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भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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( भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत )

(एक भाभी अपने देवर के साथ अपनी छोटी बहन की शादी कराना चाहती है। वह अपनी दीदी की ससुराल में आई हुई है। उसका सौन्दर्य और अदाएँ देखकर बूढ़े लोग भी विचलित हो उठे हैं। उसकी बहन को भी अपनी दीदी का देवर अच्छा लगता है और देवर को भी भाभी की बहन बहुत अच्छी लग रही है। भाभी अपनी बहन को सीधी गाय और देवर को मजाक में लपका कहती है। देवर भाभी का चुटकी भरा काव्य संवाद भदावरी बोली में पढ़िए।)

भइया की सारी का आई सूखी नस हरियाई।
फटि सी परी उजिरिया मानो अँधियारे में भाई।।
बिना चोंच मारी तोतन की सपड़ी सी पकि आई।
बूढ़न तक के होश मचलि गए , देखि अदा अँगड़ाई।।

देउर के लखि हाल लालसौं पूछि उठी भौजाई।
खुलि कें कहौ लालजी मेरे, मंशा कहा तुमाई।।
तुम मेरे इकलौते देउर, चिन्ता हमें तुमाई।।
तुम तै पूँछ रही भौजाई।।

देखि पलैया लदी आम की गदराये बागन में।
लुकलुकात से गित्त फित्त तुम जोर भरौ टाँगिन में।।
चित्तु ठिकानें नाँइ तुमाऔ पित्तु चढ़ौ रागन में।
धरैं मूड़ पै सरगु बण्ड से भटक रहे आँगन में।

आखिर का हौ गऔ तुम्हें जो अकलि आज चकराई।
खुलि कें कहौ लालजी मेरे, मंशा कहा तुमाई।।
का तुमकों लगि रही सलौनी मीठी बहन हमाई।।
तुम तै पूछ रही भौजाई।।

ब्याउ करौ तौ कहैं तुमाए रिसियाने भइया तै।
जुरैं मायके वारे आजुई गाँठ बँधै गइया तै।।
सीधी बहनि हमाई बँधिहै तुम से लपकइया तै।
मिलिहै नाँइ धरा-सागर में मारेंउ डुबकइया तै।।

तासों कहत बनौ मति जादा, कल्लेउ लला सगाई।
खुलि कें कहौ लालजी मेरे, मंशा कहा तुमाई।।
सुनि कें फूट उठे लड़ुआ से, इठी भौंह लचि आई।।
तुम तै पूछ रही भौजाई।।

वैसें कहें बहन कों मेरी तुम न लगे कछु नीके।
तौऊ अपुनु करेंगे कोशिश सरस होहु कै फीके।।
हम दोऊ बहनें कच्चे जउआ एक नसल इक जी के।
तुम दोऊ भइया करौ उजीतौ बनि दियरा देहरी के।।

तुम भइयन की खूब पटति है पटिहै इतै हमाई।
दौरानी के संग जिठानी की हौहै न लड़ाई।।
खुलि कें कहौ लालजी मेरे मंशा कहा तुमाई।।
तुम तै पूछ रही भौजाई।।

का कहि रहीं तुमाई बहिना गैया है अल्ला सी।
बेशक करौ बड़ाई भौजी है खुल्लमखुल्ला सी।।
छिपछुपाय मुसक्याय देखि मोहि माज्जाति टल्ला सी।
बिन चाखें लगि जाति रसीली फूले रसगुल्ला सी।।

चलै मरोरा चाल देख मोहि भरी धरी चतुराई।
तुम जो कहौ मानने परिहै ओ मोरी भौजाई।।
खुलि कें दई बताय भीतरी मंशा कहा हमाई।।
तुम तै पूछ रही भौजाई।।

उड़ें कबूतर से छाती पै गाज गिरावैं मो पै।
आँखिन सौं ऐसी बतरावै अँग्रेजी सी तोपै।।
तुम काहतीं हौ सीधी-साधी उचकि तरैंयाँ रोपै।
तुम्हें कछू गुन मालिम नाईं मसकईं थपकी थोपै।।

भरी जुआनी को पानी है बाढ़ सरीखी आई।
तुम जो कहौ मानने परिहै ओ मोरी भौजाई।।
खुलि कें दई बताय भीतरी मंशा कहा हमाई।।
तुम तै पूछ रही भौजाई।।

ब्याउ भऔ बहुअरि घर आई खरबूजा की पोती।
तोता-तोती इतै जुटि परे उतै कपोत-कपोती।।
खोद-खोद कैं गड्ढा कद्दए भद्दए हीरा-मोती।
दोउ भइयन ने अपनी-अपनी जम कैं खेती जोती।।

पूछन लगी “प्राण” भुरहारैं कैसी रैन बिताई।
धुआँधार बदरा से बस्से कै बदरई सी छाई।।
हँसि कें बोली बहन तुमाये देवर धरे कसाई।
हो गई भारी खुश भौजाई।।

इस गीत का खड़ी बोली में अर्थ

जिस दिन से भाभी की छोटी बहन गाँव में आई है उस दिन से गाँव वालों की सूखी नसों में खून दौड़ने लगा है। उसकी सुन्दरता देखकर ऐसा लगता है मानो घनघोर अँधेरी रातों में अकस्मात् दिन जैसा उजियारा फट पड़ा हो। ऐसे पके हुए अमरूद के फल के समान जिसे अभी तक किसी भी तोते ने चोंच तक भी नहीं मार पाई, जवानों की तो क्या कहें, जिसकी अँगड़ाई और अदाएँ देखकर बूढ़े तक होश खो रहे हैं। अपने देवर के हालात देखकर उसकी भाभी पूछने लगी कि हे लाल जी! खुलकर बताओ आखिर तुम्हारी इच्छा क्या है? तुम मेरे इकलौते देवर हो मुझे तुम्हारी बहुत चिन्ता है तुमसे तुम्हारी भौजी पूछ रही है।

