रौद्र नाद
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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हे पाखण्ड खण्डिनी कविते ! तापिक राग जगा दे तू।
सारा कलुष सोख ले सूरज, ऐसी आग लगा दे तू।।
कविता सुनने आने वाले, हर श्रोता का वन्दन है।
लेकिन उससे पहले सबसे, मेरा एक निवेदन है।।१।।
आज माधुरी घोल शब्द के, रस में न तो डुबोऊँगा।
न मैं नाज-नखरों से उपजी, मीठी कथा पिरोऊँगा।।
न तो नतमुखी अभिवादन की, भाषा आज अधर पर है।
न ही अलंकारों से सज्जित, माला मेरे स्वर पर है।।२।।
न मैं शिष्टतावश जीवन की, जीत भुनाने वाला हूँ।
न मैं भूमिका बाँध-बाँध कर, गीत सुनाने वाला हूँ।।
आज चुहलबाज़ियाँ नहीं, दुन्दुभी बजाऊँगा सुन लो।।
मृत्युराज की गाज काल भैरवी सुनाऊँगा सुन लो।।३।।
आज हृदय की तप्त वीथियों, में भीषण गर्माहट है।
क्योंकि देश पर दृष्टि गड़ाए, अरि की आगत आहट है।।
इसीलिए कर्कश कठोर वाणी का यह निष्पादन है।
सुप्...



















