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Tag: अंजनी कुमार चतुर्वेदी

जिसका रहा ध्येय जीवन में
कविता

जिसका रहा ध्येय जीवन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसका रहा ध्येय जीवन में, परमपिता को पाना। ज्ञानवान वह मानव जग में, जिसने खुद को जाना। उत्तम ध्येय सभी को जग में, है सम्मान दिलाता। हृदय सरोवर में, खुशियों के, सुरभित कमल खिलाता। रहा ध्येय जिनका जीवन में, बनें, दीन हितकारी। उनकी जीवन नैया हरदम, प्रभु ने पार उतारी। मन में ध्येय, देश सेवा का, जो मानव रखते हैं। शौर्य,पराक्रम दिखा, विजय का, स्वाद वही चखते हैं। जिनका ध्येय परम पद पाना, वही परम पद पाते। शबरी की महिमा मानस में, बाबा तुलसी गाते। जनहितकारी ध्येय जगत में, पूजनीय होता है। जिसका ध्येय अपावन होता, यश वैभव खोता है। रख,शुभ ध्येय, विभीषण जी ने, शरण राम की पाई। अशुभ ध्येय रख, दशकंधर ने, अपनी जान गवाँई। सदा सर्वदा निज जीवन में, पावन ध्येय बनाएं। पावन ध्येय प्राप्त करने को, प्रभु ...
वैदिक ज्ञान भरें अंतस में
कविता

वैदिक ज्ञान भरें अंतस में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारे जग में सर्वश्रेष्ठ हैं, वैदिक परंपरायें। हम ऋषि-मुनियों की संताने, मिलकर सब अपनायें। वैदिक धर्म सकल दुनिया में, परम पुरातन भाई। पावनता लख इसकी महिमा, वेदों ने भी गाई। भारत,आर्यावर्त इसी का, वैदिक नाम पुराना। वैदिक धर्म, सनातन को भी, सारे जग ने माना। कालखंड,भारतीय संस्कृति का, ही वैदिक कहलाता। वैदिक ज्ञान,सभ्यता वैदिक, सकल जगत अपनाता। भारतीय वैदिक संस्कृति को, दुनिया ने अपनाया। इसे मानने वालों ने ही, सुख मय जीवन पाया। वैदिक रीति-रिवाज, हमारे, सकल जगत ने जाने। है नैतिक दायित्व हमारा, हम भी इनको माने। वैदिक ज्ञान सदा जीवन को, उन्नति पथ ले जाता। जिसमें वैदिक ज्ञान भरा वो, मान जगत में पाता। वैदिक परंपरायें हमको, उत्तम राह दिखातीं। स्वाभिमान से जियें जिंदगी, सबको यही सिखातीं। ...
हें अनादि परमेश्वर मेरे
कविता, स्तुति

हें अनादि परमेश्वर मेरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसका आदि अंत न होता, वह अनादि कहलाता। अंत रहित, प्रभु सदा सर्वदा, हैं अनंत फल दाता। जो शाश्वत हैं, सदा सनातन, वह अनादि भगवन हैं। गर्भवास से मुक्त रहें जो, बसते जो जन मन हैं। आदि अंत से रहित अविद्या, दोष न जिसको होता। नस-नाड़ी बंधन से विलगित, कोई जनक न होता। जो प्रारंभ नहीं होता है, सदा सनातन रहता। आदि रहित उस परम तत्व को, मानव भगवन कहता। जिसकी प्रकृति अनंत अनादी, परमात्मा है प्यारा। सदा अजन्मा, शाश्वत है जो, सारे जग से न्यारा। प्रकृति, जीव, परमात्मा तीनों, आदि अंत से ऊपर। नाशवान वह है दुनिया में, जो आया है भूपर। हैं अनादि परमेश्वर मेरे, अंत रहित हैं स्वामी। सारे जग के पालन कर्ता, हैं प्रभु अंतर्यामी। रूप, रंग, आकार रहित प्रभु, हैं अनादि कहलाते। प्रभु से सब जन्मे, सब जाकर, प्रभु ...
लंबी उम्र मिले भाई को
कविता

