फिर वही बात
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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बहुत भुलाना चाहा,
पर इनकी पीड़ा से
मुक्ति की कल्पना,
मुझे फिर उन्हीं अंधेरी
गलियों में ले जाती है,
जहाँ फिर से वही बातें
दोहराई जाती हैं,
फिर से वही क्रूरता का
ताना बाना बुना जाता है,
फिर वही निर्दयता पूर्ण
व्यवहार की बातों का
सिलसिला चलता है !
इनकी मासूमियत वहां
एक बार फिर फ़ना हो जाती है !
फिर इनके लिए वही बेबसी,
वही लाचारी, जिनमे ये मासूम
रात-दिन दम तोड़ते हैं !
उस अंधकार में कोई
रोशनी की किरन नहीं दिखती,
कोई ऐसी ध्वनि
कानो में नहीं पड़ती,
जिसमें इनकी
मासूमियत की बातें हों,
जिनमे इनके लिए
करुणा और ममता हो !
यहां बार बार वही
गलतियाँ दोहराई जाती हैं,
इन मासूमों के जीवन को संरक्षित
करने की आशा क्षीण होती जाती है,!
इंसानो की नगरी में मानो
इंसान विवेकहीन हो गया है,
स्वयं के लिए...



















