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हे गुरु!
कविता

हे गुरु!

डॉ. सरोज साहू भिलाई, (छत्तीसगढ़) ******************** मन के अंधेरे रौशन करते, अज्ञानता में प्रकाश भरते, शब्दों के सहारे चलना सीखाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! अटक गया जो कहीं, भटक गया जो कभी, मोह जाल से निकलना सीखाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! बैर भाव भूला कर, भेद भाव मिटाकर, प्रेम भाव भरना सीखाते हो जीवन सरल बनाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! कदम-कदम बढ़ाकर, सफलता की सीढ़ी चढ़ाकर, शिखर पर पहुंचाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग बताते हो..!! हो कर हमसे दूर, महान रत्नों के बीच, अपनी कमी का अहसास कराते हो, निराकार हो कर भी, ज्ञान को साकार बनाते हो..!! हे गुरु तुम ही तो मार्ग दिखाते हो..!! साथ नहीं फिर भी, सम्बल दे जाते हो, इन भयावह परिस्तिथियों से लड़ना सीखाते हो..!! हे ग...
गुरु महिमा
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गुरु महिमा

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** गुरु जीवन आधार गुरु आत्म बोध गुरु कर्म धर्म गुरु मर्यादा मर्म गुरु तमश का प्रकाश।। गुरु नीति नियत का आशीर्वाद गुरु ब्रह्म गुरु देव गुरु आदि अनंत जीवन सिद्धान्त।। गुरु ज्ञान गुरु जीवन मार्ग गुरु महिमा का मानव गुरु मानवता का मूल्य संस्कृति सांस्कार।। गुरु संकल्प है गुरु गुरु साध्य साधना आराधना ईश वंदना गुरु स्वर गुरु अन्तर्मन गुरु आस्था विश्वास।। गुरु ईश्वर मार्ग है गुरु ईश्वर साक्षात गुरु प्रत्यक्ष प्रमाण है प्रथम वंदन पूजा पात्र है।। गुरु काल प्रवाह है गुरु नैतिकता आचरण व्यवहार है।। गुरु अहं भाव गुरु शिष्य की पहचान है गुरु द्रोण है गुरु परशुराम है गुरु विशामित्र गुरु राम कृष्ण परमहंसः आदि अनादि है।। अर्जुन भीष्म राम विवेका का ईश्वर वरदान है।। गुरु ब्रह्म ब्रह्मा ब्रह्मांड ...
गुरू चरणों मे  समपिॅत
कविता

गुरू चरणों मे समपिॅत

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** गुरू चरणों मे बहती अमृत धार जन-जन का अज्ञान मिटाकर गुरू दिखाते सच्ची राह हैः बरसती है जिस पर गुरू कृपा उनको देते है गुरू ज्ञान अपार एक लश्य गुरू भेदन हैं सुखमय हो सारा संसार गुरू चरणो में बहती अमृतधार पा जाएं वो भव सागरपार ज्ञान ज्योति हम सब पाएं खूद जलकर करतै है सपने साकार गुरू चरणोकी अनूकंपा से सत्य पथ पर बढते जाए गुरू चरणो मे बहती अमृतधार कभी न थकै कभी न रूकै हो आभायमान सारा संसार तपती धूप ढ़लती ये छाया जब पाये आश्रय ये संसार झुके ये नतमस्तक "मोहन" गूरू चरणो मै हो भवसागर पार परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
घौंसला
कविता

घौंसला

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड) ******************** इक चिड़िया घूमती बार-बार, घर आँगन अर द्वार। रोज पिताजी दाना डालते माँ पानी की धार।। चिड़िया रोज़ सबेरे आकर कहती है उठ जा गुड़िया रानी। में कहती रूक जा महारानी।। चिड़िया का घौंसला था दूर घौंसले आज पिताजी घर में ही ले आये। चिड़िया रानी को घौंसले बहुत सुहाये।। अपनी सखी सहेलियों को घर ले आई। आज खुशी से फूली न समाई।। सावन की घनघोर घटाएँ हैं छाई। मेरे घर आँगन चिड़िया चहचहाई, पिता जी की मेहनत रंग लाई।। मुझे इक नयी राह है दिखाई, इक चिड़िया घूमती बार-बार। मेरे घर आँगन अर द्वार।। खुशहाली से है चिड़िया का परिवार। प्रभात की बेला पर मुझे पुकारती बार-बार।। वो भी दाना चुगने जाती में भी, पापा मम्मी के आस पास मंडराती, उड़ान जब ये भरती है, इक नयी सीख मिलती है हर बार। कितना सुन्दर है चिड़िया का घर द्वार।। ...
हनुमत्कृपा
भजन

