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दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग-२

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 

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।।ब।।

गली-गली से हुए इकट्ठे, बाँधे पट्टे निकले हैं।
अपनी जाति देख गुर्राने, वाले पट्ठे निकले हैं।।१।।

जितनी ताकत है दोनों में, उतनी धूम मचायेंगे।
जितनी पूँछ उठा सकते हैं, उतनी पूँछ उठायेंगे।।२।।

धरती खोद रहे पैरों से, इक-इक टाँग उठा ली है।
गुर्राहट बढ़ रही कि, गुत्थम गुत्था होने वाली है।।३।।

कुछ भौं-भौं करके भागेंगे, कुछ इस रण को जीतेंगे।
बुरी तरह कुछ चिथ जायेंगे, बुरी तरह कुछ चीथेंगे।।४।।

जितनी जबर खुदाई होगी, उतनी लोथल खतरे में।
जितना अधिक जिन्न उछलेगा, उतनी बोतल खतरे में।।५।।

बेशर्मों में शर्म न मिलती, करुणा नहीं कसाई में।
माँ के मन में बैर न मिलता, मिरची नहीं मिठाई में।।६।।

अकली कुछ ऐसे हावी हैं, नकली असली लगते हैं ।
और असलियत वाले असली, सचमुच नकली लगते हैं।।७।।

फिर भी चाल-चलन से सबके, गुण-लक्षण दिख जाते हैं।
झूठ-साँच से परदे उठते, क्षण-बेक्षण दिख जाते हैं।।८।।

कम शक्कर के पेड़े हों तो , भी पेड़े ही लगते हैं।
टेढ़े मुँह अच्छे दर्पण में ,भी टेढ़े ही लगते हैं।।९।।

सत्ता के मद में आकर, जो खुद को अन्धा कर बैठे।
दिगम्बरों की दुनिया में,धोबी का धन्धा कर बैठे।।१०।।

इस अन्धेपन में ही अक्सर, अपनी खोट नहीं दिखती।
वोट दिखाई देता पर, वोटर की चोट नहीं दिखती।।११।।

हर सवाल का उत्तर आता, फिर बवाल रुक जाता है।
द्वारपाल की तरह बिचारा, महाकाल झुक जाता है।।१२।।

किसे आर या पार करूँ, किसे बीच मँझधार करूँ।
किसको धार पार करवा दूँ, किसकी धार उतार करूँ।।१३।।

किसे दोष दूँ किसे सराहूँ , किसकी जय जयकार करूँ।
दुविधा नहीं मिटाए मिटती, कितना ही उपचार करूँ।।१४।।

क्रमशः ….

परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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