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मुझमें मेरा विश्वास जिंदा रहने दो

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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जिसको जो भी कहना है,
उसे कहने दो
थोड़ा बाकी है जीवन
सूकून से अब रहने दो!

बेमतलबी रिश्तों के
कच्चे धागे टूट जाने दो
जिस राह पर ले जाए
वक़्त उस राह पर चलने दो!

बहुत मुश्किल होता है
सबके सांचों में खुद को ढालना,
थोड़ा सा ही सही मुझमे
“मैं” जिंदा रहने दो!

सीख लिया है सबक जीवों की
मुस्कराहट में मुस्कराने का,
लोगों को मेरी मुस्कान
से जलन होने दो!

हँस के जीना है हर हाल में,
परिभाषा है जीने की,
हर ओर यही किस्सा
अब मशहूर होने दो!

यूँ ही नहीं मिट जाएगा
अस्तित्व मेरा ,
मुझमें ये विश्वास
मेरा जिंदा रहने दो!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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