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गज़ल, तरानों से …
कविता

गज़ल, तरानों से …

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** १. गज़ल, तरानों से जिंदगी नहीं संभलती यारो, फिर भी ये मरहम है, दर्द ए दिल को ठीक करने के लिए। दुनिया को जीतकर कितने सिकंदर बन गए, सिकंदर तो वो हैं जो हार गए अपनों के लिए। २. गजलें, गीत, नज़्में बहुत रूहानी होते हैं, किसी का दर्द कहते हैं, किसी की कहानी होते हैं। जो लोग झोपड़ी में रहकर, महलों को मोहब्बत का पैग़ाम सुना दें, वो लोग ही अक्सर दिलों से खानदानी होते हैं। ३. जिंदगी को कभी हंसकर कभी रोकर गुजारना पड़ता है। हर जीत जरूरी नहीं जीवन के लिए, कभी अपनों के लिए हारना पड़ता है। जीवन के हार जीत दो पहलू हैं, जिसे स्वीकारना पड़ता है। मन के मानने से हर चीज़ हासिल नहीं होती, क्यूंकि कभी-कभी मन को भी मारना पड़ता है। ४. दुनिया को जीतकर सिकंदर तो बन जाओगे, लेकिन अपनों को कैसे जीत पाओगे। अपन...
अटल राष्ट्ररत्न
कविता

अटल राष्ट्ररत्न

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** चलाकर गठबंधन का राज अटल, युग गठबंधन का दे गए अटल | राष्ट्रधर्म राष्ट्र को शिखा गए अटल, पाठ राष्ट्र नीति का शिखा गए अटल || नाम अटल उनके काम अटल, कृत कर्मों के सुपरिणाम अटल | अविरल रचते थे काव्य अटल, राष्ट्रभाषा के सम्मान अटल || दे गये स्वर्ण चतुर्भुज काम अटल, "नदी जोड़ो योजना" के परिणाम अटल | रेल मेट्रो राष्ट्र को दे गए अटल, सड़कों पर पुल भी परिणाम अटल || शिखर कवि राजनीति के अटल, इक्यावन कविताएं दे गए अटल | सक्रिय सांसद अत्यंत हमारे अटल, राष्ट्र दिशा प्रदान कर गए अटल || सांसद चार दशक से अधिक अटल, दीप निष्ठा का जगा गए अटल | गरिमा संसदीय में थे दक्ष अटल, मर्यादा सबको सिखा गए अटल || भारत रत्न और राजनीति रत्न, अटल तो मूर्धन्य कवि महान | राष्ट्र के विकास रत्न अटल, संस्कृत-मूर्धन्य, हिन्दी कवि महान || परिचय :- ...
महावीर प्रसाद द्विवेदी
कविता

महावीर प्रसाद द्विवेदी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की पुण्य तिथि पर विशेष दौलतपुर ग्राम रायबरेली जनपद मे पाँच मई अठारह सौ चौसठ में पं. रामसहाय द्विवेदी के पुत्र रुप में महाबीर प्रसाद द्विवेदी जन्मे थे। दीनहीन थी घर की दशा समुचित शिक्षा नहीं हो सकी, संस्कृत पढ़ते रहे घर रहकर फिर रायबरेली, उन्नाव, फतेहपुर में आखिर पढ़ने जा पाये, घर की हालत के कारण पढा़ई से फिर दूर हो गये। गये पढ़ाई छोड़ बंबई बाइस रुपये मासिक पर रेलवे जीआई पी में नौकरी किए। मेहनत ईमानदारी से अपने डेढ़ सौ रु. मासिक वेतन संग हेड क्लर्क पद पर पदोन्नति पा गये। अंग्रेजी मराठी संस्कृत का नौकरी संग भरपूर ज्ञान प्राप्त किया, उर्दू और गुजराती का भी जमकर खूब अभ्यास किया। बंबई से झांसी स्थानांतरण हो गया अधिकारी से विवाद के कारण स्वाभिमान की खातिर महाबी...
अकेले हम
कविता