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** भक्त है हनुमान जी हैं दयालु बहुत, अपने भक्तों की चिंता वे करते सदा, उनके भक्तों को जग में सताते हैं जो, ऐसे दुष्टों पे चलती है उनकी गदा। भक्त... उनकी महिमा उन्ही को सुनाने के मित, उनके भक्तों ने कुछ सिद्ध मंदिर चुने, पूर्ण निर्विघ्न उनका ये संकल्प हो, इसलिए भक्तों ने ताने बाने बुने। आस्था जिनकी हो हनु के चरणों मे दृढ़, उनके मारग की कांटे वे चुनते सदा। भक्त... भक्तों को तीव्र गर्मी सता थी रही, हनु ने मेघों को आदेश था दे दिया। उनके आदेश को शीश धर मेघों ने, पाठ के दिनों मौसम सुहाना किया। झांक अंतर में सब कष्ट हरते है वो, ये ही हनुमान जी की निराली अदा। भक्त... राम सुमिरन करो, नित चालीसा पढ़ो, मन मे हनुमत की भक्त्ति पनप जायेगी। भक्ति में डूब पाया अगर तेरा मन, जग की कोई भी सुविधा नहीं भायेगी। कूप से निकलकर ...
धरती का स्वर्ग
कविता

धरती का स्वर्ग

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मत काटो तुम ये पहाड़, मत बनाओ धरती को बीहाड़। मत करो प्रकृति से खिलवाड़, मत करो नियति से बिगाड़।।१।। जब अपने पर ये आएगी, त्राहि-त्राहि मच जाएगी। कुछ सूझ समझ न आएगी, ऐसी विपदाएं आएंगी ।।२।। भूस्खलन और बाढ़ का कहर, भटकोगे तुम शहर-शहर। उठे रोम-रोम भय से सिहर, तुम जागोगे दिन-रात पहर।।३।। प्रकृति में बांटो तुम प्यार, और लगाओ पेड़ हजार। समझो इनको एक परिवार, आगे आएं हर नर और नार।।४।। पर्यावरण असंतुलित न हो पाए, हर लब यही गीत गाए। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।५।। निर्मल नदिया कलकल बहता पानी, कहता है यही मीठी जुबानी। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।६।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
तुम से नज़र मिली
कविता

तुम से नज़र मिली

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम से नज़र मिली बाग में कलियां खिलीं रंग बदलने लगा आकाश सुनहरा श्रंगार करने लगी वसुंधरा चमकने लगें पीपल के पत्ते सजे है मँजिल से खूबसूरत रस्ते तुम से नज़र मिली शब्दों ने अपनी जुबां सिली बोलने लगी खामोशी मौसम में भी छाने लगी मदहोशी होने लगी दिल की बातें करने लगी यादें मुलाकातें तुम से नज़र मिली बाग में कलियां खिलीं खिल उठा हो जैसे बचपन मेरा लगने लगा सारा जहान मेरा पलकों पर तुम्हें सजाना है काजल नही आँखों में तुम्हें बसाना है तुम से नज़र मिली आँखें ये हो गयी गीली जागने लगी रातें प्यारे वो पल सतातें अंनत प्रेम है तुम से, इसमें मेरी ख़ता नही किताबों में छूपाने लगी हूँ आँसू है या स्याही पता नही तुम से नज़र मिली खुद को भी मैं भुली बस गये ध्यान में तुम बन गये प्राण तुम आ गयीं हो जैसे पत्थरों ...
शिव पर्व हरेला
कविता

