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अब भोर हर नवेली
गीत

अब भोर हर नवेली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** अब भोर हर नवेली, हमको उड़ान देगी। हर सांझ स्वप्न को अब, अपने वितान देगी।।१ हर चाह पूर्ण होगी, आजाद है वतन अब। बस कर्म शक्ति हमको, कर में कमान देगी।।२ अधिकार है सभी को, शिक्षा स्वतंत्र समता। यह है सदी हमारी, खुशियाँ समान देगी।।३ धारण करो सदाशय, सौहार्द नित बढ़ाओ। ये गुण फकीर को भी, ऊँची मचान देगी।।४ तलवार झूठ की पर, गर्दन सटी भले हो। इंसानियत हमेशा, सच ही बयान देगी।।५ माँ के सरिस लगेगी, तब यह धरा हमें भी। जब राष्ट्र प्रेम की उर, गरिमा उफान देगी।।६ अब सोच को निखारो, मत द्वेष रंज पालो। हर निम्न सोच 'जीवन', उर पर निशान देगी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर...
नैतिकता-अनैतिकता
आलेख

नैतिकता-अनैतिकता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** “बना-बना के दुनिया फिर से मिटाई जाती है जरुर हम में ही कोई कमी पाई जाती है!" नैतिकता क्या होती हैं और अनैतिकता क्या होती हैं? यह प्रश्न अक्सर अनेकों को संभ्रमित करता रहता हैं। नैतिकता के मापदंड क्या होते हैं? रोजमर्रा के व्यवहार में उसका क्या महत्व होता हैं? व्यवहार में कहाँ तक हम इन बातों का विचार कर सकते हैं? या इन बातों का कितना महत्व होना चाहियें या नैतिकता को हम कितना सहन कर सकते हैं? या अनैतिकता हमें कितना प्रभावित या परेशान कर सकती हैं? समाज में व्यक्ति की एक दूसरे से नैतिकता की कितनी और क्या अपेक्षाएं रहती हैं? या नैतिकता और अनैतिकता की ओर देखने का हर एक का द्रष्टिकोण कैसा होना चाहियें? धर्म, संस्कार, प्रथा और परम्पराएं इनका नैतिकता से क्या सम्बन्ध हैं? नैतिकता सिर्फ धर्म पालन के लिए ही होती हैं क्या? नैतिकता का मूल्यमापन कैसे हो? औ...
मैं बच्चा हूँ
कविता

मैं बच्चा हूँ

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश **************** आज कल बहुत मजा आ रहा है, बहुत आनन्द ही आनन्द आ रहा है । दिन भर खुब शोर मचाया जाता है , मौज मस्ती से दिन बिताया जाता है । दादीदादा पापामम्मी दीदी चाचाचाची, सम्पूर्ण भारतबन्द घर में हुड़दंग मची। न स्कुल, बस्ते का बोझ न उठाएगें, सुहावन प्यारे दिन हम भुल न पायेगें । होली से दीपावली मैंने छुट्टी मनाई है, आप बड़ो ने यह खुशियाँ नहीँ पाई है। करोना सेअब सबकी नहीं मजबूरी, सेनेटाईजर, साबुन, मास्क, दो गज दुरी। परिचय :- डॉ. रश्मि शुक्ला निवासी - प्रयागराज उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak1...
राणा प्रताप चालीसा
दोहा

राणा प्रताप चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* मेवाड़ राज शिरोमणि, राणा वीर प्रताप। सूखी रोटी खाय के, धरम संभाला आप।। जय हो राणा जय महाराणा। जय मेवाड़ा राजपुताना।।१ धीर वीर प्रण के रखवारे। मा भारत के राज दुलारे।।२ राजस्थाना बसते भूपा। दिखते वैभव किला अनूपा।।३ जौहर पद्मा जगत बखानी। राणा वंशी वीर कहानी।।४ बलिदानी ममता की माता। पन्नाधाया जग विख्याता।।५ उदयपुर उदेसिंह बसाया। गढ़ चित्तोड़ा दुर्ग बनाया।।६ मातु पिता तुम्हरे जस पाई। उदय सिंह जसवंता बाई।।७ नौ मई पंद्रह सौ चालीसा। जन्में राणा हिन्दू ईशा।।८ कुंभलगढ़ में बजी बधाई। महलों में भी खुशियां छाई।।९ पूत अमरसिंह अजबद नारी। चेतक घोड़ा करी सवारी।।१० लम्बी भुजा लोह शरीरा। माथे तिलक मिवाड़ी वीरा।।११ तन अंगरखा लम्बी धोती। सुंदर सूरत ध्वजा करोती।।१२ तुम्हरा भाला ढाल कृपाणा। हरते रण में अरिदल प्राणा।।१३ दो तलवारे कटि सुहाती। भा...
दीवाली उसे भी मनानी है
कविता

