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मौन
कविता

मौन

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** बोलने में ऊर्जा का क्षरण होता, शक्ति जाती। मौन रहने से है, जल जाती तेरे अंतर की बाती। मौन रहने.... मौन रहकर झांक अंदर, तुझको प्रभु दर्शन मिलेगा। प्रभु के सुमिरन में रमा तो, मन कमल तेरा खिलेगा। भक्ति में यदि डूब पाया, ये बनेगी तेरी थाती। मौन रहने........... ऊर्जा संचित रही तो, जग की माया से बचेगा। माँ सरस्वती को रिझा पाया तो, गीतों को रचेगा। मीरा डूबी कृष्ण में ऐसी, की दुनिया उसको गाती। मौन रहने........ यदि है पानी प्रभ की भक्ति, तो तनिक एकांत पाले। माया के पीछे ही भागा, पड़ेंगे पावों में छाले। डूब जा प्रभु नाम मे, इससे ही जग से मुक्ति होती। मौन रहने .......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
कहां हो आ जाओ तुम
कविता

कहां हो आ जाओ तुम

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** जगत के बिगड़े सारे काम कहां हो आ जाओ तुम राम। बड़ा अंधेरा छाया इस जग में है विपदा आन पड़ी पग-पग में। जीना सबका ही है हराम। जगत के बिगड़े सारे काम कहाँ हो आ जाओ तुम राम। छोड़ मानवता अभी तो प्राणी बोल रहा है स्वारथ की वाणी भुला दाम से न लौटे जान। जगत के बिगड़े सारे काम कहाँ हो आ जाओ तुम राम। देख कैसी घड़ी आ गयी आज हैं लाशें कंधों को मोहताज। फिर भी लगा मेला शमशान। जगत के बिगड़े सारे काम कहाँ हो आ जाओ तुम राम। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
अपना लक पहन कर चलों
कहानी

अपना लक पहन कर चलों

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** मेरे बदन से मेरी कमीज किसी ने अलग कर ली। मेरी सीट के पीछे बैठे व्यक्ति ने यह कारनामा कैची से बड़ी खूबसूरती से किया। मै बस में झपकी ले रहा था। वह शरारती यही पर नहीं रुका, उसने उसी अंदाज में मेरी बनियान के भी टुकड़े करके उसे भी मेरे बदन से अलग कर दिया। न जाने कहाँ जा रहा था मैं। और क्यों जा रहा था? किसी मंजिल की तलाश थी या मंजिल मुझे अपनी ओर ले जा रही थी? शुक्र है कि वह मेरा पाजामा नहीं उतार पाया। मेरी गहरी नींद की मुझे गहरी कीमत चुकानी पड़ी। माँ हमेशा कहती थी, 'बेटा सफ़र में सावधान रहना चाहिए' पर सावधान रहने का यह मतलब तो नहीं कि सोया ही ना जाय? और फिर बदन से कोई कपडे उतार ले यह तो कल्पना से परे ही है। उसने चुराया कुछ नहीं पर उसकी शरारत मुझे महँगी ही पड़ने वाली थी। नीद में गाफिल लोग मालूम नहीं क्या क्या गवाते है? 'जो सोवत है सो खोवत है, जो...
हर्षोल्लास
कविता

हर्षोल्लास

कु.चन्दा देवी स्वर्णकार जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी चिरैया सोन चिरैया मनभावन है वह पर्यावरण की प्यारी चिरैया पर्यावरण में नैसर्गिक ताकि न होती तो तो तुम गौरैया कहाँ से आती आज प्रदूषण में कहां चली गई तेरी कूक से ही तो कोयल कूक तेरी कोख से ही तो सरगम बना तेरी ची्ची की आवाज में ही तो वैज्ञानिक को वैज्ञानिकता दी और तेरी ही कूक से गायकों का अवतरण हुआ. आज ही केदिन अलका याग्निक का भी "हुआ तेरी "दिवस पर है वैज्ञानिक का भी दिवदिवस न्यूटन का पुन्यतिथि का दिवस शायद वह भी आज अचंभित है शायद वह भी इस प्रदूषित संसार से दुखी होकर चला गया भौतिकवादी इस दुनिया ने तुझे ७०% मार दिया और विश्व पटल पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह दिया आखिर क्यों आखिर क्यों? छत पर आंगन पर ,घर के अंदर बाहर, राज्य था हमारा तेरे साथ साथ होली खेलते तुम हमारे साथ से दाना चुगती बचपनमें हम तुम एक साथ थे अलमस्त इस जीवन की शै...
मौत का निमंत्रण
कविता