शिव पर्व हरेला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** पर्व हरेला कुमाँऊ का, मनाते हैं उत्तराखंड में। निवास जिन श्री महादेव का, विराजते वह कैलाशखंड में।। घर ससुराल महादेव का, है जब पुण्य उत्तराखंड में। तभी हरेला पवित्र सावन का मनाते हैं हम उत्तराखंड में।। प्रतीक हरेला हरियाली का, सदा सुसमृद्धि सूचक है। ब्रत पूजन उमा-महेश्वर का, जीवन समृद्धि सूचक है।। स्वागत सावन हरेले का, आरंभ सप्तदिन पूर्व करते हैं। श्रद्धा से सप्तधान्य का, गृह में बपन सप्तदिन पूर्व ही करते हैं।। स्वरूप जिस तरह धरा का, हरा भरा सावन में होता है। उसी तरह आशीष महेश्वर का, फलीभूत जीवन में होता है।। पूजन विशेष श्री महादेव का, हरेले से लोग यहां पर करते हैं। जन-जीवन शिवार्चन का, जिया लोग यहाँ पर करते हैं।। महापर्व यह देवभूमि का, प्रतिवर्ष श्रद्धा से हम मनाते हैं। हो कल्याण समस्त भारतभूमि का, शिव ...
अकाट्य कर्मफल
कहानी

अकाट्य कर्मफल

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** प्राचीन समय में एक राजा उदार, न्यायप्रिय और भगवद्भक्त था। भगवद्भक्त होने के कारण उसने महल की पूर्व दिशा में भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया था | राजा अपने व्यस्त कार्यों के बावजूद ईश्वरचिंतन के लिए समय निकालता था एवं मंदिर में बैठकर मनन करता व कुछ समय के लिए ध्यान में खोये रहता था | काफी महीनों तक ढूँढने के बाद उसे मंदिर के लिए एक धर्माचारी ब्राह्मण मिल गया जो मंदिर की जिम्मेदारी संभाल सकता था | वह ब्राह्मण भी बड़ा ही संतोषी और ईश्वर का परम भक्त था | वह स्वतंत्र रूप से पूजा का काम करता था | राजा उसके काम और स्वभाव दोनों से ही खुश थे | एक दिन राजमहल में काम करने वाली दासी के मन में लालच आ गया था क्योंकि उसने सफाई करते समय कमरे में रखे हीरों के भंडार को देख लिया था | चोरी के कठोर दंड के बारे में दासी को जानकारी थी फिर भी लालच के...
आस्था और विश्वास
कविता

आस्था और विश्वास

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* इस जगत की यह सच्चाई, मिथ्या ना हो कोई आस। हर रिश्ते की है मजबूती, दो शब्द आस्था और विश्वास।। सच्ची आस्था का यह सत्य, न मानो अगर तो है पत्थर। कर लिया दृढ़ विश्वास तो मानव, निर्मित हो उठता है ईश्वर ।। अटूट प्रेम की सुंदर आस्था, एक पत्नी की पति के लिए। जीवन भर बना रहता रिश्ता, सच्ची विश्वसनीयता के लिए।। गुणवान बिटिया करती आस्था, जन्म देने वाले अपने पिता पर भेज देते हैं लाडली को अपनी, हेतु शिक्षा सिर्फ विश्वास पर।। अबोध शिशु को भी है विश्वास, रहता उसको अपने तात पर। हवा में उछाले पुत्र को अपने, आस्था अटूट पुत्र की पिता पर। अभिभावक अपने बच्चों को, छोड़ देते हैं आस्था के सहारे। गुरु देंगे सुशिक्षित प्रगाढ़ ज्ञान, दृढ़ विश्वास कभी ना हारे ।। जीव के लिए ईश्वर ने , दो शब्द बनाए हैं अनमोल। जिए सरलता से पृथ्वी पर ...
बिटिया की बिदाई
कविता

