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छत्तीसगढ़ी दोहे
आंचलिक बोली, दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहे

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी दोहे) होरी हे के कहत मा, मन म गुदगुदी छाय। गोरी गुलाल गाल के, सुरता कर मुसकाय।। एक हाँथ गुलाल धरे, दुसर हाँथ पिचकारि। बने रंग गुलाल लगा, गोरी ला पुचकारि।। रंग रसायन जब लगे, होही खजरी रोग। परत रंग तन मन जरय, नहीं प्रेम के जोग।। चिखला गोबर केंरवँछ, जबरन के चुपराय। खेलत होरी मन फटे, तन मईल भर जाय।। परकिरती के रंग ले, रंग बड़े नहि कोय। डारत मन पिरीत बढ़े, खरचा न‌इ तो होय।। परसा लाली फूल ला, पानी मा डबकाय। डारव कतको अंग मा, कभु न जरय खजवाय।। परसा फूले लाल रे, पिंवँरा सरसों फूल। गोरी होरी याद रख, कभु झन जाबे भूल।। होरी अइसन खेल तैं, सब दिन सुरता आय। अवगुन के होरी जरे, कभु गुन जरे न पाय।। तन के भुइयाँ अगुन के, लकरी लाय कुढ़ोय। अगिन लगा ले ग्यान के, हिरदे उज्जर होय।। लाल ...
मेहमान
धनाक्षरी, हास्य

मेहमान

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी (हास्य) थोड़ी सी ही पहचान, ये होते मेह समान, बिन बादल बरसे, घर अपना माने। बेचारा ये मेजबान, हो जाता है परेशान, पूरे करे ये आदेश, कौन दुखड़ा जाने। करें ये फ़रमाइश, पूरी करना ख्वाइश, कर देंगे बदनाम, होटल चलो खाने। अतिथि कब जाओगे, क्या अब हमें खाओगे, हुई पगार खतम, नहीं बचे बहाने। परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksh...
उनकी तो कहने भर की
ग़ज़ल

उनकी तो कहने भर की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उनकी तो कहने भर की। है रखवाली ऊपर की। बाहर का सब दिखलावा, है सच्चाई भीतर की। अगला, अगले पर भारी, जीत यहाँ है अवसर की। आँखों से समझी हमनें, सब गहराई सागर की। ग़म में भी वो न पिघली, आँखें जो है पत्थर की। आपस के रगड़े - झगड़े, राम-कहानी घर-घर की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
बदलते रंग
कविता

बदलते रंग

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बदलते हुए रंगों के साथ बदलते हुए अपने लोग देखे हैं। चेहरे पर नकाब ओढ़े सीने पर वार करते अपने ही लोग देखे हैं। हरे रंगों जैसी अब लोगों के दिलों में हरियाली कहाँ ? अपने ही लोग खंजर फेर ह्रदय तल को बंजर करते देखे हैं। रंगों की बौछार फैली है हर जगह फिर भी गिरगिट की तरह रंग बदलते अपने रिश्तेदार देखे हैं। करते होंगे मोहब्बत वो शायद किसी और से, हमने अपने लिए तो उनके चेहरे पर नफ़रत के बदलते नए-नए रंग देखे हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
लो आ गई होली
कविता

लो आ गई होली

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** लो आ गई होली मन में है उल्लास दिलों मे भरा उत्साह आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली हर घर-आँगन गाँव-मढैया होली गावें हर गाँव गवैया वृंदावन की कुंज गलिन में प्रेम रंग में रंगकर होली खेलें रास रचैया भक्ति रस में डूब-डूबकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली गाँव-नगर चौपाल-क्लब आ गए बालम और कुमार भांग खुमार, रंग, गुलाल बोला सबके सर चढ़कर होली के रंगों में रंग कर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख-इसाई मनमुटाव द्वेष बुराई भुला कर दुनिया को भाईचारे की राह दिखा कर मानवता के रंग में रंगकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली बच्चों की पिचकारी रंगों से भरे गुब्बारे जीवन में भर रहे रंग बारम्बार विविध रंगों से विद्यमान आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली एक अनोखा...
तेरे लिए…
कविता