दीवाली उसे भी मनानी है

अभिषेक शुक्ला सीतापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** "दीवाली उसे भी मनानी है, दीपक भी उसे जलाने है। पिछ्ले साल न बिके थे दिये, इस साल भी दुकान सजा ली है। चका चौंध की इस दुनिया में, कौन पूछता है मिट्टी के दीपो को। सब मस्ती मे झूम रहे है, कौन पूछेंगा फिर इन गरीबो को। बीच बाज़ार मे है दुकान उसकी, वह तो अरमान सजाये बैठा है। आशा है बिकेंगे दीप भी उसके, वह तो टकटकी लगाये बैठा है। दीवाली उसे भी मनानी है। दीपक भी उसे जलाने है।।" परिचय : अभिषेक शुक्ला निवासी : सीतापुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
सुरूर और गुरुर
कविता

सुरूर और गुरुर

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** चाँद से चाँदनी जब चैन से सरसती है, निगाह ए चकोर तब चाँद को तरसती है। गरजते है बदल तो बिजली कड़कती है. हो घोर अंधेरा, तो रोशनी चमकती है। रोता है जब बदल, तो बूंदे बिछड़ती है, स्वाति की बूंद को तब सीप तरसती है। प्रचंड शीत जब धूप से पिघलती है, बुझी राख में भी चिंगारी चटकती है। दिन के उजाले पर काली चादर तनती है, जलती रहती है शमा रोशनी बिखरती है काली बदली मतवाली होकर उमड़ती है, मयूर की आँखें पाँव देखकर बरसती है। किनारे के नम्र पेड़ तो झुक जाते हैं, जब नदी सागर की तरफ उफनती है। उखड़ते है वो मगरूर दरख़्त, ऐ "नवपमा"! जिनकी गर्दने गुरुर से सदा ही तनती है। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं य...
सरहद पर चाँद
कविता

सरहद पर चाँद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आज करवा चौथ है मगर थोड़ा अफसोस भी है कि मेरी चाँद अपनी चाँदनी से दूर सरहद की निगहबानी में मगशूल है। फिर भी मुझे अपने चाँद पर गर्व है, माँ भारती की सेवा/रक्षा सबसे पहला धर्म है। माना कि मेरा चाँद मुझसे दूर है, तो क्या हुआ? मैं तो मन वचन कर्म से अपना कर्तव्य निभाऊंगी, खूब सज सवंर कर नई नवेली दुल्हन बन मन के भावों से अपने साजन को दिखाऊंगी, हँसी खुशी व्रत, पूजा पाठ कर सारे धर्म निभाऊंगी, माँ पार्वती, शिव,गणेश, करवा माई से अपनी अरदास लगाऊँगी, पति की सलामती का आर्शीवाद लेकर रहूंगी, चंद्रदेव का दर्शन कर अर्घ्य चढ़ाऊँगी आरती उतारुँगी, फिर अपने चाँद का चाँद में ही दीदार करुँगी, तब जल ग्रहणकर करवा चौथ का सुख पाऊंगी, खुशी से अपने चाँद की खातिर जी भरकर नाचूंगी, इतराऊँगी। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : ...
मुफलिसी में भी मजा है
कविता