अकेले हम

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नहीं समझ पाया था जन्मदात्री माँ का दर्द कर्ज में डूबे पिता प्रति एक पुत्र का अहम फर्ज़ सोचता था बस यही जन्म दिया है इन्होंने कर्तव्य तो निभाना ही था कौनसा एहसान किया है जब मैं स्वयं पिता बना और पत्नी माँ बनी बदल गई हमारी दिनचर्या सुबह से रात तक की तुम्हें कोई दर्द होने पर रातभर तीमारदारी करना और जब तुम सोते थे जल्दी से काम निपटाना हम दोनों बारी बारी से लेने लगे थे छुट्टियाँ जब तुम्हारे दाँत निकले या ठुमक के चलना सीखे तुम्हारे स्कूल की मांगें जब भारी होने लगी हमारे शौकों की फ़ेहरिस्त छोटी होने लगी थी तुम्हारी पढ़ाई व नौकरी और ब्याह की रस्मों में खाली कर दिए सब खाते हमारा अरमान जो थे तुम अचानक चल दिए तुम अपनी ऊँची उड़ान पर रह गए दोनों वैसे ही जैसे थे कभी अकेले हम परिचय : सरला मेहता निवासी : इं...
माँ
कविता

माँ

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** घूम लो चाहे सारी दुनिया सुकून तो भी नही मिलेगा सर रख लो दो पल गोद मे माँ के आराम मिलेगा।। हर ईलाज की यहाँ दवा है जब करे ना कोई गोली असर आना माँ की गोद मे आराम मिलेगा।। जब दिखे ना कोई रास्ता उलझन में रहे मन दे ना कोई रिश्ता साथ आना माँ की गोद मे आराम मिलेगा।। छप्पन भोग खाके भी बोध नही होगा बासी रोटी मिल जाये हाथ से माँ के तो पेट मे आराम मिलेगा।। थक हार कर आया रखा जो कदम चौखट पर देखते ही माँ को सच कहता हूँ दोस्तो थकान से आराम मिलेगा।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स...
तुहिन कणों से
दोहा

तुहिन कणों से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तुहिन कणों से ज्यों भरा, प्रत्यूषा ने अंक। कांतियुक्त आदित्य की, काया हुई मयंक।। ठिठुरे हुए निसर्ग को, काया के अनुरूप। खोल पिटारी बाँटता, अर्क मखमली धूप।। सिंदूरी सा ज्यों हुआ,प्राची का मुख म्लान। गीत प्रभाती गा विहग, भरने लगे उड़ान।। गाये सुख की छाँव ने, गीत मंगलाचार। मिला धूप के पाँव को, छालों का संसार।। द्वेष जलाकर प्रीति का,उपजाते सद्भाव। बने सहारा शीत में, आदिम हुए अलाव।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
पत्नी कहती है
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पत्नी कहती है

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) अगर आपकी पत्नी कल यह सवाल करे तो परेशान न हों। क्योंकि वह कुछ भी गलत नहीं मांगती है। विचारोत्तेजक शोकाकुल उनका एक ही सवाल.... मेरा बदन हल्दी तेरे नाम की। मेरा हाथ मेहंदी तेरे नाम की। मेरी मांग सिंदूर तुम्हारे नाम का। मेरा माथा बिंदिया तुम्हारे नाम की। मेरी नाक नथनी तुम्हारे नाम की। मेरा गला मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का। मेरी कलाई (चूड़ियाँ) चूड़ा तुम्हारे नाम का। मेरे पैर पायल, बिछिया सब तुम्हारे नाम की। और हाँ बड़ों का नमन मै करू, और ...... अखंड सौभाग्यवती भव केवल आपको आशीर्वाद। वटपूर्णिमा का मेरा व्रत, आपको जीवन का उपहार। मुझे घर संभालना है, दरवाजे पर लगी नेम प्लेट आपकी है। मेरा नाम है लेकिन उससे आगे, पहचान आपकी है। बस इतना ही ... मेरा पेट मेरा खून मेरा दूध और बच्चे ? आपके...
दर्द सहकर भी
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दर्द सहकर भी