लंबी उम्र मिले भाई को

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भाई बहन के मधुर प्यार का, दूज पर्व है पावन। जैसे बारिश में आता है, रक्षाबंधन सावन। भाई दूज कहाती है यह, तिलक भाल पर लगता। भाई -बहन का सघन प्यार ही, अतुल नेह में पगता। तिलक लगा आरती उतारें, उसकी खैर मनायें। भैया भाभी रहें प्यार से, घर को स्वर्ग बनायें। घर आँगन में खेलें बच्चे, माता-पिता सुखी हों। परिजन पुरिजन सारे रिश्ते, फूलें सूर्यमुखी हों। सजा आरती टीका करतीं, खूब बलईंयाँ लेतीं। खुशी रहे परिवार भाई का, भर आशीषें देतीं। दूज पूजकर सारी बहनें, माथे तिलक लगातीं। करें आरती स्वयं भाइ की, मंगल थाल सजातीं। लंबी उम्र मिले भाई को, प्रभु से विनती करतीं। हो पीहर खुशहाल हमारा, मन उमंग से भरतीं। दे उपहार भाइ,बहनों को, आशीषें लेता है। सारे जीवन भर रक्षा का, वचन वही देता है। भाई बहन का प्य...
अरे चाँद तू मत इतराना
कविता

अरे चाँद तू मत इतराना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** ओ अंबर के चाँद सलोने, वसुधा पर आ जाओ। जो सुहागिनें बाट जोहतीं, उनको मत तरसाओ। पावन पर्व, चौथ करवा का, सब सुहागिनें करतीं। पार्वती-शिव पूजन करके, खुशियाँ दामन भरतीं। बड़ा भाग्यशाली है चंदा, गोरी तुझे निहारे, जल्दी से तू सम्मुख आजा, करना नहीं किनारे। तुझे देख कर सभी सुहागिन, मंद-मंद मुस्कातीं। छलनी में दीपक रोशन कर, तुझ पर वारी जातीं। अरे चाँद तू मत इतराना, उनको नहीं सताना। वरना तुझको पड़ जाएगा, बिना बजह पछताना। एक चाँद, पहले से उनके, घर में ही रहता है। तू केवल अंबर में रहता, वह दिल में रहता है। रात अमावस जब-जब आती, तू गायब हो जाता। इतराने के कारण ही तू, नभ में ही खो जाता। उनका चाँद साथ में रहता, कभी नहीं मुख मोड़े। चाहे जैसी दशा-दिशा हो, कभी साथ ना छोड़े। सभी सुहागन तुझे पूजती...
रहे सलामत मेरा सजना
कविता

रहे सलामत मेरा सजना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारे भारत के नर नारी, करवा चौथ मनाते। अपने ही अपनों से मिलकर, अपना उन्हें बनाते। पार्वती शिव और गजानन, की पूजा होती है। चौथ तिथि को पूज्य सुहागिन, सारे दुख खोती है। उत्तम पति की आस ह्रदय रख, कन्यायें व्रत करतीं। सारे सुख सौभाग्य प्राप्ति की, मन में आशा भरतीं। निराहार निर्जल व्रत रखकर, सुंदर रूप सजातीं। दीर्घायु हों सजन हमारे, प्रभु से खैर मनातीं। सारे दिन पकवान बनातीं, गृह कारज करतीं हैं। कर सोलह श्रृंगार सँवरतीं, मन उमंग भरतीं हैं। नए वस्त्र आभूषण पाकर, मन ही मन मुस्कातीं। रहे सलामत मेरा सजना, गीत प्यार के गातीं। अंबर में जब चाँद दीखता, तब पूजा विस्तारें। चलनी और दीप ज्योति से, उसकी छटा निहारें। मधुमय जीवन हो हम सबका, इसी भाव से जीतीं। चाँद देखकर खुश हो जातीं, साजन से जल पीतीं।...
मुख पर आधा घूँघट डाले
कविता

