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एक श्वान की आत्मकथा “जीवित हूँ जीना चाहता हूँ”

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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है अधिकार तुम पर मेरा भी
मुझे दो स्वत्व धड़कन बन
जीवित रहना चाहता हूँ
तुम्हारे दिल में थोड़ा सा
पनाह चाहता हूँ
मन और आत्मा में
तुम्हारे बसना चाहता हूँ
मैं जीवित रहना चाहता हूँ!!!!

सुख दुःख महसूस करता हूँ
अकेलापन तुम्हारा
बांटना चाहता हूँ
अपने साथ रहने की
अनुमति दो मुझे
तुम्हारी घुटन, नाराजगी,
शिकायतें मिटाना चाहता हूँ
मैं जीवन जीना चाहता हूँ !!

मैं भी पथिक हूँ उसी राह का
संग संग तुम्हारे चलना चाहता हूँ
वेदनाओं से सामना हो जब तुम्हारा,
शीतल चाँदनी बनकर
प्यार लुटाना चाहता हूँ
अश्रु पूरित नेत्रों से मैं भी
छुटकारा चाहता हूँ
जीवन हूँ जीना चाहता हूँ!!

बंधन से जकड़ा स्वप्न
सा जीता हूं मैं
ठिठुरन, अकड़न, सड़न,
भूख से तरबतर रहता हूँ मैं
घर में तुम्हारे थोड़ी सी
पनाह चाहता हूँ
स्वयं के मन का तुम संग
विस्तार चाहता हूँ
अस्तित्व हूँ, जीना चाहता हूँ!

मेरा अधिकार मानकर
स्वीकार करो
बिन बोले अनुरोध सुनकर
उपकार करो मुझ पर
किसी भी रूप या आकार मे,
जो भी चाहो भर लो
मुझको अपने आप में
मेरा प्रत्येक चेहरा तुम्हारा ही
मन दर्पण दर्शाता है
तुम्हारे चेहरे की चमक बनकर
चहूँ दिशा जगमगाना चाहता हूँ
प्रतीक्षारत था, हूं, रहूँगा,
जीवन भर तुम्हारा
क्यूंकि मैं जीवित हूँ,
जीवन जीना चाहता हूँ.!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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