मौत का निमंत्रण

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी का कोई भरोसा नहीं इस सुखद वातावरण में मुस्कुराकर मुझे अलविदा कहना कोई ग़म न करना और न ही आंसू बहाना अगर आ जाये निमंत्रण मौत का शुक्रिया अदा करना उस ईश्वर का एक खुशहाल जिंदगी जीये इस लॉकडाउन महामारी में। जीओ और जीने दो सफल हो सभी की जिंदगी मानवता जिन्दा रहे हर इंसान में सुख दुःख में खड़ा रहें, एक दूसरे की भावनाओं को समझे व अपनी जिम्मेदारी को न लाये गगन कभी मलाल अपने मन में जीये स्वतंत्रता लिए इस लॉकडाउन महामारी में। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य प्रदेश लेखक संघ मंहू इकाई, महफ़िल ए साहित्य कोद...
प्रलय
कविता

प्रलय

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुधरो मानव सुधरो अब भी प्रलय बाकी है, गूँज रहा है जो नाद महाकाली का, उसमें काल का अब भी नृत्य करना बाकी है। बहुत तोड़ी है अहम में लोगो की नसें, अभी काल के द्वारा तुम्हें तोड़ना बाकी है। समझते थे तुमको सब मानव, मगर बनकर रह गए तुम एक दानव। तभी रण चंडी का हुंकार भर संहार करना अभी बाकी है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कवि...
बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं
आलेख

बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ’यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो, तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों, तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो’? इसी संदर्भ में मुजफ्फरपुर के जनाब आदित्य रहबर लिखते हैं, यदि इसका जवाब हां है तो मुझे आपसे कुछ नही कहना है, क्योंकि आपके अंदर की संवेदना मर चुकी है और जिसके अंदर संवेदना न हो, वह कुछ भी हो लेकिन मनुष्य तो कत्तई नहीं हो सकता है। आज कोरोना महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में तबाही मचा रखी है, उसमें किसी की मृत्यु,किसी की पीड़ा पर आपको दुःख नहीं हो रहा है, तो निश्चित ही आप अमानवीय हो रहे हैं। जब देश में चारों ओर कोहराम मचा है, प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग (जो एक दि...
मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ
कविता

मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ मरने से नहीं डरता...! सिर पर कफन बांधकर चलता हूँ युद्ध के मैदान में, सीना ताने दुश्मनों के छक्के छुड़ा देता हूँ...! न माइनस डिग्री की ठंड न भयंकर गर्मी मुझे परेशान करती है....! विचलित करती है तो घर से आई कोई चिट्ठी जिसमें पत्नी के आंसुओं में डूबे धुंधले शब्द , जब खत में उभरते हैं तो जज़्बातों पर क़ाबू करना मुश्किल सा लगने लगता है..! याद आ जाती हैं बच्चों की मासूम बातें , उनकी मासूम शरारतें , मानस पटल पर कौंध जाती हैं, मैं भी कैसा बेबस हूँ जो उन्हें पल-पल बढ़ते देख नहीं सकता बूढ़े माता-पिता की सेवा से वंचित होने का तो ख़याल आते ही रुलाई आ जाती है....! क्या-क्या याद करूँ! दिल को टीस देने वाली ऐसी कितनी ही बातें हैं....! हाँ, पर यह सोच .... अधिक वक्त तक क़ायम नहीं रहती, विचारों को झटक देता हूँ मातृभूमि को वंदन क...
मां पर लिखना आसान नहीं
कविता

