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कैसा वो दिन था

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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कैसा वो दिन था,
प्रारम्भ का अंत था,
प्रचंड पराक्रम था,
कर्म अखंड था।

सनातन की रक्षा हेतु
चढ़ा वो धर्म की सूली पर
प्राण दिए अपने,
स्वाभिमानी बलिदानी था!

ना स्वयं की चिंता ना
घर-बार की खबर कोई,
दृढ़ संकल्प लिए
गा रहा पवित्र
राम नाम था।

नमन है, प्रणाम है,
कोटि कोटि वंदन है
युवक था, बालक था,
बुजुर्ग भी
पर भगवा था।

शौर्य- वीरता,
पराक्रम का
अद्भुत वो पल था,
ना भुला सके
इतिहास कभी,
वो ज्वलंत क्षण था।

६ दिसंबर १९९२ का दिन था
धर्म के दाग को सेवकों ने
स्वयं के रक्त से धोया था।

नमन तुम्हें हे बालक
यशवर्धन तू यज्ञ था,
कितनों की आहुतियों
से खड़ा हुआ
ये आज का मंदिर है।
अवध था, अवध है,
जय श्री राम का ब्रम्हांड
में जय घोष था।

भारत के लाल थे
कैसा वो जोश था।

अमर हुए, इतिहास बने,
रघुनन्दन के नंदन थे,
आहुति दी स्वयं की
राष्ट्र के सेवादार थे।

कोटि-कोटि नमन
उन्हें देश के सपूत थे,
रामलला के मदिर
के आधर स्तंभ थे

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “जीवदया अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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