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पल दो पल की साँसें तेरी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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नाजुक बड़ी, साँस की डोरी,
आओ इसे सम्हालें।
टूटेगी कब, पता नहीं कुछ,
जल्दी मंजिल पालें।

पल दो पल की साँसें तेरी,
पल दो पल की काया।
छोड़ जगत सबको जाना है,
कहाँ कोई रुक पाया।

पानी कैसा बना बुलबुला,
यह मानव तन तेरा।
जीवन नहीं हमेशा तेरा,
है पल भर का डेरा।

आया है जो, वो जाएगा,
स्थिर नहीं ठिकाना।
सदा लगा रहता दुनिया में,
सबका आना-जाना।

दुनिया रैन बसेरा तेरा,
क्यों इतना इतराता।
प्राण पखेरू कब उड़ जाए,
पता नहीं चल पाता।

करता है गुमान तू भारी,
अपनी देख जवानी।
नाम शेष रह जाता जग में,
रहती शेष कहानी।

धन-वैभव, माया में उलझा,
भूला दुनियादारी।
चार दिवस का जीवन तेरा,
चलने की तैयारी।

पूजन भजन किया नहिं तूने,
रहा जवानी सोता।
बुला रहा दर्प में हरदम,
पछताए क्या होता?

छोड़ सकल जंजाल जगत के,
प्रभु में ध्यान लगा ले।
चरण-शरण, जाकर प्रभु जी की,
सोया भाग्य जगा ले।

बची रहेंगीं साँसे तेरी,
जब तक प्रभु चाहेंगे।
क्षमा करो प्रभु सारे जीवन,
तेरे गुण गाएंगे।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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