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संवेदना
लघुकथा

संवेदना

माधवी तारे (लन्दन से) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ट्रिंग-ट्रिंगsss मोबाईल की रिंगटोन बज रही थी। रखमा की राह देखते-देखते घर के आवश्यक कार्य सम्पन्न कर प्रतिभा जरा-सी लेटी ही थी। ढेरे सारे काम अभी अधूरे थी। 'बाद में देखूँगी'- कहकर आराम करने के मूड में थी वह, पर दीर्घ काल तक बजती रिंगटोन ने हैरान कर दिया। फोन उठाना ही पड़ा। हैलो !! कौन बोल रहा है? आवाज अपरिचित-सी लग रही थी। मैं बोल रही हूँ मैडम! रखमा बाई की बड़ी बेटी हूँ। क्या कहना है? मॅडम जी! आज सवेरे मम्मी फिसलकर गिर गई है। उसके पैर में फ्रैक्चर हुआ है। उसे मैं सरकारी अस्पताल में प्लास्टर लगाने के लिये ले आयी हूँ। आधी-अधूरी बेहोशी की अवस्था में उन्होंने मुझे सिर्फ आपके घर में यह बात सूचित करने को कहा है। अरे, भगवान! ये कैसी आफ़त आन पड़ी है? अब क्या करूं? काहे का आराम? उठ जाओ, अधूरे सारे काम मुझे ही पूर्ण करने हैं। घर क...
घर वापसी
लघुकथा

घर वापसी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "रमाकांत जी ! यहाँ से जाने के बाद हमें भूल तो नहीं जाओगे"? अरे ! कैसी बात करते हैं आप? बीच बीच में आप सब से मिलने आता रहूँगा। आज पूरे पाँच वर्षों बाद रमाकांत जी का पोता उन्हें लेने आया है, एक-एक दिन गिन रहे थे आखिर वह दिन आ ही गया। संगी-साथी छेड़ते रहते थे "अरे यार ! स्वीकार कर लो वृद्धाश्रम को, यही हम लोगों का घर है।" पर वे कहते रहे- न वह आवेगा जरूर। मृदुभाषी रमाकांत जी ने सबको बतलाया था कि बहू बेटा सड़क दुर्घटना में मारे गये, पोता नवोदय विद्यालय के होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। उसको मैंने समझाया था- "कि तू पढाई पूरी कर, कुछ बन तब तक मैं वृद्धाश्रम में रह लूँगा।" आज वह एक अच्छी नौकरी कर रहा है, उसने मुझसे वायदा किया था कि नौकरी लगते ही वह मुझे लेने आ जाऐगा, और वह आ गया" कहते कहते खुशी से रमाकांत जी का गला रूद्...
कूक रही कोयलियाँ
धनाक्षरी

कूक रही कोयलियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनहरण घनाक्षरी कूक रही कोयलियाँ ये अम्बुवा की डालियाँ नियति निखर गई बासंती बयार से पीत रंग पसरा है वीतराग छलका है शारदे प्रसन्न हुई वीणा की झंकार से हरियाली देखो छाई मधुमास बेला आई सजनी सँवर गई यौवन के भार से डाल डाल पड़े झूले बालवृंद खूब डोले भोर से साँझ हुई हँसी की फ़ुहार से बिदेस से आया मीत सखियों ने गाए गीत आहट फिज़ा में हुई द्वारे पे दस्तक से किए सौलह सिंगार पीली ओढ़ के चुनर पिया से मिलन गई नैन मुंदे लाज से मेहँदी रचे हैं हाथ सजना है साथ साथ बिखरा गजरा ज़रा सँवार दे प्यार से ऋतुराज आगमन महामारी का नमन धरणी विभोर भई आशा के संचार से परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आ गया ऋतुराज बसंत
कविता

