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जीव की करूण पुकार
कविता

जीव की करूण पुकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आया पावन गणेश चतुर्थी का त्यौहार, सबको मिले जीवन मे खुशियां अपार! हम भी चाहें थोड़ा सा स्नेह, हे गणपति करो हम पर ये उपकार!! शिव-शक्ति के पुत्र कहलाते, सर्वप्रथम पूजे जाते, मूषक तुम्हारा वाहन होता सहनशीलता का संदेश है देता! गजराज बन पूजे जाते, पर्व ''त्यौहार" में सजाये जाते, फिर क्यों जंजीरों में जकड़े जाते, ये कैसी श्रद्धा कैसी पूजा हम सब भी ये समझ न पाते?? मानव करते क्रूर आघात, इतनी घृणा और अत्याचार, तड़पते घुटते, तिल-तिल मरते, नित प्रतिदिन होता हमारा तिरस्कार, अब तुम ही करो गणपति हमारा उद्धार!! अहंकार, द्वेष, घृणा से परे, एक सुन्दर दुनिया है हमारी, घोर विपदा हम पर है आई क्यूँ हमारे अस्तित्व पर बन आई! अब तुम ही हो हमारे खेवनहार हे गणपति तुम ही करो दुःख का निस्तार!! नही...
पता नहीं कैसे जिंदा हूं
कविता

पता नहीं कैसे जिंदा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये है ही बेहद ताज्जुब की बात, कि कुरेदा गया दिल बचपन से जिसका लेकिन कैसे बचा हुआ है आज, था जिनके भरोसे ताना मिला उन्हीं की ओर से कि जिंदा हूं आज भी खाकर जूठन, ना आयी लाज बाल्यकाल में और न शर्मिंदगी ढलते जवानी में भी, उलाहना देने वालों में सभी निपुण हो चुके थे रहे हों चाहे मित्र या संबंधी, सबके ताने रहे प्यार भरी बातों से सुषज्जित मगर थे भयंकर विध्वंशी, अब जाके पता चल रहा है कि असल में मैं फौरी तौर पर था तेज पत्ते की तरह अत्यावश्यक, जिसे फेंका जाता है सर्वप्रथम, मुझे भी फेंका गया मगर मुझे तनिक भी भनक लगने दिए बिन, रोष तब और मिल गया सबको जब पता चला कि मैं खड़ा हो कैसे गया अपने पैरों पर, आंख मूंद भरोसा कर अपनों व गैरों पर, मेरा जीना न जीना चलिए आज किसी के लिए कम से कम कोई मायने ...
बूझो तो जाने …साप्ताहिक पहेलियों की प्रथम किश्त
पहेलियाँ

बूझो तो जाने …साप्ताहिक पहेलियों की प्रथम किश्त

महादेव प्रसाद "प्रेमी" गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** १. नर शरीर धारण किया, मुख किया पशु सम्मान प्रथम पूज्य देवता भए, पहेली है आसान। २. सुबह चाय के वक्त पड़ती है ज़रूरत तेरी, थोड़ी-सी चिंता बढ़ती है मेरी, जब तेरे आने में होती है थोड़ी-सी देरी। ३. हम भाई बहन अनेक हैं, मैं उनमें से एक, अगर हम माँ के संग में ना रहें, तो माँ को देते फेंकें। ४. उल्टा किया तो हो गया राजी, डाल दिया तो बन गयी भाजी, सब ही मेरा उपयोग करते, क्या मुल्ला क्या काजी। ५. धोली धरती काला बीज, बोवन वाला गाये गीत। पहेलियों के क्रम डालकर आप जवाब कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं। प्रकाशित पहेलियों के सही जवाब आप अगले सप्ताह प्रकाशित होने वाली पहेलियों की द्वितीय किश्त में पढ़ सकते हैं। परिचय :-   महादेव प्रसाद "प्रेमी" जन्म : १० जुल...
सुंदरतम
कविता

