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Tag: अंजनी कुमार चतुर्वेदी “श्रीकांत”

अग्रगण्य बजरंगबली हैं
कविता

अग्रगण्य बजरंगबली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अग्रगण्य बजरंगबली हैं, अतुलित बल पाया है। माता सीता पुत्र मानतीं, रघुवर का साया है। अग्रगण्य जो हैं दुनिया में, उनका वंदन होता। पर उपकारी का दुनिया में, है अभिनंदन होता। अग्रगण्य हैं श्री गणेश जी, घर-घर पूजे जाते। शुभारंभ में गौरा सुत को, मिलकर सभी मनाते। अग्रगण्य गुरुवर समाज में, अंधकार को हरते। सिखा ककहरा, हृदय शिष्य के, ज्ञान उजाला करते। अग्रगण्य ऋषि मुनि सन्यासी, हमें सुपथ दिखलाते। जीवन जीने का कौशल भी, हमें सदा सिखलाते। माता अग्रगण्य गुरुओं में, जीवन सुखमय करती। प्रथम पाठशाला बनाकर माँ, ज्ञान हृदय में भरती। जो सेवा में अग्रगण्य हैं, उनको मिलता मेवा। सेवक की रक्षा करते हैं, सदा गजानन देवा। अग्रगण्य बनकर जीवन को, हम खुशहाल बना लें। जो रूठे हैं स्वजन हमारे, चलकर उन्...
लागी तुझसे लगन साँवरे
कविता

लागी तुझसे लगन साँवरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लागी तुझसे लगन साँवरे, तेरे बिना न जीना। तेरे बिन, लगता है मुझको, काल कूट विष पीना। रहा नहीं जाता तेरे बिन, दिल में भी तू छाया। नहीं समझ में आती मोहन, मुझको तेरी माया। तुझसे लगन लगाई मोहन, तुझको अपना माना। है उद्देश्य यही जीवन का, केशव तुझको पाना। तुझको देखे बिना कन्हैया, होता नहीं सवेरा। तेरे बिना हुआ है मोहन, दुखमय जीवन मेरा। माखन मिश्री लेकर प्रतिदिन, तेरी राह निहारूँ। निष्ठुर, बेदर्दी मनमोहन, तुझ पर तन मन वारूँ। छुप जाता तू जानबूझकर, तुझको दया न आती। पागल हूँ, तेरे बिन मोहन, तेरी याद सताती। तुझसे लगन लगाकर मैंने, अमन चैन खोया है। तेरे बिना कन्हैया हर पल, मेरा मन रोया है। मनमोहन विनती है तुमसे, मुझको पास बुला लो। अपना मान कन्हैया मुझको, अपने अंक लगा लो। परिच...
सनातन की छाया
कविता

सनातन की छाया

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके मन में सदा सदा से, रही सनातन की छाया। सुचिता शुभता और धर्म सँग, धन यश वैभवभी पाया। हमें सनातन ने सिखलाया, चलते रहें सुपथ पर हम। नेक राह चलकर सुख पायें, नहीं रहे जीवन में गम। बने दीन हितकारी हम सब, काम सभी के हम आयें। दीन दुखी की पीड़ा हर कर, दीन बंधु हम कहलायें। सबके घर में करें उजाला, दुनिया को रोशन कर दें। अंधकार को दूर हटाकर, खुशियों से घर को भर दें। धर्म सनातन ही सिखलाता, औरों के दुख दूर करें। जिन्हें गुमान देह,दौलत का, उन सबका मद चूर करें। दें सम्मान, सभी धर्मों को, धर्म सनातन बतलाता। जो सारे जग का शुभ चाहे, सच्चा मानव कहलाता। जिसके जीवन में पल भर भी, रही सनातन की छाया। धर्म सनातन धारण करके, राम धाम उसने पाया। करें धर्म की रक्षा हर पल, मन का मैल हटा लें हम। मान गुमा...
चलो मिटा दें घृणित दायरे
कविता

चलो मिटा दें घृणित दायरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चलो मिटा दें घृणित दायरे, सभी एक हो जाएँ। छुआछूत का घृणित दायरा, मिलकर सभी मिटाएँ। ऊँच-नीच का भेद मिटा दें, समरसता आएगी। होगी तब समाज में समता, सबके मन भाएगी। पनप रहा है एक दायरा, ऊँच-नीच का भारी। निर्धन और धनी का अंतर, बहुत बड़ी बीमारी। कुछ दायरे सदा दुखदाई, हमें कलंकित करते। भाईचारा सदा मिटाते, जीवन में दुख भरते। करें विनष्ट दायरे मिलकर, बंधन दूर हटा दें। पड़े जरूरत घर, समाज को, अपना शीश कटा दें। नहीं दायरे कामयाब हों, जो संघर्ष बढ़ाते। मीलों दूर रहे हम उनसे, जो पीड़ा पहुँचाते। जीवन के दायरे मिटा लें, रहें सदा हिल मिलकर। मन की बगिया, महके ऐसे, सुमन सुगंधित खिलकर। भाईचारा रहे पल्लवित, प्रमुदित दुनिया सारी। सुरभित सुषमा रहे हिंद की, ज्यों केसर की क्यारी। परिचय ...
मोर मुकुट सँग होली
कविता

