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इस समन्दर में
कविता

इस समन्दर में

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरा बस, एक ही, ठिकाना है- तुझको, माया में डूब जाना है। लहरों के मोह में तू भूल नहीं- इस समन्दर में, ज्वार आना है। एक वायरस से बचा मुश्किल- फिर किसको, क्यों, सताना है। वो उलझते हैं जो समझते नहीं- ये जो जीवन का ताना-बाना है। अपने दर्दों को छिपाकर रखना- कुछ मजाकिया सा ये जमाना है। ये भोर यूँ, मुफ्त में नहीं मिलती- पड़ता, सूरज से, छीन लाना है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, ...
सब्र से ही इश्क महरूम है
कविता

सब्र से ही इश्क महरूम है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सब्र करना जरूरी होता है, सब्र करना कभी मजबूरी है, सब्र कभी मजा देता धूम है, सब्र से ही इश्क महरूम है। इश्क की हालात पतली है, हुस्न की जीत ही असली है, पर सब्र से लेना होता काम, इश्क लगती सुंदर ढफली है। घर द्वार भी सज जाते कभी, जब हुस्न चलके घर आता है, बहारे भी फूल बरसाती देखी, कभी इश्क दिल तड़पाता है। इंतजार करना भी मजबूरी है, बांहों में सजना भी जरूरी है, जब हवायें विपरीत चलती है, दिलों की बढ़ती बस दूरी है। कभी इश्क भी ताने सहता है, कभी हुस्न दिल में रहता है, सब्र भी कभी कब्र बन जाता, अश्रु की धार झर झर बहते हैं। जब चाहत बलि चढ़ जाएगी, तब तो हुस्न बनता मासूम है, सब्र करना पड़ता तब कभी, सब्र से ही इश्क महरूम है। सब्र करके मजनूं रोया है, लैला का दुपट्टा भिगोया है, सब्र से ही इश्क महरूम है, ...
धन्य किया भारत को नीरज
कविता

धन्य किया भारत को नीरज

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हरियाणा का छोरा नीरज! किया सतत् घन तप, धर धीरज...!! तपस्या हुई है फलीभूत! ओलंपिक खिला स्वर्ण- पंकज!! कर के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन! किया है हर्षित देश का मन!! स्वर्णिम उपलब्धि भारत की! बधाईयांँ दे रहा जन- जन...!! भाला फेंक में स्वर्ण जीता! देश खुशी का मय है पीता...!! बजा टोक्यो देश का गान...! ओलंपिक- स्वर्ण खेल-गीता!! पूरा आर्यावर्त हर्षित ...! उम्र तइस -तरुण स्वर्ण- अर्जित!! शत वर्ष बाद एथलेटिक्स...! इतिहास रच किया है गर्वित ... !! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
पाती
कविता

पाती

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** ये पाती अनुबंध न कोई भावों का अनुदान न कोई जाने कितने स्वप्न सलोने कितने अभिलाषा के सागर कितने सौगंधों के ढेर पार न कोई। वहीं तुम्हारी प्यारी बतियां डस लेती हैं काली रतियां मन की भाषा ही पढ़ती है तन से है संबंध न कोई। पुरवा के झोंके सी खुशबू मन प्राणों में महके खुशबू तन में महक समाई ऐसे महक उठा हो उपवन कोई। भावों का छलका घट सारा भुजबंधों का मिला सहारा फिर कोई सूरज उग आया भीगे वर्षाजल में जैसे मन की धरती धूप नहाई। फिर गरजे हैं बादल काले रिमझिम रिमझिम बरसे सारे पता नहीं क्यों तुमसे अब तक टूटा है तटबंध न कोई। परिचय :- सुधा गोयल निवासी : बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
फोन
कविता

