
डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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“धैर्य रखो, सब ठीक हो जाएगा। भगवान परीक्षा ले रहे हैं।“ बचपन से ही आप, मैं, सब सुनते आए हैं- यह रामबाण औषधि जैसे हर घाव पर बर्नॉल लगाने का काम करती है। चाहे घरवाले हों, रिश्तेदार, पड़ोसी, या राह चलते कोई अजनबी, हर कोई आपके घावों पर यह बर्नॉल लगाने को तैयार रहता है। अगर आप ज़्यादा ख़ुशनसीब हैं, तो राह चलता कोई भी यह बर्नोल चुपड़ता हुआ मिल जायेगा । मैं सोचता हूं, भगवान के पास और कोई काम नहीं है क्या? सिर्फ परीक्षा लेने का ही काम बचा है? भगवान ने इंसान बनाया, उसे पृथ्वी पर भेजा- ज़िंदगी जीने के लिए या सिर्फ प्रश्नपत्र हल करने के लिए?
ज़िंदगी के बारे में कहते हैं, “ये जिन्दगी के मेले कभी ख़त्म न होंगे”, लेकिन सच में तो ऐसा लगता है कि यहाँ कभी ख़त्म नहीं होंगे तो कये प्रश्नपत्रों की लड़ी । ये प्रश्नपत्र, जिन्हें हाथ में लिए आप, मैं और हम सभी बदहवास दौड़ते रहते हैं। क्या भगवान के यहां प्रश्नपत्र लीक होने का मामला नहीं चलता? पता ही नहीं चलता कि कब तो भगवान परीक्षा ले रहे हैं।दुसरे ही बताते हैं…की परिक्षा की घड़ी आन पडी है । मैं तो यह भी
नहीं समझ पाता कि भगवान आखिर पूछ क्या रहे हैं। परीक्षा का तो कोई टाइम टेबल होता है, यार। पर भगवान की परीक्षाओं का न कोई टाइम
टेबल है, न सिलेबस। कुछ भी नहीं बताया गया। जन्म लेते ही ऐसा नहीं हुआ कि कोई गाइड बुक दे दी हो कि “बेटा, ले, रट ले यह सब।” रात को भले-चंगे सोए हों, बड़े अच्छे मूड में। सुबह उठे तो पता चला कि भगवान ने परीक्षा शुरू कर दी। कोई मनहूस खबर तैयार है- आपका बेहद करीबी चल बसा, आपके पैसे डूब गए, धंधा खत्म हो गया, या फिर कोई अनजाना मेहमान आपके घर आ धमका, कुछ लव शव का ब्रेकिंग
शोकिंग … कुछ भी ! कई बार तो पल भर में कुछ समझ में आये उस से पहले ही प्रश्नपत्र हाथ में। और कई बार बाल-बाल बच जाते हैं भगवान के इन परीक्षा सत्रों से।
कोचिंग, गाइडेंस- कुछ भी नहीं। सीधे प्रश्नपत्र थमा दिया। भगवान भी सबको अलग-अलग प्रश्नपत्र देते हैं। कोई किसी और का प्रश्नपत्र हल करने की सोच भी नहीं सकता। “यार, मेरा खुद का ही हल नहीं हो रहा, तुम्हारा कहां से करूं?” मन करता है…अगर भगवान मिलें तो थोड़ा लेन-देन की बात करूं- यहां के तौर-तरीके सिखाऊं। “अपने देवलोक के नियम मत चलाओ यहां। लोग परेशान हो गए हैं बार-बार परीक्षा देते-देते।”
लेकिन, कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके पास हर परीक्षा के पेपर का हल मौजूद है। ये लोग खुद के पेपर को कभी हल नहीं करेंगे, लेकिन दूसरों के पेपर के लिए हमेशा तैयार बैठे रहते हैं। ऐसी-ऐसी सलाह देते हैं, जैसे भगवान ने परीक्षा का प्रश्नपत्र इन्ही से पूछकर बनाया । ये लोग ढूंढते रहते हैं उन लोगों को, जिनके ऊपर परीक्षा का दौर या दौरा चल रहा होता है। ये सलाहवीर बिना किसी लाग लपेट, हील हुज्जत ,मान मुनव्वल के बस सीधे आ धमकते हैं आपके द्वार .. । और हम जैसे लोग, प्रश्नपत्र हडबडी में छुपाते फिरते हैं…यार इन्हें कैसे पता लग गया? “जैसे ही इन्हें प्रश्नपत्र दिखाओ, पहले तो हँसेंगे। फिर कहेंगे,” बस इतना सा पिद्दी प्रश्न! इओत्नी तेज आवाज में बोलेंगे की भगवान् सुनले … शिकायत..यार देना तो ढंग का देना चाहिए था।
न…भगवान भी दोबारा सोचता होगा, यार, इतने आसान सवाल क्यों दे दिए? “इसके बाद, ये अपने ख़ुद को दिए प्रश्नों का पुकिंदा खोलकर बैठ जाएंगे। कहेंगे,” अरे, हमारे तो इससे कई गुना भारी सवाल थे। भगवान ने हमारे साथ चीटिंग की है! “लेकिन अपने असली प्रयोजन को छुपाना भी है, तो बात पलटते हुए बोलेंगे,” कोई बात नहीं, गर्ग साहब। आप तो बता ही नहीं रहे थे। हमने तो आपकी शक्ल देखकर जान लिया था कि आप परीक्षा में बैठे हैं। इसलिए दौड़े चले आए। आखिर पड़ोसी ही तो पड़ोसी के काम आएगा!” फिर ये अपने” रेफरेंस बुक्स” निकालकर बैठ जाएंगे और कहेंगे, “टीप लो इसमें से। ऐसे न जाने कितने प्रश्नपत्र हल किए हैं हमने!” ध्यान से देखो उनका चेहरा वो शायद सोच रहे होंगे, “इस स्साले को इतना सिंपल प्रश्न कैसे मिल गया? इसके कर्म तो वैसे नहीं लगते!”
समझ नहीं आ रहा कि भगवान ज़्यादा मज़े ले रहे हैं या ये पड़ोसी! गर्ग साहब अपना प्रश्नपत्र छुपाकर सोच रहा है “यार, समय इस प्रश्नपत्र को हल करने में लगाऊं या अपने घर को इन हिमायतियों के मगरमच्छी आँसुओं की बाढ़ से बचाऊं।” लेकिन दूसरों की दीवारों में झाँकने की आदत तो इंसानों को ही है। खुद के प्रश्नपत्र तकिये के नीचे दबाकर रखेंगे और दूसरों के प्रश्नपत्रों में झाँकने का मौका कभी नहीं छोड़ेंगे। अगर दूसरों का प्रश्नपत्र भरा हुआ है, तो इन्हें अपना प्रश्नपत्र हल्का लगने लगता है। यह सापेक्षता का सिद्धांत है, जी! प्रश्नपत्र हल हो या न हो, बस हल्का महसूस होना चाहिए। लेकिन, कुछ भी कहो, इंसानी दिल बड़ा अलग होता है। जलन तो होती ही है। मुझे भी होती है.. “मेरे साथ ही क्यों?”
भगवान का ये परीक्षा तंत्र कुछ लोगों के लिए “लीक तंत्र” जैसा काम कर रहा है। उनके पेपर आसान, और रिजल्ट? बिना पढ़ाई के “डिस्टिंक्शन”! वहीं, दूसरी तरफ, हम जैसे लोग? दिन-रात मेहनत करने के बाद भी भगवान के “पासिंग मार्क्स” तक नहीं पहुंच पाते।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन) किताबगंज प्रकाशन, गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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