मुफलिसी में भी मजा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** तुलसीदास गंगा के तट पर, मुफलिसी दिन रात बिताये, उनकी सच्ची भक्ति देखकर, खुद श्रीराम मिलने को आये। मुफलिसी में नरसी भगत ने, प्रभु भक्ति का छोड़ा न साथ, श्रीकृष्ण भात भरने आये थे, आया पकड़ा नरसी का हाथ। मुफलिसी में दिन बिताये थे, गरीब सुदामा करता विनती, श्रीकृष्ण ने आकर घर भरा, दौलत नहीं, हो पाई गिनती। सबरी प्रभु भजन कर रही, मुफलिसी में बिताती दिन, ईश्वर श्रीराम, पहुंचे मिलने, झूठे बेर खिलाये गिन गिन। रैदास को कौन नहीं जानता, मुफलिसी उनके काम आई, गंगा में जब पैसा फेंका था, सुन रैदास, गंगा हाथ बढ़ाई। मन चंगा तो कटौती में गंगा, गरीबी,भक्ति दोनों ही दर्शाता, रैदास की गरीबी और भक्ति, रह-रहकर मन को तरसाता। नामदेव,कबीर और त्रिलोचन, सधना, सैनु निम्र वर्ग कहलाए, भक्तिभाव दिल में अति जागा, ईश्वर के वो बहुत पास आए। मुफलिस हो जन जन के ...
शोर
लघुकथा

शोर

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   बाहर हर तरफ सन्नाटे का राज था और बुजुर्ग दद्दा के मन के अंदर बहुत शोर तथा कोलाहल था। "राज ...बे ..टा। जरा ...इधर आना, जरुरी काम है।" खाँसते-खाँसते दद्दा ने वाक्य पूरा किया। दद्दा ने पास आए पोते राज के कान में कुछ कहा। उनके झुर्रियों भरे चेहरे पर जड़ी वीरान आँखें राज को याचना की दृष्टि से देखने लगी। शशीन्द्र रोज आफिस जाने से पहले और आने के बाद अपने अठ्ठानवे वर्षीय बीमार पिता को कमरे में देखने आता था। बीच-बीच में उन्हें जरुरत की चीजें मुहैया कराने का काम बीवी और बच्चों के जिम्मे कर रखा था। आज शाम जब शशीन्द्र दद्दा से मिलने आया, उसे बीड़ी की दुर्गंध का भान हुआ। उसने पलंग के सिरहाने जाकर लठकते तकिये को ठीक किया। कोई वस्तु नीचे गिरी, ऐसा लगा उसे। "राज। ओ... रा..ज। कहाँ हो तुम? एक मिनिट के अंदर दद्दू के कमरे में आ ज...
देखो वो चांद आया
कविता

देखो वो चांद आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देखो वो चांद आया करवा का चांद आया कही बदलो में छुपता कही डूबता निकलता वो देखो चांद आया करवा का चांद आया खेले छुपन छुपाई देते तूझे दहाई वो देखो चांद आया इठलाता चांद आया बलखाता चांद आया उसका गुरुर देखो उसको जरूर देखो कैसा सलोना दिखता वो देखो चांद आया करवा का चांद आया साजो श्रृंगार देखो रूपसी का हार देखो वो चांद सा है दिखता पर चांद को है तकता देखो वो चांद आया करवा का चांद आया सोलह श्रृंगार करके व्रत और उपवास करके निर्जल बिताये है दिन गिन गिनकर ये पल छिन तब जाकर कहीं वो आया वो देखो चांद आया करवा का चांद आया सखियों ये अर्ध्य देकर नैवैद्य से सजाकर कर लो यही विनती सौभाग्य की हो वृद्घि कर लो ये व्रत अब पूरी सब कामना हो पूरी देखो वो चांद आया करवा का चांद आया परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग ...
श्री काव्य सागर साहित्यिक संस्था इंदौर की मासिक काव्य गोष्ठी
साहित्य समाचार