सुंदरतम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जल ने प्रलय मचा रखी है आसमाँ की मोहब्बत में दुनिया तबाह कर रखी है। सोचते हो मोहब्बत बस तुमने ही की है यहाँ ओह नहीं नहीं ... हवा ने पानी से पानी ने हवा से आंखों से आंखें मिला रखी है। सोचते हो खूबसूरत बस तुम ही हो यहां ओह नहीं नहीं ... पर्वतों ने अपनी सुंदरता से सारी दुनिया अपने कदमों में झुका रखी है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं...
आजमा कर छोड़ दिया
कविता

आजमा कर छोड़ दिया

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** कौन अपना है कौन पराया है। ये तब पता लगा जब मैने आजमाया है। ****** आजमाने से हकीकत पता चलती है। अगले की हमारे प्रति सोच पता चलती है। ******* सामने से तो सब लोग मीठे बातें बोलते है। पर मौका मिलने पर पीठ में छुरा भोकते है। ******* तस्वीर में तो सभी नज़र आते है। तकलीफ में सारे लोग गायब हो जाते है। ******* सौ नहीं बल्कि एक ही हमदर्द बनायें। जो हर परिस्थिति में आपके साथ नज़र आये। ******* मौका मिलने पर सबको आजमाया करो। जो अच्छा हो उसे मित्र बनाया करो। ******* आजमाने पर जो गलत निकले उसे छोड़ दिया करो। सारे रिश्ते नाते उससे तोड़ दिया करो। ******* हम जिंदगी भर उन्हें अच्छा समझते रहे। और वो पीठ पीछे नाग की तरह हमको डसते रहे। ******* पहिले आजमाओ फिर मित्र बनाओ जिंदगी की दौड़ में आगे बढ...
गुरु तुम दिव्य
कविता

गुरु तुम दिव्य

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक तुम तो हो गुरू, तुम से ही उत्थान। गुरु बन तुम ने ही रचा, जीवन का सम्मान।। शिक्षक से आलोक है, शिक्षक से संसार। शिक्षक से ही शिष्य को, मिलता है उपहार।। तुमने दिया विवेक तो, हुआ सत्य का भान। तुमसे ही है दिव्यता, गुरुवर ऐ भगवान।। खिलता है जीवन तभी, जब गुरुवर हैं संग। कर देते जो ज़िन्दगी, सचमुच में नवरंग।। यदि गुरुवर हैं संग तो, मैं नित ही बलवान। उनसे ही तो बल मिले, हो जीना आसान।। बिना ज्ञान नहिं चेतना, जीवन जाता हार। गुरु हैं जहाँ, रहे वहाँ, नित चोखा उजियार।। गुरु देते संस्कार नित, कर देते निर्माण। नहीं कभी लगते यहाँ, मानव को तब बाण।। हर दुर्गुण को दूर करे, लाते मंगलगान। गुुरु से ही जीवन हँसे, रह पाती है आन।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रद...
औकात की बात
व्यंग्य

औकात की बात

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज फिर उनकी औकात उन्हें दिखने लगी है। दुखी हैं बहुत। एक बार हो जाए, दो बार हो जाए, लेकिन बार-बार कोई औकात दिखा दे तो भला किसे बर्दाश्त होगा? इस बार तो हद ही कर दी। संस्था वाले भी पीछे ही पड़े हैं... क्या यार, इस बार तो मात्र दस रुपये की माला को मोहरा बना दिया, औकात दिखाने के लिए! उन्हें पता चला कि सम्मान करने के लिए जो माला उनके गले में डाली गई थी, उसकी बाजार कीमत दस रुपये थी, और संस्था द्वारा थोक में मंगवाने के कारण वह महज आठ रुपये में पड़ी थी। बस, तभी से अपसेट हैं। कार्यक्रम संस्था द्वारा उनकी शादी की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित था। संस्था वालों ने उनकी वर्षगांठ पर उन्हें दस रुपये की माला पहनाकर उनकी औकात दिखा दी! पिछली बार भी एक कार्यक्रम हुआ था। तब इसी संस्था के एक अन्य सदस्य को...
हे गणपति
भजन

