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अंतर्मन की पुकार उठी है

हितेश्वर बर्मन ‘चैतन्य’
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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अंतर्मन की पुकार उठी है
आज मन में कई सवाल उठी है
मन से मन की पुकार उठी है
सवालों के जवाब से ही सवाल उठी है।
जनता ने सरकार से पूछी है
पाँच वर्षों की हिसाब मांगी है
जवाब सुनकर जनता उलझी हुई है
खुद की बनायी सरकार से ही रुठी हुई है।
आज अंतर्मन की पुकार उठी है
सरकार भ्रष्टाचार करके मस्त बैठी है
इधर जनता अत्याचार से त्रस्त बैठी है
राजतंत्र के आला-अधिकारी भी,
उसी भ्रष्टता वाली बीमारी से ग्रस्त बैठी है।
जनता दिन-रात मेहनत कर रही है
सरकार उसका हिसाब ले रही है
किस पर कितना टैक्स लगाना है
सरकार मन ही मन सोच रही है।
जनता को चूसने का मस्त बहाना है
टैक्स लगाकर शाही खजाना बढ़ाना है
कागज़ में ही सभी काम को निपटाना है
अधूरे काम की पूरी जानकारी चिपकाना है।
आज अंतर्मन की पुकार उठी है
सोयी जनता अब जाग चुकी है
ख़ामोश जुबाँ भी अब बोलने लगी है
भ्रष्टाचारियों की राज खोलने लगी है।
एक – एक करके सबको ढूंढने लगी है
आज अंतर्मन की पुकार उठी है
जैसे मानो जनता की भाग जगी है
देखो तो आज जनता दरबार सजी है।
बिना वकील और बिना जज के ही,
आज सबसे बड़ी अदालत लगी है
किसने कितने का घोटाला किया है
किसने कितनों को सहारा दिया है।
किसने कितनों का घर उजाड़ा है
किसने किसका क्या बिगाड़ा है
जनता सबका जवाब मांग रही है
आज अंतर्मन की पुकार उठी है।

परिचय :-  हितेश्वर बर्मन ‘चैतन्य’
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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