मुख पर आधा घूँघट डाले

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सज-धज कर तैयार हुई है, होती आज विदाई। लौट-लौट घर देख रही है, बेटी हुई पराई। मुख पर आधा घूँघट डाले, देख रही भाई को। तिरछी चितवन से निहारती, है रोती माई को। आँसू छुपा, खड़े हैं पापा, सोच रहे हैं मन में। विछड़ रही है आज पिता से, बेटी इस जीवन में। रोना चाहे रहे हैं नैना, सागर भर आया है। आँगन द्वार देहरी छूटी, छूट रहा साया है। कर सोलह श्रृंगार जा रही, आज पिया के अँगना। नथ, मेहंदी, कुंडल कानों में, पहन कलाई कँगना। कभी याद आती बाबुल की, कभी बहन की आती। माँ,भैया सँग याद गेह की, पल-पल बहुत सताती। छोड़ चली बाबुल का अँगना, भैया बहना छूटे। टूट रही रिश्तों की डोरी, आज धैर्य भी टूटे। पिया मिलन की बात सोच कर, मन ही मन मुस्काती। जिस आँगन में बचपन बीता, उसे भुला नहिं पाती। समझाती फिर, अपने मन ...
चंदन पटली की चौकी पर
भजन

चंदन पटली की चौकी पर

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** शारदेय नवरात्रि आ गई, अब पांडाल सजे हैं। घर-घर बंदनवार शोभते, औ रण तूर्य बजे हैं। माता रानी आज आ रहीं, घर-घर बजे बधाई। हुआ आगमन शुभ्र शरदका, आज शुभ घड़ी आई। नवराते माता रानी के, मिलकर सभी मनाते। वंदनवार फूल मालायें, चुन-चुन पुष्प बनाते। चंदन पटली की चौकी पर, माता आज बिराजें। सुंदर कलश सजे हैं प्यारे, मृदु धुन बाजे बाजें। मंगल गीत गूँजते चहुँ दिश, लगा रहे जयकारा। सजा हुआ माता रानी का, है पंडाल न्यारा। भक्त मंडली भजन गा रही, चौकी है माता की। बनी रहे सारे भक्तों पर, कृपा आज दाता की। पूजा की थाली लेकर अब, भक्त मंडली जाती। लाल चुनरिया ओढ़ शीश पर, भजन प्रेमसे गाती। रक्त पुष्प सँग लाल चुनरिया, माता को भाती है। भक्त मंडली माँ दुर्गा से, आशीषें पाती है। माता की चौकी अति प्यारी, माँ को मोहित करती। मानव के जी...
लक्ष्मी का अवतार राधिका
स्तुति

लक्ष्मी का अवतार राधिका

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी का अवतार राधिका, बरसाने में आई। विष्णु स्वयं, अवतार कृष्ण हैं, गोकुल बजे वधाई। राधा बिना,कृष्ण आधा है, राधा ही कान्हा है। कान्हा बिना,अधूरी राधा, राधा बिन कान्हा है। राधा-माधव, युगल मनोहर, झाँकी सुंदर, प्यारी। करती हैं निर्मूल दुखों को, श्री वृषभानु दुलारी। हैं बड़भाग, राधिका रानी, कृष्ण बने अनुगामी। तीन लोक आधीन आपके, बारंबार नमामि। लीला मधुर,राधिका जी की, अविरल गंगा धारा। सुखद छटा, राधा-मोहन की, मनमोहन अति प्यारा। चरण शरण जो रहे युगल की, पाप, ताप मिट जाते। जनम-मरण के भव बंधन से, सब छुटकारा पाते। विष्णु रूप में जन्मे कान्हा, लक्ष्मी रूप में राधा। युगल रूप जो दर्शन करता, हट जाती है बाधा। देह रुप हैं कृष्ण कन्हाई, बनी आत्मा राधा। कृष्ण अधूरे हैं राधा बिन, बिन का...
पल दो पल की साँसें तेरी
कविता