आ गया ऋतुराज बसंत

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। मनोहर छटा बिखेरता मदमस्त गगन, खिल रहा सूर्यरश्मियों से धरा का मुखमंडल समस्त भूमण्डल बन रहा उत्तम उपवन। पुहुप रस पी-पीकर मधुकर कर रहे गुंजन, बन रहा प्रकृति में सहज संतुलन। आ गया ऋतुराज बसंत मन हो रहा मगन। धारण किया धरा ने पीत वसन, प्रकृति ने किया श्रंगार सहज। आज सज रही ऋतुराज की दुल्हन, मानो कामदेव-रति का हो रहा मंगल-मिलन। आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
हे ! वाग्वादिनी माँ
कविता

हे ! वाग्वादिनी माँ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हे ! वाग्वादिनी माँ हे ! वाग्वादिनी माँ तू हमें ज्ञान दें तू हमें ध्यान दें। भटक रहें हम जीवन पथ पर आकर हमें तू अब थाम लें। तू ब्राम्ह की माया तू ही महामाया हम फंसे मोहजाल आकर हमें तू अब निकाल लें। तू ज्ञान की मुद्रा तू ध्यान की मुद्रा हम गिरे अज्ञान में आकर हमें तू अब ज्ञान दें। तू सुर की वन्दिता तू ही सुरवासिनी हम हो रहें बे-सुरे आकर हमें तू सुर का ज्ञान दें। तू विद्या की धात्री तू ही विद्युन्माला हम धंस रहें अविद्या में आकर हमें तू विद्या का वरदान दें हे ! वाग्वादिनी माँ हे ! वाग्वादिनी माँ तू हमें ज्ञान दें तू हमे ध्यान दें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
राजनीति करना चाहता हूँ
हास्य

राजनीति करना चाहता हूँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं भी सोचता हूँ कि राजनीति में कूद पड़़ूं, इस हमाम में सब नंगे मैं ही तन ढाक कर क्या करूँ? तंग आ गया हूँ वोट दे देकर क्यों न इस बार पहले टिकट और फिर वोट की मांग करूँ। राज की बात आपको बताता हूँ मैं भी खूब धन कमाना चाहता हूँ अब ईमानदारी से भला दाल रोटी तो चल ही नहीं सकती बस एक बार बड़ा हाथ मारना चाहता हूँ। आलीशान बंगला महंगी गाड़ियों के आजकल सपने बहुत आते हैं, बस कैसे भी ये सपने अपने पूरे कराना चाहता हूँ, अंदर की बात है किसी से मत कहना हवाला से धन भी कमाना चाहता हूँ, बस एक बार मौका भर देकर तो देखिए स्विस बैंक में अपना भी खाता खुल जाये रुपयों से बैंक खाता भरना चाहता हूँ। आप सबने कितनों को मौका दिया एक बार मुझे भी देंगें तो पहाड़ नहीं टूट जायेगा, मैंनें तो अपना राज आपको बता ही दिया बस एक...
वैभव तेरा चहुँ ओर रहे
कविता

वैभव तेरा चहुँ ओर रहे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** माता लक्ष्मी दारिद्र हरो, मम जीवन में उल्लास भरो मिट जाए दुख पीड़ा सारी, वर मुद्रा में निज हाथ धरो। हे विष्णु प्रिया लक्ष्मी माता, तुमसे है दुनियाँ का नाता। जिस पर ना कृपा आपकी हो, जीवन भी उसको भरमाता। हे कमला माता कल्याणी, जीते अभाव में जो प्राणी धनवर्षा उन पर माँ कर दो, खाली झोली उनकी भर दो। तुम उनका भाग जगा दो माँ, सारा दुख दर्द मिटा दो माँ उनके जीवन में शुचिता कर, सारा संताप हटा दो माँ। हे सिंधु सुता, धन की देवी, धनधान्य युक्त जीवन कर दो निर्धन के घर धन की वर्षा, शरणागत को सुख का वर दो जीवन में कर दो खुशहाली, सज्जित हो पूजा की थाली जगमग हो सबके जीवन में, मिट जाय रात सब की काली। खुशहाली चारों ओर रहे, दारिद्र ताप ना कोई सहे हर घर में रोशन हो चिराग, वैभव तेरा चहुँ ओर रहे। परिचय :- अंजनी क...
परीक्षा
कविता, बाल कविताएं

