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स्वातंत्र्य राष्ट्र
कविता

स्वातंत्र्य राष्ट्र

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** जाने कितने वीरों ने अपनी जान गवाई होगी, तब जाकर के भारत ने आजादी पाई होगी भारत की माटी का शत-शत वंदन करते हैं, बलिवेदी पर मिटने वालो का दिल से अभिनंदन करते, हैं, कली कली खिल रही यहां पर रहे फूल मुस्कुरा, जन गण मन से गूंज रहा है सारा हिंदुस्ता वंदेमातरम भारत माता के गीतों को हम गाते हैं, भारत भू की शुचिता का हर पल गुणगान सुनाते हैं हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई रहते हैं यहां प्रेम से, आजाद हो या आरती गाते हैं सब प्रेम से देवभूमि यह स्वर्ग से प्यारी वीरों की परिपाटी हैं, जहां हुए बलिदान लाडले वीरों की यह माटी हैं देश के खुशियों के खातिर वीरों ने जान गवाई हैं, रह सके सब मिलजुल कर इससे प्रेरणा पाई हैं परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह ...
नव बर्षाभिनन्दन
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नव बर्षाभिनन्दन

शिवेंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो फिजा है द्वेष नफरत की, वो अब होना नहीं चाहिए। पाई जो उपलब्धियां हमनें, उन्हें यूं खोना नहीं चाहिए। जुर्म और अत्याचार हुए बहुत, अमन चैन अब होना ही चाहिए। त्रस्त हैं, हैवानियत की दास्तानों से, आदमी में आदमियत होना ही चाहिए। शहरों में गंदगी और दिमाग में फितूर, जो हुआ अब तक, होना नहीं चाहिए। नहीं है हम, किसी से कम जहाँ में, देश का मान, कम होना नहीं चाहिए। स्वच्छ हो भारत, पर्यावरण सुधरे, सबको स्वस्थमय, अब होना ही चाहिए। न हो प्राकृतिक आपदाओं से तबाही, नववर्ष सबको सुखद होना ही चाहिए। परिचय :-  शिवेंद्र शर्मा पिता : स्व. श्री भगवती प्रसाद शर्मा जन्म दिनांक : २७/११/१९६३ गुना (म. प्र.) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रकाशित पुस्तकें : दस्ताने जबरिया, बीन पानी सब सून, सब पढ़ें आगे बढ़ें, उज्जैनी महिमा एवं ...
हवाओं में तेरी खुशबू है….
कविता

हवाओं में तेरी खुशबू है….

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** तुम मेरे ख्वाबों में ही आती हो ख्यालों में मेरे लम्हें लम्हें को सजाती हो तेरे प्यार के एहसास से महकता रहता हूँ छूकर फूलों को तेरे डिम्पल का एहसास होता है नाजुक कलियों का स्पर्श लबों का स्पर्श लगता है धड़कते दिल में मेरे जज्बातों का सैलाब है आंखों की नमी सागर उठती गिरती लहरों सी है निगाहों से निगाहें जब भी मिलती है प्यार का उफनता सागर लहराया करता है ठहर जाओ कुछ लम्हों के लिए दे एक शाम नमकीन हवाओं की सरसराहटों से आये तेरा पैगाम छूकर लबों को उतर जाओ कभी रूह में मेरे चलते चलते कुछ अपनी कहते कुछ मेरी सुनते गीले रेत पर बने तेरे पदचिन्ह तेरे प्यार का एहसास जगाते साथ साथ जिये थे जिंदगी के कुछ लम्हों को हम हमारे प्यार से बिताए हुए ये एहसास पल मेरे उदास भरे जीवन जीने का सहारा मिल जाता आस पास तेरे होने का हरप...
बेटियाँ है वरदान ईश्वर का..
कविता

बेटियाँ है वरदान ईश्वर का..

