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आव्वाहन… महान आत्माओं का
कविता

आव्वाहन… महान आत्माओं का

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे विवेकानंद पुनः आकर जगाओ नौजवानों को लक्ष्य याद दिलाओ क्या वे भूल गए अपने जोशीले इरादों को हे भगत आज़ाद बिस्मिल कहाँ हो वंदे मातरम का नारा फिर से गुन्जाओं क्या भूल गए हैं फांसी के उन फंदों को हे लाल, पाल, बाल और एक बार दहाडो अन्याय सहना भी अन्याय है, याद दिलाओ जन्म सिद्ध जीने के अधिकारों को दुहराओ संसद अक्षरधाम २६/११ के हमलों को कभी उरी कभी पुलवामा-बरसते गोलों को हे नेताजी आकर ईंट का जवाब पत्थर से दो यह बसंत भूल याद करो वीरों के वसंत को आतंकियों के हर मनसूबे का अंत करो अभी नहीं कभी नहीं ईंट का जवाब पत्थर दो बलिदानी सैनिकों को यूँ श्रद्धांजलि दो परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
कंटक
कविता

कंटक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तुम्हें तोड़ती हूं कंटक क्यों बार-बार उग आते हो तन्हाईयों में यादों को कुरेदने के लिए मेरे जख्मों को हरा कर, तुम्हें क्या मिलेगा सुख, संतोष, या मुझे तड़पन। अतीत की यादों की जंजीर लंबी है कहीं कोई गांठ नहीं, कोई फास नहीं तुमसे तो हरी घास की कोंपल अच्छी जो आंखों को ठंडक, मन को संतोष देती है। एक ही धरा पर जनित हो तुम दोनों पर कर्मानुसार फल लेने में तुम्हारा कोई सानी नहीं तुम्हारा कोई सानी नहीं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों...
देश गान
कविता

देश गान

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** ओजस्व नहीं मेरे अंदर, तू स्वयं ओज गुण दाता है। संपूर्ण कलाधर हे जननी, तू हीं इस जग की त्राता है। हर क्षण-क्षण, हर पल पूजा हो, बस यही आश मन धरती हूं। तेरे कारण मेरा वजूद, मैं तुम्हें नमन नित करती हूं। है लिया जन्म जिस धरती पर, न उसको नित निश प्राण करो। तुम जग के कुल उद्धारक हो, इस वसुधा का सम्मान करो। जो त्याग अरति इतिहास रचे, नव युग उसके गुण गाता है । संपूर्ण कलाधर हे जननी,तू हीं इस जग की त्राता है। उठ जाओ शुखमय आश्रय से, तुम नित त्रासों का वरण करो जग-मग कर डालो वशुधा को, कुल दीपों का तुम तरण करो। हो कर अब निश्चल अविरल तुम, भारत माता का ध्यान करो। गर राष्ट्र प्रेम तुम करते हो, हर प्राणी का सम्मान करो। जो कण-कण तज दे धरणीं पर, हर शब्द उसे हीं ध्याता है। संपूर्ण कलाधर हे जननी, तू हीं इस जग ...
बेटी तो वरदान है
कविता

बेटी तो वरदान है

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तो वरदान है नही हे अभिश्राप, दोनों कुल को तारती बेटी तो हे महान, बेटी लक्ष्मी बेटी दुर्गा सीता सयानी राधा सी प्यारी, मीरा कर्मा द्रोपति उत्तरा और अहिल्या शबरी अनुसूया, कोई रक्षा भारत की करती, कोई पिता का मान बढ़ाती, कोई प्यार को हे तज देती, कोई खिचड़ा भात खिलाती, कोई कृष्ण को है पुकारे, कोई गर्भ के प्राण बचावे, कोई पत्थर की नारी बनती, कोई झूठे हे बेर खिलाती, कोई बचपन सा लड़ाती, कोई देश की रक्षा करती, कोई न्याय का पाठ पढ़ाती, कोई ब्रह्म को धरती पर लाती, पुत्र रूप में गोद खिलाती, हर शास्त्र बेटी की वंदना, सरस्वती मीणा की वंदना, बेटी के कितने एहसान, धरती पर परब्रह्म का निवास, हर क्षेत्र में परचम भारी, कलम शस्त्र से लिखती हे भारी, धरती से आकाश उसी का, नहीं करो अपमान उसी का, नहीं कोख मे...
ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी
कविता

ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ********************  ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी, सरस्वती और लक्ष्मी का रूप है बेटी। घर रोशन करने वाला चिराग है बेटी। नसीब वालों को ही मिलती है बेटी। दोनों कुलों की लाज निभाती है बेटी, माता, बहन, भार्या का रूप है बेटी । माता का तो अरमान होती है बेटी । पिता का सम्मान भी होती है बेटी । माता के साथ काम कराती है बेटी। भाई बहनों का ध्यान रखती है बेटी। खुद को भूल सबकी चिंता करती बेटी सुख-दुख में भी साथ निभाती है बेटी। कभी घरों में बंद रहती थी रानी बेटी, पंछी की तरह उड़ रही है आज बेटी। कदम मिलाकर साथ चल रही है बेटी जमीं से आसमां तक उड़ रही है बेटी। समंदर की लहरों पर चल रही है बेटी। देश और राष्ट्र को भी चला रही है बेटी। घर एवं काम का समन्वय है आज बेटी। सौम्य, शांत, सुशील तो होती है बेटी। पर समय पर दुर्गा भी बन जाती बेटी। सा...
चामर छंद
छंद

चामर छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (चामर छंद- (दीर्घ+लघु) ×७+१ दीर्घ - २ = १५ वर्ण, दो या चारों सम पदान्त, चार-चरण) बाम अंग बैठ के उमा महेश संग में । चंद्रमा निहारतीं भरे बड़े उमंग में ।। हैं गणेश कार्तिकेय नंदि पास में खड़े । सोहते सभी अतीव एक एक से बड़े ।। गंग लोरतीं कपार घूमतीं यहाँ-वहाँ । मुंडमाल क्षार देह है पुती कहाँ-कहाँ ।। हैं अनंत हैं अनादि देव जे पुकारते । देव है बड़े महान दु:ख ते निवारते ।। रूद्र देव आदि देव धूम्र वर्ण धूर्जटी । विश्वरूप आयुताक्ष* भंग रात-द्यौ घुटी ।। कामरूप सोमपा शिवा शिवा शिवा शिवा । शंकरा महेश्वरा अराधिए नवा शिरा ।। कंठ है पवित्र गंग केश में बहा करें । नृत्य तांडवा शिवा डमड्ड पे किया करें ।। ग्रीव में भुजंग माल हार ज्यूँ झुला करे । तीन नेत्र अग्नि रूप माथ पे दहा करे ।। शंभु पूजिए अवश्...
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक
आलेख

भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष २६ जनवरी को ७४वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। १५ अगस्त सन् १९४७ को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं। संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। २ वर्ष...
वाचिक गंगोदक सवैया
गीत

वाचिक गंगोदक सवैया

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** वाचिक गंगोदक सवैया भारती मातु की आरती के दिये टिमटिमाते रहें झिलमिलाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। छोड़ निज स्वार्थ को छोड़ परमार्थ को, छोड़ माँ-बाप परिजन सखा आइए। प्रीति के जोड़ अनुबंध निज देश से, राष्ट्र सिद्धांत प्रांजल निभा जाइए।। कर्म ही धर्म यह मर्म जानें सभी, स्वप्न साकार माँ के बनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। विश्व में राष्ट्र का मान सम्मान हो, मूल्य नैतिक कभी भी भुलाएँ नहीं। लोक कल्याणकारी रहे भावना, वासना को हृदय में बसाएँ नहीं।। इस प्रजातंत्र के उन्नयन मंत्र को, श्लोक जैसा समझ गुनगुनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। शाँति सुख और संवृद्...
भारत देश महान
गीत

भारत देश महान

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत देश महान वंदे मातरम् करते इसे प्रणाम वंदे मातरम् छब्बीस जनवरी का यह दिन हम सबको याद दिलाता है बलिवेदी पर चढ़-चढ़ कर इस आजादी को पाया है झंडे को झुकाए शीश वंदे मातरम् भारत देश महान वन्दे मातरम्।। राम कृष्ण की जन्मभूमि है गौतम की यह तपोभूमि है कबीरा की ये समर भूमि है गांधी की यह कर्मभूमि है थे तेरे पूत महान वंदे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। गंगा की यहां पावन धारा नदियों का यहां संगम प्यारा कश्मीर महके केसर प्यारा महके दक्षिण चंदन सारा प्रकृति का है वरदान वंदे मातरम। भारत देश महान वंदे मातरम।। सत्य अहिंसा यहां की शान शिवाजी पर हमें अभिमान पद्मिनी सी करती हैं जौहर आन पे मर मिटने को तत्पर झांस रानी हमारी शान वन्दे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। विज्ञान ने भी धूम मचाई अंतरिक्ष तक दौड़ लगाई नार...
जय हिन्द
कविता

