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मैं क्या हूँ …?
कविता

मैं क्या हूँ …?

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं क्या हूँ ? स्वयं का अहम हूँ, कौन हूँ? पानी का एक बुलबुला हूँ, फिर भी इठला रहा हूँ । क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अपने जीवन और अस्तित्व से भली भांति परिभाषित हूँ , किंतु अहम के आवरण से ढका हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अस्तित्व में आने के लिए सदैव कसमसाता हूँ, किंतु काल के गाल में कब समा जाऊं ! यह जानने के लिए, नियति को प्रतिपल मनाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। सहसा क्या देखता हूं ! काल के सम्मुख स्वयं को पाता हूँ संभलना चाहता हूँ, नादानियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, किंतु संभल ही नहीं पाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। फिर भी सौभाग्यशाली हूँ, अहम को छोड़कर पाप-पुण्य को त्याग कर, जीवन-चक्र को भूलकर, मुक्ति के आगोश में चला जाता हूँ। क्योंकि मैं अब "मैं" नहीं हूँ, पानी का बुलबुला हूँ। कर...
आवारा मन के..
गीतिका

आवारा मन के..

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** ढूँढे जिसको उधर गया होगा- वो तेरा गाँव, नगर गया होगा । झूँठ के आगे दुम हिलाता है- शायद अंदर से मर गया होगा । सफेद बादल यूँ नहीं बरसा इस मौसम से डर गया होगा । बेटी नदिया को विदा करके कोई पर्वत बिखर गया होगा । भूखे बच्चों के लिए तूफां में- वो समन्दर उतर गया होगा । भीड़ क्यों जुटी, वह बेचारा- नहीं समझा मगर गया होगा । मंजिल मिल जाएगी उसको- जो दिशा परखकर गया होगा । तड़पता, ये जो काँपता हृदय- आवारा मन के घर गया होगा । यूँ ही वह कत्ल नहीं कर देता भाई हद से गुजर गया होगा । बेटा पढ़ा लिया है एम ए तक- वह, अब तो संवर गया होगा । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" म...
विजयदशमी
कविता

विजयदशमी

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** हर साल की तरह इस साल भी रावण का पुतला जलाएंगे बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाएंगे। पर क्या इस तरह हम अपने भीतर के रावण को मार पाएंगे बुराइयों और समस्याओं को दफन कर पाएंगे। क्या मात्र रावण का पुतला जलाने से हमारी असुरी प्रवृत्तियां खत्म हो जाएंगी घटनाएं अपहरण हत्या बलात्कार की रुक जाएंगी? त्रेता युग के एक दशानन को तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने खत्म कर दिया था पर कलयुग में तो हमारे सामने समस्या रूपी दशाननों की फौज है क्या मात्र पुतला जलाकर हम इन दशाननों को खत्म कर पाएंगे या इनसे मुक्ति का कोई और रास्ता निकाल पाएंगे विजयदशमी पर्व की खुशियां मनाने से पहले हमें सोचना होगा रावण दहन का तरीका नया खोजना होगा। तभी देश की समृद्धि और विकास में बाधक समस्याओं और बुराइयों रूपी आधुनिक दशाननों को हम खत्म कर ...
दिल लुभाने के लिए
ग़ज़ल

दिल लुभाने के लिए

संगीता केसवानी **************** रंग कितने हैं जहाँ में दिल लुभाने के लिए। इश्क़ काफी है मगर किस्मत सजाने के लिए।। प्यार, उल्फ़त और चाहत ये ख़ुदा का नूर है। आसरा काफी है उसका प्यार पाने के लिए।। ज़िन्दगी बेबस खड़ी है उस हसीं दीदार को। मौत बैठी हँस रही है लौ बुझाने के लिए ।। ज़िन्दगी बेशक लकीरों का ही चाहे खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए।। ज़िन्दगी चाहे लकीरों का ही क्यों न खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए। झूठ के आगोश में है क़ैद अब तो हर बशर। सच तो छुपता फिर रहा अस्मत बचाने के लिए।। आज क्यों "अल्फ़ज़" मेरे स्याह होते जा रहे हैं। हर सफ़ा बेवस खड़ा मातम मनाने के लिए।। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
माँ दुर्गा स्तुति
भजन, स्तुति