फोन

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** हर वक्त फोन-फोन, सदा बजती इसकी रिंग-टोन, चलते रहते इसमें अनेक सॉन्ग, है ये विस्फोटक बॉम्ब, दुनिया का है सबसे बड़ा डॉन। फोन है एक बीमारी, विचित्र माया है सारी, न जाने कितने आते संदेश, या होते कई नोटिफिकेशन। फोन बन गया वो जोड़, जिसे न हम पाएं छोड़, ताकत इसकी है बेजोड़, जवाब दे ये मुँह-तोड़। करता कितने काम ये, बनाता हमे महान ये, एक बटन दबाते ही, पहुँचता हमे विदेश ये। गाने, फिल्में, तस्वीरें, करता कितने काम रे, मुसीबत करे आसान, इसमें है संपुर्ण जहान। घंटो बने हमारा दोस्त, हो जाए हम इसमें मदहोश, छोटा है पर काम बड़े, कारनामे इसके देख हाथ हो खड़े। फोन नहीं ये डॉन है, इसके बिना कौन है? आज का ये हीरो है, फोन ही हमारा गुरु है। आज का ये हीरो है, फोन ही हमारा गुरु है। परिचय :- ज्योति लूथरा स...
टोक्यो ओलिम्पिक हॉकी
कविता

टोक्यो ओलिम्पिक हॉकी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** खिलाड़ी की उमर कम है, मगर इरादों में दम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है हॉकी बादशाही इतिहास, भारत बेमिसाल रहा दुनिया को हिंदुस्तानी, जज़्बों का खयाल रहा मेजर ध्यानचंद रुतबा, जग को एक सवाल रहा अस्सी दशक के बाद से, पदकों का अकाल रहा प्रशिक्षण साधन मेहनत कठोर,दूर हटाता तम है दृढ़ संकल्प बल पर, लक्ष्य प्राप्ति से बम बम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है। जयपाल से वासुदेवन, स्वर्ण पदक के आसमान बोखारी मेजर केडी किशन, चरण बलवीर शान तालिका में बारहवे क्रम से, बिगड़ी बहुत पहचान उचित पर्याप्त समय की, मेहनत से ही समाधान टोक्यो ओलिम्पिक में, कांस्य पदक से ढम ढम है लंबे अंतराल में मनप्रीत, खुशियों से आंखें नम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है। समय परीक्षा लेता खूब, पल पल का है घमासान गुजरते लम्हों की धड़कन, जज़्...
मेरी कलम
कविता

मेरी कलम

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मेरी कलम दिखादे तू अपना कमाल । रोटी मुझे मिले सदा हक़ - ओ - हलाल ।। मेरी कलम बन जाए मज़लूम की आवाज़ । फिर हर तरफ सुनाई दे खुशियों के साज़ ।। मेरी कलम बन जाए सब जन की बफा । जुल्म जमाने से हो जाए रफा - दफा ।। जमाने मे मेरी कलम से हो जाए अमन । इंसानियत की खुशबू से महका करे चमन ।। मेरी कलम बन जाए अवाम की अज़ीज़ । फिर हक़ - ओ - बातिल की समझेंगे तमीज़।। 'नाचीज' झूठ - ओ - फरेब से सदा रह दूर । हर तरफ चमकता रहेगा तेरी क़लम का नूर ।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
रंँग राहु
कविता

रंँग राहु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं राहु हूं सबको राह दिखाता हूं। सबको राह पर लेकर भी आता हूं। मैं मस्त, अलबेला, अनभिज्ञ हूं शनिदेव का मैं संगी हूं अन्याय का तभी भंगी हूं। शनि के साथ मिल न्याय चक्कर चलाता हूँ। साढ़ेसाती में देख दुष्ट पापियों को हंसता मुस्कुराता हूँ। मैं राहु हूँ जीवन में नए-नए रंग लेकर आता हूं तभी तो हूं रंँग राहु हूँ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
आज का दौर महान
कविता

आज का दौर महान

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आज का दौर कुछ अलग तरह का है। न इसमें रिश्ते और न अपनापन बचा है। चारो तरफ शोर सरावा और दिखावा है। होड़ लगी है सबमें हम सबसे श्रेष्ठ है।। मैं अपने में पूर्ण नहीं हूँ ये मुझे पता है। होड़ाहोड़ी में पढ़कर गलत कर जाता हूँ। फिर दुख बहुत होता है पर क्या करें। कलयुग में सबकी अपनी चिंताएं है।। बैठ शांत भाव से जब सोचा करते थे। तब मन में सदा अच्छे भाव आते थे। और सभी संगठित होकर साथ रहते थे। इसलिए समाज का बजूत होता था। कहने करनी में कितना अंतर आया है। कहकर मुकर जाए ये पाठ पढ़ा है। जब भी मौका मिला ऐसे लोगों को। तो सस्ती लोक प्रियता हासिल की है। पर कुछ दिनोंमें इनकी लंका जली है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेज...
राम नहीं नाम राज
कविता