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अश्क बहाया करते थे बेटियों के जन्म लेने से.! माँ भी सहमी रहती थी बेटियों को जन्म देने से..!! बेटियों को बदनसीब, बेटों को नसीब समझते थे.! बित गया वो दौर जो बेटों की चाहत रखते थे..!! बेटियाँ अब कमजोर नहीं बेटों के संग चलते है.! बेटा बेटी दोनों समान इनका अनुसरण करते है..!! बेटियाँ है वरदान ईश्वर का, देवी से वो कम नहीं.! लाख मुसीबत सहकर भी, होती आंखे नम नहीं..!! सफलता के शिखर पर बेटियां परचम लहराते है.! ऊंचे पर्वतों को लांघकर बेटियाँ तिरंगा फहराते है..!! देश की रक्षा करने बेटियाँ, दुश्मन से टकराते है.! मातृभूमि की रक्षा करते तिरंगे पर लिपट जाते है..!! बेटियों ने बदल दिए रीति-रिवाज हिंदुस्तान की.! बाप की अर्थी को कंधा देते बेटियाँ हिंदुस्तान की..!! गर्व है इन बेटियों पर जो कंधे मिलाकर चलते है.! अ...
बापू जी धन्य हो गए
कविता

बापू जी धन्य हो गए

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकाश पुंज के पथ प्रशस्त कर बापू जी धन्य हो गए। सत्य अहिंसा का मार्ग बताकर बापू जी पुण्य हो गए ... सरल सहज सरस सौम्य स्वभाव व्यक्तित्व के धनी थे, सादा जीवन उच्च विचार सुमधुर व्यवहार के मनि थे। हे राम ! कहकर भारत में बापू जी पूजनीय हो गए.. साबरमती आश्रम का सृजनकर संत वे कहलाए, मोहनदास को उपाधि मिली तो महात्मा कहलाए। सत्कर्म सबक सिखाकर दुनिया में बापू जी अमर हो गए... सादा ऐनक खादी कपड़ा सफेद धोती पहनते थे, आंदोलन में भाग लेने लाठी पकड़ सरपट वो चलते थे। गुलामी की जंजीरों से मुक्तकर बापू जी महान हो गए... श्रवण करता श्रद्धा सुमन गांधी जी की पुण्य स्मृति में, राम राज्य का सपना संजोने सॅंवार लें हम संस्कृति में। रघुपति राघव राजा राम* बापू जी के प्रिय भजन हो गए.. परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार...
सब कुछ फिसलता जा रहा है
कविता

सब कुछ फिसलता जा रहा है

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** सब कुछ फिसलता जा रहा है बंद मुट्ठी से रेत की मानिंद.. हरा भरा जीवन हो चला है बिन मेड़ के खेत की मानिंद..!! खो गए हैं इंद्रधनुषी रंग सारे.. रह गया कैनवस श्वेत की मानिंद!! ये दिल तो धड़कता है मगर रह गया अंतस अचेत की मानिंद!! उड़ चला हंसा अकेला छोड़ काया अनिकेत की मानिंद!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
मदद के पंख
कविता

मदद के पंख

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दुःख की परिभाषा भूखे से पूछो या जिनके पास पैसा नहीं हो उससे पूछों अस्पताल में बीमार के परिजन से पूछों बच्चों की फ़ीस भरने का इंतजाम करने वालों से पूछों लड़की की शादी के लिए इंतजाम करने वालों से पूछों जब ऐसे इंतजाम सर पर आ खड़े हो कविताएं अपनी खोल में जा दुबकती है मैदानी मुकाबले किताबी अक्षरों में हो जाती बेसुध मदद की कविता जब अपनों से गुहार करती तब मदद के पंख या तो जल जाते या फिर कट जाते क्या ता उम्र तक इंसान ऋणी के रोग से पीड़ित होता है हाँ, होता है ये सच है क्योकि सच हमेशा कड़वा और सच होता अपने भी मुँह मोड़ लेते ये भी सच है की इंसान के पास पैसा होना चाहिए पूछ परख होती है पैसा है तो इंसान की पूछ परख नहीं तो मदददगार पहले ही भिखारी का भेष पहनकर घूमते पैसा है तो आपकी वखत नहीं तो रिश्ते भी बैसाखियों ...
धूलगढ़ बना फूलगढ़
कहानी

