Friday, December 19राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

BLOG

पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी मजबूरी है ब...
कविता पर कविता
कविता

कविता पर कविता

शिवेंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अन्तर्मन के भावों का, स्पन्दन कविता होती है l दुखित हृदय की पीड़ा का, क्रंदन कविता होती है l लोभ लुभावन शब्दों से, न कविता निर्मित होती है l पोथी, पुराण के पढ़ने से, कविता लिखी न होती है ह्रदय से निकले भावों को, शब्द, पंख मिल जाते हैं l तब सतरंगी आसमान में, ज्ञान का शंख बजाते हैं l जब अनीति और अधर्म, यहाँ हावी होने लगता हैं l शोषण, अत्याचारों पर, जब खून उबलने लगता है l जब घोर निराशा के बादल, ऊपर मंडराने लगते हैं, रोते-रोते जब पीड़ित के, नैना पथराने लगते हैं l जब दुखियारी जनता भी, दो रोटी पाने तरसती है l पालक, पोषक प्रकृति ही, जब आँसू झरने लगती है l तब कवि ह्रदय की पीड़ा, कविता बन कर आती है l लाने समाज में परिवर्तन, अपना धर्म निभाती है l परिचय :-  शिवेंद्र शर्मा पिता : स्व. श्री भगव...
गवाह
कविता

गवाह

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूल ही तो होते प्रेम के गवाह ये भी सच है फूलों की खुश्बू भी देती मौसम में प्यार की यादों का संकेत। जब उसे तुम्हारी याद आती और तुम्हें उसकी। बहारें इन्तजार करवाती उसी तरह जिसका तुम इन्तजार हर मौसम में एक दीदार पा जाने के लिए करते थे। अब प्यार के फूल गवाह बनकर कर रहे इंतजार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान - २०१५, अन...
आया बसंत ऋतु का मौसम
कविता

आया बसंत ऋतु का मौसम

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** आया बसंत ऋतु का मौसम, ठंडी हवाये शीतल वातावरण लेकर, कोयली कुकुहावत हे, मयुर पंख फैलावत हे.! रूख-राई मन हरियावत हे, सुन्दर नजारा दिखावत हे, घाव-छाव दोनो सुहावत हे, गोरसी अगेठा के दिन हा जावत हे.! बबा-दाई गोठियावत हे, फागुन के दिन आवत हे, लइका मन खेलत-कुदत दिन ला पहावत हे बसंत ऋतु सबके मन ला लुभावत हे.! मनमोहक, उत्साह, बसंत ऋतु प्रकृति के सिन्गार हे, आया शांति अउ खुशीयो का बौझार है, ऋतुओ के राजा बसंत ऋतु का उपकार है.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
शूरवीर भारत के
कविता

शूरवीर भारत के

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शूरवीर तुम भारत के जिस पथ पर तुम चल दिए वीर गति को पा गए कण-कण को नतमस्तक कर गये शूरवीर तुम भारत के जान हथेली पर रख मुस्काए ना देखे दिन और रात तुम केवल रिपुदमन बन गए शूरवीर तुम भारत के देश के दिल की धड़कन बन जन-गण को तुम जिला गये ध्वज तिरंगे में लिपट भारत मां का अंक पा गए शूरवीर तुम भारत के परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@...
शिवरात्रि महापर्व
कविता, भजन

शिवरात्रि महापर्व

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** शिवरात्रि महापर्व पर बरस रही कृपा कैलाशी की, घट-घट में विराजे शिव शंभू कृपालु शिवा के साथ ।। गंगा विराजे शीश प्रभु के, विष धारण किया है कंठ नंदी करते पहरेदारी शिव प्रभु की प्रिय वासुकी साथ ।। शिव शक्ति के स्वरूप है, शिव ही सृष्टि के मूल आधार गुरुओं के भी गुरु है शिव शंकर, है ऊर्जा अनंत अपार ।। अविनाशी शिव अनंत हैं, सच्चिदानंद सदैव ही सत्य यह सृष्टि विलीन है शिव में ही, है समाहित पूर्ण संसार ।। श्रावण मास का माह प्रिय बहुत शिव शंकर को मेरे, मेघ रूप में अंबर से बरसे प्रभु की कृपा जब अपार ।। महा शिव रात्रि पर हरे शिव भक्तों के दुख, पाप, संताप करके प्रभु की आराधना भर लो भक्ति से मन का थाल ।। है बहुत ही यह सुन्दर काम आज चलो सब शिव के धाम महा शिवरात्रि पर विल्बपत्र चढ़ाकर लेंगे प्रभ...
तीन परियाँ
स्मृति