तेरे लिए…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** राज! कैसे उन्हें बताएं कि हमें उनसे मोहब्बत है। हमारी खामोशियाँ सिर्फ उनका इंतजार करती हैं। कभी वो हमें मिलें तो उन्हें दिल के सारे राज बताएंगे। हमारी मोहब्बतें तो सिर्फ मोहब्बत नही इबादत है। डरते हैं उनके बेदाग दामन कही रुसवा न हो जाये। इस खातिर उन्हें मन मंदिर की देवी जैसे पूजते हैं। हमारी चाहत में गर पाकीजगी है वो आएंगी जरूर। ऐ सोनू ! राज को उन खुशनुमा लम्हों का इंतजार है। हमें भी मालूम वो भी हमें दिल ही दिल मे चाहते हैं। मगर मोहब्बत कहीं बदनाम न हो जाय चुप रहते हैं। आँखें उनकी हमारी मोहब्बतें नजाकत बयाँ करती है। लगता है अपने दिल में दर्द का सैलाब छुपाए बैठे हैं। कहते हैं सच्ची मोहब्बत हमेशा ही इम्तिहान लेती हैं। उनसे मिलने की उम्मीद से ही राज की साँसे टिकी हैं। परिच...
होली पर हुड़दंग
कविता, हास्य

होली पर हुड़दंग

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मोदी चाचा आए हैं सतरंगी रंगों को लाए हैं योगी भैया देखो आए हैं केशरिया चटख रंग लाए हैं अखिलेश भैया ने बैंड बजाया मायावती जी चली हैं घर को सबने होली पर हुड़दंग मचाया एक दुजे को रंग लगाया मोदी चाचा आए हैं सतरंगी रंगों को लाए हैं होली के रंग बिरंगे रंग हैं भैया बुरा न मानो होली है आओ मिलकर हम सब होली खेलें जश्न मनाने का पल सुनहरा है स्नेह प्रेम का रंग लगाकर सबको गले लगाना है देखो होली की हुड़दंग मची है रंग बिरंगी होली है हंसी खुशी से होली मना लो एक दूजे को रंग लगा लो प्रेम से गले लगाकर भेदभाव को मिटा दो परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
धरती का श्रृंगार
कविता

धरती का श्रृंगार

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** पेड़ पौधा है जिन्दगी का आधार जल वायु से मानव जगत उजियार वनों में है अपना जहान जिसमे है लाख, तेंदू, महुआ, चार होता है इससे अपना गुजार हम भी करे इस धरती का श्रृंगार लगाके वृक्ष एक वरदान हो एक नए भारत का उत्थान जो हो जग में विस्तार वृक्ष लगाओ जिंदगी बचाओ। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
नित नित शीश झुकाऊँ
भजन, स्तुति

नित नित शीश झुकाऊँ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अष्टभुजी हैं दुर्गा माता, तू सहस्त्र भुज धारी। तेरी गाथा लिखना मुश्किल, तू पृथ्वी से भारी। तू जीवन आधार सभी का, तू है सबसे प्यारी। हर युग से तू रही सीखती, तेरी महिमा न्यारी। शिव शंकर से सीखा उसने, गरल कंठ में धरना। सीखा माता पार्वती से, कठिन तपस्या करना। दशरथ नंदन से सीखा है, सुख दुख में सम रहना। सीखा भूमि सुता से उसने, लिखा भाग्य में सहना। नटनगर से सीखा उसने, कर्म करें बस अपना। केवल प्रभु की शरण सत्य है, और जगत है सपना। बरसाने वाली से सीखा, खुद बन जाना राधा। राधा में है कृष्ण समाया, और कृष्ण में राधा। लक्ष्मीनारायण से सीखा, बहु अवतारी होना। तज बैकुंठ, धरा पर जाकर, नर संसारी होना। हनुमान से सीखा उसने, काम प्रभु के आना। ऊँचा लक्ष्य रखें जीवन का, प्रभु पद प्रीति लगाना। सीता उ...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी बातों को ...
ताड़न की अधिकारी
लघुकथा

ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी। तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। "अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।" आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई। बोलो क्या बात है? "तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस! क्या है यह महिला दिवस ! तुम औरतें भी ना ! पता नहीं कौन सा फितूर सवार है ! घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने। तुलसीदास जी ने सही कहा है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सब ताड़न के अधिकारी।। यह सुनते ही...
महिला दिवस का पाखंड
कविता

महिला दिवस का पाखंड

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! एक बार फिर महिला दिवस का पाखंड करते हैं, महिला दिवस के नाम पर औपचारिकता का प्रपंच करते हैं। रोज रोज महिलाओं का अपमान करते हैं, नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं गँवाते हैं, उनकी हर राह में कांटे बिछाते हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते हैं पर सच तो यह है कि हम सब अपनी माँ बहन बेटियों को भी ठेंगा दिखाते हैं। नारी तू नारायणी है का जितना गान करते हैं, उससे अधिक हम उनका अपमान करते हैं। नारी के प्रति श्रद्धा के दिखावे खूब करते हैं बड़े बड़े भाषण, गोष्ठियां, दिखावा करते हैं पत्र पत्रिकाओं में असंख्य लेख कविता, कहानियां भी लिखते हैं, परिचर्चा, वैचारिक चिंतन महिला हितों के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं, महिलाओं को साल में इस एक दिन महिला दिवस के नाम पर सबसे ज्यादा बरगल...
खिलखिलाती धूप हूँ
कविता

खिलखिलाती धूप हूँ

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** खिलखिलाती धूप हूँ, सुबह की बयार हूँ, गुलशन सी महकती, नित नई बहार हूँ। मन्दिर का एक दीप भी हूँ, और एक धधकती आग भी हूँ।। साज और शृंगार भी हूँ, सुन्दर सा एक राग भी हूँ।। धैर्य हूँ धरा बन सब कुछ सह लेती हूँ। सब की खुशी में भी, मैं भी हँस लेती हूँ।। घर घर का मान हूँ, और अभिमान हूँ। जीवन में चेतना हूं और संचार हूँ।। व्यक्ति हूँ, अभिव्यक्ति हूँ, स्वरूपा हूँ शक्ति हूँ। पावन हूँ प्रीति हूँ, निश्छल हूँ, नूतन हूँ।। साथी हूँ, सन्गनी हूँ, माँ और बहन हूँ। हाँ मैं एक स्त्री हूँ ... नहीं चाहिये मुझे व्याख्या और बखान आंचल में समेटना चाहती बस, प्यार और सम्मान, प्यार और सम्मान ... परिचय :- प्रीति तिवारी "नमन" निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती...
महिला प्रबंधक
कविता

महिला प्रबंधक

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बिना वेतन जो काम करे न कोई छुट्टी न कोई गम। बस समय पर काम करे और लोगों को खुश रखे। बता सकते हो ये कौन है जो निस्वार्थ भाव से करती है। ये और कोई नहीं घर की एक महिला हो सकती है।। हर मौसम की ये आदि है सबसे बाद में सोती है। पर सबसे पहले उठती है और सबका ख्याल रखती है। नित्य क्रियाओं से निवृत होकर दिया भोग प्रभु को लगती है। जिसे घर में सुख शांति और बरकत बहुत होती है।। यह सब अकेली महिला हर दिन नियम से करती है। खुद की चिन्ता कम पर सब का ख्याल रखती है। घर की कारंदा होकर अपना फर्ज निभाती है। बिना प्रबंधन की शिक्षा के भी प्रबंध अच्छे से करती है।। ये सब एक महिला ही कर सकती है. . . ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड ...
बंसत का अभिवादन
कविता

