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दीपावली की रंगोली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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मन के भाव कला बनकर जब,
रंगोली बन जाते।
रंगोली के विविध रंग तब,
सबके मन को भाते।

रंगोली की कला निखरती,
कलाकार के कर से।
रंगोली की छटा देख कर,
जन-जन का मन हरसे।

कई रंग से मिलकर बनता,
इसका रूप निराला।
सारे कौशल दिखलाता है,
इसे बनाने वाला।

अलग-अलग हैं भाव सभी के,
अलग-अलग है बोली।
अपने भावों को रँग देकर,
बनती है रंगोली।

कइ प्रकार बनती रंगोली,
अलग अलग दिखती है,
कोमलांगी अपने कर से,
मनोभाव लिखती है।

दीपोत्सव है पर्व अनोखा,
मिलकर सभी मनाते।
रंग बिरंगे दीप सजाकर,
मोहक कला बनाते।

सधे हुए हाथों से जब भी,
रंगोली बनती है।
हर कोने पर दिया सजाकर,
दीवाली मनती है।

दीप मालिका सजा, सजा कर,
रोशन करते घर को।
शांति संदेशा रंगोली का,
गाँवों और शहर को।

कइ वृक्षों के फूल बिखर कर,
रंगोली बन जाती।
अंबर में जो बने रँगोली,
इंद्रधनुष कहलाती।

रंगोली से रंग सजाकर,
जीवन को महकायें।
सतरंगी रँग मन को अपने,
चिड़ियों सा चहकायें।

रंग भरें सबके जीवन में,
खुशहाली फैलायें।
हर सैनिक के नाम हम सभी,
दीपक एक जलायें।

अमन चैन की दुआ करें हम,
चारों ओर अमन हो।
ऐसी बने रंगोली सुंदर,
जैसे कोई चमन हो।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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