माँ दुर्गा स्तुति

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** ॐ ह्रीं दुंदुर्गाये नमः, नमस्कार स्वीकार करो ! मुझे भँवर से पार करो माँ, तुम मेरा उद्धार करो । धूं धूं धूमावती ठ ठ, सारे सुख प्रदान करो, करो क्षमा माँ मेरी गलती, और मेरा कल्याण करो । सब की सब बाधाएँ हर लो, दूर क्लेश-विकार करो, रोग-मुक्त, सुख-शान्ति युक्त, माँ मेरा परिवार करो । मेरे अंधकार को हर लो, जय ज्योति माँ जय ज्वाला, मुझको इतनी श्रद्धा दे दो, हो जाऊं मैं मतवाला । मुझे गति दो श्रेष्ठ-मार्ग पर, आगे ही बढ़ता जाऊं, नहीं क्षति हो चाहे मैं, चट्टानों से टकरा जाऊं । लक्ष्मीवान, यशवान बनूँ मैं, ऐसे कर्म कराओ माँ, कोई न शत्रु रहे जगत में, ऐसा ज्ञान सिखाओ माँ । तुझमें और कर्म में मेरी, पूरी-पूरी निष्ठा हो माँ, कोई कटु शब्द ना बोले, हाँ ऐसी प्रतिष्ठा दो माँ । जय अम्बे, जगदम्बे माता, अच्छे मेरे विचार कर...
जय हो माता महागौरी
भजन, स्तुति

जय हो माता महागौरी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** नवरात्रि मां दुर्गा आठवीं शक्ति, तू महागौरी। कहलाती, मां तेरा रूप। अवर्णनीय, अतुलनीय तेरा। पूर्ण गौर वर्ण। मां तू शंख चंद्र अरू कुंद। पुष्प सम शश्वेत गौरवर्ण कांतिमान शोभित। मां तेरे सकल वस्त्र, आभूषण। शश्वेत धवल, दिव्य जगमग करें। मां तू बैल पीठ सवार विराजित। मां तू चतुर्भुजाधारी। ऊपर दाँया कर अभय मुद्रा। नीचे दाँया कर अरू मुद्रा संग अति शांत मुद्रा सोहै। मां ऊपर बाँये कर डमरु अरु। नीचे बाँये कर वर मुद्रा सोहै। मां तेरी शक्ति अमोघ फलदाई। तेरी आराधना उपासना। हम सब को पाप मुक्त करें। तेरा भक्त पावन अक्षय पुण्य। अधिकारी बने। तू जगत माता हम सबकी। मां तू महाकाली दुर्गा रूप। शरण आने वाले का तू। संकट मिटावै। शनिवार तेरी पूजन जो करै। उसके बिगड़े कारज सुधारै। जय हो माता महागौरी तेरी। ...
नरहरि छंद  “जय माँ दुर्गा”
छंद

नरहरि छंद “जय माँ दुर्गा”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** जय जग जननी जगदंबा, जय जया। नव दिन दरबार सजेगा, नित नया।। शुभ बेला नवरातों की, महकती। आ पहुँची मैया दर पर, चहकती।। झन-झन झालर झिलमिल झन, झनकती। चूड़ी माता की लगती, खनकती।। माँ सौलह श्रृंगारों से, सज गयी। घर-घर में शहनाई सी, बज गयी।। शुचि सकल सरस सुख सागर, सरसते। घृत, धूप, दीप, फल, मेवा, बरसते।। चहुँ ओर कृपा दुर्गा की, बढ़ रही। है शक्ति, भक्ति, श्रद्धा से, तर मही।। माता मन का तम सारा, तुम हरो। दुख से उबार जीवन में, सुख भरो।। मैं मूढ़ न समझी पूजा, विधि कभी। स्वीकार करो भावों को, तुम सभी।। नरहरि छंद विधान- नरहरि छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। १४, ५ मात्रा पर यति का विधान है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- १४ मात्रिक चरण की प्रथम दो मा...
स्वदेशी अपनाइए
कविता