श्री काव्य सागर साहित्यिक संस्था इंदौर की मासिक काव्य गोष्ठी

अगर होते नहीं कंचन अगन में जल गए होते।   इंदौर। उक्त पंक्ति है श्री काव्य सागर साहित्यिक संस्था इंदौर (पंजी.) की मासिक काव्य गोष्ठी की है जो रविवार १ नवम्बर २० को द्वारकापुरी इंदौर के गार्डन में आयोजित की गई। इस आयोजन में शहर और आसपास के स्थानों से कई कवि शायरों ने उपस्थित होकर अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भरपूर आनंदित किया। आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर जनाब हरीश साथी ने की तथा विशेष अतिथि का दायित्व कवि श्री दिनेश शर्मा जी ने निभाया। इस अवसर पर मेहमानों का स्वागत एवं संस्था द्वारा श्री दिनेश शर्मा जी का मध्यप्रदेश बीज निगम से सेवानिवृत्ति पर शाल श्री फल व स्मृति चिन्ह से संस्था अध्यक्ष श्री बृजमोहन शर्मा "बृज" द्वारा किया गया। आज के आयोजन में शायर श्री सुनील कुमार वर्मा मुसाफिर ने ग़ज़ल पढ़ी वो ही रूठ कर आज जाने लगे हैं, मनाने में जिनको ज़माने लगे हैं। श्री जय न...
दीपावली त्यौहार
कविता

दीपावली त्यौहार

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** दीपावली त्यौहार का आगमन आने वाला दीपावली का त्यौहार है, वीरेन्द्र यादव का सादर नमस्कार है। जो दीपावली का त्यौहार आ जाये, सबके चेहरे पर खुशियाँ छा जाये। दीपावली के बोनस का सबको है इन्तजार, देखों आने वाला है दीपावली खुशियों का त्यौहार। जो दीपावली का बोनस सबका आ जाये, सबका मन प्रसन्नऔर प्रफुल्लित हो जाये। दियों की रोशनी से सज जाता हमारा घर-द्वार, हम एक-दूसरे को खुशी-खुशी बांटते हैं उपहार। यह त्यौहार भाई-चारे का सौहार्दपूर्ण व्यवहार बनाये, एक-दूसरे को गले से गले मिलना सिखलाये। सब बच्चे मिल फुलझडियाँ छुडाये, खुशी-खुशी एक-दूसरे को मिठाई खिलाये। इस त्यौहार में जो करे पटाखो से मनमानी, उसको वो याद दिला दे उसकी नानी। जो पटाखे फोड़ने से पहले पास रखे पानी, वही है सच्चे व अच्छे माँ-बाप होने की निशानी। हम इस दिन बच्चों को बिल्कुल नहीं डा...
रामचरित मानस जगती पर
कविता

रामचरित मानस जगती पर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** रामचरित मानस जगती पर, हर युग में सुखदाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। रघुकुल के आदर्श पुरुष के, कोटि-कोटि अनुयायी हैं। चाहे कितने भी रावण हों, हर युग में भूशायी हैं। श्रीराम का शैशव अद्भुत, अतुलनीय तरुणाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। जनकसुता भी राजमहल तज, साथ नाथ के वन आईं। रहीं सतत प्रतिकूल दशा में, कष्ट सहे पर मुस्काईं। सीता जी-सी गरिमा जग में , नहीं किसी ने पाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। रही उर्मिला राजमहल में, सहती रही विरह के पल। उधर लक्ष्मण निज भ्राता की सेवा मे रत थे अविरल। दुर्लभ इस धरती पर अब तो मिलना ऐसा भाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। श्रद्धावान सुखद सेवा में, नतमस्तक संलग्न रहे। दशा-दिशा भी भूल गए वे, सहज भाव में मग्न रहे। शबरी-केवट की श्र...
मेरा जिस्म
कविता

मेरा जिस्म

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरा जिस्म जैसे कब्रिस्तान हो गया नश्वर शरीर मे अमर आत्मा लिए हूँ सांसे ही भारी लगने लगी है अब तो फिर भी रिश्तों का बोझ लिए लिए हूँ किसी से मिलने को जी नही करता मैं हर किसी के कदम चुम लिए हूँ तेरे लिए जान दे देंगे वो कहा करते वो सिर्फ बातें ही थी परख लिए हूँ अपनी परेशानी को खुद कंधा देना है वक़्त और तजुर्बे से मैं सिख लिए हूँ दर्द बताएगा तो लोग तुझ पर हँसेंगे इसीलिए मैं होठों पर मुस्कान लिए हूँ परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् धार का आनलाइन कवि सम्मेलन सम्पन्न
साहित्यिक