जय हिन्द

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम मुझे खून दो ... मैं तुम्हें आजादी दूंगा।। "बलिदानी" इस नारे से युवाओं में नेताजी ने जोश जगाया था। मातृभूमि की आजादी के लिए रक्त अभिषेक से भी न, अपना कदम पीछे हटाया।। मातृभूमि पर वालीदानी यहां, सर्वस्व न्यौछावर करने से नही डरते! आजादी अभिव्यक्ति कि यहां हर पल स्वतंत्रता ही एक संग्राम है।। अपनी आजादी की खातिर बलिदानी सुभाष जी ने जब अंग्रेजों को हर जवाब में, ईंट से पत्थर दे डाला महात्मा गांधी भी चकित रहे सुभाष ने अपने अंदाज में कुछ बेहतर ही कह डाला जोश जुनून जगाया भारत के वीर कुमारों में आजाद हिंद फौज गठित कर क्रांतिकारी वीर सपूतों का देश की माटी से किया तिलक इसी को चंदन, इसी को केसर कह डाला।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ...
विवशता विछोह की
सवैया

विवशता विछोह की

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** मंदिरा सवैया राह निहारि थकीं अँखियाँ नहिं दीखतु राउरु काउ करूँ ? आसु नहीं पतियातु कतौ जसि लागतु खोहु म डूबि मरूँ । खासु नहीं कहुँ जे दुलराबयि अंधि कुँआ बिचु बैठि सरूँ । हे सखिया कछु तौ बतलाउ त कैसि हिया भलु धीरु धरूँ ।। लाजु न लाबतु ढ़ीठु बड़ौ सहुँआतु न मोहिं त का करिहौं । भायि गयो दुसरौ हउ लागतु दूरि बसौ जहु का धरिहौं । यादु दिलाइतु बातनु ते जउ भेंटउँ ताहि मुँहा जरिहौं । हाय सखी मन कै बतिया दइझारु बिना कँहवाँ गरिहौं ।। भोरहिं जागि मनाबतु देउ सनेसु हमारु जिया कहिहौ । रातिउ नींदु न आबतु बाहि न चैनु दिना भलुके रहिहौ । साँझि भये हरहा घरु आबतु साँसरि कूँ कबु लौ डहिहौ । खातु अहौ छिंटकानि कँरौंदु जही भलु मालु कहौ खहिहौ ?? मीतु सुनौ जहु मादकु यौबनु एकु दिना ढ़रिकै सचु है । चाँदु अमाबसु गायबु ...
हिंदी में समझाना है आपको
कविता

हिंदी में समझाना है आपको

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** आधुनिकता में डूबे ये युवाओं के दिल में हिंदी बसाना है आपको दुनिया में हिंदी बोल कर अपनी पहचान बनाना है आपको दुनिया में कितनों को हिंदी भाषा बोलना सिखाना है आपको ना देखो अपनी अनजान मंजिल मे आने वाली बाधाओं को मंजिल मे मिलने वाली ये बाधाओं से भी निजात पाना है आपको हमें हिंदी सिखाने की कला आ जाती है तो मंजिल अब दूर नहीं जो हिंदी बोलने से कतराते हैं उन्हें हिंदी में समझाना है आपको फिरंगीयो ने अंग्रेजी यहां बोलकर अंग्रेजी जबरदस्ती हम पर थोपी है थोपी हुई अंग्रेजी को युवा भारतीयो की जुबान से हटाना है आपको काम बहुत ही मुश्किल है मगर यह काम हमारे लिए नामुमकिन नहीं आधुनिकता में डूबे ये युवाओं के दिल में हिंदी बसाना है आपको अंग्रेजी बोल तो लेते हैं ये मगर इन्हें हिंदी अनुवाद अभी नहीं आता ऐसी अंग्रेज...
झूठे वादे
छंद

