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दोहरा मापदंड क्यों…?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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मैं बेटी हूँ
सिर्फ इसलिए ही
जन्म से पहले
कोख में मार दी जाती हूँ
कहाँ चली जाती है
ममतामयी माँ की ममता
क्यों आँखे मूंद लेते हैं
सरंक्षक कहलाने वाले पिता
क्यों उत्प्रेरक बन
सहयोगी बन जाता है समाज
कैसी विडम्बना है
सब कुछ होता है
मर्यादा की ओट में …

खैर …, ईश्वर कृपा से
जन्म ले लेती है धरा पर
अधिकांश बेटियाँ
पर … हर कदम दोहरापन
थाली बजाई जाता है
बेटे के जन्म पर
लड्डू बाँटे जाते हैं
बेटे के जन्म पर
और…. बेटियाँ
डूबो दी जाती है
मायूसी के समंदर में …

युवा होती बेटियाँ
मगर… कहाँ अवसर मिलता
पंख फैलाने को
इसी धर्म धरा पर
पैदा हुई थी मैत्री, गार्गी …
यहीं पूजी जाती है
लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती
देश की आँख का नूर रही
लक्ष्मी बाई, इंदिरा,
सुनिता विलियम
मर्दो के कंधे से कंधा मिला कर
सक्षमता से दर्शाती
अपनी अपनी प्रतिभा….

वही बेटियाँ
जब गर्भ धारण करती है
अखंड परिवार, समाज
वंश वृद्धि के नाम पर
करने लगता है कल्पना
एक अदद बेटे की
पर… कहाँ कोई पूछता है
उसके मन में क्या है
गुलाब से तुलना होते हुये भी
हर पल घिरी रहती है
चुभनशील काँटों मे बेटियाँ …

बेटियाँ
इंजीनियर, डॉक्टर, कलेक्टर
नेत्री, अभिनेत्री, पॉयलट
हर क्षेत्र में मर्द के समान
कुशल दायित्व संभालती है
मगर … गिद्ध दृष्टि
जमी रहती इन पर
जलाई जाती है
दहेज की बेदी पर
प्रश्न तो उठेगा
क्यों होता है ऐसा …

भाषणों में
बराबर कहलाते हैं
बेटे और बेटियाँ
पर आज भी
सब को चाहिए एक बेटा
हालात बदले हैं
फिर भी दोहरेपन का दंश
झेलती रहेगी बेटियाँ
कब मिटेगा समाज में
ये दोहरा मापदंड …..?

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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