हे गणपति

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी रिद्धी-सिद्धि के तै स्वामी, तोरेच गुन ल गावत हँव। सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव।। हे गणपति, गणनायक स्वामी, महिमा तोर बड़ भारी हे। माथ म मोर मुकुट सजत हे, मुसवा तोर सवारी हे।। साँझा बिहिनिया करँव आरती, लडवन भोग लगावंत हँव। सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव।। माता हवय तोर पारबती अउ पिता हवय बम भोला। दिन दुखियन के लाज रखौ, बिनती करत हँव तोला।। पान-फूल अउ नरियर भेला, मै हर तोला चघावंत हँव। सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव।। अंधरा ल अखीयन देथस अउ बाँझन ल पुत देवइयाँ। बल,बुद्धी के तै हर दाता, सबके बिगड़े काम बनइयाँ।। हे गणराज, गजानंद स्वामी मै हर तोला मनावंत हव। सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव।। परिचय :- प्री...
गुरु को प्रणाम
कविता

गुरु को प्रणाम

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा गुरु मेरे लिए पूज्यनीय है, खुद से भी ज्यादा आदरणीय है। जिसने दिया मुझे अनमोल ज्ञान, वो ज्ञानी मेरे लिए है सबसे महान। मेरे गुरु ने मुझे भविष्य की राह दिखाया है, कँटीले रास्ते में भी शान से चलना सिखाया है। मेरे जीवन से जिसने अंधकार को दूर किया है, जिसने मेरे मस्तिष्क को ज्ञान से भर दिया है। प्रणाम उनके चरणों में जिसने मुझे तालिम दी, जिनके कृपादृष्टि से मैंने विद्या हासिल की। वो मेरे जीवन का नित्य पथ प्रदर्शक है, वो मेरे जीवन का एक मार्गदर्शक है। उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन, प्रफुल्लित मन से हार्दिक अभिनंदन। गुरु-शिष्य का ये पवित्र नाता अमर रहे, पूरा संसार शिक्षक दिवस मनाता रहे। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषण...
कुदरत की महिमा
कविता

कुदरत की महिमा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कुदरत तेरी रचना वाह तेरा क्या खूब कहना प्राणी जीवजन्तु में कमोधिक गुणों में गुण की बसती महिमा खूबसूरत सुंदर रहती विद्यमान कुदरत तेरी रचना ।।१।। कलम, काठ, पेंसिल स्याही, चाक, लिखावट में गुणी पुस्तकें ज्ञान बढाने, पढ़ाने में रहती है हरदम गुण में गुणी डस्टर बार बार लिखावटों को मिटाने में रहता गुणी निर्जीव सजीव में कुदरत तेरी रची है अजीब रचना प्राणी जीवजन्तु गुणों में गुणी कुदरत तेरी रचना ।।२।। केंचुएं में जमीन उपजाऊ का गुण चूहा, जहरीला कीड़ा उगती फसल नष्ट का रखता गुण हिंसक नीचे गिराने सेवक रखता उठाने गुणों में गुण कुदरत तेरी रचना कुदरत तेरी रचना कहीं बाधक का गुण कहीं सम्मान का गुण मुश्किल है कुदरती रहस्य मुश्किल तेरी महिमा समझना ।।३।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रू...
विश्व गुरु मोदी जी
कविता

विश्व गुरु मोदी जी

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मोदी जी का जय घोष हो सनातन संस्कृति को बचाने, कलयुग से सतयुग लाने, मोदीजी को सिंघासन पर बैठाया। संकल्प लिया था जिसने मां भारती को सोने की चिड़िया बनवाया। किसानों का आत्म सम्मान बचाने। नये उद्योगों से भारत का डंका बजवाया। गांधी का गया जमाना, एक गाल में चांटा पढ़े तो, दूसरा मत दिखाना। अब है मोदीजी का २१ वीं शताब्दी का जमाना। कोई मारे तो उसे ब्रह्मोस सुखोई विमान दिखाना। खून का बदला ऑपरेशन सिंदूर दिखाना। मोदीजी अब ट्रंप की भाषा को आंखों से ही समझाते। धर्म युद्ध की रणभेरी में मेकइन इंडिया का मंत्र समझाते। किसानों और उद्योगों को खुशहाली देते। मोदी जी के स्वाभिमान के खातिर तुम भारत माता को हर पल अपने दिल में रख लेना। भारत माता के प्रधानमंत्री मोदी जी की जयघोष हो। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोप...
गुरु महिमा (दोहे)
दोहा