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द सहकर भी विजयपथ की तरफ बढ़ना पड़ेगा मंजिलें हैं पास फिर भी दो कदम चलना पड़ेगा हर नये संकल्प का आगाज़ साहस से करें हम तोड़कर इक दायरा अब सीढियां चढ़ना पडेगा चांद पर भी दाग़ का धब्बा दिखाई दे रहा हर तरफ आकाश ही उड़ता दिखाई दे रहा मन की ये ऊंची उड़ानें ब्योम तक पहुंचेगी कब तक इस समन्दर में ये मन घुलता दिखाई दे रहा कब तलक इन आंधियों के बीच में रहना पड़ेगा दर्द सहकर भी ...... प्यास की चिंगारियों के बीच कैसे नींद आये इस पिपासा को बुझाने का कोई रस्ता बताये धैर्य भी है चैन भी है फिर भी कुछ खलती कमी है कोई मेरे पास आकर प्रेम की लोरी सुनाये बिखरते सपनों को सिलकर चादरें बुनना पड़ेगा दर्द सहकर भी ...... जिस खुशी के वास्ते हमनें सभी संकल्प त्यागा जिसकी यादों में विलय होता रहा दिन-रात जागा उस शिखर के...
प्यार भरी चांदनी
कविता

प्यार भरी चांदनी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार भरी चांदनी को किसी की नजर लग गई तुम किसी की हो गई मैं कहीं खो गई हो गई शाम भी धुंधली धुंधली धुंध भरी सांझ ने समेट ली हर किरण रवि की बादलों की ओट में चांद भी छुप गया आ गई समक्ष आंखों के रात की छाया एक क्षण के लिए झपक गई पलक मेरी सुगंध भरी समीर मुझको सहला गई परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
शीत का गीत
कविता

शीत का गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सड़क किनारे बेघर निर्धन, सोते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं। नहीं पहनते ऊनी कपड़े, स्वेटर मफलर कोट नहीं हैं। किसी गर्म जैकेट जर्सी की, तन पर उनके ओट नहीं हैं। जिनके बच्चे ठिठुर-ठिठुर कर, रोते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं। नहीं भवन या हीटर कोई, जलते हैं बस कुछ अंगारे। किसी तरह उष्मा देते हैं, अपनी काया को बेचारे। बिना भित्ति की कुटिया में जो, होते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं। ठंड बहुत विचलित करती है, करवट अपनी नित्य बदलते। किसी समय लगती है झपकी, रजनी के कुछ ढलते-ढलते। अधिक समय तक अपनी निद्रा, खोते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं...
धन्य हमारा देश
कविता

धन्य हमारा देश

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** धन्य हमारा देश जहां बहती है गंगा, धन्य हमारे लोग रहे मन जिनका चंगा, धन्य यहाँ की नारी जिनमें बसतिं सीता, धन्य यहाँ के पुरुष राम जिनके प्रणेता, धन्य यहाँ की हवा सुरभि से भरी हुई है, धन्य यहाँ की खेत हमेशा हरी भरी है, धन्य हमारे गीत संगीत हमारे वादन, धन्य हमारे राग हमारे पग के नर्तन, धन्य हमारी मीठी भाषा और बोलियाँ, धन्य हमारे बाग हैं जिनमें कुसुम औ कलियाँ, धन्य हमारे परवत सागर नदियाँ झीले, धन्य हमारे पशु पक्षी जन जाति भीलें, धन्य हमारे ग्रंथ ज्ञान के अतुल कलश हैं, धन्य हमारे अतीत स्वर्णाक्षर सदृश हैं, धन्य हमारे देव देवियाँ रक्षा करते, हम नतमस्तक हो कर उनको नमन हैं करते, अतुलनीय भारत है जग में सबसे न्यारा, जान लुटा देते हैँ जिसने भी ललकरा। परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी ...
शिशिर का कोहरा
कविता

शिशिर का कोहरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ठिठुराती ठहरी ठंड में ठिठुरते हुए चलते मानव कोसों तक फैले कोहरे के माहौल में मानव लगता है दानव आती-जाती लंबा कृतियां अपने आप को अंगों को छुपाती सी लगती।। शिशिर का कोहरा कालिका के क्रोध का उफान पर लगता धुंध धुंध आसमा सुंदर धरती हरियाली की चादर ओढ़े आसमा में सूरज को तकती।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : ...
कैसा हिंदुस्तान चाहिए …
कविता