परीक्षा

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** वैसे तो हमारा जीवन भी एक परीक्षा है जो कदम कदम पर हम अनुभव करते हैं यह भी एक शिक्षा है जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए हम रात दिन पुस्तक पढ़ते हैं उम्मीदों की सीढ़ियां चुनकर प्रतिदिन आगे बढ़ते हैं हमें जो मुकाम हासिल करना है उसके लिए करते हैं मेहनत और सपने बूनते है बच्चे अपनी पसंद का सब्जेक्ट चुनते हैं मन लगाकर पढ़ाई करने वाले बच्चे आसानी से सफल हो जाते हैं अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं फिर मनचाहा फल पाते हैं पेपर हो चाहे किसी भी सब्जेक्ट का उससे नहीं घबराते हैं जो बच्चे टेंशन नहीं लेते हैं परीक्षा का वह बहुत ही आसानी से सफल हो जाते हैं मेरी सलाह है आपसे परीक्षा से कभी नहीं घबराना चाहिए बनाकर टाइम टेबल पढ़ाई में जुट जाना चाहिए समय पर खाना, समय पर पढ़ना समय पर सोना और ...
शाकाहार – सर्वोत्तम
आलेख

शाकाहार – सर्वोत्तम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आम के फल का स्वाद नहीं ले सकता। इसी प्रकार बीज रूप में जैसा आहार लिया जाता है, वैसे ही भाव-विचार और आचार होते हैं। आहार दो प्रकार के है- शाकाहार और मांसाहार। शाकाहार अहिंसामूलक है, तो मांसाहार हिंसामूलक। शाकाहार स्वास्थ्यप्रद है, तो मांसाहार रोगों का घर, शाकाहार मानवीय और सौन्दर्यपरक आहार है तो मांसाहार आसुरी और विकृतिपरक, in ७७ सात्विक है तो मांसाहार कालकूटविष, शाकाहार प्रकाश की ओर ले जाता है तो की गौरव गरिमा है। शाकाहार ही मानव के अन्दर संतोष, सादगी, सदाचार, स्नेह, सहानुभूति और समरसता जैसे चारित्रिक गुणों का विकास कर सकता है, मांसाहार कदापि नहीं। शाकाहारी का मन जितना संवेदनशील होता है मांसाहारी का नहीं हो सकता। शाकाहार का तात्पर्य है चारों ओर स्नेह और वि वास का वातावरण बनाकर प्रकृति के कण-कण को सह अस्तित्व की भावना स...
एक दिए ने धूम मचा दी
कविता

एक दिए ने धूम मचा दी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** विकट अँधेरे लगे हुए थे, रातों के जयकारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।। तुम दिनकर के वंशज होकर, असमंजस में जीते‌ थे। देख अँधेरोँ की ताकत को, घूँट खून का पीते थे।। तुमको शक था जिस दीपक पर, क्या इकलौता कर लेगा। अँधियारों से डरकर, चुपके से समझौता कर लेगा।। उसी दीप ने दिखा दिया दम, तम बदला उजियारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।१।। अपने आप नहीं मिटते तम, इन्हें मिटाना पड़ता है। खुद को दीप बनाकर खुद का, दीप जलाना पड़ता है।। तब ही कान्ति केश तक छाती, तिमिर तोम हर लेती है। दीपशिखा सूरज बन जाती, ज्ञान व्योम कर देती है।। फिर अन्तर क्या रहा दीप में, तारे और सितारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।२।। आभा के कारण रवि का तम, दरश नहीं कर पाता ...
बसन्ती बहार
कविता, स्तुति