पल दो पल की साँसें तेरी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नाजुक बड़ी, साँस की डोरी, आओ इसे सम्हालें। टूटेगी कब, पता नहीं कुछ, जल्दी मंजिल पालें। पल दो पल की साँसें तेरी, पल दो पल की काया। छोड़ जगत सबको जाना है, कहाँ कोई रुक पाया। पानी कैसा बना बुलबुला, यह मानव तन तेरा। जीवन नहीं हमेशा तेरा, है पल भर का डेरा। आया है जो, वो जाएगा, स्थिर नहीं ठिकाना। सदा लगा रहता दुनिया में, सबका आना-जाना। दुनिया रैन बसेरा तेरा, क्यों इतना इतराता। प्राण पखेरू कब उड़ जाए, पता नहीं चल पाता। करता है गुमान तू भारी, अपनी देख जवानी। नाम शेष रह जाता जग में, रहती शेष कहानी। धन-वैभव, माया में उलझा, भूला दुनियादारी। चार दिवस का जीवन तेरा, चलने की तैयारी। पूजन भजन किया नहिं तूने, रहा जवानी सोता। बुला रहा दर्प में हरदम, पछताए क्या होता? छोड़ सकल जंजाल जग...
शिक्षा है अनमोल रत्न-सी
कविता

शिक्षा है अनमोल रत्न-सी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सदा मुक्त करती बंधन से, शिक्षा ज्ञान बढ़ती। ज्ञानी-गुणी बना मानव को, जग में मान दिलाती। शिक्षा देना पुण्य कार्य है, जो भी देकर जाने। शिक्षा देने वाले गुरु को, जगत विधाता माने। शिक्षा पाकर ही हर मानव, शिक्षित है कहलाता। ज्ञान-चक्षु जब खुल जाते हैं, तब दीक्षित हो जाता। शिक्षा को व्यवसाय बनाकर, जो शिक्षा देते हैं। शैक्षणिक व्यवसाय समझ कर, ही भिक्षा देते हैं। शिक्षक की छवि, धूमिल होती, शिक्षा ज्ञान न देती। ऐसी शिक्षा बन जाती है, कम उत्पादक खेती। शिक्षा को, व्यवसाय बनाना, पाप कर्म है भारी। शिक्षा सहित, कलंकित खुद को, करने की तैयारी। और अधिक, पाने की चाहत, ही लालच कहलाती। लालच, तृष्णा ही मानव का, है ईमान गिराती। शिक्षा है अनमोल रत्न- सी, खुशियों भरा खजाना। सुचिता, सात्विकता स...
अच्छी आदत सब अपनाएं
कविता

अच्छी आदत सब अपनाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छी आदत हर दम अपने, जीवन में अपनायें। पा आशीषें वृद्ध जनों की, जीवन सफल बनायें। सूरज से, पहले जग जाना, प्रातः काल नहाना। गुरु जागें, तुम उनसे पहले, रोज-रोज, जग जाना। पूजा-पाठ, संग गृह कारज, जो, जीवन में करते। उनसे प्रभु प्रसीद होते हैं, खुशियाँ दामन भरते। गुरु पद सेवा, मंदिर जाना, जीवन में अपनायें। दुनिया देख,न विचलित हों हम, प्रभु से खैर मनायें। मात-पिता की सेवा करना, है अति प्यारी आदत। साक्षात भगवान समझना, सच्ची यही इबादत। दीन दुखी की सेवा करना, उनमें हिम्मत भरना। सबसे अच्छी आदत जग में, सब की सेवा करना। सेवा से,मन निर्मल होता, मैल दूर हो जाता। निर्मल मन जिसका हो जाता, वही प्रभु को पाता। लें संकल्प, सदा जीवन में, हम शुभ काम करेंगे। दीन-दुखी सबके जीवन में, उर आनंद भर...
हम प्रभु जी की कठपुतली हैं
भजन

