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है लालसा यही अब मेरी

आचार्य राहुल शर्मा
फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)

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लावणी छंद में कविता

है लालसा यही अब मेरी ..
बादल बनकर बरसूँ मैं।
सबके ताप हरण मुझसे हों ..
सेवा करके हरसूँ मैं।।
मेढक मोर पपीहा खुश हों ..
देख मुझे ही झूम उठें।
धरती की मैं प्यास बुझाऊँ..
माथा मेरा चूम उठें।। १

सावन का बादल बन जाऊँ..
रिमझिम-रिमझिम बरसूँ मैं।
गीला कर दूँ सूखे को यूँ..
मौसम ठंडा करदूँ मैं।।
मैं भी सागर से जल लेके..
आऊँ-जाऊँ सावन में।
मेरा भी मन मीत खड़ा हो..
मुझको देखे आँगन में।। २

पानी के बिन सूना सूना..
जीवन मरता रहता है।
मेढक अपनी बोली बोले..
मोर पपीहा कहता है।।
पलता जीवन सब जीवों का..
बादल जल बरसाते हैं।
आमों पर बैठे तोते भी …
मीठू मीठू गाते हैं।। ३

मैंने एक लालसा पाली ..
बादल बनना मुझको है।
नभमंड़ल में उड़ता जाऊँ..
दृश्य देखना मुझको है।।
बादल भी सेवा करते हैं..
बारिश से जाना मैंने।
बादल के गीतों को गाके..
बादल बन ठाना मैंने।। ४

परिचय :-  आचार्य राहुल शर्मा
निवासी : फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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