तीन परियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बालसुलभ रुचियों का भी एक अनोखा संसार है। कोई खिलौनों व मित्रों के साथ गपशप में मस्त रहते हैं तो किसी को गुड़ियों को सजाने में मजा आता है। परंतु मेरे अनमोल खिलौने थे परियों सी खिलखिलाती नन्हीं मुन्नी बच्चियाँ। बस मुझे ये कहीं भी मिल जाती पड़ोस या रिश्तेदारों में, उन्हें बहलाना व उनका ध्यान रखना मेरी दिनचर्या बन जाती थी। विवाहोपरांत मेरा सपना था कि मेरी प्रथम सन्तान बेटी ही हो। माँ बनने के अहसास से ही मैं आश्वस्त थी कि एक नाज़ुक सी कली ही मेरी बगिया में महकने वाली है। दिनरात सुंदर परियों के चित्रों से घिरी रहती और उन्हीं के सपने देखती थी। उसी दौरान मेरी मौसेरी बहन को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। और मुझे मिल गई मेरी परी। घर के बुजुर्गों की प्रतिक्रिया थी, "ये कैसा ईश्वर का न्याय? दोनों बहनें साथ साथ पली बढ़ी, एक को बेटा व दूसरी को बेटी क्यू...
दर्द से रिश्ता पुराना
कविता

दर्द से रिश्ता पुराना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दर्द से रिश्ता पुराना, हर किसी का रोना है। दुःख में सुख तराना, घोड़े बेचकर सोना है। अरे! दुःख से कह दो अपनी हद में रहे, दुनिया में क्यों फ़िक्र करूं, मुझे क्या खोना है। खाली हाथ आए है खाली हाथ जायेंगे, आज को छोड़कर, कल में जीना बेगाना है। ना साथ है किसी का, ना हमसफ़र है कोई, झूठे संसार में क्यों मतलबी रिश्ते निभाना है। दर्द से कह दो सितम कर तेरी हद तक, मुझे भी अपने हौसले का सब्र दिखाना है। क्यों बनाते हो चिंता को चिता का रास्ता, जिसे मिली है चोंच उसे चुग्गा खिलाना है। उषा की लाली सूर्यास्त को मत सौंफिए, पंख देने वाले ने, बख्शा आसमां सुहाना है। जी भर कर जिओ जब तक जिंदगी है, आपको कम खुशी में, अधिक मुस्कुराना है। ख्वाबों को रोकना महलों तक जाने से, नज़र में उन्हें रख, झोंपड़ी जिनका ठिकाना है। ...
मुहब्बत चाहिए अगर तो
कविता

मुहब्बत चाहिए अगर तो

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** मुहब्बत चाहिए अगर तो नफरत ना फैलाओ मिलेगा अमन तुम्हे शांति से बात समझाओ ये कौन सा रास्ता तुमने अपनाया है तीसरी पारी का विश्व युद्ध खेल कर तुमने इतिहास के पाठ को भुलाया है। सियासी राजनेता के लिए सिर्फ अंकड़ो के खेल हुए युद्ध में मरने वालो के कभी निश्चित आंकड़े नहीं हुए। पहले भी विश्व युद्ध की चिट्टिया सुनाई थी शांति के लिए हो रहा ये कैसा युद्ध भाई धरा गगन के बीच खालीपन छोड़ जाएगी सैनिक अपाहिज बन जीने को मजबूर हो जाएंगे कुछ मर जायेंगे तो कुछ अपनो को खो जायेंगे मातृ भूमि से पलायन का दर्द झेलेंगे औरतों और बच्चों पर क्या क्या गुजरेगी सहोदर रहे दो मुल्क शत्रुता झेलेंगे। कीमतों में इजाफा महंगाई बोझ बढ़ते जाएंगे पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था रास्ते पर वापस कैसे लायेंगे। दुनियाभर की अर्थव्यवस्थ...
जिन्दगी आपसे
कविता

जिन्दगी आपसे

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** ये संसार हमारे बिन ना है अधूरी ना हम है संसार बिन अधूरी तन्हाई का आलम है बरक़रार सिवा उसका इंतजार का आलम हैं ख़ामोश ये जिंदगी की डोरी जो तोड़े से भी ना टूटे ये डोरी करवाए भी बदलती है जिंदगी की आरजू भी है बदलती जिन्दगी की ना कोई शिकवा है आपसे है शिकवा जिन्दगी आपसे। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak...
चूड़ियां
कविता

