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हारते हुए मन को समझना

काजल कुमारी
आसनसोल (पश्चिम बंगाल)

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ये जिंदगी है मेरे दोस्त,
बहुत आजमाएगी।
जो चाहा नहीं कभी,
वो भी करवाएगी ।।

पर मतलब नहीं इसका,
हम हारकर बैठ जाएं।
कोशिशें छोड़ दें,
खुद को समझाकर बैठ जाएं ।।

अभी तो सफर लंबा है,
बहुत दूर जाना है।
जो रूठे हैं रास्ते
उनको भी मनाना है ।।

मत सुना करो उनकी
जो रास नहीं आते ।
इंतजार उनका कैसा …..
जो इंतजार का अर्थ नही जानते ।।

हर कोई हमें प्यार करे
ये हमारे बस में नहीं ।
पर हम सबको प्यार दें,
बेशक हमारे बस में है ।।

हां, टूटी चीजें चुभती हैं,
बहुत सताती हैं।
मन की उदासी का
बवंडर ले आती है ।।

घुट-घुट के हम खुद में
सिमट से जाते हैं ।
चाहकर भी इससे
निकल नही पाते हैं ।।

इसलिए खुद को
ऐसा बनने मत देना ।
बेवजह आसुओं को बाहर
निकलने मत देना ।।

कह दे कोई खुदगर्ज
तो चुपचाप सुनना ।
पर हमदर्द हमेशा
हमदर्दों का ही बनना ।।

खुश रहना हमेशा
क्योंकि यही ज़िंदगी है ।
और मुश्किलें ही कहां
किसकी सगी है ।।

क्योंकि जब हम हंसते हैं,
तभी लोग भी हंसाते हैं ।
मायूसी में महफिल भला
कहां लोग सजाते हैं ।।

वक्त से लड़ना, पर
शिकायत ना करना ।
और खुद को कभी भी
कमजोर मत समझना ।।

खोकर पाने का
मज़ा ही कुछ और है ।
रोने के बाद मुस्कुराने का
मज़ा ही कुछ और है।।

हार तो जिंदगी का हिस्सा है
मेरे दोस्त हारने के बाद
जीतने का मज़ा ही कुछ और है…..

परिचय :- काजल कुमारी
निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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