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क्या तब.. क्या अब.. ?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
आनंद विहार (दिल्ली)
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मन
सोच रहा है
कैसे खोल दूँ लब
एक अरसे से
मूक रहे जो
खुलेंगे किस लिए अब……

लबों पर
चिन्हित है गहरी मुस्कान
मगर
जग क्या जाने
क्यों सीये थे
सुर्ख़ लबों को तब……

आज तलक
पनपता रहा आक्रोश
गहरी पर्त्तों में
रिसता रहा पर्त दर पर्त
पीता रहा बूँद बूँद
भुलाकर मन की चाहते सब…..

पर
दबा ही तो रहा,ख़त्म हुआ कहाँ
वह आक्रोश मन में
सहता रहा,दूसरों की ख़ुशी के लिए
होते रहे छेद जिगर में
मूक मन उफ़ भी करी कब…..

अब
होना है अंत यही जब
क्या कह दूँ मन की सब
जानते हुये भी कि
चाहते पूरी नहीं हुई
क्या तब….क्या अब…?

परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
निवासी : आनंद विहार, दिल्ली
विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, राजस्थानी लोक गीतों के लिए प्रसिद्ध कंपनी “वीणा कैसेटस” के दो एलबमों में सात गीत संगीतबद्ध हुये हैं।
सम्मान : “राजस्थानी आगीवान” सम्मान से सम्मानित
श्री गंगानगर के सृजन साहित्य संस्थान का सृजन साहित्य सम्मान व
सरदारशहर गौरव (साहित्य) सम्मान व अनेक अन्य सम्मानरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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