झूठे वादे

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सार छंद नेताओं की है यह आदत, करतें झूठे वादे। तन गोरा मन काला इनका, नेक न रखें इरादे।। जब चुनाव की बेला आती, दौड़े-दौडे आते। जिन्हें नहीं जाना पहचाना, उनको शीश नवाते।। एक बार सत्ता मिल जाए, फिर तो उसे भुलादें नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे मंचासीन हुए नेताजी, जब गांवों में आए। अपने दल की लोक लुभावन, बातें खूब बताए।। मीठी-मीठी बातें करके, सबका मन बहलादे नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे सीधी सादी जनता प्यारी, खूब बजाते ताली। भूल गया वह पिछली वादें, जो अब तक है खाली।। बातों से ही मोह लिया मन, फिर दे चाहे ना दे नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे राजनीति गंदी होती है, ऐसे नेताओं से। बचके रहना मतदाताओं, इनके बहकाओं से।। ये चाहें तो आसमान से, तारे गिनकर लादे नेताओं की है य...
पिंजरा इश्क़ का
कविता

पिंजरा इश्क़ का

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** हर पल.... उन्हें बस याद करते हैं। हम वक़्त..... कहाँ बर्बाद करते हैं।। बस...... उनके तसव्वुर से अपना। आशियाना........ आबाद करते हैं।। चुपचाप..... सह लेते हैं सारे सितम। ख़िलाफ़ उनके कहां जेहाद करते हैं।। ख़ुद रहते हैं....... इश्क़ के पिंजरे में। बस परिंदों को हम आज़ाद करते हैं।। "काज़ी"......... चाहत की जादूगरी से। रंज के लम्हों को भी..... शाद करते हैं।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
बसंत का स्वागत
कविता

बसंत का स्वागत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ओ ओ नई सदी के नए बसंत कैसे करूं स्वागत तेरा पहले तुम आते थे स्वागत में शाखाएं झुकती बंदनवार सजाते आम्रपणृ पलाश अगन लगाते कुंद, कदंब, कचनार लजाते चंपा चमेली चहुं ओर महकते वृक्षावल्ली यौवन पर होती तो पाषाणो फूल थे खिलते।। पर वर्तमान में। आम्रकुंज में कम बौराऐ आम्र वृक्ष है नहीं कोयल की कूक कहीं चकवा, चातक, चकोर चन्चु भी नहीं मारते पत्तों पर शायद उन्हें विश्वास नहीं वृक्षवल्ली पर तज, तज कर नीड अपने नील गगन में उड़ते हैं सोच है यही, गगन तले प्राणवायु मिल जावे। तुम आए हो हे बसंत स्वागत तुम्हारा करती हूं। पुनः परंपरा दोहराओ यही इच्छा रखतीं हूं अमराई में बौराऐ आम्र वृक्ष और गूंजे कोयल कूक केसरिया, पीला बाना पहने अमलतास टेसु फूल चटक-चटक चटकेसब कलियां कुंदा चांदनी की डाली मोगरा, गुलाब, जूही गंध बिखेरे न...
विदिशा का जन्मदिन
लघुकथा

विदिशा का जन्मदिन

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** विदिशा आज बहुत खुश थी। उसका चौथा जन्मदिन जो था। शाम को उसके दोस्त घर पर आने वाले थे। मां आकांक्षा ने मटर पनीर, पराठे, पकौड़े और खीर की तैयारी कर ली थी। वह अपनी ही दुनिया में मस्त थी। तभी उसके पापा आशीष ने आवाज़ लगाई, बिटिया रानी नहा-धोकर तैयार हो जाओ। पहले मंदिर फिर बाजार चलेंगे। विदिशा ने शीघ्र ही तैयार होकर हर वर्ष की तरह दादा-दादी के पांव छुए। फिर खुशी से उछलते हुए पापा-मम्मी के साथ चली गई। खरीदारी हो जाने के बाद वे केक और चॉकलेट की दुकान पर पहुंचे। विदिशा की पसंदीदा चॉकलेट की तरफ इशारा करते हुए आशीष ने दुकानदार से उसे पैक करने के लिए कहा पर, नहीं अंकल, उसे नहीं पैक करना सुनकर आकांक्षा चौंक गई और विदिशा से कहा, पर बेटा वह तुम्हारी फेवरिट चॉकलेट है पिछली बार भी तुमने अपने दोस्तों को वही चॉकलेट दी थी। पर इस बार नहीं ...
नेताजी
कविता

नेताजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्मदिन आज आपका नेता जी सुभाषचंद्र बोस पराक्रम की गाथाओ से दिवस पराक्रम कहलाया गरम दल के अग्रणी नेता ईंट से ग़र प्रहार करे कोई पत्थर से ज़वाब वे देते थे अपने मन के मालिक थे ख़ुद के दम पर लड़ते थे क्रांतिकारियों को मिलाके जर्मनी जाकर गुपचुप से रासबिहारी संग मिल के आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई दुर्गा सी अनेक वीरांगनाएँ निकल पड़ी देशसेवा को जयहिंद नारा वो दोहराते आज़ादी के सब दीवाने तुम मुझे खून दो वे कहते आज़ादी का वचन थे देते दुर्घटना विमान में नेताजी देश के नाम शहीद हुए थे वीर सपूत भारतमाता के करते हम शत शत नमन जयहिंद जयहिंद जयहिंद परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
प्यासी आत्मा
कविता

प्यासी आत्मा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** प्रेम स्नेह की प्यासी आत्माएं। परमात्मा प्रेम बिन तरसे नित। बिन परमात्मा प्रेम। आत्माओं की प्यास बुझती ही कहां है। आत्माओं की अभिलाषा यही सदा। परमपिता परमात्मा से आत्माओं का मिलन। हो अद्भुत, अनमोल, अतुलनीय, अनुभूति। परमपिता परमात्मा हम। सब आत्माओं का पिता। उसके लिए सभी संतानों के लिए एक। समान प्रेम वह तो प्रेम का सागर है। परमपिता परमात्मा सदा ही सकल। आत्माओं को हर्षित देख-देख मुस्काए। प्रतिदिन मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे कह। अमृतवेला वरदान देने आए नित। ज्ञान अमृत का प्याला पिला। प्यासी आत्माओं की प्यास बुझा कर। हर आत्मा को सशक्त, निश्चिंत और निर्भीक बनावे। परम पिता परमात्मा को जो नित पल-पल। स्मृत कर सत्कर्म करे। पंच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तज पावन बने। तभी परमपिता परमात्मा सब। ...
संविधान गीत
गीत

संविधान गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** संविधान की शान निराली, हम निज गौरव पाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म-अभिनंदन है।। संविधान की छटा निराली, आकर्षण घिर आये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। संविधान में अधिकारों की, बातों ने हर दिल जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। संविधान की गति-मति के तो, पैमाने नित भाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदित हैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था,रक्षा,सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। संविधान की स्वर्णिमआभा, विश्व गुरू पद पाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। जीवन हुआ सुवासित ...
शेष है
कविता

शेष है

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मृत्यु का पता नहीं मगर श्रेष्ठ जीवन अभी शेष है। नफ़रत का पता नहीं मगर मोहब्बत की अभिलाषा अभी शेष है। आत्मसमर्पण का पता नहीं मगर आत्मबलिदान का बोध अभी शेष है। मन में पनपते क्रोध का पता नहीं मगर ह्रदय के आँचल में शांति अभी शेष है। आत्मग्लानि का पता नहीं मगर आत्म साक्षातकार का बोध अभी शेष है। जीवन में लगी ठोकरओं का पता नहीं मगर खड़े होकर मार्ग पर चलना अभी शेष है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचि...
गुहार लगा रहीं हैं बेटियांँ
कविता

गुहार लगा रहीं हैं बेटियांँ

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** देश का परचम लहराने वालीं, तिरंगे की शान बढ़ाने वालीं, न्याय-न्याय पुकार रहीं हैं, बेटियांँ वो कुश्ती में नाम कमाने वालीं, एक दांव से जो चित कर देतीं, देश के लिए जो जान झोंक देतीं, बजवा कर राष्ट्रीय गान देश का, भारत का गौरव ऊंँचा कर देतीं, सफ़ेद पोशोकों में छिपे उन भेड़ियों के, काली करतूतों के किस्से के सुना रहीं हैं, अपना सम्मान बचाने के खातिर बेटियांँ, देश चलाने वालों तुमसे गुहार लगा रही हैं, ए, देश की सत्ता के रहनुमाओं, कुछ तो शर्म-हया दिखाओ, जो नारा तुमने दिया देश को, उस नारे की तो तुम लाज बचाओ परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
आयुर्वेदिक दोहे
दोहा