कैसा हिंदुस्तान चाहिए …

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कैसा हिंदुस्तान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं घर कैसा मेहमान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं जिसकी गलियों में नित गूंजे वेद मंत्र की पावन धुन जिसके हर घर पर अंकित हो स्वास्तिक और शुभ लाभ सगुन जिसकी नदियों के कलरव में राम कृष्ण शिव गान रहे जिसकी मस्तक पर इस जग में विश्व गुरु पहचान रहे बस ऐसी पहचान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं कैसा.... इस धरती का कण-कण ही भारत मां का यशगान करे चाहे किसी धर्म को माने पर सबका सम्मान करे आपस में सद्भाव रहे मानवता का अनुराग रहे स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठकर सब में सच्चा भाव रहे बस ऐसा इंसान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं कैसा.... राजनीति परिवारवाद निज स्वार्थ वाद से दूर रहे नेताओं में अपनी संस्कृति के प्रति सच्चा राग रहे सत्य सनातन के आदर्शों के प्रति सबकी निष्ठा हो हिंद देश हिंदी भाषा की...
लक्ष्य तो होंगे
आलेख

लक्ष्य तो होंगे

आस्था साहू अशोक नगर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्य तो होंगे यदि है तो मार्ग तो होंगे यदि मार्ग है तो बाधाएं तो आएगी और इसी पर निर्धारित हैं कि हम जीवन में सफल होंगे या असफल, यश के भागी होंगे या तिरस्कार के। मान लीजिये, आप को एक कार्य करना हैं आपको पर्वत पर चड़ना है, अब मार्ग की फिसलन आपको को कितनी बार गिराएगी। चट्टानें आपको कई बार चोट देंगी, ऐसे में क्या करेंगे। सामान्य व्यक्ति चुनता हैं- प्रतिकार उस पर्वत को ही नष्ट कर देने का विचार करता है उसकी नींव को ही खोद देने का विचार करता है, किन्तु पर्वत को तो कोई नष्ट ना कर पाए तो, असफलता की साथ-साथ अपयश का भागी बन जाता है। दूसरा मार्ग है- परिवर्तन यदि आप उस पर्वत को खोदने के स्थान पर उस पर सीढियाँ बना दे, तो आप भी पर्वत पर चढ़ सकते हैं कोई और भी उस पर्वत पर चड सकता है आने वाली पीढी भी उस पर्वत पर चढ़ सकती हैं और...
बेटा-बेटी दोनों समान
कविता

बेटा-बेटी दोनों समान

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** खुदा ने तो इंसान बनाया इसमें न तुम मतभेद करो बेटा बेटी है दोनों समान इसमें न तुम भेद करो जीस राह पे रख सकते हैं बेटा अपनी पहली कदम उसी राह पर रख सकते हैं बेटियां भी दमदार कदम बेटियां है संतान खुदा की कमजोर क्यों समझते हो बेटों को तुम आजादी देते बेटियों का हक़ छिनते हो आये ना कुछ काम बेटियां यह सोच अब बदलना है मैदान ए जंग में बेटियां भी बेटों के संग अब लडता है संघर्ष के हर पथ पर देखो बेटों ने कई जख्म खाएं हैं इतिहास गवाह देता है देखो बेटियां भी तलवार उठाए है परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
गुरु ही भगवान है
गीत

गुरु ही भगवान है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तर्ज : ये दिल तुम बिन कही.... गुरु बिना ज्ञान कभी मिलता नहीं हम क्या। गुरु चरणो को बारंबर हम अब नमन करे। गुरु बिना...........।। जो श्रध्दा और भक्ति से पूजते है गुरुवर को। उन श्रावक के जीवन में कभी बाधायें नहीं आती। गुरु की छाया उन पर सदा ही बनी रहती है। इसीलिए वो श्रावक गण सदा ही खुश रहते है।। गुरु बिना ज्ञान कभी मिलता नहीं हम क्या। गुरु चरणो को बारंबर हम अब नमन करे। गुरु बिना...........।। गुरुओं के बताये मार्ग पर जो भी श्रावक चलता है। आत्म कल्याण का मार्ग उन्हीं लोगों को मिलता है। जीवन जीने का आनंद भी उन सब का अलग होता है। इसलिए तो गुरुओं की शरण हम सबको चाहिए।। गुरु बिना ज्ञान कभी मिलता नहीं हम क्या। गुरु चरणो को बारंबर हम अब नमन करे। गुरु बिना...........।। गुरु दर्शन में ही अब प्रभु दर्शन दिख...
दोस्ती की मिसाल
लघुकथा