हम प्रभु जी की कठपुतली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सबके जीवन के रक्षक हैं, कान्हा मुरली वाले। सदा बदलते धवल ज्योति में, जीवन के दिन काले। बीच भँवर में डोल रही है, हम भक्तों की नैया। तुम ही मेरे जीवन रक्षक, तुम ही नाव खिवैया। जीवन डोर हाथ है प्रभु के, प्रभु जी सदा बचाते। हम प्रभु जी की कठपुतली हैं, प्रभु जी हमें नचाते। भक्तों की जीवन नैया को, खेते स्वयं विधाता। भक्तों की रक्षा करने को, खुद रक्षक बन जाता। गज अरु ग्राह लड़े जल भीतर, अंत समय गज हारा। गज की रक्षा करने के हित, श्रीहरि बने सहारा। बन जाते हरि सबके रक्षक, करते सदा सुरक्षा। अपने भक्तों के जीवन की, हर पल करते रक्षा। रक्षक बनकर लखन लाल ने, चौदह बरस बिताए। मार दशानन, सिया सहित प्रभु, लौट अवधपुर आए। रक्षक बने, विभीषण के प्रभु, अपना दास बनाया। आया शरण विभीषण प्रभु की,...
बोलो पीर सहूँ मैं कब तक
कविता

बोलो पीर सहूँ मैं कब तक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बोलो पीर सहूँ मैं कब तक, तुम्हें दया नहिं आती। पेड़ काट कर गिरा रहे हो, फटती मेरी छाती। धरती माता बोल रही हूँ, अपना दर्द सुनाती। माँ का सीना छलनी करते, तुझे लाज नहिं आती। तेरा बचपन मुझ पर बीता, अब यौवन पाया है। अपने आँचल तुझे दुलारा, दी शीतल छाया है। पर्वत सब उरोज हैं मेरे, बनी वृक्ष से काया। माँ का कर्ज आज तक तूने, क्यों कर नहीं चुकाया? सभी जीव छाया पाते हैं, कोयल मधुरिम गाती। जब कटते हैं वृक्ष धरा से, छलनी होती छाती। ओ निष्ठुर, बेदर्दी मानव, पीर बढ़ा मत मेरी। कब तक पीर सहूँ मैं बोलो? माता हूँ मैं तेरी। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्र...
करुण नयन की करुण वेदना
कविता

करुण नयन की करुण वेदना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** देख श्रमिक के करुण नयन जो, द्रवित नहीं होता है। ऐसे मानव का दिल बिल्कुल, पत्थर-सा होता है। औरों के प्रासाद बनाते, तन से बहा पसीना। अंबर के नीचे ही उनको, पड़ता जीवन जीना। होली, ईद, दिवाली में ही, पूरा भोजन पाते। शेष दिनों में बच्चों के सँग, भूखे ही सो जाते। जिनके तन का स्वेद गलाता, लोहे को पानी-सा। बंजर भूमि रूप धरती है, हरा भरा धानी- सा। जो गरीब का हिस्सा खाकर, कष्ट उन्हें पहुँचाते। पाकर वे बद्दुआ दीन की, जीवन भर पछताते। करुण नयन की करुण वेदना, दूर हटाना होगी। हृद में पीर भरी निर्धन के, पीर घटाना होगी। करुण नयन,लख जो गरीब के, अति विचलित हो जाते। बन करुणानिधान दुनिया में, राम-सदृश यश पाते। हो संकल्पित, करें प्रतिज्ञा, दूर गरीबी कर दें। करुण नयन ना हों गरीब के, खुशियाँ...
मन का भोजन ज्ञान है
कविता

