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मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ

मंजू लोढ़ा
परेल मुंबई (महाराष्ट्र)

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मैं राष्ट्र प्रहरी हूँ
मरने से नहीं डरता…!

सिर पर कफन बांधकर
चलता हूँ युद्ध के मैदान में,
सीना ताने
दुश्मनों के छक्के छुड़ा देता हूँ…!

न माइनस डिग्री की ठंड
न भयंकर गर्मी
मुझे परेशान करती है….!
विचलित करती है
तो घर से आई कोई चिट्ठी
जिसमें पत्नी के
आंसुओं में डूबे धुंधले शब्द ,
जब खत में उभरते हैं
तो जज़्बातों पर क़ाबू करना
मुश्किल सा लगने लगता है..!
याद आ जाती हैं
बच्चों की मासूम बातें ,
उनकी मासूम शरारतें ,
मानस पटल पर कौंध जाती हैं,
मैं भी कैसा बेबस हूँ
जो उन्हें पल-पल
बढ़ते देख नहीं सकता
बूढ़े माता-पिता की सेवा से वंचित
होने का तो ख़याल आते ही रुलाई
आ जाती है….! क्या-क्या याद करूँ!
दिल को टीस देने वाली
ऐसी कितनी ही बातें हैं….!

हाँ, पर यह सोच ….
अधिक वक्त तक
क़ायम नहीं रहती,
विचारों को झटक देता हूँ
मातृभूमि को वंदन करता हूँ
और ख़ुद को याद दिलाता हूँ
कि मेरा धर्म , मेरा कर्म ,
तो मेरे देश की रक्षा करना है..!
मेरा देश सुरक्षित है
तो हम सब सुरक्षित हैं।
देश की खातिर हम
प्राणों की बाजी लगा देंग,
पर मन तो आखिर मन है,
कभी सोचता भी है क्या
इस बार घर मैं जा पाऊंगा?
परिवार के संग
दिन बिता पाऊंगा?
नवविवाहिता
राह देख रही होगी,
क्या उसके अरमानों को
पूरा कर पाऊंगा?
प्रसव पीड़ा में
साथ रह पाऊंगा,
नवजात बच्चे की
किलकारी को सुन पाऊंगा?
इस खुशी को क्या
सबके साथ बांट पाऊंगा?
विचारों का मंथन चलता रहता है,
पर देश प्रेम सब रिश्तों पर
हावी रहता है और
इस चिट्ठी के
जवाब में जाने कौन
मेरा हाथ पकड़कर
मुझसे लिखवा लेता हैं कि,
“घबराओ मत, न चिंतित हो,
हम देश के सुरक्षा बल हैं,
सांसें हैं हमारी दुश्मन को,
खत्म करने के लिए,
गर शहीद हो भी गए तो
इतिहास के पन्नों पर
अमर हो जाएंगे,
हम राष्ट्र प्रहरी हैं , मौत
से कभी नही घबराएंगे…!
पर क्या हम देशवासियों
का कोई कर्तव्य नहीं?
उनके सपनों में रंग भरना
क्या हमारा धर्म नहीं?
अब वक्त आ गया है
जवाबी हमले का,
एक के बदले ग्यारह।
पर कुछ ऐसा हो जाए
आतंकवाद जड़ से खत्म हो जाए
और बेवजह एक भी
सैनिक शहीद न होने पाएं।।

परिचय :- मंजू लोढ़ा
निवासी : परेल मुंबई (महाराष्ट्र)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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