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मौन और संवाद

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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आज मै फ़िर बैठी हूँ
उसी जगह
वही समय और
वही चांद है
मेरे सामने
बस तुम कहीं
खो गए हो.

बादल तो हमारे
यहां हल्के हैं
इस बरसात में
भी शायद
तुम्हारे यहां के
बादल तुम्हें
छिपाकर रोक लिया
चांद को दिखाने से
कुछ यूं ही हम
तुमको सोच रहे हैं.

क्या वो मछली
स्पर्श कर पाई होगी
कमल को या
वो वैसे ही बैचेन
उद्धत है आज भी
चूमने को उस
कमल को?

नहीं
शायद वो
घबरा गई होगी
मेघों को देख के
या कहीं छिप गई होगी
उसी कमल के पत्तों में
लेकिन इसका मतलब
ये नहीं कि वो दिखें न
तो वो होगा ही नहीं
बस ऐसे ही
घुमड़ रहे हैं
कई सवाल
जो सिर्फ़ और सिर्फ़
दिमाग़ की उपज हैं.

इसलिए कि कुछ प्रश्न
उसके अनुसार
अनुत्तरित रहते हैं
हां सही भी है
हर सवालों के
जवाब मिल जाए
जरूरी तो नहीं.
आज फ़िर बैठी हूँ
तो उसी जगह
वही समय
वही चांद है
मेरे सामने
बस तुम कहीं
खो गए हो।

कहीं प्रश्नवाचक
बने रहना
अनुत्तरित रहना
तुम्हारी गहन
पीड़ा तो नहीं
जिसे तुम मौन होके
व्यक्त कर रहे
और मै मूर्ख
सवालों जवाबो में
खोज रही तुम्हे
जबकि मेरा ही
कथन था कभी
“मौन से बेहतर
कोई संवाद नहीं”
तुम उसके अक्षरशः
पालन में लगे हो

और मै फ़िर ढूंढ
रही तुम्हें प्रश्नों में
तुम्हारा मेरे शब्दों
का अक्षरशः पालन
भी तो तुम्हारा
प्रेम ही है
और मै फ़िर कुतर्को
में तुम्हे बैठी ढूंढ रही
जबकि तुम तो
मेरे अपने मौन में
सदा सर्वदा ही रहे।
आज फ़िर मै बैठी हूँ
उसी जगह उसी समय
वहीं चांद है मेरे सामने।

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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