राम नहीं नाम राज

दशरथ रांकावत "शक्ति" पाली (राजस्थान) ******************** छोड़कर साकेत नगरी राम लौटे फिर धरा पर, फिर कोई रावण ही होगा लौट जाऊंगा हरा कर। पर अयोध्या सीमा में घुसते ही पुष्पक रोक दिया, पांच सौ देने पड़े एक गार्ड ने था टोक दिया। जब महल ढूंढा मिला जर्जर सा एक पाषाण खंड, आवेग जो अब तक दबा था हो गया आखिर प्रचंड। दूर एक नूतन महल बनते जो देखा राम ने, दुख भंवर का मिला किनारा सोचा था श्री राम ने। पूछा जब एक मजदूर से क्या ये भवन मेरे नाम होगा, ५००० दोगे तो निश्चित एक पत्थर तेरे भी नाम होगा। खूब आदर पा के राजा राम हनुमत को पुकारें, अब तो बजरंग ही हमारे संकटों को आकर निवारे। जब हृदय की गहरी पुकारें सुन के भी हनुमत न आये, राम फिर बोलें सिया से है प्रिये हम व्यर्थ आये। नंगे पग तब एक बाह्मण भागता आता लगा, राम पहले चौकें थे फिर भाव से हनुमत लगा। गिर चरण में रो पड़े हैं प्रभु आप क्य...
गज और ग्राह
स्तुति

गज और ग्राह

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** प्यासे गज ने सरवर में पग डुबाया घात लगाये बैठा ग्राह, दबे पाँव आया चींखा गज चींघाड मार करुण स्वर में ग्राह ने उसका पाँव, निज मुँह में दबाया इधर उधर दृष्टि फिरा कर हो व्याकुल गज ने रक्षा हेतु सबको खूब बुलाया कारण रुप ! हे करुणाकर ! हे अविनश्वर रक्षा हेतु विह्वल हो के गुहार लगाया हे त्रिपुरारि ! हे मुरारी ! हे परमेश्वर ! मैं आकुल, अधम अति, तुम्हें भुलाया सुन करुण पुकार उठ भागे दीनेश्वर हो सवार, गरुड को सरपट दौड़ाया ग्राह को चक्र से कर निहत अपनी आकुल गज को ग्राह से मोक्ष दिलाया करुणामय भगत हितकारी जगदीश्वर भगत हित, निज करुणा को बरसाया। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन...
उफ! ये सावन…
कविता

उफ! ये सावन…

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बचपन की मस्ती, वो तोतली बोली, वो बारिश का पानी, और बच्चों की टोली, वो पहिया चलाना और नाव बनाना, माँ का बुलाना और हमारा न आना, वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। लड़कपन में लड़ना और फिर मचलना दोस्तों का मनाना हमें फिर मिलाना मैदान के कीचड़ में गिरना-गिराना और माँ से वो गंदे कपड़े छुपाना वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। यौवन की दुनिया में आकर निखरना किसी अजनबी से मिलकर बहकना दिल का धड़कना वो बेचैन होना कभी याद करके हँसना फिर रोना पापा का डाँटना और माँ का समझाना वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। अचानक से फिर समय का बदलना वो परिवार के साथ बाहर निकलना वो छतरी उड़ाना और भुट्टे खाना बच्चों को सावन के झूले झुलाना माता-पिता बनकर कर्तव्य निभाना वो अनछुए पल...
वक़्त
कविता

वक़्त

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक़्त देता है इंसान को जीने का सबक, और सबब भी वक़्त ही देता है, वक़्त ही देता है ज़ख्म और घाव भी वक़्त ही भरता है ।। वक़्त ही इंसान को जीना सिखाता है, वक़्त ही मुश्किलों से लड़ना सिखाता है।। वक़्त ही है जो वर्तमान में जीना सिखाता है, वक़्त ही है जो अनुशासन का मार्ग दिखाता है।। आपस में सामंजस्य घड़ी की सुइयां सिखाती है, और अनवरत चलने की राह दिखाती है।। एक वक्त ही तो है, जो हो जाये अगर मेहरबान, तो बना दे इंसान को भी भगवान।।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
शारदे माँ
स्तुति

