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रणबाँकुरे आल्हा और ऊदल

अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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यदुवंशियों की सुनो कहानी,
योद्धा यादव की वाणी में।
युद्ध मैदान में शेर समान दहाड़े,
आग लगा दे पानी में।।

क्षत्रिय कुलभूषण रणबाँकुरे,
न्याय प्रिय वीर पराक्रमी।
शास्त्रज्ञानी और युद्ध कौशल
में निपुण परम प्रतापी।।

दक्षराज के महान सच्चा सपूत,
आल्हा-ऊदल दो भाई।
परमाल के वीर सेनापति,
मैदान में बावन लड़ी लड़ाई।।

महोबा के बनाफर अहीर,
वीरता के लिए थे विख्यात।
पूजा करते मैहर देवी की,
अमरता का दिया आशीर्वाद।।

बैरागढ़ के महायुद्ध में,
वीर ऊदल वीरगति को प्राप्त हुई।
आल्हा क्रोध में व्याकुल,
प्रतिशोध लेने की कसम खाई।।

उड़न पखेरु घोड़ा में बैठा,
चतुरंगिणी सेना दलबल साजे।
चमक उठी आल्हा की तलवार,
युद्ध के लिए दुंदुभी बाजे।।

गरजे आल्हा युद्ध मैदान में,
शत्रु सैनिक डर कर भागे।
एक को मारे दस मर जाय,
मारते-मारते निकले आगे।।

पहुँचा पृथ्वीराज के पास,
दोनों ने भीषण संग्राम किया।
गुरु के कहने पर आल्हा ने,
चौहान को प्राणदान दिया।।

बैसवाड़ा, पूर्वांचल, बुंदेलखंड
में आज भी गाथा गाते हैं।
आल्हा सुन असाहसी,
जोश और साहस से भर जाते हैं।।

परिचय : अशोक कुमार यादव
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।
प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ हिन्दी रत्न सम्मान, अटल स्मृति सम्मान, बेस्ट टीचर अवॉर्ड।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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