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धन्य हमारा देश

विजय वर्धन
भागलपुर (बिहार)

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धन्य हमारा देश जहां बहती है गंगा,
धन्य हमारे लोग रहे मन जिनका चंगा,
धन्य यहाँ की नारी जिनमें बसतिं सीता,
धन्य यहाँ के पुरुष राम जिनके प्रणेता,
धन्य यहाँ की हवा सुरभि से भरी हुई है,
धन्य यहाँ की खेत हमेशा हरी भरी है,
धन्य हमारे गीत संगीत हमारे वादन,
धन्य हमारे राग हमारे पग के नर्तन,
धन्य हमारी मीठी भाषा और बोलियाँ,
धन्य हमारे बाग हैं जिनमें कुसुम औ कलियाँ,
धन्य हमारे परवत सागर नदियाँ झीले,
धन्य हमारे पशु पक्षी जन जाति भीलें,
धन्य हमारे ग्रंथ ज्ञान के अतुल कलश हैं,
धन्य हमारे अतीत स्वर्णाक्षर सदृश हैं,
धन्य हमारे देव देवियाँ रक्षा करते,
हम नतमस्तक हो कर उनको नमन हैं करते,
अतुलनीय भारत है जग में सबसे न्यारा,
जान लुटा देते हैँ जिसने भी ललकरा।

परिचय :-  विजय वर्धन
पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद
माता जी : स्व. सरोजिनी देवी
निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार)
शिक्षा : एम.एससी.बी.एड.
सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त
प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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