दोस्ती की मिसाल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** दिनेश के पिता राजीव पिछले कई दिनों से बेटे को कुछ उदास देख रहे थे। आखिर आज पूछ ही लिया। क्या बात है बेटा, तबियत ठीक नहीं है क्या? नहीं पापा। आपको बताया था कि पंकज के एक्सीडेंट के कारण उसकी बहन सोनी की शादी रुक गई। मगर बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं? यही तो मैं सोच नहीं पा रहा हूँ पापा! सोनी के सामने जाता हूँ तो जैसी उसकी राखियां उलाहना देती हैं कि तू कैसा भाई है, तेरा दोस्त बिस्तर में है और तू......। दिनेश रो पड़ा। देखो बेटा। बात गंभीर है। अच्छा होता तुम मुझे ये बात और पहले बताते तो.... मगर अब तुम तीनों को परेशान होने की जरुरत नहीं है। सोनी की शादी मैं कराऊंगा, शादी उसी लगन में ही होगी। तुम मुझे पंकज के घर ले चलो। आज ही हम सोनी की होने वाली ससुराल चलेंगे और बात करेंगे। साथ उन दोनों को यहीं ले आयेंगे,...
माया छोड़ो मानवता जोड़ो
कविता

माया छोड़ो मानवता जोड़ो

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** देखे माया जब जग, भटके उसका पग। द्वेष दर्प अति झूमे होता मानवता पतन। होते ज्ञानी कुछ लोग, त्यागें यह माया भोग। चले मानवता पंथ इंसान को करे नमन। कुछ नर लोभी होते, सत्य धर्म सब खोते। पाने को अकूत धन करते कितने जतन। कहे ओम मानो बात, छोड़ो भेद धर्म जात। लोभ दर्प द्वेष त्यागो प्रेम से रहिए वतन।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्य...
मन के मीत
कविता

मन के मीत

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे मन के मीत मेरे मन की थी कल्पना कोई भोली-भाली अल्पना आती है मुझे बार-बार सपना बाहों में भरकर उसको अपना बना लेते हो मेरे मन के मीत मुझे तुम बहुत याद आते हो सपनों में क्यूँ सताया करते हो रोज-रोज मिलने का वादा करते हो अपना वादा रोज तोड़कर मुझे रुलाते हो मेरे मन के मीत जब तुमसे मेरा नेह हुआ है मन मेरे वश में नहीं तेरा हो गया है तुम बिन मेरी कोई खुशियां नहीं है याद आते ही मेरे आंखों में भर जाते हो मेरे मन के मीत तुम मेरे जीवन की संगिनी हो हे प्रिय मेरे नैनों में तुम समाए हो इसलिये बारम्बार मेरी नींद उड़ाते हो मन मे बसे मनमीत तुम बहुत याद आते हो परिचय :-  राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' निवासी : बागबाहरा (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बागबाहर...
रस-श्रृंगार
कविता

रस-श्रृंगार

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मदमस्त नयन के प्याले से, छलकाओ प्रेम हृदयवन में। कुंदन सम ज्योत्स्ना का भी, आलिंगन कर लो मधुबन में।। हिम स्वम् धराशायी होवे, अभिमान पूस का हुआ जिसे। ठिठुरन सलज्ज हो स्वीकारे कामिनी ने ऐंसा छुआ मुझे।। ललिता अधरों की दिखलाओ, शीतल ऋतु धराशायी होवे। मन्मथ के बाणों से छलनी, हे! स्वयं सुलोचन बलखाओ।। हो सप्तप्रभा सी नूतन तुमपर, स्वेत रंग यूँ रहा झलक। इठलाती दरिया को ओढ़े, हिम चादर देखूँ ज्यों अपलक।। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), पदस्थ - पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश शिक्षा - समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर सम्मान - जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मा...
नमन योद्धा
कविता

