इस समन्दर में
प्रमोद गुप्त
जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश)
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तेरा बस, एक ही, ठिकाना है-
तुझको, माया में डूब जाना है।
लहरों के मोह में तू भूल नहीं-
इस समन्दर में, ज्वार आना है।
एक वायरस से बचा मुश्किल-
फिर किसको, क्यों, सताना है।
वो उलझते हैं जो समझते नहीं-
ये जो जीवन का ताना-बाना है।
अपने दर्दों को छिपाकर रखना-
कुछ मजाकिया सा ये जमाना है।
ये भोर यूँ, मुफ्त में नहीं मिलती-
पड़ता, सूरज से, छीन लाना है।
परिचय :- प्रमोद गुप्त
निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, ...