मोर मुकुट सँग होली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन की मदमाती ऋतु में, जंगल लाल हुए हैं। लगता यौवन प्राप्त प्रकृति के, रक्तिम गाल हुए हैं। दावानल सा दीख रहा है, फिर भी धुआँ नहीं है। रक्तिम टेसू के फूलों को, अलि ने छुआ नहीं है। रक्तिम पुष्प, गुच्छ आच्छादित, सभी जगह लाली है। लाल चुनरिया ओढ़ यौवना, ज्यों आने वाली है। हैं पलाश के फूल अनोखे, अद्भुत इनकी रचना। रत्नारे अधरों जैसे हैं, मुश्किल इनसे बचना। पत्तों का अवसान हुआ है, पुष्प लालिमा दिखती। लाल लेखनी लेकर प्रकृति, टेसू महिमा लिखती। सब वृक्षों की हर डाली पर, पुष्प गुच्छ हैं छाए। बासंती मौसम में सजकर, राधा -मोहन आए। तन पीतांबर ओढ़ सजी है, ज्यों जंगल की रानी। श्रृंगारित रक्तिम पुष्पों से, शोभित ज्यों महारानी। ओढ़ चुनरिया धानी, पृथ्वी, सबका मन हरसाती। फूलों पर भौंरों का...
आज महानिशि पुण्य प्रदायक
स्तुति

आज महानिशि पुण्य प्रदायक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हे देवों के देव, सदाशिव तुम हो सृष्टि का आधार। हे त्रिनेत्र, हे महाकाल प्रभु, कृपा करो हे जगदाधार। भूत नाथ, भोले भंडारी, कोर कृपा की तुम कर दो। पार्वती पति, महाकाल तुम, खुशियाँ जीवन में भर दो। है शिव रात्रि परम सुखदायी, चहुँ दिशि मंगल छाया है। पाणिग्रहण माँ पार्वती सँग, शिव शक्ति की माया है। पाश विमोचन, हे शशि शेखर, दया दृष्टि हम पर कर दो। सूख गई निष्प्राण देह में, प्राण पिनाकी तुम भर दो। सात्विक, अष्टमूर्ति, गिरिधन्वा, मन उमंग खुशियाँ भर दो। अंधकार हट जाए उर से, कोर कृपा की तुम कर दो। आज 'महा निशि' पुण्य प्रदायक, गौरी,शंकर व्याहेंगे। मधुर कंठ से गीत ब्याह के, सभी भक्त मिल गाएंगे। हो आधार सृष्टि के तुम ही, जग के पालनहार तुम्हीं। बीच भँवर हिचकोले खाता, कर दो बेड़ा पार तुम्ही...
मर्यादा जीवन की पूँजी
कविता

मर्यादा जीवन की पूँजी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मर्यादा जीवन की पूँजी, संस्कार देती है। मर्यादित आचरण सदा ही, सद्गुण की खेती है। मर्यादा में रहे रामजी, पुरुषोत्तम कहलाते। मर्यादित व्यवहार राम का, बाबा तुलसी गाते। राम राज्य में सागर सबको, रत्न प्रेम से देते। मर्यादा में जल रहता है, वारिधि प्राण न लेते। कभी नहीं मर्यादा लाँघें, सीमा कभी न तोड़ें। धर्माचरण करें जीवन में, नहीं सुपथ को छोड़ें। मर्यादा का बाँध न तोड़ें, अपनी सीमा जाने। मर्यादित आचरण करें हम, अन्तस को पहचाने। बाँध टूटता मर्यादा का, सदा अमंगल होता। मर्यादा भंजक, जीवन में, नहीं चैन से सोता। मर्यादा को खंडित करके, कौरव दल मुस्काया। पाया दंड स्वयं माधव से, अपना वंश नशाया। मर्यादा में रहने वाले, जगवंदित हो जाते। मिलता है सम्मान जगत में, सुखमय जीवन पाते। जो मर्...
तेरी राहों में साजन हम
कविता

तेरी राहों में साजन हम

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** साजन हम तेरी राहों में, मधुरिम फूल बिछाएंगे। अपने सुंदर घर आँगन को, उपवन-सा महकाएंगे। लिख-लिख पाती हार गई में, तुझे याद ना आती है। पवन बसंती आँचल छूकर, मुझको बहुत सताती है। खबर नहीं लाती है तेरी, पास देह तक आती है। शीतल मंद सुगंध पवन भी, मुझको नहीं सुहाती है। ना मुँडेर पर काग बोलता, नहीं शगुन करती मैंना। जैसे-तैसे दिन कट जाता, मगर नहीं कटती रैना। ओ निष्ठुर, बेदर्दी बालम, तेरी याद सताती है। पागल हो जाती हूँ सुनकर, जब कोयलिया गाती है। पवन झकोरे मेरे मन को, बार-बार विचलित करते। विरह वेदना मेरे मन की, आज क्यों नहीं तुम हरते? कागा तेरी चोंच कनक से, खुश होकर मड़वा दूँगी। बड़ा कीमती एक नगीना, मैं उसमें जड़वा दूँगी। तेरे कहने से जब साजन, गेह लौट कर आएंगे। हम तेरी राहों में साज...