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वीर अभिमन्यु

साक्षी लोधी
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)
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शकुनि ने चल दी, अनेतिक चाल आज
केसे भी करके, बंदी बने गर धर्मराज
हार पांडवों की, हो सुनिश्चित जाएगी
सिंहासन दुरियोधन को , मिल जायेगी
यहां चक्रवियू, गुरु द्रोण ने रच दिया
अर्जुन को भेज, कुरुक्षेत्र से बाहर दिया
पांडवो में घोर चिंता छा गई
ये भयानक आज बिपदा आ गई
व्यूह भेदन अर्जुन को केवल आता यहां
पूछते हैं युधिष्ठिर आज अर्जुन हे कहां
इतने में अभिमन्यु भी रण में आ गया
पांडवों में आश बनकर छा गया
मुझे दो आज्ञा में जाऊ युद्ध करने
कुटिल नीति शत्रुओं की शुद्ध करने
बोले युधिष्ठिर तुम अभी नादान बालक
उस और भारी महारथी हैं व्यूह चालक
हठ तुम्हारी व्यर्थ है ये छोड़ दो
रथ को अपने पीछे तरफ को मोड़ दो
अब लिखने का समय आ गया, अपनी अमर कहानी
लोट गया जो समर छोड़ तो, फिर धिक्कार जबानी
आज अपने रक्त से इतिहास लिखकर आऊंगा
मार कर धूमिल करूंगा या भले मर जाऊंगा
कर्ण दुरियोधन कि दुस्साशन हो या परमात्मा
रोक सकते हैं नहीं द्रणसंकल्प मेरी आत्मा
दे दो अब आशीष की में, चक्रव्यूह भेदन करूं
शत्रुओ की छातियों को, बाण से छेदन करूं
धर्म पक्ष के इस युद्ध को, बचाने के लिए
विवश हो देदी आज्ञा अभिमन्यु को जाने के लिए
संखनाद करता हुआ बो वीर आगे बढ़ चला
बिकराल से इस काल को, कौन रोकेगा भला
रौद्र सी ज्वाला की भांति बो धधकता जा रहा
अक्छुणी सेना को पल मैं बो निगलता जा रहा
शिव के वरदान ने, जेदरथ को बाहुबल किया
रोक उसने पांडवों को द्वार के बाहर लिया
छठे द्वार पर दुरियोधन का पुत्र है खड़ा
सावधान अभिमन्यु कहकर युद्ध को आगे बढ़ा
अभिमन्यु के साथ बो युद्ध में न टिक सका
शीश कटा लक्ष्मण का दुर्योधन के रथ पर गिरा
तीव्र पवन के वेग सा वीर आगे बढ रहा
शत्रुओं के पक्ष पर गाज सा बो पड़ रहा
मात्र सोलह वर्ष की कुल आयु में
अदुतीय इतिहास अपना गढ़ रहा
जा खड़ा हो लांघता, अभिमन्यु सातबा द्वार
आश्चर्य से सब सोचते हैं, व्यूह केसे किया पार
विनम्रता से बोलकर मेरा प्रणाम स्वीकार हो
चढ़ा धनुष में तीर फिर सावधान यलगार हो
मानो की स्वयं काल ने, भयाभय रूप धारण किया
बानो की बौछार से हर एक को घायल किया
रण में अचंभित हो गुरु द्रोण देखते हैं वीर को
अभिमन्यु के रूप में, मानो कि अर्जुन स्वयं हो
देख अभिमन्यु का तांडव दुर्योधन घबरा गया
कोरवो की हार का अब समय हो आगया
देख हारता कोरवों को नियम सारे छोड़कर
युद्ध की मर्यादाओं की सारी सीमा तोड़कर
एक साथ सातों योद्धा बाण की बौछार करने लगे
इक अकेले वीर से सब एक साथ लड़ने लगे
सातों योद्धाओं को उसने, बानो से धराशाई किया
पर तोड़कर रथ अनीति से, वध सारथी का कर दिया
फिरभी वीर पराक्रमी भयभीत किंचित न हुआ
रथ के पहिए को उठा, शस्त्र बना लड़ता रहा
पीठ पीछे बार कर अभिमन्यु को घायल किया
छल से निहत्थे बालक को घेर सातों ने लिया
घायल हुआ लड़ते हुए, धरती पर जा गिरा
शोक हे इस बात का में कायरों के हाथों मरा
रक्त से बिक्षत अभिमन्यु का शव पड़ा था भूमि पर
घेरकर सब हसरहे थे नृत्य कर रहे झूम कर
जो गर युद्ध नियम से चलता
धूमिल करता सबको क्षण में
मरा नही बो अमर हो गया
महाभारत के ऐतिहासिक रण में
अर्जुन को यकायक जैसे हुआ आभास सा
हो गया मन उसका व्याकुल उदास सा
है केशव मेरा मन व्यथित हे आज क्यों
मानो कोई अनहोनी हुई हो आज ज्यों
व्याकुल ह्रदय हे हाथ ढीले पड़ रहे
गांडीव से ये तीर आगे को न बढ़ रहे
शांत सा परिदृश्य हे लग रहा ऊबा हुआ
सूर्य भी क्यों व्यथित हे शोक में डूबा हुआ
नेत्रों में मेरे क्यों तिमिर सा छा रहा
मानो भयानक प्रलय आगे आ रहा
सभा में अभिमन्यु का स्थान खाली देखकर
कुछ छण निस्तव्ध हो पूछता है चौंककर
क्यों सभा में घोर सन्नाटा छाया हुआ
इस सभा में आज क्यों अभिमन्यु न आया हुआ
शीघ्र बोलो ज्येष्ठ भ्राता क्यों सभा ये मौन हे
आपके इस मोन का कारण बताओ कौन हे
अर्जुन के इस प्रश्न पर आखें सभी की झुक गईं
बोले ! दुर्भाग्य से अभिमन्यु को हम बचा पाए नहीं
कृष्ण बोले विधि ने कार्य अपना कर दिया
आज नभ का सूर्य डूबा तिमिर सब में भर दिया

परिचय :-  साक्षी लोधी
निवासी : नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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