बिटिया की बिदाई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नन्हें दोनों हाथों से कंकू के छापे अपने पिता को लगाती फिर लिपट के रोती विदा होते ही सबकी आँखों की कोर में आँसू आ ठहरते और आना सुखी रहना कह ढुलक जाते आँसू रिश्ता आँखों और आंसुओ के बीच मन का होता जो डबडबाए नैना अंदर से मन को रुलाता पिता से पूछ कर बिदा होती लगने लगता आसुंओं का बांध फूट गया हो सारी बातें बचपन से लेकर बड़े होने की घूमने लगती आँखों के सामने बिदा के बाद घर आने पर खाना बिना आसूं गिरे खाया हो ये कभी भी ना हुआ दर्द का सच पिता को कुछ ज्यादा ही महसूस करता रोता मन किसे कहे बिटियाँ की बिदाई का दर्द कंकू के छापे जिन्हें देखकर आँसुओं से डबडबाने लगते सूने नयन। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल स...
आईना
कविता

आईना

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आईना खुद देख,तब दिखा आईना, तरफदारी में उतरता नहीं आईना। मेरे चेहरे पे पड़ जो रही झुर्रियां, नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना। टूटकर बिखर जाना, गवारा इसे, झूठ का पैर छूता नहीं आईना। क्या जाने भेद, गोरे -काले का ये, जैसा जो दिखता, दिखाता आईना। सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो, किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना। फितरत समझता है हर आदमी का, सच से बे-खबर नहीं रहता आईना। बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ, उन्हें नज़र नहीं आता वही आईना। गला कोई दबाता झूठ आज बोल, खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना। फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा, पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना। वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो, यही मंत्र हमको सिखाता आईना। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा :...
बूंद-बूंद जीवन बरसे
कविता

बूंद-बूंद जीवन बरसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बूंद-बूंद जीवन बरसे, देख-देखके मन तरसे, जब जब बारिश होती, आसमान बादल गरजे। जल जीवन का आधार, कर ले जल से तू प्यार, अमृतमय होता है जल, महिमा होती है अपार। अद्भुत द्रव्य कहलाता, शीतलता तन दिलाता, क्रोध अगर जब आये, पल में ही शांति लाता। किसान रहता है निर्भर, बहता नदियों में झरझर, बच्चे नहाते खुशी-खुशी, पसीनों से हो तर बतर। नदी, नाले और हैं सागर, जल भरे देता बड़ा गागर, जल लाता खुशियां हजार, हर जन को जल से प्यार। बूंद-बूंद जीवन बरसता, लेकर चले हल किसान, जल होगा तो कल रहेगा, जल बचत को रहे तैयार। बूंद-बूंद जीवन बरसेगा, आयेगी बागों में बहार, पपीहा बोलेगा वन में, आएं अनेकों ही त्योहार। जल बरसेगा जब आंगन, मन में उठे प्यार की लहर, बादल फट जाते हैं कभी, टूट पड़ेगा तब एक कहर। बूंद-बूंद जीवन ब...
बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या
आलेख

बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** पैसा- हमेशा एक चिंता का विषय बना रहता है, परंतु यही वह आधार भी होता है, जो हमारे जीवन के बुनियाद को निर्धारित करता है। यह हमारे लिए केवल एक सपना ही नहीं, बल्कि भारत में हर नागरिक का अपना एक अधिकार भी होता है। बेरोजगार की कमी भारत के प्रमुख मुद्दों में से एक है और जब तक इस मुद्दे का कोई स्पष्ट उपाय नहीं मिल जाता, तब तक इस पर पूर्ण रूप से विचार करने की आवश्यकता बनी रहेगी । बेरोजगारी- भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसे समझना बहुत जरूरी है। वैसे तो भारत, मानव संसाधन के मामले में बहुत समृद्ध है, परंतु फिर भी हम वर्षों से बेरोजगारी की स्थिति में जीते आ रहे हैं। जो लोग पूरी तरह से बेरोजगार हैं ; उनका जीवन बहुत दयनीय है। जब तक यह बेरोजगारी की समस्या समाप्त नहीं हो जाती, तब तक हम अपने देश को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ।...
खत का क्या महत्व
कविता