गुरु महिमा (दोहे)

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** गुरु ओजस्वी दीप है, तेज है चहुं ओर। अपने अनगढ़ शिष्य का, सृजन करें हर छौर। विद्यास्थली मंदिर है, गुरु मेरे भगवान। करता नित मैं वंदना, हृदय बसे सम्मान। अभिनन्दन गुरु देव का, है सादर सत्कार। अनुग्रह मिलें शिष्य को, करते नित उपकार। नित गुरु शिष्य भला करे, नव चरित्र सृजनकार। संस्कार की विशेषता, नव वृत्तिक मूर्तिकार। गुरु विशेष की खान है, गुरु कोमल अहसास। गुरु अज्ञान विनाशक है, गुरु नायक विश्वास। गुरु संस्कृति की रोशनी, गुरु विशेषण विशाल। सद् गुरु सा सगा नहीं, गुरु अनमोल मिशाल। गुरु सहज सरल जीवनी, गुरु जग तारणहार। गुरु संबल है शिष्य के, गुरु नव पालनहार। गुरु वितान नव ज्ञान के, गुरु पावन परिवेश। गुरु ओज चरित्र भव्य है, आप मूर्ति अनिमेश। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार...
वक्त के साये
कविता

वक्त के साये

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** क्या जीत है क्या हार है, कहीं वक्त की मार तो कभी वक्त ही उपकार है। वक्त की तिजोरी नसीब में सबके, बेकद्र जो वक्त है टूटते सपने बेशुमार है।। जीवन मिला है सबको वक्त भी मिला वहीं है। भावना जुदा-जुदा है जिंदगी सबकी वही है।। खुद को पका तपा ले सूरज की तपन वही है। रोशन है तुझसे दुनिया तेरी लगन फिर सही है।। समृद्ध हो तब रत्नजड़ित लिबास तन पर सही है। बिन मांगे ही सहयोग करने खजाने बेशूमार वहीं है।। वक्त बदलने दो लिबास उतरने दो, फैली हथेली ही रही है। लाख मुंह तकना अपनों के लोग वही बहाने हजार सही है।। मुकद्दर की रोटी मेरे हिस्से नहीं हर वक्त रही है। चोरों की बस्ती से मेरा निवाला चुराना सही है।। लिबास की चमक में कहां मुफलिसी मेरी दिख रही है। कुरेद कर देख जरा वक्त नया ज़ख्म पुराना वही है।। इबादत एक तेरी...
अपनोंं से निष्कासित
कविता

अपनोंं से निष्कासित

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* एक टुकड़ा बादल का छोटा सा आंँखों के काजल- सा भटक रहा था यतीम- सा मगर मुझे लगा इसमें कोई बात है मौसम बरसात ‌का हुजूम बादलों का उमड़-घुमड़ बरस रहा फिर क्या वज़ह कि सूखी आंखों से गीली धरती ताक रहा. बस पूछ लिया मैंने अकेला अनमना है क्यों उसने देखा देर तक देखा फिर उदास- सा होके हमसे कहा अपनोंं से निष्कासित हूँ कहा गया था आज बरसना है झुग्गी पर शहर‌ के दांएंँ कोने की तराई पर नीचे देखा कुछ बच्चे खेल रहे थे लगा ये बच्चे डूब जाएंगे मैंने ना कर दी समझाया औरों ने पर मन माना नहीं तब मुझे फिर ये सज़ा मिली जा धूप में मर कल चुपके से जाके हल्की फुहार- सा बरसूंगा आज भय से दुबके बच्चे कल रिमझिम में उछलेगें खेलेगें पर आज मुझे सारा दिन यूँ‌ ही जलना होगा और तब से सोच रहा हूंँ मैं ...
दोहरा मापदंड क्यों…?
कविता