स्वदेशी अपनाइए

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ******************** स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए देश की शान बढ़ाइए देश का मान बढ़ाइए राष्ट्र भक्ति जगाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ स्वाभिमान दिखा इए स्वदेशी अपनाइए आत्म सम्मान बचाइए स्वदेशी अपनाइए देश का मान बढ़ाइए स्वदेशी अपनाइए आत्म निर्भर बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ देश का विकाश होगा हर हाथ रोजगार होगा आर्थिक सुधार होगा देश खुशहाल होगा छोड़िए मेड इन फ्रांस इंग्लैड चाईना जापान मूँछें ऐंठीये और अपनाइये मेड इन हिंदुस्तान ॥ शान से तिरंगा फहराए दुनियाँ कॊ दिखलाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए शुद्ध स्वच्छ स्वस्थ रहिये स्वदेशी अपनाइए "लक्ष्य" यही बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ परिचय :- राजीव निर्दोष लक्ष्य जैन निवासी - धनबाद (झारखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
मेरे प्रभु
कविता

मेरे प्रभु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं स्वर्ग में गमन करूं या फिर नर्क कुंड की अग्नि में भस्म होता रहू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं सिंहासन पर बैठा हुआ राज्य करू या फिर रंक बन भिक्षा मांगू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं जीवन के प्रारंभिक दौर में खड़ा हूं या फिर मृत्य के अंतिम छोर में खड़ा हूं मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
इतनी शक्ति हमें देना
गीत, स्तुति

इतनी शक्ति हमें देना

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इतनी शक्ति हमें देना माता। मनका विश्वास कमजोर हो न। हम चले मानवता के पथ पर, भूलकर भी कोई भूल हो न। इतनी शक्ति.......….।। दूर अज्ञान के हो अंधेरे। तुम सभी को ज्ञान की रोशनी दो। हर बुराई से बचे रहे हम सब। जितनी भी हो खुशी सभी को दो। भेद भाव करे न किसी से, मन सभी का पवित्र तुम कर दो। हम चले मानवता के पथ पर, भूलकर भी कोई भूल न हो। इतनी शक्ति....….।। हम सोचे हमें क्या मिला है। हम सोचे करे क्या हम अर्पण। मनमें श्रध्दा के भाव रखे हम। पूरी निष्ठा से कार्य करे हम । दीन दुखीयों की सेवा करे हम। ऐसी भावना सबकी बना दो। हम चले मानवता के पथ पर, भूलकर भी कोई भूल हो न। इतनी शक्ति हमें.......। ज्योत मन में धर्म की जगा दो। सेवा भाव दिलों में बढ़ा दो । हिल मिलकर रहे हम सभी जन। नफरत ईर्ष्या के भाव मिटा दो। एक नये राष्ट्र नि...
संघर्ष लिखूं
कविता

संघर्ष लिखूं

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जीवन का उत्कर्ष लिखूं। टप-टप बहता जिसमें श्रम है, जीवन का वो दर्श लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पाऊं कांटों से छलनी। जहां बिखरी अमा की हो रजनी। जहां पग दो पग बढना दुष्कर, जहां दूर-दूर तक न हो पुष्कर।। जहां काल खड़ा हो अभिमुख प्रतिपल, उन पल पल का मैं वर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पथिक एक हो, पथ अनेक। जहां पूंजी, उमंग,धीरज, विवेक। जहां हस के टाले मुश्किल को, जहां आंखें प्यासी मंजिल को। जहां भूख प्यास या थक नहीं, उस जीवन का निष्कर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
बेटी और पिता
कविता