मां पर लिखना आसान नहीं

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां के श्री चरणों में मातृ दिवस पर शब्दांजली माँ पर लेखन कोई आन नहीं मां पर लेखन कोई मान नहीं मां पर लेखन कोई सम्मान नहीं मां पर लेखन कोई स्वाभिमान नहीं अथक प्रयासों का भी कोई भान नहीं मां पर लिखना आसान नहीं मां पर लिखना आसान नहीं।। कैसे लिक्खूं जिससे तुतलाती भाषा सीखी है कैसे लिक्खूं जिससे जीवन परिभाषा सीखी है कैसे लिक्खूं जिससे आशा ही आशा सीखी है कैसे लिक्खूं जिससे प्रेम नेह अभिलाषा सीखी है सहज सरल अभिव्यक्ति का मुझको भान नहीं मां पर लिखना आसान नहीं।। बिन मां के बच्चा खड़ा नहीं होता है बिन मां के बच्चा बड़ा नहीं होता है बिन मां चुनौती समक्ष अडा नहीं होता है मां का संबंध नो माह सभी से बड़ा होता है सुख-दुख ममता करूणा का ध्यान नहीं मां पर लेखन कोई आसान नहीं।। मां प्रभुसत्ता पूजा भक्ति आराधन है मां जगत पूर्ण संसाधन हैं मां की छबि सुंदर ...
सृष्टि
कविता

सृष्टि

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जड़ चेतन दो वस्तु हैं, महाशक्ति भगवान। जड़ चेतन संयोग से, करता जग निर्माण। क्षिति जल पावक पवन, खम अहंकार मन बुद्धि, मिश्रित कर निज चेतना, रचता सृष्टि प्रबुद्ध। समझ न सकती बुद्धि नर ईश्वरीय व्यवधान, वैज्ञानिक उपलब्धियां, है परमाणु समान। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उप...
कर्मठ भारतीय हूं
कविता

कर्मठ भारतीय हूं

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** संकट प्रसन्नचित हूं मैं, थोड़े में संतुष्ट हूं मैं। ना उम्मीदों में उम्मीद हूं मैं, मैं कर्मठ भारतीय हूं। सम्पूर्ण संसार में व्याप्त है मेरी भुजाएं, सम्पूर्ण कमियों पर है मेरी शब्दावली। सम्पूर्ण धर्मों से सजती है मेरी बांगे। में कर्मठ भारतीय हूं। उम्मीद के प्रफुल्लित हूं मैं। शक्ति के वास में मैं हूं। भारत के वीर पुरूषों के अनंत ज्ञान में हूं। में कर्मठ भारतीय हूं। परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिय...
समानता
कविता

समानता

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** ज्यों स्कूल के यूनिफार्म में, दिखते हैं बच्चे एक समान। इसी तरह इस कोरोना ने भी, दिया है सबको एक सा मान।। न भेद भाव अमीर गरीब का, न भेद रखा है ऊँच नीच का। न ज्यादा खाओ न भूखे रहो, मार्ग बताया है उसने बीच का।। कहीं अमीर के घर शादी में, फिंकता था पकवानों का अम्बर। और कहीं गरीब के घर का, भूखा सोता था सारा परिवार।। प्रकृति हमारी माता है, कैसे सहन करे पक्षपात। अतः साम्यता लाने सबमें, दिया कोरोना का आघात।। रोक दिये धनपतियों के व्यापार, कि, तुम भी समझो धन की व्यथा। सीमित कर आयोजनों की शान, एक सी कर दी सबकी मनोव्यथा।। किसी गरीब की मिट्टी में, जाना थी लोंगों की शान नही। और अमीर के घर, गरीब, होता कभी मेहमान नहीं।। अब सब कुछ होगा वैसा ही, जैसा चाहे प्रकृति हमारी। देने अपने हर सुत को सुख, उसने ही यह लीला धारी। उसने ही ...
माँ तुझे सलाम
कविता

माँ तुझे सलाम

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम तेरे कदमों तले, जन्नत का मकाम माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तू है जननी, माँ तू है महान दुनियां करती है, तुझको सलाम माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तू धन्य है, माँ तू है महान् माँ तेरा ऋणी है, ये सारा जहांन माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तू पूजनीय है, तू स्मरणीय है माँ तेरा देवत्व रूप, तू वन्द्नीय है माँ तूझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। माँ तेरे ममत्व में, तो असंख्य रूप हैं सृष्टि की जननी, माँ-सादर प्रणाम माँ तुझे सलाम, माँ तुझे सलाम।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
नियति
लघुकथा