दोहरा मापदंड क्यों…?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मैं बेटी हूँ सिर्फ इसलिए ही जन्म से पहले कोख में मार दी जाती हूँ कहाँ चली जाती है ममतामयी माँ की ममता क्यों आँखे मूंद लेते हैं सरंक्षक कहलाने वाले पिता क्यों उत्प्रेरक बन सहयोगी बन जाता है समाज कैसी विडम्बना है सब कुछ होता है मर्यादा की ओट में ... खैर ..., ईश्वर कृपा से जन्म ले लेती है धरा पर अधिकांश बेटियाँ पर ... हर कदम दोहरापन थाली बजाई जाता है बेटे के जन्म पर लड्डू बाँटे जाते हैं बेटे के जन्म पर और.... बेटियाँ डूबो दी जाती है मायूसी के समंदर में ... युवा होती बेटियाँ मगर... कहाँ अवसर मिलता पंख फैलाने को इसी धर्म धरा पर पैदा हुई थी मैत्री, गार्गी ... यहीं पूजी जाती है लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती देश की आँख का नूर रही लक्ष्मी बाई, इंदिरा, सुनिता विलियम मर्दो के कंधे स...
सहचर
कविता

सहचर

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं चाहूँ और कोई आ जाए, बिना कुछ पूछे, बिना कोई सवाल किए मात्र इसलिए कि हमने चाहा है! जब कि सच्चाई है कि हमने खुद को कभी वक़्त नहीं दिया, खुद से खुद की कोई बात नहीं की! जीवन के अकेलेपन में मेरी आत्मा में मेरा अस्तित्व बिखर रहा होता है बिना कोई शोर बिना कोई आवाज किए!! क्या कोई स्नेह से मुझे सहला सकता है क्या कोई मेरे सिरहाने बैठ कर मुझमे मेरा विश्वास जगा सकता है?? मुझे सूकून से अपने सानिध्य में सुला सके ये आभास करा कर कि सब अच्छा होगा! क्या कोई ऐसा कर सकता है? हैं, मेरे चार पंजों वाले सहचर, हमारी गतिविधियों से हमारा सुख-दुख समझ सकते हैं, बिना स्वार्थ हमारी पीड़ा, मन का शोर बांट लेते हैं, उनके साथ उनके निस्स्वार्थ प्रेम में हम सूकून से सो सकते हैं!! परिचय :- श...
किस्मत के मारे मेरे शहर के कुंवारे
हास्य

किस्मत के मारे मेरे शहर के कुंवारे

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** उम्र कट रही है उनकी बस इस मलाल में दूल्हा बन सके न वो चालीस साल में। रो रहे हैं वो कुछ इस क़दर अब तलक जैसे आए हुए हों किसी के इंतिक़ाल में। हो न पाएगी शादी जानतें हैं पर मानते नहीं दिन कट रहे हैं उनके लुगाई के ही ख्याल में। होने पाए उनकी शादी यदि अब भी तो दर्जनों बच्चों के बाप बनेंगे वो एक ही साल में। शादी कब कर रहे हो? यह सुनते ही सुन्न पड़ जाते हैं वो लोगों के ऐसे सवाल में। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम...
बेचना है जल्द
कविता

बेचना है जल्द

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आस, उम्मीद, आकांक्षा सबको अपने से दूर हटाना चाहता हूं, क्योंकि ये पूरे होते नहीं, या फिर दिल में दबी रह जाती है, कहने को तो लोग कहते हैं इसे खूबसूरत और खांटी, पर सबसे ज्यादा तकलीफ देने का ठेका इन्ही के पास होता है, थोड़ा सा मोह देकर लूट लेते हैं सब रिश्तेदार, मन में बसी हुई एक उम्मीद, और बिखेर देते हैं सारे सपने, बने हुए सारे लालची अपने, जो कुछ भी हासिल किया जा सकता है वो सब सिर्फ अपने दम पर, क्योंकि टांग खींचेंगे सारे अपने ईर्ष्या और घमंड लेकर, खड़ा हूं बीच राह स्वच्छंद, दिखता हुआ निरीह, पर मुझे अब आवश्यकता नहीं नोचने को तैयार बैठे किसी रिश्तेदार की, आज वक्त ने सीखा दिया किसी पर भरोसा न करना, अब बेचना है जल्द भरोसे को और रिश्ते को भी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी ...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) ।।स।। (अन्तिम भाग)
कविता

दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) ।।स।। (अन्तिम भाग)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** अर्थ-बाण चढ़ गए धनुष पर, खुलने लगे खजाने जी। खुलने लगे खजाने फिर तो ,लगने लगे निशाने जी।।१।। लगने लगे पराए अपने, जुटने लगे पटाने में। ऐसी दरियादिली कि अब तक, देखी नहीं ज़माने में।।२।। बकरी से कह उठे भेड़िए, चल नाले के पार चलें। हरी-हरी है घास वहीं पर, जमकर खेलें खूब चरें।।३।। जमने लगे चिलमची तनकर , फूँक छपाके लेती है। दम भरकर दम मार रहे दम, चिलम लपाके लेती है।।४।। बँटी रेवड़ी अपने खुश हैं, अन्धों की दिलदारी पर। कौए तक ले उड़े कमीशन, कोयल की किलकारी पर।।५।। जब से माँग बढ़ी ककड़ी की, तरबूजों को बुरा लगा। तरबूजों के भाव सुने तो, खरबूजों को बुरा लगा।।६।। बिना बुलाये घेर रहे घर, वोटर की है लाचारी। थोड़ा सा कुंकू चावल है, भीड़ परीतों की भारी।।७।। माँग रहे सब अपनी पूजा, यूँ खुलकर मत दान करो। ...
ऑपरेशन सिंदूर २०२५
कविता

ऑपरेशन सिंदूर २०२५

माधवी तारे लंदन ******************** ऑपरेशन सिंदूर की लाली देखो फैली रणभूमि पर रक्त-रंजित लाली छाई शत्रु पटल पर। शल्यक्रिया में लाल होती मेज भी इस सिंदूर की लाली है पर कुछ हटकर। शौर्य गाथा देश के जवानों की सब की जुबान पर सिंदूर तो दूर दुश्मनों की आँख नहीं उठेगी अब देश पर। भागे हुए जंगलों, गुफाओं की छाँह में, क्या जाने महत्ता सिंदूर की धर्म पूछ मारने वाले कायर, नहीं जानते ताकत सिंदूर की। खैर, अब उनकी जान की कोई खैर नहीं खड़े हैं सब अर्जुन सज्ज गांडीव पर हाथ धर। श्रीकृष्ण बन रहे हैं देश के पालनहार सीमा पर पर चक्र सुदर्शन सज्ज कर। परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (लन्दन शाखा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आनंद में डूबती उतरती अविस्मरणीय यात्रा
यात्रा वृतांत

आनंद में डूबती उतरती अविस्मरणीय यात्रा

शकुन्तला दुबे देवास (मध्य प्रदेश) ******************** प्रातः पांच पैंतालीस पर सुखद सुरक्षित यात्रा की कामना के साथ दीप प्रज्ज्वलित किया तब कल्पना भी नहीं थी कि अनुपम नैसर्गिक सौंदर्य हमारी बाट जोह रहा है। हमारे स्वागत के लिए बादल हल्की फूहारो के रूप में गुलाब जल बरसा रहे हैं। सुरमई उजाले के साथ हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई सबसे पहला पड़ाव तिन्छाफाल ने अपने सौन्दर्य से मोहिनी सी डाल दी झर झर करती धवल धारा आंखों के रास्ते हृदय में उतर गई। दूर-दूर तक फैली मखमली घास के मैदानों के बीच कास के सफेद फूलों को देखकर बरबस गोस्वामी तुलसीदास जी रचित पंक्तियां याद आ गई फूले कास सकल महि छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई।। यहां वहां झरने झरने प्रकृति का अभिषेक कर रहे थे कहीं गहरे कहीं हल्के हरे रंग के मैदानों के बीच खड़ा कजलीगढ़ का किला मौन होकर भी अपने गौरवशाली अतीत की गाथा सुना रहा था। ओखलेश्वर...
भारत माता
कविता