आयुर्वेदिक दोहे

ऋषिता मसानिया आगर  मालवा (मध्य प्रदेश) ******************* थोड़ा सा गुड़ लीजिए, दूर रहें सब रोग। अधिक कभी मत खाइए, चाहे मोहनभोग।। अजवाइन और हींग लें, लहसुन तेल पकाय। मालिश जोड़ों की करें, दर्द दूर हो जाय।। ऐलोवेरा-आँवला, करे खून की वृद्धि। उदर व्याधियाँ दूर हों, जीवन में हो सिद्धि।। दस्त अगर आने लगें, चिंतित दीखे माथ। दालचीनि का पाउडर, लें पानी के साथ।। मुँह में बदबू हो अगर, दालचीनि मुख डाल। बने सुगन्धित मुख, महक, दूर होय तत्काल।। कंचन काया को कभी, पित्त अगर दे कष्ट। घृतकुमारि संग आँवला, करे उसे भी नष्ट।। बीस मिली रस आँवला, पांच ग्राम मधु संग। सुबह शाम में चाटिये, बढ़े ज्योति सब दंग।। बीस मिली रस आँवला, हल्दी हो एक ग्राम। सर्दी कफ तकलीफ में, फ़ौरन हो आराम।। नीबू बेसन जल शहद, मिश्रित लेप लगाय। चेहरा सुन्दर तब बने, बेहतर यही उपाय।। मधु का सेवन जो करे, सुख ...
म्हारो राजस्थान
कविता

म्हारो राजस्थान

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** रंग बिरंगे धोरों का हरे भरे द्रुमो का सदन है राजस्थान म्हारो प्यारो राजस्थान पुराने तकनीकों का पुराने किलो का जन्म सदन है राजस्थान म्हारो प्यारो राजस्थान नई-नई सरकारो का बुरे-बुरे विचारों का जन्म सदन है राजस्थान म्हारो प्यारो राजस्थान सम्राट है राजस्थान के बुरे विचार है सरकार के म्हारो प्यारो राजस्थान परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
परिंदे उड़ चले दिनमान छूने
ग़ज़ल

परिंदे उड़ चले दिनमान छूने

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** परों पर होंसले परवान छूने। परिंदे उड़ चले दिनमान छूने। चले अपने इरादे साथ लेकर, नई मंज़िल ,सफ़र अन्ज़ान छूने। कभी आँखों में जो सपनें पले थे, वही निकले सही पहचान छूने। किसी को आसमाँ का डर नहीं है, उठें हैं दिल सभी अरमान छूने। हवाओं से रुकेंगे वो भला क्या, चलें हैं जो वहाँ तूफ़ान छूने। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
ऐसा क्यों…?
कविता

ऐसा क्यों…?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इतिहास में तुम ही तुम, हर अच्छी बात में तुम ही तुम, हर जगह बजती तेरी धुन, कल्पित गाथाओं में भी तुम, सबके माथाओं में भी तुम, शक्तिशाली भी तुम ही तुम, और बलशाली भी हो तुम, क्या तब और अब तुम ही तुम हो हमें पटल से क्यों कर दिए गुम, हुआ बहुत हमरा भी नाव, लो पढ़ लो भीमा कोरेगांव, पच्चीस हजार कैसे आ गए थे लोटने को पांच सौ के पांव, लिख डाले हो कर कर कुकर्म, देव खुद को कह रहा तेरा ग्रंथ, क्यों भूले हो पाखंड काटने आते रहे हमारे संत, सीरियलों और फिल्मों में भी सदपात्र बनाते रहे हो खुद को, खल चरित्र में दिखा दिखा झुठलाते रहे हमारे वजूद को, कब तक रहोगे पर्दे के पीछे दिखा बता कर लाखों झूठ, तब भी अब भी पल्लवित ही हैं समझते मत रहना हमको ठूंठ, शसक्त हो रहे हम भी अब ये कभी मत जाना भूल, सम की राह में नहीं चलोग...