खत का क्या महत्व

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** क्या होते थे उस समय के खत हमारे और तुम्हारे लिए। पर समय परिवर्तन ने किया कुछ इस तरह का खेल। बंद होने लगे पत्रों को लिखने का वो दौर। क्योंकि आ गये है अब संचार के नये उपकरण। जिसके कारण स्नेह प्रेमभाव और आत्मीयता मिट रही है।। क्या दौर हुआ करता था जब दिलकी बातें कहने। सुख दुख और बातें बताने के लिए हाथ से खत लिखते थे। और लिखने से पहले बहुत सोचा करते थे। फिर सब समाचारों को क्रमश: खत में लिख पाते थे। और खत लिखते हुए उन्हें अपने करीब पाते थे।। खास बात तो ये होती थी। कि लिखने और पाने वाले को। खत आने का इंतजार रहता था। इसलिए डांकिया की प्रतिक्षा करते थे। और घर के अंदर बहार बारबार आके देखते थे।। खत को पाकर और पढ़कर जो जो चैंन और सकून मिलता था। उसे हम व्यां नहीं कर सकते बस ख़तको दिलसे लगाते थे। और उसे बार बार पढ़...
है लालसा यही अब मेरी
कविता

है लालसा यही अब मेरी

आचार्य राहुल शर्मा फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** लावणी छंद में कविता है लालसा यही अब मेरी .. बादल बनकर बरसूँ मैं। सबके ताप हरण मुझसे हों .. सेवा करके हरसूँ मैं।। मेढक मोर पपीहा खुश हों .. देख मुझे ही झूम उठें। धरती की मैं प्यास बुझाऊँ.. माथा मेरा चूम उठें।। १ सावन का बादल बन जाऊँ.. रिमझिम-रिमझिम बरसूँ मैं। गीला कर दूँ सूखे को यूँ.. मौसम ठंडा करदूँ मैं।। मैं भी सागर से जल लेके.. आऊँ-जाऊँ सावन में। मेरा भी मन मीत खड़ा हो.. मुझको देखे आँगन में।। २ पानी के बिन सूना सूना.. जीवन मरता रहता है। मेढक अपनी बोली बोले.. मोर पपीहा कहता है।। पलता जीवन सब जीवों का.. बादल जल बरसाते हैं। आमों पर बैठे तोते भी ... मीठू मीठू गाते हैं।। ३ मैंने एक लालसा पाली .. बादल बनना मुझको है। नभमंड़ल में उड़ता जाऊँ.. दृश्य देखना मुझको है।। बादल भी सेवा करते हैं.. बारिश...
रूठी हुई महफ़िल
कविता

रूठी हुई महफ़िल

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महफ़िल में तेरा इन्तज़ार करते-करते सुबह हो गई, जो नूर मेरे चेहरे पर था उस नूर से मेरे चेहरे की कलह हो गई। सितारों वाला दुपट्टा ओढ़ा था मैंने तुम्हारे लिए, वो दुपट्टा तुमसे रूठ गया और उसके सितारों की चमक भी बेज़ार हो गई। दिल में अरमान लिए तेरी ख़ातिर सज कर महफ़िल में आए थे हम, रूठ गईं मेरी चूड़ियाँ भी तुमसे और उनकी खनक कम हो गई। मैंने वही पायल पहनी थी जो तुमने मुझे तोहफ़े में दी थी, छम-छम करना भूल गईं वो भी और उदास हो गईं। आँखों में काजल डाल बिंदिया सजाई थी मैंने माथे पर, काजल मेरा आँसुओं में धुल गया और बिंदिया भी तुमसे नाराज़ हो गई। क्यूँ मेरी मोहब्बत को महफ़िल में रुसवा किया तुमने इस तरह, कि वो सजी हुई महफ़िल तेरे इंतज़ार में तबाह हो गई। उस महफ़िल में तेरा इंतज़ार करते-करते .....। परिचय :...
ये नियति का लगान है
कविता