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् धार का आनलाइन कवि सम्मेलन सम्पन्न

कविता कवि के हृदय की पीड़ा है जो कि आह से शुरु होकर वाह पर विश्राम लेती है ...प्रतिमा सिंह धार। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् जिला इकाई धार ने महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमें मुख्य अतिथि श्री विजय तिवारी गजलकार अहमदाबाद, विशिष्ट अतिथि वीररस की कवयित्री प्रतिमा सिंह इंदौर तथा अध्यक्षता श्री त्रिपुरारि लाल शर्मा मालवा प्रातांध्यक्ष थे। कार्यक्रम की शुरुआत प्रतिमा सिंह इंदौर ने सरस्वती वंदना से की और अपनी कविता में कहा कि कविता, कवि के हृदय की पीड़ा है जो कि आह से शरु होकर वाह पर विश्राम लेती है। प्रवीण व्यास इंदौर ने अपनी कविता में महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए कहा कि मरा-मरा रट राम-राम कर संत महर्षि हो जाते हैं, रत्नाकर डाकू से जो वाल्मीकि बन जाते हैं। सरदारपुर के कवि अजय पाटीदार ने मां के चरणों में घनाक्षरी पढ़ा। मनावर के कवि राम शर्मा प...
भोली प्रार्थना
कविता

भोली प्रार्थना

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गर्वीले चाँद के आलोक में! उसका अक्षत आशीष ले!! चलनी के आवरण में!!! जो देखा तुम्हें : तेरे अधरों पर थिरक उठी उषा - सी गुलाबी मुस्कान में देखी मैंने अपनी अरुणाभ छवि!! और पा गई अपनी जन्मभर की तपस्या और समर्पण का सुफल!! सारे सिंदूरी सपने! सजन तुझसे हुए अपने!! तुम्हारे प्रीत की यह रागारुण चूनर! सदा रहे मेरे माथ!! अखंड सौभाग्य बन!!! ताउम्र नसीब होती रहे तेरे हाथों पारणा का ये पहला निवाला! तुम मेरे भोले मन की निश्चल प्रार्थना!! मीत! तुझ संग लिखूँ प्रीत की अमिट इबारत!!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक म...
मौत के कारोबारी
कविता

मौत के कारोबारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** समाज में भरे हैं ये मौत के कारोबारी आतंक का कफन ओढ़े हुए, सुदूर तक हर तरफ गोली और बारूद से सजते हैं नित नए बाजार इनके कौड़ियों के मोल बिक रही इंसानों की जिंदगी अपने ही अपनों के खून के प्यासे हो रहे। इस आतंक" का ना कोई धर्म है ना कोई जाति, ना ही है कोई भगवान या खुदा इनका, ईमान की बातों से ना ही रहा इनका सरोकार। घरों के चिराग बुझ गए इनकी हैवानियत से, सिंदूर धुल गया हर ओर पानी से सिसकियां भी दबी सी सुनाई देती हैं तिनका तिनका पूछ रहा है ये सवाल.... ये इंसान हैं या मौत के कारोबारी ???? परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यिक पुस्त...
व्याकरण चालीसा
दोहा

व्याकरण चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* अनुस्वार अनुनासिका, सदा राखिये ध्यान। अनुनासिक में लघु लखो, अनुस्वार गुरु जान।। अनुनासिक में एक है, अनुस्वार दो होय। हँसते-हँसते जानिये, हंस हँसा नहि कोय।। भाषा का संविधान बनाया। परिभाषा व्याकरण कहाया।।१ व्याकरणा के तीन हैं भेदा। वर्ण शब्द अरु वाक्य सुभेदा।।२ पाणिनि मुनि ने बहु तप कीना। हो प्रसन्न शिव ने वर दीना।।३ डिम डिम डमरु नाद सुनाया। शिव ने चौदह बार बजाया।।४ देव नागरी ध्वनी सुनाई । यही वर्णमाला कहलाई।।५ नागरि लिपि है ज्ञान की धारा। समय समय विज्ञान विचारा।।६ वर्णों के दो भेद बताये। स्वर व्यंजन में रहे समाये।।७ दीरघ लघु दो स्वर के भेदा। अइउऋ लगति मात्रा एका।।८ ए ऐ ओ औ ऊ अरु आ ई। सातों दीरघ दो कहलाई।।९ अं अः तो आयोग कहाते। ये भी मात्रा दो लगाते।।१० स्पर्श उष्मा अरु अंतस्था। व्यंजन संयुक्त अरु है रुढ़ा।।११ अष्टाध्यायी ग...
हाय रे पैसा
कविता

