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काखर पाछु म जाना हे

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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दु माडल हे देस के आघु
जेला चाहव चुन ल जी,
का करम कुकरम हे एखर भीतरी
आवव थोरकुन गुन ल जी,
गोड़ गिरव अउ माथा रगड़व
एक माडल ह कहिथे जी,
जनमानस ल भरमाये खातिर
आस्था के धार बहिथे जी,
जात पात बरिन ल मान के
खुदे नीच कहलावव जी,
बइठान्गुर के बात ल मानव
पेट ओखर सहलावव जी,
जाति धरम के पाछु म
आंखी मुंदा जावव जी,
हाथी कस ताकत ल अपन
छिन छिन म भुला जावव जी,
एक बरन ह राजा रहि
एक बरन ह रद्दा बताही जी,
एक बरन ह लुटही खसोटही
बाकी धार बोहाही जी,
हजारों बरस के पाखंड ह
जोर से फेर बोमियाही जी,
पुरखा हमर रोये रहिन हे जइसे
वोही दिन ह लउट के आही जी,
अब बात करन दूसर माडल के
ओमा का का होही जी,
कोन उड़ही अद्धर अकास म
कोन धरती म सुत रोही जी,
संविधान ह रक्छा करही
सबला सबल बनाही जी,
भाई बरोबर सब मिल जुल रहीं
समता के फुल ख़िलाही जी,
रानी के पेट ले नई निकलय राजा
हर कहुं राजा बन जाही जी,
चाल चलन म जे रइही समरथ
चुनई म चुन के जाही जी,
तिरंगा हमर फर फर फहरय
एला धियान म रखना हे,
संविधान के माडल सबले बढ़िया
एखरे सुवाद ल चखना हे,
अब तैं गुन, सुन, चुन कति जाना हे
कामा तोर ठउर ठिकाना हे,
दु माडल म कोन हे सुग्घर
काखर पाछु म जाना हे।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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