धूलगढ़ बना फूलगढ़

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** धूल से भरा हुआ एक गॉंव था जिसमें चारों तरफ धूल ही धूल दिखाई देती थी। इस गॉंव की जमीन बंजर स्वभाव की थी।जिस कारण गॉंव में बहुत कम जमीन पर ही खेती होती थी और अधिकांश जमीन का हिस्सा खाली पड़ा रहता था। दूर- दूर तक केवल बड़े-बड़े खाली मैदान दिखाई पड़ते थे जिनमें धूल उड़ती रहती थी। गॉंव के लोग बहुत गरीब थे क्योंकि वो केवल इस बंजर भूमि में उतना ही अनाज पैदा कर पाते थे जितना उनका पेट भर सके। यहॉं के बच्चे भी गॉंव के प्राथमिक विद्यालय में पॉंचवीं कक्षा तक ही पढ पाते थे क्योंकि गरीबी के कारण कोई भी अपने बच्चों को शहर पढ़ने नहीं भेज पाता था। लंगोटिलाल और उसकी पत्नी लुंगीदेवी ने निश्चय कर लिया कि उन्हें कुछ भी करना पड़े परन्तु वो दोनों अपने बेटे गम्छासिंह को इतना पढ़ाएंगे की वो पढ लिखकर इस गॉंव की जमीन को सुधार सके। गम्छासिंह चौथी कक्षा ‌मे...
कैसे जगह बन गई
कविता

कैसे जगह बन गई

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** दिलमें ना जाने कैसे तेरे लिए अब इतनी जगह बन गई। तेरे मन की छोटी सी चाह मेरे जीने की वजह बन गई। लोग मिलते जुलते रहते है एक दूसरे से रिश्ते बनाने। जिससे भूल जाते है वो अपने दुख दर्द जिंदगी के।। दुनियाँ का सबसे अच्छा और खूब सूरत तोहफा वक्त है। क्योंकि जब आप किसी को अपना वक्त देते है। तो आप उसे अपनी जिंदगी का वह पल देते है। जो कभी भी जीवन में लौटकर नहीं आने वाला है।। जिंदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए। और अपने आप पर विश्वास होना चाहिए। जीवन में खुशियों की कमी नहीं होती। बस लोगो के जीने का अंदाज अपना अपना होता है।। वो रिश्तें बड़े प्यारे होते है। जिनमें न हक हो न शक हो। न जात हो न जज्बात हो। सिर्फ अपनेपन का एहसास हो।। मौका दीजिये अपने खून को। किसी के रागो मे बहन का। ये लाजबाव तरीका है। औरो के जिस्मों ...
जन्मदिवस पर अनंत शुभकामनाएं …
जन्मदिवस

जन्मदिवस पर अनंत शुभकामनाएं …

राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच hindirakshak.com के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सूर्यकांतजी नागर इंदौर (मध्य प्रदेश) का आज ३ फरवरी को जन्मदिवस है ... इस पटल के माध्यम से नीचे दिए गए कमेंट्स बॉक्स में संदेश भेजकर आप शुभकामनाएं दे सकते हैं….
माधव ने मन मोह लिया
छंद

माधव ने मन मोह लिया

अवनीश सूर्य हर्नियाखेड़ी, महू (मध्यप्रदेश) ******************** सवैया छंद माधव ने मन मोह लिया पर माधव के मन भा गयी राधा। माधव वेणु बजात रहे यमुना तक दौड़ लगा गयी राधा। माधव की रज शीश लगा कर माधव में ही समा गयी राधा, माधव ही जगपालक हैं अरु माधव नाम बना गयी राधा। परिचय :-  अवनीश सूर्य स्थाई निवासी : बारापत्थर, सिवनी, (मध्यप्रदेश) वर्तमान निवासी : हर्नियाखेड़ी, महू, इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिय...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** वो सिरफिरी हवा थी सम्हलना पड़ा मुझे हर पल इम्तहानो से गुजरना पड़ा मुझे! मेरी यादें फिज़ा में हर तरफ महक जाये इश्क़ में तेरे इस तरह बिखरना पड़ा मुझे डाल दी है भंवर में कश्ती सम्भालो तुम इसी उम्मीद से समंदर में रहना पड़ा मुझे मेरे हौसलों में इजाफा कम न हो जाए आँधी और तूफानो में उतरना पड़ा मुझे गुजरे जिधर से हर एक राह रोशन रहे जला कर दिल उजाला करना पड़ा मुझे उसकी बेचैनियों को भी सुकून मिल जाये रात भर उसकी आँखों में ठहरना पड़ा मुझे इश्क़ में सनम मेरा कहीं रुसवा न हो जाये दरमिया इश्क़ के फासला रखना पड़ा मुझे किनारे पर बैठ कर कुछ आता नहीं नज़र डूब कर सागर के गौहर देखना पड़ा मुझे फूलों से निकलकर जो आ जाये "मधु" करिश्मा ये कुदरत का कहना पड़ा मुझे परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : ...
सार-सार को जान लें
कविता