चूड़ियां

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** नारी के हाथ की शौभा, सौभाग्य की प्रतीक। पर्वों पर सज-संवर के, जाय होती सरीक।। रंग-बिरंगी चूड़ियां कई, मिलती है बाजार। कांच प्लास्टिक दांत की, ओर अनेक प्रकार।। बेशकीमती आकर्षक, नग जुड़े कई भांत। चलन नही महंगा बहुत, चुड़ला हाथी दांत।। चूड़ी की खनक सुन के, उमड़े प्रीत अपार। नारी के लिए खास गहना, सौंदर्य का निखार।। चूड़ी खनके मस्त लगे, खनक सुहावै खूब। चूड़ी के संग मुस्कान हो, बेहद खुश महबूब।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवासी : रानीवाड़ा, जिला-जालोर, (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. बीएड सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक कवि, लेखक, समीक्षक। रचना की भाषा : हिंदी, राजस्थानी विधा : कविता, कहानी, व्यंग्य, लघु कथा, बाल कविता, बाल कथा, लेख। प्रकाशित : ...
जीमणा री याद
आंचलिक बोली

जीमणा री याद

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मारवाड़ी कविता इस कविता मे मैने एक गाँव के जीमने को याद करते हुए कुछ अपने विचार लिखने की कोशिश की है । (१) आज घणा वक्त पछे शहर रो जीमणो जीम्यो, पर जीमणा मे वो बात कोणी जो पहळा गाँव रा जीमणा मे वेती। जीमता-जीमता मैने गाँव रा जीमणा री याद आगी, कतरा बरस होग्या पेल्ली जसा जीमणा जीम्या ने। शहर रा जीमणा मे वो मजो कोणी जो गाँव रा जीमणा मे वेतो। (एक गाँव रो बालक स्कुल भणवा जावे उ बालक रे मन री दशा को वर्णन है) ध्यान मु हुन्जो (२) सुबह रो जीमणो को नुतो आतो तो मन मे उतल-फुतल मचती, कि अबे स्कूल जावा की छुट्टी मारा जीमबा ने... पर कि करा घर वाला स्कूल भेजता, अन कहता कि मू स्कूल मे बुलावा आई जावं, मै भी स्कूल तो जाता पर मन भणवां मे न लागतो। सहेलियाँ ने भी पूछता थारे जीमबा जाणो की, आपा सब लारी चाला ...
नहीं मिटाये कोई अंधेरा
कविता

नहीं मिटाये कोई अंधेरा

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** नहीं मिटाये कोई अंधेरा, स्वयं ही मन में दीप जलाओ, बीते रात सुबह आयेंगी, अपना सोया भाग्य जगाओ। नहीं किसी को पड़ी किसी की, दुनियां निज स्वार्थ में डूबी, चलो हार मानेगी मंजिल, अपनी सभी निखारो खूबी।। जीवन के पथ तूफाँ दलदल, और काँटे भी आयेंगे, विचलित नहीं जो होंगे इनसे, वे ही जग को भायेंगे। अपने ही तुम बनो खिवैया, स्वयं की नैया पार लगाओ, नहीं मिटाये कोई अंधेरा.... पंख लगाओ आशाओं के, उड़ों गगन उड़ने को है, अपना मोल स्वयं पहचानो, सृजन नये करने को है। सूरज को ना,बहुत देर तक, कोई बदली ढकने पाती, सत्य की राह में चले जो हरदम, बाधा ना टिकने पाती। मैला ना हो पाये दर्पण, मन दर्पण की धूल हटाओ, नहीं मिटाये कोई अँधेरा, स्वयं ही मन में दीप जलाओ। पिया है जिसने, गम हालाहल, उसने जग को जीत...
सांसों के सितार पर
कविता

सांसों के सितार पर

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** सांसों के सितार पर भी यह गीत मेरे यार बजते है" सांसों के सितार पर ही दिल के तार तार बजते हैं सरगम की इस लय पर जाने कितने ही सितार बजते है पता नहीं तुम्हारी नजरों में इतनी कशिश क्यों है तुम्हारे देखने से दिल में मेरे घुंघरू हजार बजते हैं। मैंने तो सिर्फ गीत लिखे थे तुम्हारी सूरत देखकर तुमने वही गीत गाए जो मेरे कानों मे वो बार-बार बजते हैं। मैंने तो तुम्हें गीतों में ढालने की कोशिश की थी अब तो मेरे गीत इस दुनिया में बेशुमार बजते हैं। गली और चौबारो में शहर हो या फिर हो बाजारों मे गूंज सुनाई देती है इन गीतों की जो कभी त्योहार में बजते हैं। सांसों के सितार पर जब भी मैं अपने ये तराने सुनता हूं खिलखिलाते किसी झरनो के यहा धार बजते है। इन गीतों को सुनकर दिल भी मस्त हो ही जाता है ...
तेरी यों ही गुजर जायेगी
कविता