नियति

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता बाहर खड़ी आँसू बहा रही थी। सभी उसे मूक दर्शक बने निहार रहे थे। तभी एक कटु आवाज ने जैसे सारा सन्नाटा भंग कर दिया था।गीता, गीता अन्दर आ जाओ, वरना मुझसे बुरा कोई ना होगा। लोकेश उसे खींचते हुए अन्दर ले गया। और जमीन पर पटकते हुए उसे पीटने लगा। बाहर सिर्फ गली-गलोज और चिल्लाने की आवाज आ रही थी। अब तो यह हर रोज का काम हो गया था। पहले छोटी-छोटी बातों पर कह-सुनी होती, फिर हाथापाई होती। बीस साल पहले जब गीता विवाह करके इस घर में आई थी। तब किसने सोचा था कि यह रिश्ता इतना उलझ जाएगा? लोकेश को शराब पीने की बुरी लत तो शादी से पहले ही थी। पर शादी के बाद तो वह पूरी तरह से इस में डूबता जा रहा था। माता-पिता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था। वह अपने परिवार की एक नहीं सुनता था। जब भी कोई उसे समझाने की कोशिश करता, वह चुपचाप सुन लेता। गीता का पत्न...
जमीं पर फिर कहीं अब
ग़ज़ल

जमीं पर फिर कहीं अब

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जमीं पर फिर कहीं अब आसमान उतरेगा। मुसीबत में कहीं वो मेहरबान उतरेगा। न कुछ कहना जरूरी, न कुछ सुनना जरूरी। दिलों के रास्ते वो बेजुबान उतरेगा। इबादत और दुआएँ, असर अपना करेगी, कहीं पर राम-यीशु, रेहमान उतरेगा। रहे महफ़ूज जिसमें, सभी हम लोग सारे, वो लेकर साथ अपने घर-मकान उतरेगा। फ़िकर उसको वहाँ है, यहाँ भर के सभी की, वो लेकर और थोड़ा इम्तिहान उतरेगा। दिया उसने कभी कुछ जो है अपना-हमारा, कहाँ हमसे कभी वो एहसान उतरेगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत...
उम्मीद का दामन
गीत

उम्मीद का दामन

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ३० मापी मेरा मन ये प्यासा है कोरे कागज की तरह से दिल ये प्यार में घायल है कोरे कागज की तरह से जीवन में मेरे कोई कमी नहीं उजली राहों की और तो और ना ही जिन्दगी में अरे बहरों की क्यों दिल कहता है तुम्हारे कि मेरे अफसानों की और ये दिल दिल खोया है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में अरे मैंने सपना देखा बनूँ दुल्हन की और खिलौना नहीं है ये दिल भी किसी से खेले की हमेशा रहा है उमंगे लिए अपने मन अन्तिस की दिल बसा तुममें है, मन है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में रोशनी मिली है हमें तो हाँ बहरों की और हमें जिन्दगी में कुछ उम्मीदें हैं तुमसे भी तुम तो सुनना कुछ हमारे इस सौगात भरे दिल की जो तुम्हें याद करता है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
उम्मीद का दामन
कविता

उम्मीद का दामन

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** समस्या बड़ी है, ये परीक्षा की घड़ी है हालात कल बुरे थे आज बुरे हैं, लेकिन सब्र रख, वक्त कल बेहतर परिस्थिति लेकर आयेगा मंजिल के पास आकर अपने रास्ते न मोड़ कोरोना संकट टल जाएगा, उम्मीद का दामन न छोड़ उम्मीद की नोक पे दुनिया टिकी है उम्मीद मुर्दों में जान लाती है उम्मीद पत्थर को भगवान बनाती है वही उम्मीद आज इन्सान और इंसानियत को बचायेगा। चुनौतियों का महासागर पार होगा हौसलों के पंख न तोड़ कोरोना संकट टल जाएगा उम्मीद का दामन न छोड़ परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह निवासी : रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
प्यारी माँ
कविता

प्यारी माँ

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** माँ जब भी प्यार देती थी अपना सब वार देती थी। मेरी एक मुस्कान पर वो आशीष हजार देती थी॥ और पिता जी ऐसेे थे मानो ईश्वर के जैसे थे। जो मांगा ला देते थे चाहे कम ही पैसे थे॥ हमको सु:ख देने को जो अपने सब सु:ख भूले थे। जब अपनी आँखो मे आँसू उनकी बाहो के झूले थे॥ उनके दामन के साये मे महलो के वैभव भूले थे। सब संभव था बाबु जी को अब लेकिन वो बात कहाँ॥ एक नाता न हमसे संभला वो दस को भी न भुलाते थे। एक चूले आंच पे जब माँ स्वादिष्ठ भोज बनाती थी।। नित प्रेम से भोजन पाते थे अपने हाथो से खिलाती थी। इतने प्रेम से प्यारी माँ सबको भोजन देती थी॥ वो भी अमृत लगती थी जो रूखी सूखी रहती थी। माँ की ममता के आंचल मे प्रेम की धारा बहती थी॥ अपने लाड़ प्यार से वो जब सारे दू:ख हर लेती थी। जब माँत पिता का साया था वो दिन बडे सुहाने थे।। परिचय :- योगेश पंथ...
पाती तेरे नाम
कविता

