
शकुन्तला दुबे
देवास (मध्य प्रदेश)
********************
प्रातः पांच पैंतालीस पर सुखद सुरक्षित यात्रा की कामना के साथ दीप प्रज्ज्वलित किया तब कल्पना भी नहीं थी कि अनुपम नैसर्गिक सौंदर्य हमारी बाट जोह रहा है। हमारे स्वागत के लिए बादल हल्की फूहारो के रूप में गुलाब जल बरसा रहे हैं।
सुरमई उजाले के साथ हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई सबसे पहला पड़ाव तिन्छाफाल ने अपने सौन्दर्य से मोहिनी सी डाल दी झर झर करती धवल धारा आंखों के रास्ते हृदय में उतर गई।
दूर-दूर तक फैली मखमली घास के मैदानों के बीच कास के सफेद फूलों को देखकर बरबस गोस्वामी तुलसीदास जी रचित पंक्तियां याद आ गई
फूले कास सकल महि छाई,
जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई।।
यहां वहां झरने झरने प्रकृति का अभिषेक कर रहे थे कहीं गहरे कहीं हल्के हरे रंग के मैदानों के बीच खड़ा कजलीगढ़ का किला मौन होकर भी अपने गौरवशाली अतीत की गाथा सुना रहा था। ओखलेश्वर धाम के पवित्र वातावरण में हमारा मन भी भक्ति रस में रंग गया। प्रकृति की नयनाभिराम दृश्यावली ने तन-मन को थकने नहीं दिया। आसमान में घुमड़ते बादल मानो पहाड़ों का आलिंगन करने को आतुर हो रहे थे। ऊंचे-ऊंचे सागोन के घने वृक्ष उर्ध्व मुख होकर बादलों से कह रहे हैं कि शस्य श्यामल वसुंधरा पर अमृत वर्षा कर हरितिमा को जीवन्त बनाएं रखें।
सुरम्य वातावरण के बीच बाबा आमटे का आश्रय शान्तिवन लग रहा था।
जिस कालीसिंध में तैरते हुए किनारे खेलते हम बड़े हुए, वर्षा ऋतु में जो हरहराती घरघराती हमारे घर की चौखट पर पहुंच जाती थी, उसी कालीसिंध कि उद्गम स्थल जटाशंकर का दर्शन कर मन भावविभोर तथा आंखें सजल हो गई।
जल में कितना बल है कि भौतिक रूप से नहीं भीगते हुए भी तन मन भावनात्मक रूप से आनन्द रस में है भीग ही जाता है।
शाम के धुंधलके में नदी के बहाव की घर घबराहट वातावरण को रोमांचक के साथ रहस्यमय भी बना रही थी।
साहित्यिक, आध्यात्मिक, नैसर्गिक की त्रिवेणी में डुबकी लगा कर यात्रा की समाप्ति का समय हो गया पता ही नहीं चला कि कब दिन समाप्त होने लगा, सुरमई उजाले से प्रारम्भ होकर हमारी यात्रा चम्पई अन्धरे के साथ पूर्ण हुई। इस यात्रा की सफलता के लिए मनीष जी व हिमांशु जी बधाई के पात्र है।
निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र।
सम्प्रति : सेवा निवृत्त शिक्षिका देवास।
घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻






