नमन योद्धा

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मातृ भूमि के वीर पुत्र! आप के सम्मान में उठे हुए मस्तक प्रणाम करते हैं गर्व से तनी हुई छाती और अवरुद्ध कंठ से भी आप के गुणगान करते हैं। आप का जाना साधारण नहीं था साजिशों की बू आती है गद्दारों के मन में पनपते रंजिशों के भास आती है। योद्धा घर पर नहीं पर्यण करते वीर गति को पाते हैं दुश्मनों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु अकेले ही लड़ते हैं। नमन वीर सिपाही ! तुम्हे नमन! भारत मां महान बनाने वाले आप को नमन। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
बाबा गुरु घासीदास
कुण्डलियाँ

बाबा गुरु घासीदास

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बाबा घासीदास हैं, दया धरम के मूल । आए हैं संसार में, सबके हरने शूल ।। सबके हरने शूल, ज्ञान का दीप जलाए । सत्य मार्ग पर आज, हमे चलना सिखलाए ।। कहे *राम*कर जोर ,बना लें हिय को ढ़ाबा । चलें सभी उस ओर ,दिखाए पथ जो बाबा ।। ज्ञानी हैं संसार में, सबमें उनका नाम । आए इस कलिकाल में, करने सुंदर काम ।। करने सुंदर काम, सत्य का मार्ग दिखाया । दिया सभी को ज्ञान, प्रेम का फूल खिलाया ।। कहे *राम*मतिमंद ,शुद्ध है इनकी वाणी । बाबा घासीदास, परम हैं यह तो ज्ञानी ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
क्षणिक अंधेरा
कविता

क्षणिक अंधेरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अंधेरों से डर लगता है उजाले कोसों दूर है कदम दर कदम बढ़ते हैं मगर मंजिल अभी दूर है गुफाओं के अंधेरे कंदराओं के अंधेरे अतीत के महलों के अंधेरे हर कदम पर अंधेरे हैं घेरे चलती हूं इसी आशा में कभी तो मंजिल मिलेगी उजाले की उम्मीद में सूरज की रोशनी मिलेगी छट जाएंगे जीवन से अंधेरे फिर नई सुबह होगी कहता है दिल मेरा मत डर इन अंधेरों से क्षण भर में मिट जावेगे अपनी रख बुलंद हौसले परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
तुम्हारी बातों में
गीतिका

तुम्हारी बातों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मधुरिम सी मनुहार, तुम्हारी बातों में। है अनुपम शृंगार, तुम्हारी बातों में।।१ शब्द-शब्द है स्रोत,अपरिमित ऊर्जा का, भरे सरस उद्गार, तुम्हारी बातों में।।२ संदर्भों के अर्थ, निकलते बहुतेरे, भावों का विस्तार, तुम्हारी बातों में।।३ खिलें हर्ष के पुष्प, महकता कुसुमित मन, मधु ऋतु सरिस बहार, तुम्हारी बातों में।।४ घायल हुए अनेक, समर में नैनों के, चले तीर-तलवार, तुम्हारी बातों में।।५ आशाओं के बाग, उजड़ते देखे जब, सुलगे स्वप्न हजार, तुम्हारी बातों में।।६ रहे बाँचते मौन, हृदय के पन्ने पर, खबरों का बाजार, तुम्हारी बातों में।।७ 'जीवन' के अनुबंध, हुए जिसके कारण, मिला न वह सुख सार, तुम्हारी बातों में।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...
हम पंछी कहलाते हैं
कविता

हम पंछी कहलाते हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदू-मुस्लिम नहीं जानते, खुद को बस पंछी जानें। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा को, बस अपना ही घर मानें। मंदिर के पीपल पर बैठे, कभी चर्च गुरुद्वारे पर। मस्जिद की चोटी पर बैठे, उड़ते एक इशारे पर। पावन मनसे कलरव करते, कभी ना बंटते कौमों में। मस्जिद द्वार तबर्रुख खाते, दाने चुगते होंमों में। मंदिर की चोटी से उड़कर, फिर मस्जिद पर जाते हैं। क्या अल्ला क्या ईश्वर मिलकर, मधुर तराने गाते हैं। जाति धर्म में नहीं उलझते, गीत बतन के गाते हैं। ओ मानव तुम बतलादो क्यों, हम पंछी कहलाते हैं।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...