पाती तेरे नाम

पूनम शर्मा मेरठ ******************** कर्मों की खेती कभी सूखती, तो कभी लहराती थी पर, तुझे काटने की कितनी जल्दी थी, काटता चला गया उनींदी सी आंखों से, आधा अधूरा छोड़, सरक लिया, मेरी आंखें ताउम्र तलाशेंगी तुझे, तू तस्वीर में कैद हो गया मेरे भाई, मोबाइल का दायरा उलांघ, कानों में फुसफुसाता है, ऐसा लगता है, यहीं आसपास है तू कब भाई का दायरा लांघकर दोस्त बन गया था मेरा, खट्टी-मीठी सारी बातें साझा करते-करते, कौन से लोक चला गया,, अब कभी फोन नहीं आएगा ना मैं मैसेज करूंगी ना ही नीला "टिक" बनेगा मेरे छोटे भाई विजय ! तू कितना बड़ा हो गया रे समझदारी की बातें समझाते समझाते फुर्र से उड़ चला, अभी कल की ही तो बात है "अस्पताल जा रहे हैं जीजी !" झूठा... तू तो निकला था अनंत सफर को नंगे पांव, किसका हाथ थामा तूने ! हम सभी का हाथ छोड़ कहां चला गया मेरे भाई मुझसे ज्यादा चाहने वाला कौन मिल गया रे, कितना चाहती थी ...
वृक्ष और बेटी
कविता

वृक्ष और बेटी

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** तुम फलते हो मैं खिलती हूँ, तुम कटते हो मैं मिटती हूँ; तुम उनके स्वार्थ की खातिर, मैं उनके सपनों की खातिर। मैं बनकर माँ बेटी पत्नी लुटती और लूटाती अपनी ख्वाहिशों की मंजिल ढहाकर उनका घर आँगन सजाकर। तुम चहकाती आँगन उनका मैं भर देता दामन उनका, फिर क्यों तुम मारी जाती हो क्यों फिर मै काटा जाता हूँ। मैं देता हूँ शीतल छाया फिर भी जलती मेरी काया, तुम उनका हो वंश बढाती क्यों गर्भ में मारी जाती। हे!मगरुर मनुज तु रखना याद हमारी बातों को, दरक़ जाएंगे जब हम तेरी ढह जाएगी ऊँची मंजिल। क्योंकि हम है नींव तुम्हारे सपनों की कंगुरों की। हम लुटाते रहे अपना सर्वस्व, वो मिटाते रहे हमारा अस्तित्व। परिचय :- पारस परिहार निवासी : मेडक कल्ला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

हरप्रीत कौर शाहदरा (दिल्ली) ******************** कोरोना हर देश में, हर शहर में दुनिया के हर देश में, बरपा रहा है अपना कहर। आक्सीजन के बिना आदमी मर रहा है पूरे देश में हाहाकार मचा है चारों और निराशा छा रही है घनघोर। आज लोगों को आक्सीजन का महत्व समझ आ रहा है। वर्षो से इंसान जिसे मुफ्त में लेता आ रहा है। हवा में आक्सीजन तो पेड़ ही उपजाते है, जो हमे प्राण वायु देते है। खुदगर्ज इंसान उसी पर कुल्हाड़ी चलाते है। इस महामारी से हमें कुछ तो शिक्षा लेनी चाहिए। आने वाली पीढ़ी की प्राण रक्षा के लिए हमें एक वृक्ष लगाना चाहिए। बस करो प्रकृति का अनादर, अब बहुत हुआ जो हमे प्राण वायु देते है उस पर कुछ तो रहम खाओ। आओ ये संकल्प उठाए, पर्यावरण को नष्ट होने से बचाएं। प्रकृति को हरा भरा बनाएं। हर एक दिन नया वृक्ष लगाएं। प्रकृति ही जीवन है, अपने जीवन को बचाएं। परिचय :- हरप्रीत कौर निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा प...
मंदाकिनी
लघुकथा