सार-सार को जान लें

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* गायन शोध नवाचार सकल नाम संज्ञा कहो, बदले सर्वनाम। करत काम किरिया लखो, कहत है कवि मसान।। व्यक्ति भाव जाति अरू, समूह द्रव्य को ज्ञान। पांच भेद संज्ञा कहो, कहत है कवि मसान।। निश्चय व अनिश्चय कहो, प्रश्न पुरुष निज जान। सर्वनाम के भेद छः, अंतिम संबंध मान।। कब कहां कैसे किसका, कौन कौनसा ज्ञान? क्या क्यों को भी जानिए, प्रश्नों की पहिचान?? कर्ता कर्म करण अरू, सम सम्बोधन जान। अपादान अधिकरण अरु, संबंध कारक मान।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से ह...
सन्नाटा
कविता

सन्नाटा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक सन्नाटा सा छाने लगा है अंदर ही अंदर। बहुत कुछ मेरा अंतर्मन कहना चाहता है, मगर पता नहीं क्यों? लपक कर बैठ जाता है ये सन्नाटा जुबान पर। बहुत सी बहती हुई वेदनाए ह्रदय तल से बाहर निकलना चाहती हैं, मगर पता नहीं क्यों? ये सन्नाटा इन वेदनाओं को अपनी सर्द हवाओं से अंदर ही अंदर क्यों जमा देता है? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...
पिंजरे के परिंदे
कविता

पिंजरे के परिंदे

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आकाश में उड़ते परिंदे को तुम किस गुनाह की सजा देते हो..! अपने खुशियों के खातिर तुम पिंजरे में कैद कर लेते हो..!! अपनों से उन्हें तुम करके दूर पिंजरे में कैद क्यों करते हो..! उनका भी अपना एक जीवन है उन्हें जीने क्यों नहीं देते हो..!! इंसान हो तुम, इंसान ही रहो दानव सा काम क्यों करते हो..! उड़ने की उन्हें भी आजादी दो हक उनका तुम क्यों छीनते हो..!! बंद पिंजरे में तड़पते परिंदे, तरस नहीं तुम खाते हो..! आकाश में उड़ते परिंदे को तुम किस गुनाह की सजा देते हो..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आओ मिलकर तिरंगा लहरायें, गणतंत्र दिवस की शान बढायें | तिरंगे की महत्ता को समझाकर, आओ मिलकर तिरंगा लहरायें || सुभाषचंद्र ने यह पहले लहराया, आओ मिलकर...... भारत वासियों को हम समझायें | संविधान हमारा लागू हुआ था, गणतंत्र दिवस पर बतलायें || आओ मिलकर... असंख्य बलिदानों का परिणाम, समाया है तिरंगे में बतलायें | चरखे का ही नहीं परिणाम, भारत को हम ये समझायें || आओ मिलकर...... सुखदेव-भगतसिंह-राजगुरु-राजगुरु के, महाबलिदान कभी न भुलायें | बलिदान चन्द्र शेखर आजाद का, राष्ट्र ये कभी भी न भुलाये || आओ मिलकर...... स्वतंत्रता मिली असंख्य शहीदों के, बलिदानों से ये पहले समझायें | तभी लिख पाये संविधान हम, यात्रा गणतंत्र की समझायें || आओ मिलकर..... तिरंगे की मर्यादा को नवभारत, सदा सत्यनिष्ठा से समझाये | इससे छल ...
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी का नाम वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकार्ड्स में दर्ज
साहित्य समाचार

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी का नाम वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकार्ड्स में दर्ज

उदयपुर के डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी ने सबसे अधिक अकादमिक प्रमाणपत्र अर्जित कर वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया डॉ. छतलानी ने विद्यापीठ को गर्वित किया:                प्रो. सारंगदेवोत उदयपुर २६ जनवरी। किसी बेहतरीन कार्य को करने के लिए यदि ठान लिया जाए तो हर समय व परिस्थिति अनुकूल हो जाती हैं। यह संभव कर दिखाया है उदयपुर, राजस्थान के डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी ने, जिन्होंने लॉकडाउन के समय का सदुपयोग करते हुए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तरीय संगठनों यथा माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, सिस्को, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि द्वारा विविध अकादमिक विषयों व कार्यकर्मों के ऑनलाइन माध्यम से एक हज़ार से अधिक प्रमाणपत्र अर्जित किए। अंतरराष्ट्रीय संगठन वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड्स, जो प्रमाणीकरण के साथ दुनिया भर के असाधारण रिकॉर्ड्स को सूचीबद्ध और सत्यापित करता है, द्वारा छतलानी को शैक्षणिक प्रमा...
मुझको दुनिया में आने दो
कविता

