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मेरी बूढ़ी अम्माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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सुघड़ता और संस्कारों की
बुलन्द इमारत हैं बूढ़ी अम्मा,
भोजन, पापड़ और अचार
बनाती, बिना नाप जोख के
अद्भुत स्वाद, दिलाती।

जो घर के सारे काम,
एक साथ करते हुए,
सारे प्रबंधन को मात देती
उनके हर काम में
सुघड़ता दिखती!

फिर भी नहीं कही
गई कोई कहानी
कोई किस्से उनके लिए,
जिसने अपने
हाथों के स्वाद से,
अपने व्यवहार से,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी को तृप्त
किया और सँवारा है !

बल्कि उन बूढ़ी
होती काया पर
आधुनिक न होने का
प्रश्न चिन्ह लगाया है !!
सभी को खुश रखना,
सदा सबका आभार
जताते रहने में
सारी उम्र बिता दी !

समय ऐसा भी आया
नहीं कोई और अम्मा,
उन बूढ़ी अम्मा के पद
चिन्हों को ग्रहण करना चाहती,
नहीं आत्मसात करना
चाहती उनके सद्गुण
भरे आचरण को,
क्यूँ की इनकी योग्यता
की कोई डिग्री, कोई
प्रमाणपत्र नहीं होता !!

बल्कि उनकी खूबियों को
गँवार की पदवी से
अलंकृत करते हैं,
साडी की सिमटी हुई
सिकुड़न, आंचल में लगे
हल्दी और नन्हें-मुन्हों
के हाथ-पैरों की धूल से
उनके गुणों की
व्याख्या होती रही है !

महिलाएं ही महिलाओं पर
सवाल उठाती रहती हैं,
उन पर आधुनिक ना होने का
आक्रोश निकालती …है !!
जबकि उन बूढ़ी अम्मां की
छवि कण-कण में दिखाई देती है!
घर की सारी दीवारें
चीख-चीख कर उनका
गुणगान करती हैं!

समय ने करवट बदली,
आज लगता है,
समाज में उन बूढ़ी अम्मांओं
का महत्त्व बढ़ रहा है,
शहर की भाग दौड़ भरी जिंदगी
उनके हाथों का स्वाद चाहती है!

नन्हें-नन्हें पांव जीवन की
मुश्किलों का सामना कर पाए,
इसके लिए उन बूढ़ी अम्मा के
संस्कारो का सहारा चाहती है!
मैंने जीवन भर के लिए
उनके संस्कारों की वसीयत को
समेटने का प्रयास किया है,
वो स्वाद, वो प्रेम, वो
करुणा और ममता
जो वो इस जवान
पीढ़ी को सौंपना चाहती हैं !
.
महका देना चाहती हूँ
पीढ़ी दर पीढ़ी को बूढ़ी अम्माँ
के अनमोल धरोहर उनके
संस्कारों और अद्भुत स्नेह से
जो जीवन भर बांटा है
उन्होंने हर एक जीव में.!!
बूढ़ी अम्मा ने जो करुणा और
प्रेम के नए अंदाज से
गढ़ा है हम सबको
वही करुणा हर जीव में
जीवंत करना चाहती हूँ !

नए और आधुनिक समाज के
हर गली हर घर का जीवन
तभी खुशियों से भरा होगा
जब बूढ़ी अम्मा को स्वयं में
आत्मसात किया गया होगा!
मैंने खुद मे समाहित किया है
मेरी बूढ़ी अम्माँ को
घर आंगन-हर कोना महकता है
हमारी बूढ़ी अम्माँ की सुगंध से !!

ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया है
उनकी ममता और स्नेह को,
चल पड़ी हूँ उनके पदचिन्हों पर
एक बूढ़ी अम्माँ बनने को!!

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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