
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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-: दोहा :-
गुरुवर की कर वंदना, नित्य झुकाऊँ माथ।
गुरुवर विनती आप से,रखना सिर पर हाथ।।
-: चौपाई :-
सतगुरु का जो वंदन करते।
ज्ञान ज्योति निज जीवन भरते।।१
गुरू ज्ञान का तोड़ नहीं है।
इससे सुंदर जोड़ नहीं है।।२
गुरु वंदन का शुभ दिन आया।
सकल जगत का उर हर्षाया।।३
गुरु चरनन में खुशियाँ बसतीं।
सुरभित जीवन नदियाँ रसतीं।।४
गुरु दरिया में आप नहाओ।
जीवन अपना स्वच्छ बनाओ।।५
गुरुवर जीवन साज सजाते।
ठोंक- पीटकर ठोस बनाते।।६
पाठ पढ़ाते मर्यादा का।
भाव मिटाते हर बाधा का।।७
गुरू कृपा सब पर बरसाते।
समय-समय पर गले लगाते।।८
गुरुवर जीवन मर्म बताते।
नव जीवन की राह दिखाते।।९
साहस शिक्षा गुरुवर देते।
जीवन नैया जिससे खेते।।१०
गुरू शिष्य का निर्मल नाता।
जीवन को है सहज बनाता।।११
भेद-भाव नहिं गुरु है करता।
नजर शिष्य पर पैनी रखता।।१२
गुरुवर देकर ज्ञान सहारा।
लाते जीवन में उजियारा।।१३
शिष्य सभी उनको हैं प्यारे।
गुरुवर होते सदा सहारे।।१४
गुरु ही भव से पार लगाते।
जीवन का हर कष्ट मिटाते।।१५
गुरु पर जो विश्वास रखेगा।
जीवन का नव स्वाद चखेगा।।१६
गुरू शरण में तुम आ जाओ।
अपना जीवन आप बनाओ।।१७
महिमा गुरु की है अति प्यारी।
सदा सजाती उत्तम क्यारी।।१८
गुरू ज्ञान है बड़ा अनोखा।
सदा बनाता जीवन चोखा।।१९
गुरु ज्ञानी सब जान रहे हैं।
अपना हित पहचान रहे हैं।।२०
आप घमंडी कभी न होना।
बीज जहर के कभी न बोना।।२१
सतगुरु सबको यही बताते।
जीवन का सत लक्ष्य सजाते।।२२
गुरु का जो अपमान करेगा।
घट संकट का स्वयं भरेगा।।२३
सोच समझकर गुरु से बोलो।
निज वाणी में मधु रस घोलो।।२४
अति ज्ञानी खुद को मत मानो।
गुरु की क्षमता को पहचानो।।२५
प्रभुवर भी गुरु को शीश झुकाते।
तभी आज ईश्वर कहलाते।।२६
गुरु का मान सदा ही रखिए।
और किसी से कभी न डरिए।।२७
गुरु संगति से ज्ञान मिलेगा।
बाधाओं का किला ढहेगा।।२८
जिसने गुरु की आज्ञा मानी।
बन जाता वो खुद ही ज्ञानी।।२९
गुरु आज्ञा का पालन सीखो।
रखो शान्ति तुम कभी न चीखो।।३०
गुरू ज्ञान है बड़ा अनोखा।
स्वाद बड़ा है देता चोखा।।३१
गुरु ज्ञानी सब जान रहे हैं।
अपना हित पहचान रहे हैं।।३२
गुरु अपमान पड़ेगा भारी।
काम नहीं आयेगी यारी।।३३
सही समय है सोच लीजिए।
नादानी मत आप कीजिए।।३४
गुरु जीवन की सत्य कहानी।
आदि अंत की कथा बखानी।।३५
मात-पिता अरु गुरु सम बानी।
दुनिया में जानी पहचानी।।३६
नैतिक शिक्षा पाठ पढ़ाते।
ज्ञान की दरिया में नहलाते।।३७
गुरु उपकार सदा ही करते।
त्याग भाव से जीवन भरते।।३८
गुरु सेवा से उन्नति होती।
मिले सफलता का ही मोती।।३९
गुरु की माया गुरु ही जानें।
या फिर ब्रह्मा जी पहचानें।।४०
-: दोहा :-
हाथ जोड़ विनती करूँ, सतगुरु देव महान।
भूल क्षमा मम कीजिए, जैसे बने विधान।।
वरद ज्ञान का दीजिए, मेट अहम का भाव।
जीवन जिससे खिल उठे, पार लगे मम नाव।।
परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।