बंसत का अभिवादन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** मन प्रभात करता प्रफुल्लित ह्रदयवाटिका में पुष्प सुमन की भांति जब बंसतरूपी आंगन में खिलकर आता है हर दुःख दर्द जमींदोज होकर खुशहाली चारों दिशाओं में विराजमान हो जाती हैं। खूबसूरत धरा पर ऋतु राज़ बंसत हो जाता हैं कुन्दन सा निखार हर जीवनशैली के मधुमास पर छाकर इन्द्रधनुष की तरह ऊंचाई पर विराजमान हो जाता हैं । हर सुबह महकती है गुलज़ार होता गुलशन, फूलों की खूबसूरती लिए बहारों का अभिनन्दन करते हुए गगन सृष्टि को मुस्कुराने का एक निश्चित मौसम परिवर्तन का सुन्दर सा बंसत करता अभिवादन हैं। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कद...
मन की पीड़ा
कविता

मन की पीड़ा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन की पीड़ा उभरी तो मैंने उसे लगाम दिया है कठिन पलों में मैंने खुद को एक नई पहचान दिया है पीकर के अपमान घूंट का मैंने संयम पाला है दूर दर्शिता के आंगन में स्वयं हृदय को ढाला है विचलित होकर जब दुनिया के लोग यहां घबराते हैं तब हम अपनी जीवन की गाथा लिखकर उन्हें सुनाते हैं जीवन मुल्यों की धूरी पर जब जब भी आघात हुआ है और निखरकर जीनें के साहस भी एहसास हुआ है रिश्तों के ब्वहारिकता में मौकों को सम्मान दिया है जब मन.... जब तुम मुझे समझ पाओगे और अधिक इतराओगे मेरे भावों की सरिता में तब तुम और नहाओगे प्रेम नहीं ये नैतिकता है इसका मूल्य समझना होगा उछली उछली भावुकता से तुमको आज उभरना होगा गहन विचारों में डूबी जब सोच निकलकर आयेगी तब इस प्रेम कहानी की सच्चाई तुमको भायेगी समझ सकोगे शायद मैंने तुमको क्या संधा...
ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं
कविता

ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै इस सारी दुनिया पर भारी हूं।। सदियों से जीती औरो के लिए, सदियों से यह अत्याचार सहे। हर बात पर एक सीमा होती है, ऐसे घुट–घुट कर कौन रहे।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। नही डरती हूं मैं इस दुनिया से, बस अपनो से सदा मैं हारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै आज की युग की नारी हूं।। मैं बाहर काम पड़ने पर जाती हूं, परिवार का अभिमान बढ़ाती हूं। गृहस्थी का गाड़ी स्वय चलाती हूं अपने परिवार खुश रख पाती हूं।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। फिर मैं लोगों का हवस का शिकार बन जाती हूं, जान बचाने के लिए जोर–जोर से चिलाती हूं। फिर भी मै अपने बातों को नही बता पाती हूं, फिर भी भारत में महिला दि...
दीप जलाएँ
कविता

दीप जलाएँ

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** चहक उठा सबका दिल फिर से, आई देखो ! दिवाली। खेत - खेत में झूम रही है, देखो ! धानों की बाली। जीवन - बगिया महक उठी है, दीपों के फूल खिले हैं। बिहसि रही है अखिल धरा ये, तम के होंठ सिले हैं। झूम रही चहुँ ओर फ़िजाएँ, वो कुदरत के नजारे। सुख - दुःख तो आना- जाना है, सब ईश्वर के सहारे। परहित में कदम उठें सबके, अहं की दीवार गिराएँ। मोहब्बत की दरिया में हम, अब मिलकर नित्य नहाएँ। ज्ञान प्रकाश करें जग में, अंधेरा हम दूर भगाएँ। राम राज्य लाकर भू पर, खुशहाली का दीप जलाएँ। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कविता सम्प्रति : पूर्व (रिटायर) मनपा शिक्षक बृहन्नमुम्बई महानगरपालिका, मुंबई, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हू...
मैं कमजोर नहीं
कविता