मुझको दुनिया में आने दो

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** मुझको दुनिया में आने दो। बेटी का हक बस पाने दो।। सज-धज के शाला जाने दो। पढ़-लिख के आगे आने दो।। अपनी प्रतिभा बढवाने दो। ऊंचा पद मुझको पाने दो।। पैरों पे होय खड़ी जाने दो। कमाऊंगी कुछ कमाने दो।। जग में मुझको चर्चाने दो। रुतबा अरु रौब जमाने दो।। स्वतंत्र बनूं उड़ जाने दो। चिड़िया सा गाना गाने दो।। खुशियों के संग छाने दो। पर्व-उत्सव भी मनाने दो।। सबके मन को बहलाने दो। दादी को लाड़ लड़ाने दो।। सबका मुझे प्यार पाने दो। अपनी भी बात बताने दो।। मुझे दांव-पेश लड़ाने दो। अपना हुनर दिखलाने दो।। मयूरी सा नृत्य दिखाने दो। कोयल सा राग सुनाने दो।। मुझको भी स्वप्न सजाने दो। हंसने और मुस्कुराने दो।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवा...
जन्मदिन से पुण्यतिथि तक
कविता

जन्मदिन से पुण्यतिथि तक

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी जब .... जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। वो कितना टूटी है पल-पल। अपने टूटे टुकड़ों को, जोड़कर पूरा होने का, नाटक बखूबी निभाती है। जिंदगी जब जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। कुछ नहीं ....बदलता। लेकिन बहुत कुछ बदल जाता है। चेहरों पर से चेहरे उतर जाते हैं। आसपास की भीड़ के, रास्ते बदल जाते हैं। जिंदगी जब जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। बहुत कुछ कहने को होता है। बहुत कुछ कहने को होता है। लेकिन शब्दों में एक, अंदर ......तक। एक घुटनभर जाती है। कैसे बदल जाती है जिंदगी। उस शक्स की, अहमियत पल-पल याद आती है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
कलमकार की कलम
कविता

कलमकार की कलम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है जैसी सोच हृदय मे रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। बहुतों को देखा बहुधा बिना दवा के भी काम चलाते तन को बीमारी से बचाने खुद अपनी क्षमता बढ़वाते असाध्य कष्ट हो जाने पर चिकित्सक को बतलाता है पांसा कभी सीधा होता और कभी उल्टा पड़ जाता है जैसी सोच हृदय में रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है। जीवन में देखा गधों को बाप किस तरह बनाया करते काम निकल जाने पर कितनी बुरी तरह हटाया करते बस यूं समझ लेना प्यासा ही तो कुएं के पास जाता है कई बार कुआं भी तो निज सड़ांध छिपा रख जाता है जैसी सोच हृदय में रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है। पानी में सभी उतरने वाले कभी तैराक हुआ नहीं करते पानी की दलदल गहराई पथरीला ज्ञान भी नहीं रखते ...
सवाल का उत्तर
कविता

सवाल का उत्तर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पापा मुझे भी तो बताओ तनिक सोच समझकर समझाओ क्या मैं जन्म से ही पराई हूँ? आपकी बेटी हूँ, माँ की जाई हूँ भैया की बहन भी हूँ दादा-दादी की आँँखों का तारा हूँ। मेरे जन्म पर तो आप बहुत खुश थे खूब उछल रहे थे, पाला पोसा बड़ा किया, कभी आंख में आँँसू न आने दिया हर ख्वाहिश को मान दिया। अब में बड़ी हो गई हूँ दादी कहती है ब्याहने योग्य हो गयी हूँ क्या इसीलिए अभी से पराई हो गयी हूँ। भैया भी तो भाभी को ब्याहकर लाये हैं, भाभी दूसरे घर से आई है, फिर भी घर वाली हो गई यह कैसा रिवाज है समाज का जहाँ जन्मी, खेली कूदी बड़ी हुई उसी आँगन में पराई हो रही हूँ। माना कि भैया ब्याहकर कही गया नहीं बस इतने भर से कौन सा पहाड़ आखिर फट गया। भैय्या जैसा मेरा भी तो आप सबसे रिश्ता है, मेरा हक भैय्या से क्यूँ कम ...
पताका मेरी शान है
कविता