हाय रे पैसा

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** पैसे के लिए तु दिन-रात काहे को जागे, पैसे के पीछे काहे बार-बार तु भागे। माना कि तु पैसे से बढ़ जाता सबसे आगे, काहे तुमने छोड़ दिये पैसे के कारण मानवता के रिस्तेऔर धागे। काहे तु बार बार पैसे के पीछे भागे, काहे तु पैसे के लिए दिन-रात जागे। माना कि पैसे से तु बन जाता धनवान, फिर भी इस दुनिया में सबसे बड़ा है भगवान। काहे तु पैसे के लिए अधर्म पे अधर्म करता जाये, सबसे बड़ा है मानव धर्म तु उसको काहे को भुलाये। मानव तु पैसे के लिए दिन-रात जागे करता हाय-हाय, एक दिन सब कुछ छोड़ के चल दोगे करके टाटा बाय-बाय। काहे तु पैसे के पीछे भागा जाये, काहे तु पैसे के पीछे भागा जाये। अति से किसी का कभी भी हुआ नहीं भला, दिन-रात मानव तु पैसे के पीछे-पीछे क्यू चला। अति भला न पैसे कमाना,अति भला न पैसे का खर्चाना, अति तुम कभी किसी का करना ना, न...
बहुत याद आता है
कविता

बहुत याद आता है

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** तुम्हारा मुझे एक टक निहारना मुझें बहुत याद आता है, तुम्हारा दुपट्टे में मुँह छिपा कर मुस्कुराना, मुझें बहुत याद आता है, नित्य नये-नये खत लिख कर देना, मुझें बहुत याद आता है, ऊपर से गुस्सा होना और भीतर ही भीतर मुझें दिल से मानना, मुझें बहुत याद आता है, तुम्हारा मुझपर अपना हक़ जमाना, मुझें बहुत याद आता है, मुझसे रूठना, बातें ना करना लेकिन मेरी खुशियों की दुआ करना, मुझें बहुत याद आता है, छुप-छुप कर मेरा स्टेटस देख मुझे याद करना, मुझें बहुत याद आता है, मेरी छोटी-छोटी बातों पर मुझसे झगड़ा करना, मुझें बहुत याद आता है, मेरी धड़कनों को अपना एहसास बनाना, मुझें बहुत याद आता है, मेरी हर एक रचना को दिल से पढ़ना, मुझें बहुत याद आता है, तुम्हें अपने प्यारे सूट मे देखना, मुझें बहुत याद आता है, तुम्हारे अधरों का रक्तिम लिपस्टिक, मुझें बहुत याद आ...
सरदार पटेल
कविता

सरदार पटेल

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** अद्वितीय गौरवान्वित गुजरात की गरिमा के मुकुटमणि। गरिमामय भारत के स्वतंत्र चेता मंगल कामना के शिरोमणी।। अखण्ड भारत के श्रेष्ठ निर्माता राष्ट्र के हो तू शौर्य वीर सपूत। तुझे करते हैं हम शत् शत् नमन भारतीय आत्मा के सपूत।। ३१ अक्टूबर, १८७५ को प्रकाशित हुआ भारत का नक्षत्र। सजी माँ भारती की आरती बिखरे खुशियों के नूर सर्वत्र।। झवेरभाई-लाडबा के कुलदीपक का चारो ओर तेज जगमगाया। भारत फूला न समाया सबके हृदय स्नेह-भाव जगाया।। कर्त्तव्य-निष्ठा का अडिग शिखर जनहित का तू नायक अनोखा। सुख-दुख में तू स्थित प्रज्ञ हिमालय सी उत्तुंग श्रृँग शिखा।। पत्नी देहांत का ग़म पी के वकालत का किया काम दिल से। किसीको भास न होने दिया न्याय दिलाया सत्कर्म से।। समाज संगठन के कुशल नेता राजनीति में तू सत् का श्रेष्ठा। राष्ट्रीय एकत...
बना दुश्मन जमाना
कविता

