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मोर मुकुट सँग होली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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फागुन की मदमाती ऋतु में,
जंगल लाल हुए हैं।
लगता यौवन प्राप्त प्रकृति के,
रक्तिम गाल हुए हैं।

दावानल सा दीख रहा है,
फिर भी धुआँ नहीं है।
रक्तिम टेसू के फूलों को,
अलि ने छुआ नहीं है।

रक्तिम पुष्प, गुच्छ आच्छादित,
सभी जगह लाली है।
लाल चुनरिया ओढ़ यौवना,
ज्यों आने वाली है।

हैं पलाश के फूल अनोखे,
अद्भुत इनकी रचना।
रत्नारे अधरों जैसे हैं,
मुश्किल इनसे बचना।

पत्तों का अवसान हुआ है,
पुष्प लालिमा दिखती।
लाल लेखनी लेकर प्रकृति,
टेसू महिमा लिखती।

सब वृक्षों की हर डाली पर,
पुष्प गुच्छ हैं छाए।
बासंती मौसम में सजकर,
राधा -मोहन आए।

तन पीतांबर ओढ़ सजी है,
ज्यों जंगल की रानी।
श्रृंगारित रक्तिम पुष्पों से,
शोभित ज्यों महारानी।

ओढ़ चुनरिया धानी, पृथ्वी,
सबका मन हरसाती।
फूलों पर भौंरों का गुंजन,
कोयल राग सुनाती।

यौवन है पलाश पर छाया,
पवन लगे मधुमाती।
शीतल मंद सुगंधित वायु,
लिए मिलन की पाती।

लगता मधुर मिलन है प्रिय से,
मनसिज आँखें खोली।
मानो खेल रही है राधा,
मोर मुकुट सँग होली।

सुक,सारिका,भ्रमर कोयल भी,
राग प्यार का गाते।
चहुँ दिश लाल पलाश मद भरे,
दिल में अगन लगाते।

नर्तन करते मोर दीखते,
दिखती मैना भोली,
लगता लाल रंग से खेलें,
राधा-मोहन होली।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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