पताका मेरी शान है

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** पताका देश की शान है, भारत की पहचान है, लहर-लहर लहराये ये, हम सब का अरमान है। बढ़ाये ताकत वीर की, वसुमती की आन है, पहुँचा है समुन्नति पर, ये छूता आसमान है। भिन्न-भिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय, भाषा का सम्मान है, मसीहा है, खुदा है और यही तो भगवान है। इसमें हमारी धड़कने, ये देश का अभिमान है, राष्ट्रगान का ज्ञान है, ध्यान का संधान है। मातृभूमि में शांति लाने को, होता लहूलुहान है, नील अंबर में लहराने का, यही इसे वरदान है। यहीं सवेरा है, साँझ भी, इसके तले जहान है, ये तीन रंग माँ शारदा के, मान का परवान है। देश के इस पताका की, आजादी ही मुस्कान है, पताका प्यारा, माटी प्यारी, प्यारा हिंदुस्तान है। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
गणतंत्र का झंडा
कविता

गणतंत्र का झंडा

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** आजादी के झंडे को हम, आत्मविश्वास से फहराएंगे, जीवन की उपलब्धियों को हम, देश के नाम कराएंगे, संविधान के अनुच्छेदों को, शब्द-शब्द हम देश के काम आएंगे, आजादी के लहू को हम, जीवन भर याद रखेंगे, 26 जनवरी को शपथ ग्रहण कर, सविधान की लाज बचायेंगे, आजादी के वीर सपूतों को हम, जिंदगी भर यादों में समेट कर रखेंगे, अंग्रेजों के काले कारनामे, कभी ना हम भूल पायेंगे, जीवन भर की लालसाएं, भारत माँ के चरणों में लौटाएंगे, माँ भारती को सोने की चिड़ियाँ, फिर से हम बनायेंगे, आतताइयों की बदसूरती से, सदा भारत माँ को बचाएंगे, लाल किले पर गणतंत्र का, झंडा हम फहराएंगे, अपने आजाद भारत का हम, संविधान कभी ना भूल पायेंगे, विश्व का सबसे बड़ा लिखित सविधान का, गौरव हम हमेशा बढ़ाएंगे, ४४८ अनुच्छेद,१२ अनुसुचियां, 25 भाग को और,...
हां, हूं भारत वीर मैं
गीत

हां, हूं भारत वीर मैं

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** नभ मैं, हूं धरा मैं हिम मैं, हूं सूर्य मैं आग मैं, हूं नीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं सिंधु मैं, हूं ताल मैं आदि मैं, हूं अन्त मैं खीर मैं, हूं चीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं कण मैं, हूं ब्रह्मांड मैं ज्ञान मैं, हूं विज्ञान मैं भाल मैं, हूं तीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं अस्त्र मैं, हूं शस्त्र मैं ज्ञात मैं, हूं अज्ञात मैं वैद्य मैं, हूं पीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं शीत मैं, हूं ग्रीष्म मैं बसंत मैं, हूं बरसात मैं वाचाल मैं, हूं गंभीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं तम मैं, हूं प्रकाश मैं दिन मैं, हूं रात मैं अधीर मैं, हूं धीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं प्रेम मैं, हूं क्रोध मैं राग मैं, हूं द्वेष मैं रांझा मैं, हूं हीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं अल्प मैं, हूं विकराल मैं कठोर मैं, हूं नरम मैं मृत...
तुमसे उल्फ़त जताने का गम है
गीत

तुमसे उल्फ़त जताने का गम है

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे तुमसे उल्फ़त जताने का गम है तुम्हीं पे ये दिल रीझ जाने का गम है तेरा नाम ले-ले सताया जमाना तुमने भी अक्सर बनाया बहाना चाहत पे भी शक किया तुमने मेरी मेरे प्यार को आजमाने का गम है खुशी तो मिली पर मिला गम जियादा नहीं भांप पाए तुम्हारा इरादा समर्पण की सारी हदें पार भी की तुम्हीं पर मोहब्बत लुटाने का गम है तुम्हें हमने अपना मुकद्दर बनाया यादों से तेरी ही दामन सजाया भंवर में सफीना फंसी है हमारी तुम्हें अपना साहिल बनाने का गम है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य...