मैं कमजोर नहीं

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** इतिहास गवाह है हर जुल्म और सीतम के खूनी पन्नों में मेने इबारत लिखी हुई है वतन पर मरने वालों में। हर शास्त्र धर्म में रची बसी हूं नारी शक्ति के शब्द रूपों में मिटकर भी अमर कहानी बनी रही मैं हर युगों में। नई शक्ति का सृजन कर मेनें नवराष्ट्र को हर बार रचा है। असहनीय दर्द भी सहनकर कोमल शिशु को सींचा हैं। समय चक्र कि धारा में कई बार टूटी और बिखरी हूं, पर अब मैं अबला नहीं रही खुद को सबल बना खड़ी हूं। वैचारिकता के शब्दों ने भी खुब अन्याय ढाये मुझ पर, पर मजबूत इरादों से लडकर, चौखट लांगकर बनी आत्मनिर्भर। बराबरी के हक को लेकर राष्ट्र विकास कि धूरी बनी हूं अबला से सबला बनकर इतिहास कि वो नारी बनी हूं। विश्व जगत भी चकित हुआ देखकर नारी की शक्ति से, हर घर अब विकसित हो रहा महिला-पुरुष कि सहभागी ...
कमल बनके खिलना होगा
कविता

कमल बनके खिलना होगा

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** नारी तुम्हें कमल बनके खिलना होगा, कीचड मे भी साफ-सुथरा चलना होगा! नारी तुम्हें सन्तान का हित देखना होगा, संतान को सम्पत्ती के मोह से दूर रखना होगा! नारी तुम्हें दिमाग का खूब इस्तेमाल करना होगा, खुद की ताकद को नेकी मे ढालना होगा! नारी तुम्हें हर काम यूँ ढंग से करना होगा, राष्ट्र की उन्नति मे हरदम हाथ बंटाना होगा! नारी तुम्हें सबको सम्भालते हुए चलना होगा, मानवजाती की गरिमा को बनाए रखना होगा! नारी तुम्हें परिवार को साथ तो बनाये रखना होगा, पर स्वार्थों से परे खुद का किरदार लिखना होगा! नारी तुम्हें खुद का दामन बचाए रखना होगा, बेदाग अपने दामन को हर पल लहराना होगा! नारी किसी के बहकावे मे आना अच्छा न होगा, दिलोदिमाग को साथ चलना सिखाना होगा! नारी तुम्हें खुद की नींव को मजबूत करना होगा, नित प्रगती से निर...
स्कूल
कविता

स्कूल

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ******************** स्कूल हमारा है शिक्षा का मंदिर स्कूल बिना है जीवन कठिन स्कूल हमें है सब कुछ सिखाता स्कूल हमारा है ज्ञानदाता स्कूल से जीवन सरल बन जाता स्कूल समझे सबको भाई भ्राता स्कूल करे ना कोई जाति भेद स्कूल में रहे सब मिलकर एक जात धर्म की यह दीवार मिटाता सबके दिल में यह प्यार बढाता स्कूल को करूं मैं शत-शत नमन स्कूल को करूं मैं शत-शत नमन परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविता...
शालू
कहानी