बेटी और पिता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** एक बेटी के लिए दुनिया उसका पिता होता है पिता के लिए बेटी उसकी पूरी कायनात होती है बेटी के लिए पिता हिम्मत और गर्व होता है पिता के लिए बेटी उसकी जिन्दगी की साँसे होती है बेटे से अधिक प्यार पिता अपने बेटी से करता है कोई गलती हो बेटी से झूठी डाँट दिखाते पिता बेटी जब कुछ मांगे तो पिता आसमां से तारे तोड़ लाये बेटी घर में जब होती है पिता को बड़ा गुरुर होता है लूट जाए धन दौलत चाहे सारा जहांन बिक जाए बेटी की आंखों में आंसू भी ना देख सके वो पिता है विदा होती है बेटी घर से पिता बड़ी पीड़ा होती पिता को आंख में आंसू छिपाकर बेटी को कमजोर नही होने देता पिता कहीं किसी कोने में फूट-फूट कर रोता है वो पिता है बेटी के विदा होने से टूट-टूटकर बिखरने लगता है पिता पिता का साया जब होता सिर पर बेटी नही घबराती कभी ...
अपनी बस्ती में…
कविता

अपनी बस्ती में…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** रहते थे जब अपनी बस्ती में हर पल गुजरता था मस्ती में दिल खोल कर हँसने का शोर आत्मविश्वास की थी मजबूत ड़ोर रोके से भी न रूकना,थकना सबको खुश करने से न चूकना पहचान थी चमकता सितारा तारीफें लुटाता ज़माना सारा सबका भरोसा ही था सच्ची सुलझन तो रिश्तों में न थी कोई भी उलझन डाँट में भी होती थी एक प्यारी परवाह तो भटकने पर भी मिल जाती एक राह बेवजह खुशियाँ मिलती थी सस्ती में रहते थे जब अपनी बस्ती में....... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
गंगा माँ और इजा
कविता, स्मृति

गंगा माँ और इजा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** अविरल प्रवाहित जगत जननी की, अद्भुत धारा और गति आज देखी। इंदिरा एकादशी के अवसर इजा , जनसमूह अद्भुत भीड़ आज देखी।। पितर मुक्ति प्रदायिनी एकादशी, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बतलाई। पितर मुक्ति और आत्म शांति की, इंदिरा एकादशी परम बतलाई।। कर नमन जगज्जननी गंगा को माँ, जन्म दात्री इजा चरणों का ध्यान किया। तेरी कृपा से ही तेरे निरमित्त इजा, पाँचवां गंगा स्नान किया।। किया था प्रथम जब हे इजा, तेरी अस्थि विसर्जन करवाने आया। किया था द्वितीय इजा हे जब, त्रिमासी केस समर्पित करने आया।। छमासी तृतीय स्नान इजा, वासंतिक अवसर पर तूने करवाया। बाज्यू की पुण्यतिथि पर इजू तूने, वर्षा का स्नान चतुर्थ करवाया।। इजा तेरे पुण्य प्रताप-प्रसाद की, फलश्रुति जो तूने पंचम भी करवाया। शब्द नहीं इजा तेरी कृपा के लिए, स्नान जो तूने पंचम भी करवा...
मैं पुस्तक हूँ
कविता

मैं पुस्तक हूँ

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** कैसे बताऊँ क्या समझाऊँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। शब्दो में मिला हूँ, और इसी से खिला हूँ। मैं कोई कागज नहीं, मै पुस्तक हूँ। वाक्यों से समाहित हूँ, पर वर्तनी में विभाजित हूँ। मैं कोई कागज नहीं, मैं पुस्तक हूँ। सब से परिचित हूँ, फिर भी चिंतित हूँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। भावों से स्मरण हूँ, शब्दों में व्याकरण हूँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। परिचय :- डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
कोरोना आया रे
गीत

कोरोना आया रे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=18I0m1BPmqk परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
शैलपुत्री
भजन, स्तुति

शैलपुत्री

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** नवरात्र प्रारंभ प्रथम। दिवस माता शैलपुत्री। भारत भू आगमन। हम सब करें पूजन वंदन। तुम माता शैलराज। हिमालय पुत्री शैलपुत्री। कहलाए तुम संग दुर्गा पूजा। प्रारंभ तुम्हारा वाहन वृषभ। जिस पर विराज तुम आई। दाहिने कर त्रिशूल अरु बाँए। कर कमल पुष्प सोहे। प्रथम दिवस उपासना में योगी। स्व मन मूलाधार चक्र स्थित कर। योग साधना आरंभ कर। माता शैलपुत्री सुमिरै। रोली, अक्षत लगा भोग लगा। मां शैलपुत्री मनावे। आशीर्वाद पावे। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
ख्वाब
कविता