भारत माता

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गाती रहेगी युगो, युगो तक गीत तेरे मां धरा फूलो की घाटी से होगी पुष्पो की बरखा मां। कन्या कुमारी के सागर की लहरे करेगी तुम्हारे चरण प्रक्षालन पाहन-पाहन गान गाएंगे जनगण मन। वीर करेगे कशरिया फूलो से स्वागत साधना रत साधक सुनाएंगे ओम शान्ती का मन्त्र हरियाली की पगडी बान्ध किसान करेगे जय, जयकार यही भारत के तिरंगे की शान है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप रा...
चलते रहना ही जीवन है
कविता

चलते रहना ही जीवन है

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चलते रहना ही जीवन है, चाहे सुख आए या दुख आए, चाहे काँटे भाटे रोडे आए, इन सबको पार करते चलना, चलते रहना ही जीवन है। चाहे ओलावृष्टि आती हो, चाहे गर्मी कितनी सताती हो, जीवन में लक्ष्य लेकर चलना, चलते रहना ही जीवन है। मंजिल की आस रहे दिल में, चाहे कितनी कठिनाई सामने हो, हो चट्टान का सामना भी, चलते रहना ही जीवन है। कुछ पाना है तो चलते रहना, बढ़ते रहना हो लक्ष्य सदा, ना हार कभी मन में लाना, ना नर्वस होकर तुम रहना। उठो चलो ! चलते रहना चलते रहना ही जीवन है। कभी नही उदास हो जीवन मै, नहीं कभी हतोत्साहित हो जीवन मै, खुश होकर चलते ही रहना, चलते रहना ही जीवन है। नदियों की तरह बढ़ते रहना, नाचते गाते उत्साह भरे, मंजिल तो एक दिन पाना है, चलते रहना ही जीवन है। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : वि...
सीखें हम रामायण से
कविता

सीखें हम रामायण से

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जय बोलो श्रीराम की कथा राम हनुमान की पत्नी रत्नावली की संगति तुलसीदास ने पाई अतुल ज्ञान की दुर्लभ संपति पाई राजा राम की महिमा गाई। सत्संगति ------------- मुदमंगदमय संत समाजू जिमि जगजंगम तीरथराजू। सत्पुरुषों, ज्ञानीजन की संगति ऐसे तीर्थराज प्रयाग की अतुलित महिमा जैसे सत्संगति से मिलते पुरुषार्थ चार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का खुलता द्वार औषधीय गुणों से भरपूर गंगा-यमुना का निर्मल नीर सकल ताप, कलुष कर भंजन प्रयागराज को देता मान तीर्थराज का दैवी नाम। गुणीजनों की संगति से सभी पाप धुल जाते है मन होकर निष्पाप ईर्ष्या द्वेष न रह पाते हैं क्लेश ताप मिट जाते हैं सत्संगति का लाभ उठाएं अपने लक्ष्यों पर संधान करें सदाचार, सद्विचार से जीवन का कल्याण करें। मर्यादा ---------- मर्यादा पुरुषोत्तम क...
बिजली का बिल- ४४० वोल्ट है छूना है मना …
व्यंग्य

बिजली का बिल- ४४० वोल्ट है छूना है मना …

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आजकल बिजली का करंट सिर्फ पागलखाने में या बिजली के तारों में ही नहीं दिया जाता, बल्कि आपके घर में हर महीने बिल के रूप में भी आता है। यह पागल का इलाज करने के लिए नहीं, बल्कि आपको पागल बनाने के लिए है! पहले यह बिल दो महीने में आता था। लेकिन सरकार को लगा कि लोग कम पागल हो रहे हैं, इसलिए इसकी आवृत्ति बढ़ाकर मासिक कर दी गई। सरकार की महावारी की तरह यह भी हर महीने बिना नागा के आता है- इसमें मीनोपॉज़ की कोई गुंजाइश नहीं! वैसे सरकार भी लोगों की चिल्लपों से बड़ी परेशान थी। जब बिजली का बिल दो महीने में आता था तो सुरसा के मुँह की तरह दिखाई देता था। इसलिए उसे हर महीने कर दिया गया, ताकि बिल आधा लगे। लेकिन जैसे ही बिल आधा हुआ, लोगों का बजट गड़बड़ा गया। बचे हुए पैसों से गृहिणियाँ अपनी शॉपिंग करने लगीं, ब...