बना दुश्मन जमाना

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** तुम दिल में क्या बसी बना दुश्मन जमाना नज़र ऊपर उठाते हम बना दुश्मन जमाना सदियों से ख्वाब तुम्हारा ही देखा मैंने मालूम होने लगा बना दुश्मन जमाना मुहब्बत-ए-जिंदगी खुशहाल बन गई यारों रहा न गया हबीबों से बना दुश्मन जमाना हरिफों का यही मशगला 'मोहन' कैसे तोड़े कुछ न कर सके फ़कत बना दुश्मन जमाना देर है अंधेर नहीं इंतजार है इशारा-ए-खुदा मुहब्बत करने वाले का बना दुश्मन जमाना शब्दार्थ- मशगला- मुद्धा, उदेश्य, बस यही एक कार्य परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...
अन्तर्द्वन्द
कविता

अन्तर्द्वन्द

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** उसका संघर्ष दु:ख मय हुआ होगा, जब उसकी कड़ी मेहनत रंग लाई प्रतिस्पर्धियों मे से आगे निकला तब सबको जो पीछे छोड़ कर वो मे नई -नई कल्पना करता हूँ.... क्योंकि मे अन्तर्द्वन्द मे रहता हूँ.... देश से प्यार करने वाले भगत सिंह है जो कभी ना मोत से डरते हो बात आए जब मातृभूमि पर तब सामने कोंन ये कोई ना बतलाता हो मे नई -नई कल्पना करता हूँ.... क्योंकि मे अन्तर्द्वन्द मे रहता हूँ.... कनक को आग में पीटते हैं बना आकार अच्छा तो बिकता जो ना तो पुनः पिट जाता हैं हमे भी इसकी तरह बन जाना है मे नई -नई कल्पना करता हूँ.... क्योंकि मे अन्तर्द्वन्द मे रहता हूँ.. परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
ताकत कलम की
कविता

ताकत कलम की

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** न्यून-सी नोंक, छोटा-सा कद सभ्य, अनुशासित होकर संभालती उच्च पद जो संभव न हो तलवार से वो कलम कर दिखाती हैं क्रूर, विनाशकारी हिंसा से अंत में, ताकत कलम की श्रेष्ठ कहलाती हैं कलम के भाव कभी मनोरंजन तो कभी तूफान जुबां से निकले शब्द नहीं डालते जब कोई प्रभाव तब हस्ताक्षरित अटल फैसला सुनाती हैं अंधकारमय वातावरण में भी कलम आशा की किरण बन जाती हैं वृहत हथियारो से, शब्दों की बौछारों से ताकत कलम की श्रेष्ठ कहलाती हैं परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
मै राष्ट्र भाषा हिन्दी
कविता

मै राष्ट्र भाषा हिन्दी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मै राष्ट्र भाषा हिन्दी आजाद भारत में जन्म लेकर बहुत प्रफुल्लित हुई इस गंगा जमुनी संस्कृति में घुटनों के बल चलकर बड़ी हुई धीरे-धीरे यौवन की दहलीज पर कदम रखने लगी फिर अन्य भाषाओ की बुरी नजर मुझ पर पड़ने लगी अंग्रेजी तो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन निकला उसने मेरी बहन संस्कृत को डरा धमकाकर उसे सलाखों के पीछे डालकर मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने लगा मै भाषाओं की भीड़ में पंजे के बल खड़े होकर अपने होने का अहसास कराती हूँ कहीँ आगे कर दी जाती हूँ कहीं पीछे धकेल दी जाती हूँ अब तो साल में सिर्फ एक दिन मान सम्मान मिलता है बाकी के दिनॉ में सिर्फ दोयम दर्जे का मान मिलता है आजादी के इतने वर्षों के बाद भी अपने आजाद अस्तित्व के लिये संघर्ष करती देखी जाती हूँ हिन्दी है तो हिंदोस्तां है यह सबक याद दिलाती हूँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” ...