तेरी यों ही गुजर जायेगी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** मत कर निज प्रसन्नता की बात, तेरी आत्मा बिखर जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भाव-भावना रौंदी अब तक, आगे भी रोंदी जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भुलाना जीवन अनुभवों को, तेरी मूर्खता ही कहलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || करेगा स्व- सुख की बात तो, परछाई भी दूर हो जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || बदला यदि तू नहीं अब तक, तो दुनियाँ क्यों बदल जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || कटुता भरे तेरे जीवन में, अब मधुरता नहीं चल पायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || चली है सृष्टि शिव-शक्ति कृपा से, आगे भी शक्ति ही चलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेग...
रिती गागर
कविता

रिती गागर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की रीति गागर में आ गया समंदर का घेरा इन अलकों मैं इन पलकों में।। भटक गया चंचल मन मेरा। कंपित लहरों सी अलके है दृ ग के प्याले मधु भरे तिरछी चितवन नेदेखो कर दिए दिल के कतरे कतरे। द्वार खुल गए मन के मेरे मन भावन नेखोल दिए बैठ किनारे द्वारे चोखट दृग पथ में है बिछा दिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह ...
मन कैसे वश में करूं
कविता

मन कैसे वश में करूं

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा मन मेरा जन्म का बैरी.. क्यों मेरे बस में नहीं आए! गर ये मन घोड़ा होता तो.. ले चाबुक बस में कर लेती! गर ये मन हाथी होता तो.. ले अंकुश सवार हो जाती! गर ये मन सांप होता तो.. बजा बीन फण से धर लेती! गर ये मन बैल होता तो.. नथनी डाल नाक कस लेती! गर ये मन सुव्वा होता तो.. सोना गढ़ा चोंच मढ़ लेती! गर यह मन प्रेत होता तो झाड़-फूंक वश में कर लेती! गर ये मन बिच्छू होता तो बांध डंक गरल हर लेती! एक विधि है यही विधाता इस तन के भीतर सोए खोए अंतस को साधूं तो.. आकुल व्याकुल मन सध जाए!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
मैं शिवा तुम्हारी
भजन, स्तुति

मैं शिवा तुम्हारी

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी, प्रेम संगिनी प्रेम रागिनी। तुम हो शिव..... जब तुम करते नृत्य मनोहर, पग थिरके डमरू के स्वर पर, भाव भंगिमा सुंदर चितवन, करे प्रफुल्लित देवों का मन, तब नर्तक नटराज की गौरी, समा जाए मुद्रा में तेरी। तुम हो शिव...... जब तुम करते जग का चिंतन, कष्ट देख व्यथित होता मन, जन कल्याण हेतु दुख भंजन, तज कर सर्प चन्द्र का बंधन, रत समाधि होते त्रिपुरारी, तब मैं बनती साधना तुम्हारी। तुम हो शिव........ जब होता सागर का मंथन, विष को देख करे जग क्रंदन, सब मिल करें प्रार्थना तुम्हारी, सुन लो शिव वंदना हमारी, नहीं रुके पल भर को शंकर, विषपान करें अंजुल भर कर, हुआ कंठ जब नील तुम्हारा, कर रखकर कर विष रोका सारा, तुम पीड़ा से मौन हो गए, तब मैं बन गई वेदना तुम्हारी। तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी।...
कलयुग सतयुग लग रहा
गीत, भजन

कलयुग सतयुग लग रहा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। जीव हत्या करने वाले अब स्वयं आ रहे उनकी शरण में। लेकर आजीवन अहिंसा का व्रत स्वयं करेंगे उनकी रक्षा अब। ऐसे त्यागी और तपस्यवी संत जो स्वयं पैदल चलते है। और जगह जगह प्राणियों की रक्षा हेतु भाग्यादोय खुलवाते।। कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। मांस मदिरा बेचने वाले अब स्वयं रोक लगवा रहे। चारो तरफ अहिंसा का अब पाठ ये ही लोग पड़ा रहे। कलयुग को देखो कैसे अब सतयुग ये लोग बना रहे। घर घर में सुख शांति का आचार्यश्री का संदेश पहुंचा रहे।। लगता है जैसे भगवान आदिनाथ स्वंय अवतार लेकर आ गये। और छोटे बाबा के रूप में आकर सब जीवो का उद्दार कर रहे है। तभी...
मुहब्बत के हंसी पल
कविता