मन का भोजन ज्ञान है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो स्थान सुनिश्चित रहकर, पुस्तक संधारण करते। जिनसे जीवन बनता सुखमय, उन्हें पुस्तकालय कहते। वेद पुराण, उपनिषद इन में, रामचरितमानस गीता। ज्ञान पिपासु, इन्हीं में जाकर, ज्ञान जिंदगी का पीता। रघुवंशम औ मेघदूत भी, रामायण से पावन हैं। ज्ञान पुंज पुस्तक भंडारण, सुखद और मनभावन हैं। सबका ही जीवन हीरा है, पर तरासना होता है। बिना तराशा हीरा भी तो, अपनी कीमत खोता है। होता सदा सीप के भीतर, बहुत कीमती- सा मोती। मानव जीवन की सीपी में, भरी किताबें ही होती। सभी पुस्तकें, सच्ची साथी, जीवन को महकाती। सुसंस्कृत जीवन होता है, हर मानव की थाती। प्रज्ञा वान बने हर मानव, पुस्तक विद्या देती है। मिले खाद पानी पौधों को, पुष्पित होती खेती है। मन का भोजन सिर्फ ज्ञान है, जो किताब से मिलता है। ज्ञान...
बेटी के दुश्मन
कविता

बेटी के दुश्मन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पापी, कामुक बने भेड़िए, नहीं सुरक्षित बालाएं। नीच, अधर्मी, पापाचारी, पहने फिरते मालाएं। घर में नहीं सुरक्षित बेटी, यही शिकायत जन-जन से। जिंदा नोंच रहे हैं उस को, जो अबोध है तन-मन से। जीभ काट लो हत्यारे की, पापी अत्याचारी की। जिसने दशा बना डाली है, कामुक हो, बेचारी की। हाथ काट कर करो निहत्था, दुष्टों और जाहिलों को। करो समूल नष्ट असुरों को, मामा सभी माहिलों को। जनम जनम तक पुश्तें रोयें, पापी और अधर्मी की। सात जनम तक रहें पीढ़ियाँ, जेलों बीच कुकर्मी की। फूल सरीखी नव वाला की, जिसनें दशा बना डाली। उठा खड़ग काटो गर्दन को, बन करके दुर्गा काली। गर मजबूर रहेगी बेटी, कामी, पापाचारी से। स्वयं खून के घूँट पिएगी, सामाजिक लाचारी से। दफना दो जमीन में उनको, जिनके मुँह पर हैं ताले। गौर...
मिलकर नीर बचाना होगा
कविता

मिलकर नीर बचाना होगा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर नीर बचाना होगा, वरना पछताओगे। वसुधा छोड़ नीर पाने को, और कहाँ जाओगे। नित धरती का दोहन करके, इसको व्यर्थ बहाते। कमी दीखती जब पानी की, तब क्यों तुम पछताते। रखें सहेज सदा पानी को, इसकी कीमत जाने। पानी है हम सबका जीवन, कीमत भी पहचाने। धीरे-धीरे कभी इस तरह, होगी गर पानी की। प्यासे, बिना नीर आएगी, याद तुम्हें नानी की। जितनी पड़े जरूरत हमको, इतना पानी ले लें। वरना सूख जाएंगी पल में, सबकी जीवन बेलें। पानी है अनमोल खजाना, मिलकर ऐसे सहेजें। मानव कर प्रयत्न पी लेगा, कहां जानवर भेजें। दिन दूनी और रात चौगुनी, गर्मी बढ़ती जाती। जलस्तर घट रहा निरंतर, धरती सूखी जाती। पशु पक्षी बेचैन भटकते, जहां नीर पाते हैं। बाजी लगा जान की अपनी, वहीं चले जाते हैं। अब गर्मी तन बदन जलाती, प...
अजर-अमर हैं अंजनि नंदन
भजन, स्तुति

अजर-अमर हैं अंजनि नंदन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बुद्धिमान तुम महाबली हो, ज्ञानी गुणी कहाते। स्वर्ण शिखर-सी देह आपकी, बजरंगी कहलाते। ज्ञान गुणों के सागर हो तुम, अतुलित बल तन भरते। रामदूत कहलाते हो तुम, कष्ट सभी के हरते। पवन पुत्र, हनुमान हठीले, पवन वेग से जाते। रक्त वर्ण फल समझ सूर्य को, पलभर में खा जाते। अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, बल बुद्धि विद्या देते। भय-बाधा, पीड़ा जीवन की, पल भर में हर लेते। अजर-अमर, तुम अंजनि नंदन, दूर करो मम पीड़ा। करने खोज, जानकी जी की, लिया आपने बेड़ा। ह्रदय आपके राम सिया हैं, राम दूत बजरंगी। संकट मोचन, कुमति निवारक, सदा सुमित के संगी। तेजपुंज महावीर आपको, सीताराम हमारी। सेवा भाव देख हनुमत का, स्वयं राम बलिहारी। दुर्गम काज जगत के जितने, सभी सुगम हो जाते। पाते हैं बैकुंठ, भक्त जन, जो हनुम...
श्री राम बसें सबके मन में
स्तुति