ख्वाब

सत्यम पांडेय राजीव नगर (गुरुग्राम) ******************** जिंदगी से तन्हा हूँ, ख्वाबो में जिये जा रहा हूँ, कुछ राज़ दिल के किये बयाँ, कुछ करने जा रहा हूँ, दे ताकत मेरे ईश्वर तु मुझको इतनी, जो कहने थे लफ्ज़ उससे सभी, उनको छोड़ और सब कुछ कहे जा रहा हूँ। कुछ बातें सिर्फ कही नही जाती, महसूस की जाती है, अक्सर ये बताती नहीं लेकिन फिक्र जताती है, शायद कदर उसको भी होगी मेरे इन अफसानों की, जुबां से न कहे फिर भी इशारों में बताती है। अगर जान भी माँगोगे तो मना फिर भी नही करेंगे, मगर जीने के बहाने हम ढूढ़ते जरूर रहेंगे, क्योंकि जुदा तुझसे तो रह न पाएँगे कही भी, "जा जीले उसके संग" मेरे रब भी मुझसे कहेंगे। की देख तेरा नूर, चमन में उतरा चांद है, काश तू मेरे साथ होता, बस इतनी सी फरियाद है, जैसे वो तारा रहता हैं चाँद संग हरदम, वैसे ही तेरे बिना, मेरी जिंदगी बर्बाद ह...
शाम की धूप
कविता

शाम की धूप

काजल स्वरूप नगर (नई दिल्ली) ******************** शाम की वो छलती धूप, दीप से थोड़ी कम लगती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। छूती है जब तन को ठंडे पवन के साथ, शरारत सी करती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। ढलते सूरज को देख ऐसा लगता है कोई किताब बस्ते में रखता है, छुट्टी होने की खुशी झलकती है इसलिए अच्छी सी लगती है। शाम की वो छलती धूप बड़ी प्यारी सी लगती है गलियों में सब निकल कर आते है बच्चे शोर मचाए चले जाते है उनपर वो छलती धूप, प्यार बरसाती है, इसीलिए सोने की छलनी सी लगती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। धूप के बिछड़ते ही चांद आता है रोशनी चांदनी में बदलती है, थोड़ी और शीतल होकर, जुबां पर हँसी सी खिलती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। पक्षियों का चहकना, हवाओं के साथ उड़ना बिना रुकावट के मन के पंखों को उड़ान देती है, इसीलिए अच्छा सी लगती है। परिचय :-  काजल पिता : सोहन सिं...
माँ पर अटल भरोसा
लघुकथा

माँ पर अटल भरोसा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पांडाल से नौ कन्याएँ सज-धजकर गरबा मंडल के आयोजक महिला और पुरुषों के छोटे से समूह के साथ मूर्तिकार के यहॉं पहुँची। उसमें से पहुँचते ही अंशी बेटी बोल पड़ी- "अरे अंकल ये क्या कर रहे हो? माँ के तिलक को आँख जैसा क्यों बनाया?" उन्हीं में से मिशी बोली- "और ये आँख से आग क्यों निकल दी आपने?" शक्ति संचय करता तीसरा नेत्र प्रज्वलित कर मूर्तिकार ने पलटकर देखा। उसका मन प्रसन्न हो गया शक्ति स्वरूपा माँ के नौ बाल रूप देख बरबस ही हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। भावविभोर हो मन ही मन कहने लगा माँ तुम्हारे दर्शन से साधना सफल हुई। अंशी अपने नेत्र फैलाकर जवाब की प्रतीक्षा में देखने लगी मूर्तिकार कुछ कहता उसके पहले ही उसकी माँ ने जवाब दिया- "अरे अंशी बेटू माँ के नेत्र से आग नहीं निकल रही। यह तो शक्ति नेत्र है।" ओ! तो....इससे पॉवर मिलेगा मम्मा "ह्म्म्म ...
नवरात्रि आई रे
भजन, स्तुति