मुहब्बत के हंसी पल

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुहब्बत के हंसी पल जब भी मुझको याद आते हैं मुझे उस प्रेम की रस्सी में कसकर बांध जाते हैं कदम बढ़करके मुझको आसमां तक लेके आया है यहां हम अपनी दुनिया के नए नगमें सुनाते हैं मुहब्बत की कई तस्वीर मुझको और गढनी है कसमकस है बहुत फिर भी यहां हम मुस्कुराते हैं निभाकर फर्ज हमनें मुश्किलों को खूब देखा है मगर इसके सिवा रस्ता कहां हम देख पाते हैं चलो कुछ दूर तक चलकर यहां आबोहवा देखें सुना है आदमी ही आदमी को काट खाते हैं यहां दुख दर्द को सुनकर नहीं कुछ फर्क पड़ता है मुसाफिर हैं सभी फिर भी मुसाफिर को सताते हैं न जानें कौन सी मंजिल पे जाने की कवायत है भटकते लोग भी रस्ता यहां सब को बताते हैं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेख...
किताब घर
कविता

किताब घर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानवीय सभ्यता के विकास का किताब-घर जीवन के किस्से-कहानियों वृतांत का किताब-घर जीवन के रस को जिसने पान किया है। काव्य धारा के अमृत धारा का किताब-घर कहानी घर-घर की हो या सभ्यताओं की, अनगिनत सोपानो का सफर करता है किताब-घर कितने पहलू जिंदगी से अनबूझ रहे। हर पहलू का जानकार किताब-घर। जिंदगी सदियों से जिन रास्तों से वह के आई है। इतिहास का स्वर्णिम साक्षरताकार किताब-घर वक्त भूल जाएगा जिन किरदारों को, नये किरदारों का भी होगा किताब-घर मौत के बाद भी जिंदा मिलूंगा। अमर आत्माओं का है किताब-घर। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
कल आज कल
धनाक्षरी

कल आज कल

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी अतीत हो जाता भूत विगत का ये सबूत इतिहासी पन्ने हैं ये यादों के बहाने हैं आनेवाला होता भावी ये है समय मायावी क्यों पहले से सोचे ये ईश्वर ही जाने हैं अच्छा था जो गया बीत आनेवाला होगा गीत आज के सुखद पल खुशी में बिताने हैं वर्तमान है अपना ये सलोना सा सपना आगा पीछा भूलकर लक्ष्य सभी पाने हैं परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप ...
प्राण के बाण
कविता

प्राण के बाण

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** १ दुख देती है जब दरिद्रता आती विपदा घड़ी घड़ी। बड़ी बड़ी प्रतिभाएँ पागल हो जातीं पड़ी पड़ी ।। २ कापुरुषों के लगे निशाने महासशूरमा चूक गए। कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।। ३ जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर, कौओं को खगराज कहा। व्याख्या करने वालों ने तब, गर्दभ को गजराज कहा।। कहा बटेरों को ब्रजरानी, बगुले को ब्रजराज कहा। "प्राण" गिलहरी को गुलबदना, बिल्लड़ को वनराज कहा।। ४ हारे नहीं हिम्मती राणा ऐसा काम विराट किया। कटता काठ कुल्हाड़ी से जो नाखूनों से काट दिया।। ५ जो न बता पाते थे अन्तर केले और करेले में। वे रस के मुखिया बन बैठे प्रजातंत्र के रेले में।। ६ जिनकी शक्ल देखते रोटी के लाले पड़ जाते हों। कौओं की क्या कहूँ कबूतर तक काले पड़ जाते हों।। उनके सम्मुख अपना माथा रोज टेकना पड़ता ...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
हम हाल हमारे हैं।
ग़ज़ल

हम हाल हमारे हैं।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सब लोग समझते हैं हम हाल हमारे हैं। हालात मग़र सबके कुदरत के सहारे हैं। मिलते हैं अपनों में कुछ गैर यहाँ लेक़िन, गैरों में वहाँ उतने कुछ लोग हमारे हैं । कश्ती की हिदायत है मझधार से डर रखना, दरिया से गुजरने को काफ़ी ये किनारे हैं । लगते हैं सुहाने सब दिखते हैं जो दूरी से, आँखों के लिए कितने धोखें वो नज़ारे हैं । है राह अग़र मुश्किल चलकर तो ज़रा देखो, हर राह पे मंज़िल को पाने के इशारे हैं । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रच...