बादल रुक जा
भारमल गर्ग "विलक्षण"
जालोर (राजस्थान)
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बादल रुक जा क्यों घटा छाई है,
परवाने घूम रहे हैं, क्यों छाया दिखाई है।
नवोद्भिद् एहसास कृशानु रोहिताश्व दिखाई है,
संकेत प्रपंचरंध्रा होंगी छद्मी आवेश नहीं बना
विवेक रह जा चरित्रता के संग पहचान होगी
तेरी भी जब होगा तेरा अचल रंग बिखरे नहीं
तू ढंग तेरा होगा अग्निशिखा के सम्मान
रुख बदल दे अपना भी स्वयं पर आजमा सम्मान।
दैवयोगा दैवयोगा हैं, परिणिता पार्थ को दिखाई है,
सुरभोग कलयुग में अनर्ह के साथ सजी है,
सहस्रार्जुन अब तिरस्कार हो रहा
मेरा इस तमीचर ने विगत
अदक्ष वल्कफल कि भांति शब्दों में ढाल सजाई है।
सुखवनिता नहीं रह पाती सुजात बनकर,
दर्प लोग अब मिथ्याभिमान आक्षेप लगाते हैं,
पुनरावृत्ति अब कराने लगे धनाढ्य
अनश्वर की प्रतीक्षा में अवबोधक का
अनुदेशक अलग-अलग अन्तर्ध्यान भी
अशुचि अशिष्ट पराश्रित प्रज्ञाचक्षु क...

