श्री राम बसें सबके मन में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** नवमी तिथि चैत्रमास पावन, सुंदरता प्रभु की मनभावन। जन्मे है आज रामप्यारे, सुंदरता में जग से न्यारे। हे राम आपको नमन करूँ, अपने उर मैं विश्वास भरूँ। आ जाओ जग मंगल करने, भक्तों के मन श्रद्धा भरने। जो डूबे पापाचारों में, उलझे हैं अत्याचारों में। दिन रात कुकर्मों में रत हैं, कुविचारों में चिंतन रत हैं। आघात करें मानवता पर, हर्षित होते दानवता पर। पशु वृत्ति समाई है इनमें, ना दया धर्म इनके मन में। शुचिता का इनको भान नहीं, निज जननी का अभिमान नहीं। हैं कायर और कपूत बड़े, मानवता के विपरीत खड़े। श्री राम उठा लो धनुष बाण, जनमानस के विपदा में प्राण। आ जाओ राम संताप हरो, दुष्टों का सत्यानाश करो। जब मनुज मुक्त हो हर दुख से, तब मने रामनवमी सुख से। चहुँ ओर खुशी हो जन-जन में, प्रभु राम बसें...
शत शत नमन सभी माँओं को
कविता

शत शत नमन सभी माँओं को

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तीनों माँयें पूजनीय हैं, जिननें ऐसे लाल जने। हुए शहीद युवावस्था में, पर भारत की ढाल बने। वैदेही वन गमन हुआ जब, तब जन-जन रोया था, धैर्य देख लो उन माँओं का, जिनका सुत खोया था। धन्य धरा है, धन्य देश है, जिसमें थे तीनों जनमें। हैं सतवार धन्य माताएं, निज सुत भेजे थे रण में। भगत सिंह सुखदेव राजगुरु, तीनों की थी तरुणाई। भारत माता की रक्षा हित, ली,तीनों ने अँगड़ाई। खट्टे दाँत किये दुश्मन के, कोई पास न आता था। हर अँग्रेजी सैनिक डर से, नाकों चने चबाता था। सिंह गर्जना सुन तीनों की, गोरे भी थर्राते थे। चाँद सितारे भरी दोपहर, नजर उन्हें भी आते थे। भीषण अत्याचार किया था, गोरों ने ही झाँसी पर। माँ का फटा कलेजा होगा, लाल चढ़े जब फाँसी पर। चूमा था तीनों ने फंदा, हो बुलंद हँसते-हँसते। ...
जब श्रृंगार सजाती कविता
कविता

जब श्रृंगार सजाती कविता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भाव हृदय का बाहर आकर, कविता बन जाता है। अगर भाव दिल को छू जाए, तब जन-जन गाता है। कविता क्या है,भाव हृदय का, प्रमुदित मन हो जाता भावविभोर खिला जीवन को, सुंदरवन हो जाता। उठा कलम कुछ भी लिख डाला, तब कविता रोती है। सार्थक लिखे कलम जिसकी भी, वही सीप मोती है। अरी कलम, लिख डाल भुखमरी, और गरीबी लिख दे। अत्याचार पाप तू लिख दे, मजबूरी भी लिख दे। रही लेखनी सदा समर में, कवियों का ही गहना। दिनकर सूर निराला जी की, कविता का क्या कहना। कभी तोड़ती पत्थर लिक्खा, मीरा का दुख दर्द लिखा। रसवंती हुंकार भी लिखी, कुरुक्षेत्र, प्रणभंग लिखा। मन की वीणा झंकृत होती, जिसको पढ़ लेने से। कैसे कोई कवि बन सकता, कुछ भी लिख लेने से। कविता भाती सारे जग को, है इतिहास पुराना। ओजपूर्ण कविता का जग में, सब ...
घर बैकुंठ
कविता

