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समर्पित चौथा स्तंभ

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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गोरों के शासनकाल में
पत्रकार खूब लिखते बोलते थे,
हुकूमत के अत्याचार
से तनिक नहीं डोलते थे,
खैर अंग्रेज गए अंग्रेजों
का शासन गया,
आ गया देश में
स्वशासन नया,
सत्ता के छोटी सी
गलती के खिलाफ
ये हुंकार ले चिल्लाते थे,
इनकी जागरूकता देख
सरकार व विपक्ष
दोनों घबराते थे,
समर्पित चौथा स्तंभ
ये खुद को साबित करते थे,
लोकतांत्रिक व्यवस्था में
ये नहीं किसी से डरते थे,
समय बदला शासन बदला
बदल गए पत्रकार,
पक्षपात में इतना डूबे
भूल चुका अपना अधिकार,
सत्ता से सवाल पूछते
मुंह सूख जाता है,
प्रश्न दागने वालों को
सत्ताई तलवा अब सुहाता है,
सत्ता का डर इतना बैठा
विपक्ष से सवाल दागता है,
सूखी हड्डी के लिए श्वान
मालिक की ओर ही ताकता है,
जनता के मुद्दे मुद्दे नहीं
उन्हें अब मीडिया
वाले बहकाते हैं,
रात दिन भौं भौं करके
सरकारी एजेंडा चलाते हैं,
झूठी खबरें चला चला
देते अवाम को धोखा,
लोगों की नजरों में
खोता जा रहा भरोसा,
समर्पण का नजरिया छोड़
रह गया सिर्फ अब खंभा,
कहीं जूते कहीं लात पड़े तो
न होना कभी अचंभा।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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