बसन्ती बहार

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसन्त लेकर प्रेम की नई तरंग हर तरफ सुनहरी छटा है बिखरी प्रकृति दुल्हन जैसी है निखरी खेतों में पक गई सरसों की बाली फलों से लद गई अम्बुआ की डाली प्रेम रंग में रंगी है धरती सारी फूलों पर मंडरा रही तितलियाँ प्यारी चल रही शीतल मन्द बयार मतवाली हर तरफ फैली है खुशहाली माँ भगवती भी लेकर अवतार देने आई बुद्धि-विद्या का उपहार करें हम माँ की आराधना बार-बार सब पर हो माँ शारदा की कृपा अपार श्वेताम्बर धारिणी, वीणा वादिनी दे दो माँ मेरे भावों को शब्दों का आकार नित नव रचना का सृजन करू मैं दो मेरी लेखनी को अपना आशीर्वाद परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप ...
ऋतुराज बसंत 
कविता

ऋतुराज बसंत 

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उषा की लालिमा निराली कुंज-कुंज छाई हरियाली लो आ गया ऋतुराज बसंत सखी महक उठे दिग् -दिगंत ठंडी-ठंडी मदमस्त बयार आई लेकर बासंती उपहार शाख-शाख खिले प्रसून हर्षित बेलें करें आलिंगन फैली चहुं ओर मकरंद सुगंध मंडराते-गुनगुनाते भ्रमर वृंद विथियों में फैला वासंती वैभव प्रीतियों में भूला सुधि प्रणीत मन आम्र मंजरी से सजी अमराई देख-देख उनको पिक बौराई प्रकृति पीली-पीली चुनर ओढ़े मन की कोयल कुहू-कुहू बोले जिया मेरा बन बैठा अनुरागी वन-वन डोले जैसे बैरागी मन के आंगन फिर सजी खुशियों की रंगबिरंगी रंगोली ऋतुराज बसंत श्रृंगारित फूलों की डोली अलंकृत बासंती चांद बासंती चांदनी बहका अंबर महकी यामिनी परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वा...
कदम बढ़ा कर देखो
कविता

कदम बढ़ा कर देखो

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** होगा काम नहीं क्यों तुमसे कदम बढ़ा कर देखो साहस को अपनाओ प्यारे सोच बदल कर देखो प्रभु राम गर वन ना जाते कैसे रावण मरता कृष्ण अगर ना बल दिखलाते कंस कहो क्या डरता गांधी जी गर घर में रहते देश स्वतंत्र न होता पराधीनता की जंजीरें अब तक जकड़ा रहता दशरथ मांझी चेनी लेकर अगर न पथ को बनाते गाँव के लोग कहो कैसे सुविधा का लुत्फ़ उठाते इसीलिए कहता हूँ सबसे भाव बदल कर देखो होगा कोई काम नहीं क्यों सोच बदल कर देखो परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
हम बच्चे मन के कच्चे
बाल कविताएं

हम बच्चे मन के कच्चे

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हरदम बाइक कार चलानी, डांटे अक्षु को उसकी नानी। उछल-कूद व धमा-चौकड़ी करती हो अपनी मनमानी। हम बच्चे मन के कच्चे है- कभी-कभी करते शैतानी । खेल समय पर खेलो भैया डांट पड़े ना तुमको खानी। सही समय पर पढ़ने जाओ भैया आबू और किट्टू रानी। हम खेलेंगे और खूब पढ़ेंगे निश्चित ही मंजिल है पानी। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मोनो एक्सप्रेस, अमृत महिमा, नव किरण, जर्जर कश्ती, अनुशीलन, मानव ...
नई सदी का बसंत
कविता

नई सदी का बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नई सदी के प्रथम बसंत कैसे करूं स्वागत तेरा पहले जब तुम आते थे स्वागत अमीर शाखाएं झुकती वंदना सजाते आमृ पणृ पलाश अगन लगाते थे कुंद, कदंब कचनार लजाते चंपा चमेली जहु़ ओर महकते वृक्षवल्ररी यौवन पर होती थी तो पाषाणो में पुष्प थे खिलते। पर वर्तमान में आमृ कुंज में कम बौराऐ आमृ वृक्ष है। नहीं कोयल की कुक कहीं चकवा, चातक, चकोर चोंच भी नहीं मारते पत्तों पर शायद उन्हें विश्वास नहीं वृक्षवल्ल्ररी तनों पर तज, तज कर निड अपने नील गगन में उड़ते हैं सोच यही गगन तले प्राण वायु मिल जावे कहीं।। तुम आए हों हे बसंत स्वागत तुम्हारा करती हूं। पुनः परंपराएं दोहराओ यह इच्छा रखती हूं, अमराई में बौराऐ आमृ वृक्ष और कूकेँ कोयल की कूक केसरिया पीला बाना पहने अमल ताश सरसो फूल चटक, चटक चटके सब कलियां कुंद चांदनी की डाली मोगरा, गुल...
मधुमास
कविता