शालू

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शालू गुमसुम बैठी थी। मन में कई प्रकार के गुब्बारे उड़ रहे थे। सभी स्वछंद होकर बिना रोक-टोक के उड़ना चाह रहे थे। पढ़ाई जहां इंसान की बुध्दि का विकास करती हैं, वहीं नियम कायदे और अनुशासन किसी हद तक बांधने की कोशिश करते हैं। घर में ममा जहां बुद्धिजीवियों में श्रेष्ठ थी वहीं पापा चार क़दम आगे थे। सदा व्यस्त रहना पसंद करते थे। दोस्तों के साथ चौबीस घंटे गप लगाने को मिल जाए तो भी तैयार रहते थे। बातों में सारी दुनिया सिमट जाती थी। वैसे भी हमारे घर में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता था। दादी कहती "आजकल समाज का रवैया अजीब हो गया है। इसलिए चाल चलन, रहन सहन, बाल कटाने वाली तथा जींस का पहराव कतई नहीं होना चाहिए। ममा, पापा तो कभी लीक से जुड़कर चलते तो कभी लीक से हटकर चलते। मैं तो घबरा जाती हूं। जब मेरा रिंकू के साथ घूमना, उसके घर ...
पापा
कविता

पापा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज अचानक मुझे दीदी ने कहा, पापा पर कुछ लिखने को। तो मेरे मन मे ख्याल आया, क्या लिखु मै उनके बारे मे, जब मुझे कुछ याद ही नही, उनके साथ बिताए हुए पलो के बारे मे। क्या लिखु मै उनके बारे मे; सच कहु तो मुझे नही पता, किस तरह का रिश्ता होता है, एक बेटी और पिता का। काश! मुझे भी पता होता, कि पापा का प्यार कैसा होता है। सुना है कि पापा का प्यार, नसीब वालो को मिलता है, पर क्या फर्क पड़ता है जनाब, प्यार तो प्यार होता है। मुझे कभी कमी ही नही खली, पापा के प्यार की, क्योकि मुझे नाना-नानी, मामा व अपनो का प्यार जो मिला था। काश!मै उनके बारे मे कुछ लिख पाती, वो मुझसे और मै उनके नाम से पहचानी जाती, वो मुझसे और मै उनसे हर वो बात कहे पाते, वो मुझसे और मै उनके साथ खुब मस्ती करते। क्या लिखु मै उनके बारे मे; बस इतना लिखन...
मेरा वजूद
कविता

मेरा वजूद

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मिलेगा  गम  तो खुशियों  में  बदल देंगे ! खुशियों के सौदागर है, गम के खरीददार नहीं !! खुश है और खुश रहकर हम खुशियाँ बांटेंगे ! लूट ले मेरी खुशियाँ किसी का अधिकार नहीं !! लोगों  को  खैरात में  हम खुशियाँ  दे देंगे ! माँगे किसी से  खुशियाँ  हम तलबगार नहीं !! ना दिखाओ ज़ख्म  जमाने को, दर्द ही मिलेंगे ! मिटा सके ज़ख्म मलहम का कारोबार नहीं !! ये जालिम  जमाना  है यहाँ गम ही मिलेंगे ! दे दे  रंज भर सुकून हमें, कोई वफादार नहीं !! आएंगे   बुरे  वक़्त  तो सामना कर लेंगे ! वक़्त  के सिपाही  हैं कोई  गुनहगार नहीं !! इतिहास के  पन्ने  है  हम, लोग पलटते रहेंगे ! मिट जाए  वजूद  मेरा  मैं अखबार  नहीं !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेर...
कान्हा
भजन, स्तुति

कान्हा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** क्यों कान्ह तू। कब आवेगो। मोरे नैन तोरे दरस। तरस रहे। तू मोहे इक बार। सपन में ही बता जा। कान्हा तू कब आवैगो। मैं तोरे दरस को अति। व्याकुल मोए भोजन खावै। ना बनै, मोए प्यास। भी नाए लगै। कान्हा अब तो तू। आए जा मोहै दरस। दे जा, मोरै नैना तोरे । दरस अति तरसे। अब तू तनिक देर मत लगा। शीघ्र दरस दे जा। मोहै बता दे तू कब आवैगो। मैं तोरे अभिनन्दन की। तैयारी कर लूँ । मैं तोहै माखन मिश्री। भोग लगाऊँ। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...