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हां हूं मैं मूर्ख

राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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हां हूं मैं मूर्ख,
नहीं होता गुस्से में मेरा मुंह सूर्ख,
बचपन से लोग कहते रहे हैं
और आज भी कह रहे हैं,
लगभग सबने ये घोषित किया है,
घर से लेकर बाहर वालों तक ने
ये वास्तविक शब्द मुझे दिया है,
सच कहने की क्षमता
शायद मूर्खों में ही होती है,
सच्चाई के पीछे भागना और
साफ हृदय का होना ही
अहमकता की निशानी है,
मां,भाई,बहन और पड़ोसी
सभी इस बात पर एक राय हैं,
समाज के लोगों ने भी माना,
सामाजिक चिंतन करते देख
यार दोस्तों ने भी पक्का जाना,
कुरीतियों,पाखंडों,अंधविश्वास,
अतिवादिता का विरोध,
समझदार व्यक्ति कर ही नहीं सकता,
समयानुसार जल रहे आग में
अपना पांव धर ही नहीं सकता,
कभी कभी तो लगता है कि
मेरी बीबी बच्चे भी मेरी इस महानता को
दिल की गहराई से स्वीकारते होंगे,
अब तो मुझे भी लगता है कि
मैं सचमुच ही मूर्ख बन गया हूं
या बना दिया गया हूं।

परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी
निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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