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बंधे हुए शब्द

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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छोड़ दो शब्दों को स्वतंत्र,
बिना दुराव छिपाव बिना घुमाव,
कहने दो अपनी बात
सरल और सीधी शब्दों में,
ताकि न पड़े लोगों को खोजना
कुछ कठिन शब्दों के अर्थ,
ताकि संभावना ही न रहे कि
निकल पाये अर्थ के अनर्थ,
साफ शब्दों को जानने
में सब है समर्थ,
कवि के दिली अहसास
यदि न पहुंच पाए
जन मन के दिलों तक,
तब उनके लिए हो जाते हैं
वे तमाम शब्द बेमतलब,
हां होते हैं कवियों की तलब
कि वह भी शामिल हो जाये
उन तमाम लोगों
की फेहरिस्त में,
जिन्हें लोग कहते हैं
शब्दों के जादूगर,
बेजोड़, बेहिसाब,
बेझिझक, निडर,
असल मुद्दा होता है
अपनी रूह को पाठकों
की रूह से जोड़ना,
उड़ेलना जरूरी है
उन तमाम शब्दों को
जो बंध कर नहीं रहते
किसी भाषाई लोगों
के बंधन में,
जो स्वतंत्र है
अपनत्व में, खंडन में,
जिस तरह नदी की बहाव को
बांधकर रोका जाए तो
निश्चित है एक दिन
सैलाबी तबाही,
प्राकृतिक आपदाएं
देती रह रह गवाही,
शब्द जीवित रहते हैं
लोगों की जुबान पर रहकर,
हमने सुने हैं बहुत
से भाषा और शब्द
आज ओझल है परिदृश्य से
बंधनों के कारण।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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