शारदे माँ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** शारदे माँ वन्दना स्वीकार करों। दो ऐसा वरदान, की नैया पार हो। शारदे माँ......। ज्ञानदे चरणों में, अपने स्थान दो। बनें नेक दिल इंसान, की ऐसा ज्ञान दो। मिटा अज्ञान हिये से, विवेक का उजास करों। शारदे माँ.......। जय हंस वाहिनी पद्मासिनि निर्मल हृदय कर वीणावादिनी मिटा हर दोष, शिष्टता का संचार करों। शारदे माँ......। हो तेरी मेहर तो, सदा उत्तम कर पाएंगे। परहित में हम बड़ा, नेक कर जायेंगे। जीवन शुद्धता का बंदनवार करों। शारदे माँ.......। सर्वत्र ज्ञान का प्रकाश हम फैलायेंगे। निज राष्ट्र हो शिखर पर, ऐसे कदम उठायेंगे। माँ भारती विश्वबंधुत्व का भाव भरो। शारदे माँ .......। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
बारिश आई
कविता

बारिश आई

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रिमझिम रिमझिम बारिश आई, भीग रहा गुड़िया का भाई। दौड़ी गुड़िया छाता लाई, बूंदों से झट उसे बचाई। झम झम झम अब बरसा पानी, छत पर भीगें दादी नानी। रानी गुड़िया शोर मचाये, छत से नीचे उन्हें बुलाये। पापा भी ऑफिस से आए, अपना गीला छाता लाए। छाता टपके टप टप पानी, देख देख हँसती है नानी। पानी पानी पानी पानी, चारों ओर भर गया पानी। बच्चे पल-पल शोर मचाये, आज पकौड़ी हमको खानी। सुन बात पकौड़ी मन डोला, पापा ने भी झटपट बोला। गरम पकौड़ी आज बनाओ, बारिश में यह लुफ्त उठाओ। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतर...
सुश्री शर्मा को साहित्य रत्न सम्मान
साहित्य समाचार

सुश्री शर्मा को साहित्य रत्न सम्मान

इंदौर। देहरादून। उत्तराखंड की साहित्यिक संस्था दिग्राम टुडे प्रकाशन समूह द्वारा अनवरत दो दशकों से साहित्य साधना कर साहित्य क्षेत्र में योगदान देने हेतु सुश्री हेमलता शर्मा भोली बेन को टीजीटी साहित्य रत्न सम्मान से नवाजा गया है। यह सम्मान साहित्य के क्षेत्र में अनवरत २ दशकों से अधिक समय से साहित्य सृजन करने हेतु प्रदान किया जाता है। वर्ष २०२१ में इस सम्मान से कुल २० विभूतियों को नवाजा गया है जिनमें से इंदौर मध्य प्रदेश से सुश्री हेमलता शर्मा भोली बेन एकमात्र है। अन्य सम्मानित सदस्य इस प्रकार हैं- श्रीमती सुधा मिश्रा द्विवेदी , डॉ. मंजू सैनी, गीता पाण्डेय' अपराजिता, श्रीमती इंदु मिश्रा 'किरण', कामिनी मिश्रा, रति दिनेश चौबे जी, प्रतिभा दूबे जी, श्री कमलेश झा जी, श्री सत्येंद्र शर्मा 'तरंग', डॉ. बिपिन पाण्डेय जी, श्रवण कुमार अरोड़ा जी, विनोद सीताराम दुबे जी, श्रीमती वीणा गुप्त जी, श्री राकेश ज...
चलो कहीं घूम आए
कविता

चलो कहीं घूम आए

मीनाक्षी झा रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** चलो दोस्तों कहीं घूम आये सारे गम को भूल जाये फिर से जी ले एक बार अपने लिये बारिश में वो कागज की कश्तिया बनाऐ आसमान में गुब्बारे उड़ाये रेत में घरौंदे सजाऐ बचपन के दिन लौटा आये चलो दोस्तों कहीं घूम आये ... खिन्न होता सा ये जीवन फिर से इसे बेबात हंसना सीखाऐ बिना किसी खौफ के जीना सीखाऐ वक्त के पहिए ने इसे पेचीदा सा बना दिया चलो मिल कर ‌ एक-एक गांठ हम खुद सुलझाए चलो दोस्तो कहीं घूम आये ... परिचय :- मीनाक्षी झा निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) शिक्षा : स्नातकोत्तर (शिक्षा मनोविज्ञान) सम्प्रति : शिक्षिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
बारिश का मौसम
कविता

