया है
तुमने जवानी के दिनों में।
कुछ तो अभी भी जिंदा है
तेरे नाम को जपकर।
लटक गये है पैर अब
उनके कब्र में जाने को।
पर फिर भी उम्मीदें रखे है
आज भी दिल में बसाने की।।

यहाँ पर सबको आना है
एक दिन जलने गढ़ने को।
कितने तो पहले ही यहाँ
आकर जल गढ़ चुके है।
तो तुम कैसे बच पाओगी
जीवन के अंतिम सत्य से।
और यहाँ आकर मिलता है
समानता का अधिकार सबको।।

यहाँ पर जलते गड़ते रहते है
सुंदर मानव शरीर के ढाचे।
जिस पर घमंड करते थे
और लोगों को तड़पाते थे।
पर अब जीवन का सत्य
उन्हें समझ आ गया।
इसलिए तो अंत में तुम
आ गई हो अपनों के बीच में।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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