ये नियति का लगान है

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** ज़ख्म लगे होने हरे, औ' चेहरे पर मुस्कान है, तुम कहो पीड़ा है मेरी, मैं मानूँ ये इम्तिहान है। जिंदगी होने का सबब, सिर्फ खुशी होती नहीं, यह सफर है सुहाना, कहीं बाग है, वीरान है। धैर्य साहस से जुटा हो, आनंद भी वही पायेगा, बोझ सर लेकर जो बैठा, वही सदा परेशान है। अपने खातिर जी लिया, औरों का भी ख्याल कर, कुछ त्याग-पीड़ा भोग ले, ये नियति का लगान है। परउपदेश कुशल बहुतेरे, आसानी से कह दिया, क्या कहे 'प्रदीप' उन्हें, वे समझे-बुझे नादान है। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन : देश के समाचार पत्रों में सैकड़ों पत्र, परिचर्चा, व्यंग्य लेख, कविता, लघुकथाओं का प्रकाशन , दो काव्य संग्रह(पग-पग शिखर तक और रीता प्याला) प्रकाशित। सम्मान : अटल काव्य सम्म...
एक शिक्षक
कविता

एक शिक्षक

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी उसे उदास नही देखा चाहे हो उसके जीवन में लाख परेशानियां पर कभी उसे चिंतित नहीं देखा कभी खुद के लिए ना जीकर मैने उसे दूसरो के लिए जीते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। चाहे जिंदगी की परेशानी हो या हो किताबो की परेशानी मैने उसे बताते ही हल करते देखा कभी रुकने के लिए नही हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। निरंतर चलने का उसका वो इरादा मैने बच्चो के भविष्य को बनाते देखा परिवार है उसका भी पर मैने दूसरो के बच्चो को अपना बच्चा बनाते देखा और अपने परिवार से अलग हटकर विद्यालय को भी परिवार बनाते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। जीवन में कभी पूर्ण विराम न लगने देना ऐसा उनको समझाते देखा किसी भी बात क...
राह अपनी बनाकर
गीतिका

राह अपनी बनाकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** सपन, हृदय में ज्यों-ज्यों पनपते गए- उधर रपटन न थी, पर फिसलते गए। अपनों को समझते हैं, अपना ही हम- परन्तु उनको सदां, हम तो खलते गए। यूँ सैकड़ों झाड़ियाँ, रोड़े आते हैं बहुत- हम राह अपनी बनाकर, निकलते गए। टांग खींचने वालों का, लगा मेला यहां- मंजिल पायी उन्होंने जो बस चढ़ते गए। यूँ मानवता- अहिंसा के पुजारी है हम- किन्तु नागों के फन, हम कुचलते गए। एक शातिर, थोड़ा मीठा बोले तो क्या- उसकी बातों से, क्यों हम पिघलते गए। निर्धारित नहीं लक्ष्य, ना दिशा ज्ञात है- हम एक नशेड़ी के जैसे ही चलते गए। संस्कृति- धर्म का कुछ, पता ना किया- हम यूँ बहकते-बहकते ही ढलते गए। स्वार्थ का झुनझुना, जब बजा सामने- तो हम पागल बने, और उछलते गए। कार-कोठी तक पहुँचे, वह किस तरह- राह जानी ही नहीं, केवल जलते गए। संघर्षों के बिना,...
कलम जब बोलती है
कविता

कलम जब बोलती है

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** मन में बिखरे भावों को शब्दों का रूप देती है कह न पाते जो जुबां से बात वो भी कह देती है कलम जब बोलती है। अंतर्मन में जो होता है प्रकट उसे कर देती है भावों को शब्द रूप दे साहित्य सृजन करती है कलम जब बोलती है। भूत-वर्तमान-भविष्य के सभी राज खोलती है कलम जब बोलती है। कभी-कभी प्रहार ये तलवार से तेज करती है कभी-कभी प्रहार तलवार का रोक देती है कलम जब बोलती है। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …
गीतिका

अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जिंदा रखने, अक्षर-अक्षर प्यार लिखें। कलम कसाई बनकर हम क्यों, दुखड़ों का अंबार लिखें।।१ बीज प्रीति के रोपित करने, मानव के बंजर उर पर, श्रम सीकर-सा सींच-सींच हम, करुणा के उद्गार लिखें।।२ छंदों के उद्यान उगा हम, महकाने वाले जग को, पंक्ति-पंक्ति में बस मानव के, सद्कर्मों का सार लिखें।।३ दिल के सम्यक् संयोजन कर, भरें मधुरिम काव्य के रस, कलुष भाव के भेद मिटा हम, प्रणय युक्त संसार लिखें।।४ विश्व शांति हो विश्व पटल पर, लहराएँ हम वह परचम, भाल भारती का हो उन्नत, ऐसा लोकाचार लिखें।।५ जला ज्ञान के दीप जगाएँ, हो जिनके घर अँधियारा, सत्पथ के राही हैं जितने, हम उनका आभार लिखें।।६ हो'जीवन'खुशियों से रोशन, मिट जाये अवसाद सभी, रोम-रोम में इस मिट्टी से, हम कुसुमित श्रंगार लिखें।।७ परिचय :- भीमराव...
देवतुल्य परिवार मिले
गीत

देवतुल्य परिवार मिले

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** प्राणवंत हो सुप्त भावना, हो पूरण सब मनोकामना। वाणी में अमृत घुलता हो। बाँहो का हार मचलता हो। अग्रज के सम्मुख हम नत हो। आदर्शों में अध्ययनरत हों। हो बीजारोपण ममता का। जहाँ पाठ पढ़े सब समता का। कर्मठता का मूल्यांकन हो। हर योग यहाँ मणिकांचन हो। घर घर मे तुलसी सेवा हो। हर मूर्ति यहाँ सचदेवा हो। जहाँ वेद ऋचाएं गुंजित हों। आशीषों से अभिनन्दित हों। घर प्रगतिशील कल्पना हो। जीवन में नई अल्पना हो। मुरली की तान बिखरती हो। मंदिर घण्टा ध्वनि बजती हो। जीवन का कोना कुसुमित, रोज यहाँ त्योहार मिले। संस्कृतियों के संरक्षण हित देवतुल्य परिवार मिले। सुरभित क्यारी सी गंध मिले। उन सुमनों पर मकरन्द मिले। उन पर भृमरों का गुंजन हो। कली का अलि से अभिनन्दन हो। जहाँ पक्षी करते होंकलरव। हो गन्ध गंध में हर अवयव। ...
सामाजिक अवधारणा
कविता

सामाजिक अवधारणा

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** जात बदलकर अपनी माँ पर लांछन लोग लगाते हैं। रक्त पिता का किया कलंकित ख़ुद को श्रेष्ठ बताते हैं॥ जन्म लिया जिस जाति में तुमने उसका अपमान किया। स्वयं बदलकर प्यारे तुमने जग में ऐसा, क्या काम किया॥ अपनी हीं नजरों में तुमने अपना मान गिराया हैं। कौन करें सम्मान तुम्हारा ख़ुद को हीं झुठलाया हैं॥ अभी समय हैं परिवर्तन का मन में अलख जगालो। जागो प्यारे स्वाभिमानी ख़ुद की लाज बचालो॥ अनुनय विनय "विमल" करता हैं पतन नही होने देना। सामाजिक अधिकारो का तुम हनन नही होने देना॥ शीश कटा लेना, पर अपनी जात नही खोने देना। परिवर्तन की आँधी हैं ये अस्तित्व नही खोने देना॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विश...
मंज़िलें… ये डगर और है आदमी
ग़ज़ल

मंज़िलें… ये डगर और है आदमी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मंज़िलें, ये डगर और है आदमी। मुश्किलें, ये सफ़र और है आदमी। रात के साथ है नींद की रंजिशें, रतजगे, ये पहर और है आदमी। वक़्त के साथ मिलकर गुजरते रहे, सिलसिले ,ये बसर और है आदमी। होशआ पायेगा किस तरह इस जगह, मैक़दे, ये असर और है आदमी। है सितारों भरा रात का आसमाँ, फासलें, ये नज़र और है आदमी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...