नवरात्रि आई रे

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** दरबार सजा है माता का सिंह पर सवार होके आई माता रानी भीड़ लगी है मंदिर में माता की पूजा करलो माता विनती सबकी सुन लो नवरात्रि आई रे नवरात्रि आई जगह जगह माता है विराजे माँ के दर्शन कर लो नर नारी सब भोग लगावे हलुआ पूरी माता को खिलावे नवरात्रि आई रे नवरात्रि आई माता प्यारी प्यारी दुःखो को हरने वाली माता का जो व्रत रखता है माता के प्रतिदिन दर्शन करता है। उसकी झोली कभी ना होती खाली नवरात्रि आई रे नवरात्रि आई माता सबकी पूरी मुरादे कर दो सुखी सारे संसार कर दो जगह जगह भंडारे होवे कन्या भोज लोग करावे नवरात्रि आई रे नवरात्रि आई परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए वि...
बाँटते जो रहे…
कविता

बाँटते जो रहे…

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जो जेबों में छिपा, सूरज रखते रहे हैं- उन्हें क्या पता, स्वयं जलते रहे हैं । बाँटते जो रहे, उजालों को जितना- उनसे अंधेरे स्वयं दूर, चलते रहे हैं । अरे आंधियो, हमको धमकी नहीं दो- इस हृदय में कई, तूफां पालते रहे हैं । अपराध, क्यों ना करें, वह बताओ- सजा तो नहीं, सम्मान मिलते रहे हैं । होता राजा वही, रोक दे रुख हवा का- वरना मौसम यूँ ही चाल चलते रहे हैं । परीक्षाएँ, माना कठिन थी तुम्हारी- पर परिणाम भी अच्छे मिलते रहे हैं । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, व...
आगरम सागरम
कविता

आगरम सागरम

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** आगरम सागरम बुद्धि के नागरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम हर समय लीन तुझमे सदा मैं रहूं अपनी विपदा कभी ना किसी से कहूं हो एके करम करते जाएं धरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम है तुममें सब सब तुममें है पर्वत सागर सब तुममें है कोई कुछ भी कहे ना कोई भरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम ओंकार कहता हे दिव्य दया निधिम ना क्षमता मेरी कहूं मैं केही विधिम हुई उसकी कृपा पहुंचा शिखरे चरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम आगरम सागरम बुद्धि के नागरम कर कृपा मुझ पर कर दे मुझे निर्भयम परिचय :-  ओंकार नाथ सिंह निवासी : गोशंदेपुर (गाजीपुर) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
पुष्पांजलि
कुण्डलियाँ

पुष्पांजलि

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** माता लेकर आ गई, खुशियों का अंबार। भक्तों के हित के लिए, रहती हैं तैयार।। रहती हैं तैयार, लुटाती हम पर ममता। साधक सिद्ध सुजान, इसे है अनुभव करता।। कहे राम कर जोर, बनालो उनसे नाता। देती शुभ आशीष, सभी को देवी माता।। माता रानी आ गई, शैलपुत्री के रूप। नवदुर्गा में है प्रथम, करती कृपा अनुप।। करती कृपा अनुप ,बड़ी है ये वरदानी। ममता मयी माता, यही है जग कल्याणी।। कहे राम कर जोर, न कोई इनसा दाता। रखलो मुझको पास, शरण में अपनी माता।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** हूँ परेशान मगर, नाराज़ नहीं हूँ ! झूठे सपनों की, मोहताज़ नहीं हूँ ! जी हूँ ग़मों में भी मज़े के साथ, मैं बिगड़े सुरों का, साज़ नहीं हूँ ! देख लिए सभी ने सितम ढा कर, मैं उनकी तरह, दगाबाज़ नहीं हूँ ! रिश्तों को निभाया जतन से मैंने, पर चुप रहूँ मैं, वो आवाज़ नहीं हूँ ! ईमान से जीने की आदी हूँ, मैं कोई दिल में छुपा, राज़ नहीं हूँ ! शान से जियो मुझे ,मै जिंदगी हू कोई पापों की सजा नही हू! परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...