मधुमास

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति बसंत बौछार, मधुप गूंजे कलीयन कली रे अली। प्रेम डगर आसान नहीं, श्वेत दंत मुस्कान चली रे अली।। गजगामिनी पदचाप धरे, नेह भरें मादकता चली रे अली। कलीयन सब फूल खिले, गुंजन मिलिंद सब अली रे अली।। सुरभि बयार जोबन सखी, हास करत संचार चली रे अली। कुसुम तारुणाई भयी, मकरंद भरी महक चली रे अली।। यौवन मंजरी अंत चली अफवाह चली अली रे अली। काल के कपाल में, राम नाम सत्य अली रे अली। एही भांति मानव मधुमास, चार चरण जीवन चली रे अली।। प्रकृति बसंत बौछार, मधुप गूंजे कलीयन कली रे अली।। परिचय :-  राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्त...
हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे
कविता

हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे, मेरे अजीज हाथों में खंजर उठाने लगे। हवाओं में फैला है जो नफरती ज़हर, जलता देख घर मेरा वो जो मुस्कुराने लगे। खौफ के साए में हर लम्हा है कैद अब, बहसी लोग ख़ुद को जो ख़ुदा बताने लगे। मजबूर, लाचार, ग़रीबों की है किस्मत, त्योंहारों में भी वो जो आंसू बहाने लगे। कुछ बंदिशे हो हवावाजों की जुबां पे, वो पागल ख़ुद को जो ख़ुदा बताने लगे। मयस्सर हो तमाम खुशियां गमखारो को, कुछ बेईमान अब ख़ुद को जो रहनुमा बताने लगे। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
गणतंत्र दिवस
हाइकू

गणतंत्र दिवस

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** भारत देश गणतंत्र दिवस है सभी मनाओ भारत देश गणतंत्र हुआ रे ध्वजा मंगाओ। भारत देश गणतंत्र हुआ रे खुशी मनाओ। भारत देश गणतंत्र हुआ रे ताली बजाओ। भारत देश गणतंत्र हुआ रे लड्डू बटाओ। भारत देश गणतंत्र हुआ रे गीत गाओ रे। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
महके बसंत
कविता

महके बसंत

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** स्वागत कर लो आज बना यह सारा साज। उपवन खिले देखो महके बसंत के फूल। फैली चहुँदिश देखो हरी-हरी हरियाली। बसंत मौसम आया मिटेंगे उर के शूल। बसंत जब भी आता खुशी के पैगाम लाता। सब जन जाते तब ताड़क गरमी भूल। करलो स्वागत तुम मौसम सुहाना यह। मिलेगी अबतो मुक्ती ऋतु जो उड़ाये धूल।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्...
दिखलाऊँ हर बार तुम्हें
ग़ज़ल

दिखलाऊँ हर बार तुम्हें

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दिखलाऊँ हर बार तुम्हें। सपनों का संसार तुम्हें। दिल की दौलत वाला हूँ, न्यौछावर सब प्यार तुम्हें। जीत भले ही हो मेरी, हासिल हो उपहार तुम्हें। मुश्किल दरिया, धारों का, आसाँ हो मझधार तुम्हें। खुशियाँ हक में हो उतनी, जितनी हो दरकार तुम्हें। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
अपनी-अपनी बगिया
कविता

