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हिंद वतन आजादी है

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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(ताटंक छंद, देश प्रेम)

संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है।
बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है।

पत्ते, डाली, तना, जड़ यात्रा, हरियाली जता रही है।
संकल्प से सिद्धि के प्रकल्प, दीवाली दिखा रही है।

आजाद राष्ट्र आवाम को, स्वाभिमान सिखा रही है।
दिया तले तम साबित करने, बैठे कुछ जल्लादी है।

उनको विरोध द्रोह तर्क की, कड़वी दवा पिला दी है।
संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है।

बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है।
दोनों आंख सलामत फिर भी, विकास गर्व नहीं भाता।

पर काने अंधे मानव भी, माटी में पर्व मनाता।
पड़ोसी गोद में पलते जो, दंभ शान ही दिखलाता।

स्वाभिमान भारत दर्शन से, उनको क्या पाबंदी है।
सुनो! विश्व सम्मान से भारत, अव्वल पथ आसंदी है।

संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है।
बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है।

भ्रष्ट आचरण रखने की अब, परंपरा तोड़ चुकी है।
लूट खसोट शाही प्रथा भी, भांडा ही फोड़ चुकी है।

झूठ प्रचार तंत्र की सीमा, इतिहास मरोड़ चुकी है।
भारत वर्ष का कुरुक्षेत्र तो, न्याय-धर्म उन्मादी है।

सुर असुर संग्राम में सोचो, कौन भक्त प्रहलादी है।
संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है।

बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है।
संस्कार सनातन रखवाला, भारत उच्च ईमान है।

बिन स्वार्थ रीति नीति नीयत, ही श्रेष्ठतम इनाम है।
हवा में रखा हथियार नहीं, ये ब्रह्मोस पैगाम है।

लोकतंत्र मंदिर भारत में, वादी ही प्रतिवादी हैं।
हम आजादी रक्षण सिखाते, युद्ध हदों से फांदी है।

संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है।
बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है।

एटमी धमकी परे रखकर, अब सिंदूर बचाता है।
नहीं बह सकता खून पानी, कठोर कदम उठाता है।

धर्म पूछ हत्या का बदला, घर घुसके करवाता है।
मजबूर नहीं मजबूत कदम, कुचली दहशत गर्दी है।

आतंक ढाल नहीं बनेगा, सोच जहां जेहादी है।
संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है।

बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग (छत्तीसगढ़)

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : अब तक ६ काव्य संग्रह लोकार्पित।
१. करवट लेता समय
२. वक्त दरकता है
३. वक्त के वक्तव्य
४. समय ताल से पग धरना
५. वक्त डगर से
६. छंद कथा-समय यथा
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
सम्प्रति : वर्ष २०२४ अक्टूबर में थावे विद्यापीठ द्वारा अयोध्या अधिवेशन में साहित्य सेवा योगदान हेतु विद्या वाचस्पति (phd) के समतुल्य डॉक्टरेट उपाधि सम्मान प्राप्त।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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