घर बैकुंठ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** आज खो गया हूँ अतीत में, याद पुरानी आई। याद पुराना घर आया है, जिसमें उम्र बिताई। रहता हूँ तिमंजिलें घर में, पर वह मजा कहाँ है। ऊधम के बदले में पाई, अब वो सजा कहाँ है। लिपता था जब घर का आँगन, गोबर और चूने से। घर बैकुंठ नजर आता था, हाथों के छूने से। घर से लगे एक कमरे में, गाय बँधी रहती थी। पानी गिरता था छप्पर से, खुशी-खुशी सहती थी। लक्ष्मी जी से पहले पूजन, होता था गैया का। शुद्ध दूध से भोजन होता, था छोटे भैया का। कच्चे घर में पक्के रिश्ते, प्यार भरे दिखते थे। सीता-राम लाभ-शुभ घर के, द्वारे पर लिखते थे। मिट्टी घास-फूस से मिलकर, बनते थे घर प्यारे। घर के आँगन से दिखते थे, सूरज चाँद सितारे। बिना साधनों के ठंडक थी, खुशहाली थी घर में। थे पुष्पित गाँवों में रिश्ते, दिखते नहीं ...
ऊँचाई में स्वयं हिमालय
कविता

ऊँचाई में स्वयं हिमालय

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सहनशीलता वसुधा जैसी, सागर-सी गहराई। ऊँचाई में स्वयं हिमालय, माँ-सी ममता पाई। नारी हर मानव की जननी, जगत जननि कहलाती। दुख पीड़ा में जब शिशु होता, तब उसको सहलाती। अपने आँचल की छाया दे, सुख सौभाग्य जगाती। जीवन की सारी बाधायें, दे आशीष भगाती। अपने तन को गार-गार कर, देती रूप सलोना। हर बच्चा होता है अपनी, माँ के दिल का कोना। अपने मन की करुण वेदना, मुख से ना कह पाती। पृथ्वी जैसी सहनशील है, सब कुछ सहती जाती। जब अन्याय अधिक होता है, सहनशीलता खोती। गौ का रूप धारकर पृथ्वी, प्रभु समीप जा रोती। हर अपमान,घृणा सहकर भी, कभी अधीर न होती। अपने उर को बना समंदर, मन ही मन में रोती। एक-एक आँसू नारी का, पड़ जाता है भारी। मानव तेरी क्या विसात है, डर जाते त्रिपुरारी। है अवतार सृष्टि का नारी...
कपड़े काट बनाता है दिल
कविता

कपड़े काट बनाता है दिल

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कपड़े के टुकड़ों के जैसा, कोई दिल सिल पाता। ऐसा कारीगर दुनिया में, कहीं मुझे मिल जाता। कपड़े काट,बनाता है दिल, फिर आपस में जोड़े। छोटा-बड़ा बने जैसा भी, पर उसको ना तोड़े। बड़े प्यार से इन्हें बनाता, मन ही मन खुश होता। ये दिल सबको मोहित करते, दादा हो या पोता। कपड़े का दिल नहीं धड़कता, फिर भी प्यारा लगता। इन्हें देखकर हर इंसा के, उर मैं प्यार पनपता। इनमें रक्त नहीं बहता है, धड़कन भी ना होती। इनमें प्यार नहीं होता है, नहीं भावना होती। फिर भी कपड़ों के नाजुक दिल, मन को अच्छे लगते। इन्हें देख कर मधुर प्यार के, भाव हृदय में पगते। अब सोचो ऊपर वाले ने, दिल अनमोल बनाया। नादाँ तू अनमोल रत्न की, कीमत समझ न पाया। तू कठोर,मिथ्या वाणी से, दिल के टुकड़े करता। कर अधर्म तू सब को मारे,...