अपनी-अपनी बगिया

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** सबकी अपनी-अपनी बगिया मेरी भी बगिया है सुरभित कलियाँ चटकीं महकी बगिया रौनक से भर आई बगिया। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं पुलकित मन से हिले-मिले हैं इन फूलों के रंगों से मिल चेहरे पर छाई है लाली। सूरज-चाँद-सितारे झाँकें यहाँ प्रेम की खुशबू छाई दिवस-रात तुम्हीं से होता सुबह-शाम दोनों सुखदाई। पूजा-अर्चन तुमसे होता सभी तीर्थ हैं तुमसे होते सारा उपवन तुमसे महके जीवन का हर कोना बिहँसे। मन मंदिर में पूजा तुमसे हरि पद में हिय दीपक चमके साथ तुम्हारा जबसे पाया जीवन का हर पल हर्षाया। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वो प्यारी सी मुस्कान लिए
लघुकथा, सत्यकथा

वो प्यारी सी मुस्कान लिए

स्वप्निल जैन छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के कुछ दिन बाद की बात है, मैं अपनी दुकान पर बैठा था, तभी कुछ ९-१० साल की उम्र के आस-पास की वो प्यारी सी मुस्कान लिए दिल में कुछ अरमान लिए हाथों में सिर्फ हां सिर्फ दो गुब्बारे लिए मेरे पास आई। मैंने पूछा हां बेटा बोलो, वो बिटिया बोली भैया मेरे गुब्बारे खरीद लो, मुझे जरूरत नही थी बलून की पर वो मासूम सी बच्ची निरास स्वर में उम्मीदों से बोली थी, उस समय तो मै सोच में पड़ गया कि इस बच्ची को क्या कहूँ। फिर आखिर मैंने उससे पूछ ही लिया बेटा क्या आप पढ़ाई भी करते हो, वो बोली नहीं मुझे खाने के लिये गुब्बारे बेचने जाना होता है, उस मासूम की इतनी बातें सुनते ही मेरा हृदय पसीज सा गया मैंने एक पल भी देर ना कि और उस बच्ची के दोनों गुब्बारे खरीद लिये, उसका चेहरा मंद-मंद खिल सा गया। वो प्यारी सी मुस्कान लिए कुछ बोली, भैया यदि आपके पा...
ॠतुराज बसंत
कविता

ॠतुराज बसंत

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम ने यूँ ली अंगड़ाई संग में इसके प्रकृति मुस्कायी खेतों पर हरियाली छाई डाल डाल पर नई कोपल आई सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। नवकुसुमों से सुसज्जित होकर नवपल्लवों से शोभित होकर कोयल की मधुर तान में खोकर सुगन्धित मस्त बयार को लेकर सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। भीनी सी आम की बौर महके सरसों के फूल और चिड़ियाँ चहके मदमस्त प्रकृति के यौवन में वसुंधरा प्रेमरस में बहके सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
तुम आओ चाहे चुपचाप
कविता

तुम आओ चाहे चुपचाप

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप मैं सुनती हूं कण कण में तुम्हारी पदचाप बीत गया पतझड़, खिलखिला रहे पलाश बीता सबका कल ,अब क्यों हो कोई उदास कल ‌का यह बीतना सुनाता तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप वासंती बयार फैल रही चंहु ओर मेरी धानी चुनरिया उड़ उड़ जाती पी की ओर पवन सुनाती तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप खेतों की पीली सरसों ज्यों खिल रही खिन्न उदासी की छाया भी दूर हो रही सरसों की खुशहाली सुना रही तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप आम्र तरु यूं लदा मोरों से नाच उठा मन मेरा जोरों से आम्र आने की यह सुवास महका रही मेरी हर सांस हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप कोयल कूक कूक कर घोल रही मिठास कोयल का यह अमृत रस छलक रहा आसपास हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप भंवरे की गुनगुन ज...
नई शुरूआत
कविता

नई शुरूआत

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** नई तमन्नाओ के प्रति कशिश को पूरा करने की नई कोशिश शुरू करते है नई शुरूआत बस समय देता रहे साथ नये संकल्पो का संचार है सफलता पाने का मजबूत आधार रिश्तों के लिए करे एक नया अर्पण जो है स्नेह और आत्मीयता का दर्पण फिर से रोशन करने को हुई नई भोर जो जागे है वो रोशनी रहे बटोर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...