बागों में गदराए हुए आमों से लदी डाली को देखकर तुम लुकलुकाते क्यों फिर रहे हो? अर्थात छिपते छुपाते क्यों घूम रहे हो? तुम्हारी टाँगें क्यों काँप रही हैं? तुम्हारा चित्त ठिकाने पर नहीं है। शरीर का पित्त बढ़ा हुआ है। स्वर्ग को सिर पर धरकर ताक झाँक क्यों कर रहे हो? आखिर आज तुम्हें क्या हो गया जो तुम्हारी अकल चकरा रही है? क्या तुमको मेरी बहन बहुत प्यारी और सलोनी लग रही है। तुम खुलकर हमें बताओ मैं तुम्हारी भाभी हूँ और तुमसे तुम्हारी इच्छा पूछ रही हूँ।

यदि तुम शादी करना चाहो तो मैं तुम्हारे रिसियाए भैया से कहूँ। मेरे कहने पर मेरे मायके वाले इकट्ठे होकर गाय जैसी मेरी बहन की सगाई तुम्हारे साथ कर देंगे और मेरी भोली-भाली बहन को तुम जैसे लपका के साथ आज ही से बांँध देंगे। भले तुम पूरी धरती छान मारो या समुन्दर में जाकर डुबकी मार-मार कर ढूँढो तो भी मेरी बहन जैसी लड़की तुम्हें नहीं मिलेगी। इसलिए कह रही हूँ कि तुम ज्यादा नखरे मत करो और सगाई कर लो और लालजी ! यह भी मुझे खुलकर बताओ कि तुम्हारी इच्छा क्या है? मैं तुम्हारी भाभी हूँ इसलिए पूछ रही हूँ।
भाभी का प्रस्ताव सुनकर देवर की तनी हुई भौहें ढ़ीली पड़ गईं और मन में लड्डू फ़ूटने लगे।

अब देवर का मजाक उड़ाती हुई भाभी कहने लगी कि यूँ तो तुम मेरी बहन को बिल्कुल अच्छे नहीं लगते हो फिर भी मैं कोशिश करूँगी अब तुम चाहे रसीले हो चाहे कठोर। हम दोनों बहनें कच्ची अंकुर हैं, दोनों में एक दूसरे के प्राण बसते हैं। वैसे ही तुम दोनों भाई दहलीज के दीपक बनकर उजियाला करो। तुम दोनों भाइयों की आपस में खूब पटती है वैसे ही हम दोनों बहनों की खूब पटेगी और हम दोनों देवरानी और जेठानी की कभी लड़ाई नहीं होगी। इसलिए है मेरे प्रिय देवर! मैं तुम्हारी भाभी हूँ और तुम्हारी इच्छा पूछ रही हूँ। तुम अपनी इच्छा मुझे खुलकर बताओ।

अब देवर भी मजाक पर उतर आया और उसने भाभी से कहा क्या कह रही हो भाभी! तुम्हारी बहन अल्ला की गाय जैसी है? तुम बेशक बड़ाई करो लेकिन वह सीधी-सादी नहीं है बहुत खुले विचारों वाली है। छुपते-छुपाते वह मुस्कुरा कर मुझे टल्ले मारती है और बिना चखे हुए फूले रसगुल्ले की तरह मन में मिठास भर जाती है। मुझे देखकर कमर को मटका-मटका कर चलती है। बहुत ही चतुर और सयानी है यद्यपि वह इस घर के योग्य नहीं है फिर भी आप जो कहोगी, वह मुझे मनाना ही पड़ेगा क्योंकि आप मेरी भाभी हो। मैंने खुलकर अपनी बात बता दी है।

भाभी और बताऊँ उसके सीने पर उड़ते हुए कबूतर मुझ पर बिजली सी गिराते हैं। वह आँखों से अँग्रेजी में बात करती है। तुम जो कह रही हो कि वह सीधी-सादी है, ऐसा नहीं है, वह अच्छे-अच्छों को दिन में तारे दिखा देती है। वह चुपचाप गुल खिलाती है भाभी! तुम्हें उसके गुण लक्षण कुछ भी नहीं मालूम है। उस पर जवानी ही नहीं जवानी की बाढ़ आई हुई है। अब आप जो कह रही हैं वह तो मुझे मनाना ही पड़ेगा क्योंकि तुम मेरी भाभी हो। मैंने अपनी भीतरी मंशा खुलकर बता दी है।

दोनों की शादी हुई और खरबूजे की मिठास सी मीठी बहू घर में आ गई। दोनों भाई अपनी-अपनी पत्नियों के साथ सोने-बैठने चले गए। प्रेम की बरसात हुई। सुहागरात रात के बाद सुबह भाभी ने देवर से बड़ी चतुराई से पूछा “रुक-रुक कर बादल बरसे या धुआँधार बरसात हुई?” देवर तो कुछ नहीं बोले इस पर अपनी बड़ी बहन से लजाती किन्तु हँसती हुई बोली बहन तुम्हारे देवर तो कसाई धरे हैं अर्थात्—–।)

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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