बारिश का मौसम

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** इंतजार की घड़ी हुआ खत्म भूरे-काले बादल वर्षा की चांदनी बूंदे धरती के चरणकमल पखारे सूखी मिट्टी की ढेर पथरीली मैदान नजरें जिधर भी निहारते हरी भरी वसुंधरा नजर आए देख परिदृश्य ह्रदय शांति भर आए... संगत मधुर बड़ी है कुदरत की फल स्वरुप पल रहे जो प्राणी भुरे-काले बादलों की छांव हरे भरे पेड़ों का रूप रंगों का संयोजन चमत्कृत करता... गीली राह तस्वीर बनाएं इन गलियों को हम कैसे भूल जाए जल से संभव मानव जीवन धरती का श्रृंगारगार बढ़ाएं हरियाली से वातावरण अनुकूल हो जाए... पौधों की कुलगियो पर कंधे सा फेरती जाए बदलता पल-पल प्रकृति स्वरूप अपना दिखलाएं भुरे- काले बादलों की झुंड धरती पर वर्षा बनकर बिखर जाए... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा प...
गुज़र गया एक और साल
कविता

गुज़र गया एक और साल

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** इश्क़ की मीठी बतियां और तक़रार भी हुई। कभी आया पतझड़, कभी बहार भी हुई।। तेरी चाहत की छांव में ज़िंदगी गुज़ार दी। सौंपा ख़ुद को मैंने अपनी ख़ुशियाँ वार दी।। कहाँ से कहाँ पहुंच गये बात ही बात में। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। ख़ुशबू की तरह आयी थी तुम ज़िंदगानी में। हो ख़ूबसूरत एक परी मेरी कहानी में।। साये की तरह साथ रही धूप-छांव में। बस गई हो अब मेरी चाहत के गांव में।। लगता नहीं है डर मुझे अब दिन और रात में। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। इश्क़ के हसीं सफ़र की रहगुज़र हो तुम। मंज़र ए ख़ुशगवार हो, मेरी नज़र हो तुम।। हूँ दुआ-गो इस सफ़र में साथ तुम रहो। हूँ तुम्हारी, बस तुम्हारी, दिन-रात तुम कहो।। कुछ भी नहीं रक्खा है शह और मात में। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। गुज़र गया एक और साल तेरे साथ में।। पर...
आबादी की मार
कविता

आबादी की मार

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** समय से पहले चेतो भैया ख़बरदार सरकार नहीं झेल पाएगी पृथ्वी आबादी की मार दाना पानी दुर्लभ होगा भूखे मरेंगे लोग लूट-पाट का आलम होगा मचेगा हाहाकार मार-काट का मंजर होगा वीरानी गलियाँ रक्त से रंजित सड़कें होंगी उफनेगी नलियाँ मतलब क्या जीवन का होगा इस पर गौर करो मचेगा तांडव चौतरफ़ा फिर बिलखेगा संसार अभी वक्त है संभल जाइए वरना पछताएँगे बहुत भयावह मंजर होगा भूखों मर जाएँगे खेतों में ही पैदा होगा तेरा रोटी दाल हमें दीख पड़ता भविष्य में दुर्दिन का आसार मरेंगे लोग अकाल मृत्यु से कदम कदम यमराज उदर कचोटेगा तड़पेंगे नहीं हो पाएगा इलाज संकट में है सृष्टि सोचिए अब तो कोई उपाय साहिल नहीं दिखेगा कोई जो छाये घर द्वार परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति ...
राजमहल में..
गीतिका

राजमहल में..

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हमने, स्वयम ही उनको, कई बार मरते देखा निजी स्वार्थ के लिए ही, नजरों से गिरते देखा । जाना कहाँ है पूछा, तो कुछ भी बता न पाए लेकिन उम्रभर निरंतर, उनको है चलते देखा । हम दिशाहीन हो गए हैं, कोई राह तो बताए- उस चन्दा को अमावस में, हमने दुबकते देखा । राजा डरा हुआ है, उसे सूझे न जतन कोई इस राजमहल में भी, चोरों को पलते देखा । ये रोबोट बन चुकी है, एक भीड़ बहुत सारी- बिजूका-से, रक्षकों को अब हाथ मलते देखा । माना कि दूर हैं वो, उनकी यादें ही निकट हैं फिर छाए हैं क्यों बादल, मौसम मचलते देखा । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उ...
सिस्टम से बाहर
कविता

