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दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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।।अ।।
किसे दोष दूँ किसे सराहूँ किसकी जय-जयकार करूँ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती कितना ही उपचार करूंँ।।

लो चुनाव आ गए कपट की किलकारी कोरों पर है।
हर नेता कस उठा कमर फिर तैयारी जोरों पर है।।१।।

सबके अपने-अपने मतलब सबके ठिए ठिकाने जी।
सब ने अपनी सांँस रोक कर साधे नये निशाने जी।।२।।

कोई जोड़-जुगाड़ों में है, कोई जल भुन उबल रहा।
कोई तिकड़म भिड़ा रहा है, कोई दल बल बदल रहा।।

इधर उधर से ईंटें लेकर रोड़ा रोड़ा जोड़ा है।।
भानुमती ने अपने सुत के हित में कुनबा जोड़ा है।।३।।

यै कहते हैं इस कुनबे ने चोरी कर अन्धेर किया।
वे कहते हैं चण्ड-मुण्ड ने पूरा भारत घेर लिया।।४।।

ये कहते कमजोर अकल से सत्ता क्या चल पाएगी ?
सिर पर गुड़ की भेली धरकर क्या चींटी चल पायेगी ??५??

करना हो तो करो सामना गुर्दे में दम लगता है।
खच्चर का खुर खरगोशों के सिर पर बम सा लगता है।।६।।

कुछ तो हुनर दिखाना होगा ऐसे नाम नहीं चलता।
केवल गण्डा बँधवाने से रण में काम नहीं चलता।।७।।

ये कहते हैं साँप-चील क्या बिल्ली और बिलौटे सब।
घात लगा कर बैठ गए हैं चूहा बिल में लौटे कब।।८।।

उधर मोहिनी माया-ममता अपना असर दिखातीं हैं।
असल ब्रह्म से दूर जगत को भटकाती भरमातीं हैं।।९।।

पहला नेग मिलेगा मुझको ढंग बताने लगती है।
शादी देख बुआ दूल्हे की रंग बताने लगती है।।१०।।

बंगाली अधबाला इनको नागिन जैसी लगती है।
अण्डी के जंगल में बिल्ली बाघिन जैसी लगती है।।११।।

नेता को अपना नेता भी, वृद्ध गिद्ध सा लगता है।
जो चुनाव में टिकट दे सके, वही सिद्ध सा लगता है।।१२।।

किसको लम्बरदार करूँ किसे अलमबरदार करूँ।
किसका तारण तार करूँ मैं, किसका बण्टाढार करूँ।।१३।।

किसे दोष दूँ किसे सराहूँ, किसकी जय जयकार करूँ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती, कितना ही उपचार करूँ।।१४।।

क्रमशः ….
विशेष – यह रचना लम्बी है, कुल तीन भागों में है। कल और परसों इसके शेषांश पोस्ट करूँगा। कृपया पढियेगा और आनन्द लीजियेगा।

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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