मंदाकिनी

सीमा गर्ग "मंजरी" मेरठ कैंट (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्पताल के कमरे में प्रसव पीड़ा से मुक्ति प्रयत्न हेतु रीमा चिकित्सक की सलाह से टहल रही थी। प्रसव पीड़ा बढती जा रही थी। उसका पति समीर कभी कमर सहलाता तो कभी सिर अपने कन्धे पर रख मन बहलाने के लिए कोई चुटकुला छोड देता। तभी नर्स ने रीमा को प्रसूति कक्ष में ले लिया। बेचैन समीर बाहर चक्कर लगाते हुए सोचने लगा। वे दोनों अपने गाँव से बाहर शहर में नौकरी पर आये थे। यूँ तो रीमा ने सासूमाँ को फोन कर दिया। परन्तु उनको गाँव से पहुँचने में थोड़ा सा टाइम तो लगना ही था। उनके गाँव में नवरात्रि उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। पिछली बार नवरात्रि पर समीर भी छुट्टी लेकर रीमा को साथ ले दस बारह दिन माता पिता के पास रह कर आया था। नवरात्रि उत्सव में मातारानी की अलौकिक वात्सलयमयी छवि रीमा के हृदय में अंकित हो गयी थी। मातारानी की दिव्य शक्ति करूणा की ...
मधुसूदन
कविता

मधुसूदन

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** मधुसूदन में मधुसूदन लूट आया ना करो, यूं मधुसूदन पर इज्जत गवा या ना करो, यूं मधुसूदन का मूल दूसरों को चुकाना पड़ता, यूं प्यालो से प्यालो पे दूसरों को रुलाना पड़ता है, मुस्कुराती जिंदगी को बंदी बनाना तो छोड़ो, नहीं तो उन जनों को पर बुलाना पड़ता है, और उस रूमझूमु रात को भी खिलाना पड़ता है, परिवार को परिवार से हटाना पड़ता है, क्यों? प्यालो पे प्यालो को लगाना पड़ता है, यहां चिड़ियों की चंचकरियो की तरह प्यार भरे पलों को तुड़ाना पड़ता है, और जिंदगी को जिंदगी से भुलाना पड़ता है, खुशनसीब नहीं हैं वे जो प्यालो पर प्यालो को लगाया करते हैं, खुशनसीब तो वह है जो प्यालो पे प्यालो को तुड़ाया या करते हैं, और समय को समय पर गवाया न करते हैं, परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
राम जी की कृपा
भजन

राम जी की कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** राम जी की कृपा है... राम जी की कृपा है बरसती सदा, जिसका है पात्र सीधा वो भर जाता है। नाम मे आस्था जिसकी दृढ़ है नहीं, पात्र उसका स्वयं ही लुढ़क जाता है। राम जी की कृपा... तेरा विश्वास फलता है ये जान ले, नाम सास्वत है बस ये ही तू मान ले। नाम जप आस्था से करेगा जो भी, नाम पतवार उसकी ही बन जाता है। राम जी की कृपा... नाम मे आस्था शबरी भीलन ने की, राम आएंगे इस आश में ही वो जी। गुरु की वाणी पे हो आस्था दृढ़ जिसे, ईश साक्षात दर्शन को आ जाता है। राम जी की कृपा... राम का पग लगा तो अहिल्या तरी, पग पखारन की केवट ने विनती करी। राम का हाथ सिर पर रखा युक्ति से, भाग्य अपना तो केवट बना जाता है। राम जी की कृपा ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
जिन्दगी से मुलाकात हो गई
कविता

जिन्दगी से मुलाकात हो गई

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मौतों के शहर में हम रहते थे जहाँ एक रोज जिन्दगी से मुलाकात हो गई हर एक सांसों की होती है गिनतीयाँ जहाँ पैदा हुए थे जिस पल शुरुआत हो गई सूरज की रोशनी से चकाचौंध थी आँखें जब देखने लगे तो फ़िर रात हो गई सारी उम्र बूँदों के लिये तरसते रहे हम आंखें जो बंद हुई तो बरसात हो गई देखकर हर तरफ बरबादियों का मंजर लगता है आज खफा कायनात हो गई इस दिल को मैंने लाख समझा रखा था पर सामने जो देखा तो वही बात हो गई पूछने चला था मैं पता "सुकून" का लोग कहने लगे कि तहकीकात हो गई परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...