सिस्टम से बाहर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जो सिस्टम से बाहर जायेगा... अपनी अलग एक सोच रखकर। भीड़ की मूर्खता से टकरायेगा। सिस्टम की मशीन में, सबसे पहले वहीं काटा जायेगा। जो सिस्टम से बाहर जायेगा... भेड़-बकरी की सोच रख, और झुंड में ही जो जीवन बितायेगा। अपनी-अपनी दुनिया में मस्त होकर। भीड़-सा व्यस्त जो नही रह पायेगा। नयी सोच से जब-जब भी, दुनिया को तू जगायेगा। यह दुनिया वैसे ही चलेगी। बस तू सिस्टम से कटकर, सदा की नींद सो जायेगा। जो सिस्टम से बाहर जायेगा... इस भीड़ की अपनी दुनियां है, तू किस-किस को समझायेगा। बहुत आयें बदलने इसको, लेकिन नई सोच दे नही पायें है। जिस-जिस ने भी सिर उठाया है। सिस्टम की मशीन से, खुद को कटा हुआ पाया है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्व...
अपना ईमान कायम रखें
लघुकथा

अपना ईमान कायम रखें

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** नैतिक शिक्षा हमें हर प्रकार के नैतिक ज्ञान से परिपूर्ण करती है। नैतिकता जीवन में जब मुसीबतें आती है तो अपना होंसला कायम रखने का जज्बा प्रदान करती है। बात उन दिनों की है जब हरि नाम का एक गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी से परेशान था। उसने परिश्रम करने में कोई कमी नही रखी लेकिन उसकी मेहनत सामने ना आ सकी। लंबे समय के बाद वह और उसकी मेहनत एक धनी व्यक्ति की नज़रों में आ गयी। उसने हरि को अपने घर पर आने के लिए कहा। हरि दूसरे ही दिन उस व्यक्ति के घर पहुँच गया। उसने हरि को अपने खेत खलिहानों की निगरानी एवं मजदूरों से काम करवाने का उसे काम दे दिया। हरि बड़ा खुश था। उसने कभी ये उम्मीद ही नही की थी कि उसे इस प्रकार काम भी मिल पायेगा। बड़ी शिद्दत व ईमानदारी से वह अपना काम करता था। मालिक की नज़र में उसने अविश्वसनीय स्थान पा लिया था। अब वह...
वो सलामत रहे
कविता

वो सलामत रहे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आना जाना जीवन में लगा रहता है। हर रंग का आनंद जीवन लेता है। कौन कब कहाँ अपना मिल जाए। और वर्षो के पुराने किस्से याद करा दे।। हम तो आपके दिल में कब से हैं। आपने कभी दिलको टटोला ही नहीं। और दिल की हर बातें जान के। जनाब हम आप पर लिखते हैं।। हम यूं ही शब्दों की कविता को पन्नों पर उतारकर नहीं लिखते। हम अपने उस अजीज को दिलकी गहराइयों से समझते है। इसलिए बेपनाहा मोहब्बत करते है। और सलामती की दुआएं मांगते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती है...
गांव और शहर
कविता

गांव और शहर

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* जहां पनघट पर गांव की, बालाओं को चढ़ते देखा था। जहां खेत जाते किसानों को, हल चलाते देखा था।। बरगद के पेड़ के नीचे जहां, चौपाल लगाई जाती थी। और फैसला होने पर, बात पंचों की मानी जाती थी।। जहां गन्नों के खेतों में, कोल्हू से रस निकलता था। मीठे गुड़ की खुशबू से, तब वातावरण महकता था।। हर घर का आंगन भी, मां तुलसी से सुशोभित था। जहां ढोलक और मजीरों पर, स्त्रियों का संगीत गूंजता था।। छोटे-छोटे बच्चों को दादी, नानी की कहानी में लगाव था। गायें थी हल था अलाव था, वही मेरा गांव था।। और यहां प्रदूषण फैलाती हुई, बसें हैं कारें हैं टैक्सी हैं। चौराहे दर चौराहे पर , भीड़ भरी गैलेक्सी है।। नल है कल है कारखाने हैं, इंसान का इंसान से कोई नहीं रिश्ता है, मशीनों में जीता है मशीनों में पिसता है।। हर घर में टीवी है मोबाइल...